किसान है बिरजू..तो तय है परेशान तो होगा ही..मरी हुई फसलें और उनके चलते सर पर चढ़े बैंक के लोन का बोझ..
ये परेशानी भी ऐसी वैसी
नहीं है..उस सीमा तक की है कि बिरजू
जान गया था अब आत्म हत्या के सिवाय कोई विकल्प बाकी नहीं बचा है.
वो सुबह सुबह उठा, पत्नी और
बच्चों को सोते में ही देखकर मन के भीतर भीतर माफी माँगते हुए अहाते में लगे पेड़
पर रस्सी से फंदा बना कर लटक गया..आज वो मुक्त हो जाना चाहता
था हर दायित्व से और हर उस कर्ज के बोझ से..जिसके नीचे दबा वो जिन्दा तो था पर साँस न
ले पाने को मजबूर.. मगर किस्मत जब साथ न तो मौत भी धोखा दे जाती है. पेड़ की टहनी
कमजोर थी...जामुन के पेड़ में भला ताकत
ही कितनी होती है कि उसका वजन ले पाती..कर्ज में डूबा था
मगर था तो मेहनती किसान ही. टहनी टूट गई और वो धड़ाम से
गिरा जमीन पर..
कहते हैं गिरना हमेशा एक
सीख देकर जाता है..तो भला वो कैसे अछूता रह
जाता...
वो जान गया है कि सदियाँ
बीत जायेंगी मगर हालात नहीं बदलेंगे..किसान आज भी भले कहलाता
अन्नदाता है मगर परिस्थितियाँ यूँ हैं कि आत्म हत्या को मजबूर है..ये कल भी यूं ही था और कल भी यूं ही रहेगा..
एकाएक वो उठा और घर में बचे
सारे पैसे लेकर निकल पड़ा बस पकड़ कर शहर की तरह...
शाम देर से लौटा तो उसके
पास सागौन के पेड़ के बीज थे..
कल वो अहाते से जामुन का
पेड़ उखाड़ फेकेगा...और बोयेगा सागौन का
बीज..
वो जानता है कि वो बीज अगले
५० साल बाद में जाकर परिपक्व मजबूत पेड़ बनेगा सागौन का..
मगर वो यह भी जानता है कि
अगले ५० साल बाद भी हालात न बदलेंगे और उसकी आने वाली पीढियाँ भी उसी की तरह
अन्नदाता कहलाती किसी पेड़ से लटक कर आत्म हत्या करने को अभिशप्त होंगी..
बस अब वो यह नहीं चाहता कि उसकी
आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी की तरह कम से कम आत्म हत्या कर इस जीवन से मुक्त हो जाने
में धोखा न खायें..
आज वो खुश है कि चन्द दशकों
में उसके अहाते में सागौन का एक मजबूत पेड़ खड़ा होगा सीना ताने..
वो तो न होगा तब..मगर उसकी आने वाली नस्लें उसे याद करेंगी कि क्या इंतजाम
करके गये हैं बिरजू दद्दा..
-समीर लाल ’समीर’
अमेरीका से प्रकाशित
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ’सेतु’ के वार्षिकांक, २०१७ में प्रकाशित
http://www.setumag.com/2017/06/Sameer-Lal-Fiction.html
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बेबसी का बेहतरीन चित्रण ....
जवाब देंहटाएंआपका लेखन असरकारक है, मंगलकामनाएं समीर भाई !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बेहद सकारात्मक सन्देश है आपके इस पोस्ट में | मेरी कोशिश रहेगी पुनः से आपके हर पोस्ट को पढता रहूँ ,अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंकाश सिस्टम हमारा बन सकता सागौन का पेड़. बढ़िया। मार्मिक भी।
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाए !
जवाब देंहटाएंमॉडरेशन !!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बडी बेबसी है अन्नदाताओं की, बहुत ही मार्मिक.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
महाराष्ट्र में ऐसे बिरजू खुद अपने हाथों से अपनी चिता सजाते हैं...
जवाब देंहटाएंजय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
मार्मिक, अब क्या करे...
जवाब देंहटाएंमार्मिक और प्रेरक.
जवाब देंहटाएंदिल को छूती हुयी पोस्ट समीर भाई ... पर ये बदलाव कब और कैसे होगा ...
जवाब देंहटाएंसच्ची बात
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रतीक डॉ० मुखर्जी - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंकाश हर आदमी अपने घर के लिए एक सागौन के पेड़ की तरह होता।
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