मास्साब कक्षा
चौथी के बच्चों को पढ़ा रहे हैं. दीवाली असत्य पर
सत्य की विजय का त्यौहार है. दीवाली पर खूब
साफ सफाई कर दीपक जलाये जाते हैं. रोशनी की झालर
लगा कर अंधेरे को भगाया जाता है. दीवाली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है. दीवाली पर लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है ताकि धन धान्य की कोई कमी न हो. दीवाली बहुत से व्यापारियों के हिसाब किताब का
समय भी है. दीवाली पर मिठाई
खाई जाती है. नये कपड़े पहने
जाते हैं. पटाखे चलाये जाते
हैं...
पटाखे क्यूँ
चलाये जाते हैं? राजू पूछ रहा है.
क्यूँकि पटाखे चलाने
से रोशनी होती है और धमाके की आवाज होती है जिससे डर कर बुरी बलायें आपके जीवन से
भाग जाती हैं और पटाखे के धुँए से मच्छर मख्खी कीड़े मकोड़े आदि भी भाग जाते हैं और
सिर्फ खुशहाली खुशहाली ही रह जाती है...मास्साब ने बताया.
तो क्या खुशहाली
को पटाखों की आवाज और धुँए से डर नहीं लगता?
नहीं जैसे सत्य
किसी से नहीं डरता वैसे ही खुशहाली भी किसी से नहीं डरती.
फिर दिल्ली में
पटाखों पर बैन क्यूँ लगा दिया है? राजू ने जानना
चाहा.
वो तो प्रदुषण के
कारण लगाना पड़ा क्यूँकि दिल्ली में गाड़ियों और पड़ोसी राज्यों की तरफ खेतों के कचरे
के जलाये जाने से आते धुँए से वैसे ही बहुत प्रदुषण है, इसलिए अगर उसी में पटाखे भी फोड़े जायेंगे तो
प्रदुषण और बढ़ जायेगा. समझा करो..
मगर दीवाली तो एक
ही दिन की है. बाकी जो धुँए साल
भर होते हैं, उस पर क्यूं नहीं
रोक लगाई जाती?
उसके उपाय भी
खोजे जा रहे हैं. ऑड ईवन का
फार्मुला भी लाया गया था मगर भाईचारे की कमी के कारण कामयाब न हो पाया. अब कुछ नया देखा जायेगा..वो तो सेन्सेशन का सियासी मामला है ..लगातार चलता रहेगा.
वैसे अगर धुँए से
कीड़े मकोड़े और मच्छर मख्खी भाग जाते हैं तो फिर दिल्ली में इतने धुँएं के बाद भी
डेंगू के मच्छर क्यूँ हैं? क्या यह भी
खुशहाली की निशानी है? यह क्यूँ नहीं
भागते?
वो बात अलग है..दीवाली पर एकाएक पटाखों से खूब सारा धुँआ और
आवाजे हो जाती हैं इसलिए मना किया गया है...कह कर मास्साब ने टालने की कोशिश की.
राजू कलयुग के भी
सबसे भीषण युग, इन्टरनेट एवं
मीडिया युग का बच्चा है. वह अति जिज्ञासु
है.
तब क्या यह शादी
बारात, क्रिकेट मैच और
चुनाव जीतने वाले जलूसों में भी बैन किया जायेगा?
नहीं नहीं,सिर्फ दिवाली के
लिए है. क्रिकेट, शादी, नेतागिरी तो दिल्ली के प्रदुषण की तरह सदा
होना है सब धर्म जाति के लोग उसमें शामिल रहते हैं.
राजू कन्फ्यूज है
कि जो पटाखा दीवाली के दिन फूटने पर नुकसानदायी है वो नेता के चुनाव, क्रिकेट जीतने पर या शादी की बारात में क्यूँ नहीं
नुकसान पहुँचाता?
अगर मास्साब उसे
दीवाली की सफाई से जोड़ कर समझाते तो शायद वो फिर भी समझ जाता.चाहते तो भारत के स्वच्छता अभियान से जोड़ कर भी
बात कर सकते थे कि पटाखों से गंदगी फैलती है, कूड़ा मचता है जो दीवाली के मेन्डेट के खिलाफ है. शायद कोई सरकारी अवार्ड भी पा जाते मास्साब
ऐसे समर्थन पर.
वैसे राजू अब गहराई
से सोच रहा है दीवाली और चुनाव जीतने वाले जलूस के बारे में तो उसे लग रहा है वाकई
अन्य शहरों से चुनाव जीत कर पटाखों की आवाज और धुँए से शहर छोड़ आई बलायें जो दिल्ली की
संसद में विराजमान है और उन पटाखों के धुँए से शहर छोड़ कर दिल्ली में आ ठहरे भक्त
रुपी मच्छर मख्खी ..उनके बारे में
सोचना भी जरुरी है.
ऐसे में अगर
दिल्ली में भी पटाखे छोड़े जाने लगे तो यह कहाँ जायेंगे?
बलाओं और मच्छर
मक्खियों को भी तो रहने के लिए कोई न कोई ठिकाना चाहिये.
शायद दिल्ली में पटाखों
पर बैन ही एक मात्र उपाय है!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के सुबह
सवेरे में अक्टूबर १५, २०१७ को प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/22931075
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"नन्हें दीप जलायें हम" (चर्चा अंक 2759)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Laajawaab !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ८६ वीं जयंती पर डॉ॰ कलाम साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंSada ki trha achha likha aapne dipavali ki shubhkamnaon ke saath 2 anekon badhai...
जवाब देंहटाएं