भरपूर
बारिश का इन्तजार किसान से लेकर हर इंसान और प्रकृति के हर प्राणी को रहता है. भरपूर बारिश शुभ संकेत होती है इस बात का कि खेती अच्छी होगी, हरियाली रहेगी, नदियों, तालाबों,
कुओं में पानी होगा. सब तरफ खुशहाली होगी. लेकिन जब यही बारिश भरपूर की मर्यादा तोड़ बेइंतहा का दामन थाम कर बाढ़ की शक्ल अख्तियार कर लेती है,
तब वह अपने साथ तबाही का मंजर लाती है.
मर्यादाएं
तोड़ना अक्सर तबाही की ओर ले जाता है.
इसीलिए
कहते हैं ना अति बरखा ना अति धूप - अति सर्वत्र वर्जिते!
बाढ़ से
जहां एक ओर खेती नष्ट होती है. वहीं दूसरी तरफ जान माल की भी बहुत हानि होती है
इसे प्रकृति का प्रकोप माना जाता है.
ऐसा नहीं
की बाढ़ सिर्फ पानी की होती है. जहां कहीं मर्यादाएं लाँधी जाती है.. किसी बात की अति कर दी जाती है, तब वह बाढ़ का
ही स्वरुप मानी जाती है और एक तबाही का मंजर पैदा करती है. हमारे देश में समय समय
पर कभी धरनों की बाढ़, कभी आंदोलनों की बाढ़, कभी पुरस्कार वापसी की
बाढ़, कभी
देशद्रोह की बाढ़ और भी न जाने कैसी कैसी बाढ़ें देखने में आती है.. अंततः देखा यही
गया है कि सभी तबाही की ओर एक नया कदम होते हैं.
पिछले दशक
में इंटरनेट, फेसबुक, ब्लॉग, व्हाटसएप आदि नें संपादकों द्वारा
साहित्य
में निर्धारित मानकों की मर्यादाओं को तोड़ते हुए सीधे
लिखने वाले के हाथ में छापने की बागडोर
सौंप दी..
तब देखिए नए-नए कहानीकारों और कवियों की
ऐसी बाढ़ आई कि जो भी टाइप करना सीख गया, वह कवि और
कहानीकार हो गया. अगड़म बगड़म चार पंक्तियां लिखी और उसे नव कविता का नाम दें फेसबुक पर छाप
खुद को नामचीन कवि मान बैठे. इस जमात की बाढ़ ने
कविता और साहित्य की दुनिया में कैसी तबाही मचाई है, यह किसी से छुपी नहीं है. पानी
की बाढ़ की तबाही से तो खैर देश जल्द ही उबर आता है.. लेकिन साहित्य और कविताओं की इस तबाही से
उबरने में साहित्यजगत को सदियाँ लग जाएंगे मगर दर्ज यह मंजर फिर भी रहेंगे.
इसी कड़ी
में हाल ही में व्यंग्यकारों की भी एकाएक बाढ़ सी आ गई है और जल्द
ही व्यंग्य के क्षेत्र में भी तबाही का मंजर देखने में आएगा. व्यंग्य के स्थापित
मठाधीशों को तो नजर आने भी लगा है. मैं खुद भी अपनी तरफ से इस तबाही के हवन में
कुछ दो
चार आहूतियां डालते चल रहा
हूं ताकि
इतिहास बनाने में पीछे न छूट जाऊँ. कविता और कहानी के क्षेत्र में भी मेरी
आहूतियां की अहम भूमिका को इनकी तबाही का इतिहास हमेशा याद करेगा.
कुछ बरस
पहले भ्रष्टाचार की बाढ़ का मंजर सब ने देखा.
भ्रष्टाचार की अति ने सदियों से जमीं कांग्रेस
पार्टी को ऐसा नेस्तनाबूद और तबाह किया कि अब
चंद गिनती
के सिपाही इसे जिंदा रखने के लिए
सीपीआर देने में जुटे हैं और इसकी सांस है कि लौटकर आने का नाम ही नहीं लेती.
इधर कुछ
वर्षों में मोदी-मोदी के समर्थन की भी बाढ़ सी आई हुई है. बाढ़ तो क्या कहें इसे, सुनामी कहना ही ज्यादा मुफीद होगा. जैसे सुनामी के बाद जहां देखो, सब कुछ जलमग्न दिखाई देता है..
एक आध टापू नुमा कुछ अगर बचा भी रह जाए तो इस अताह जलराशि के समुंदर में वो
कहीं अपनी कोई अहमियत नहीं रखता और देखते देखते एक दिन हिम्मत हार कर वह भी उसी समंदर में डुबकी लगा लेता है. वही हाल
पूरे हिंदुस्तान ने इस सरकार को समर्थन देकर सब
कुछ मोदीमय एवं मोदीमग्न कर दिया है.
लोकसभा के
बाद सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश
में पुनः वही सुनामी ऐसा हाहाकार मचा कर
उठी कि गोवा और उत्तराखंड जैसे प्रदेश
जहां बाढ़ न भी आई थी, वह भी टापू मानिंद
सुनामी की हाहाकार में मोदी रुपी समुंदर में डुबकी लगा कर बैठ गए. फिर तो चाहे
दिल्ली महानगरपालिका हो या लेफ्टिनेंट गवर्नर या राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव.. हर तरफ समर्थन की वही बयार..
मैं नहीं
कहता कि हम किसी तबाही की ओर अग्रसर है और न ही
मुझे देश
के कोने कोने से प्राप्त, भले ही कोई इसे ईवीएम की घपलेबाजी माने
या झूठे
वादों और प्रलोभनों का असर, समर्थन से कोई एतराज है.. बस बाढ़ का स्वभाव जानता हूँ और सुनामी का तांडव देख चुका हूं तो मन घबरा सा जाता है..
घबराए मन
की व्यथा लिख दी है ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे..
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के
दैनिक सुबह सवेरे के जुलाई २३, २०१७ के अंक में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/20762304
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
साहित्य से लेकर राजनीती तक की बाढ़ का सटीक उल्लेख किया है आपने। बाढ़ में जिसमे गुण होगा वो बचा रहेगा। साहित्य के क्षेत्र की बाढ़ अपनी बात कह पाने के सरल माध्यमों की उपलब्धता से आई लेकिन राजनीती के क्षेत्र की बाढ़ आने का कारण मेरे हिसाब से विकल्पों की अनुपलब्धता है। जब तक राजनीति में सशक्त विकल्प उपलब्ध नहीं होंगे तब तक ये बाढ़ ऐसे ही चलती रहेगी। बाकी साहित्य में क्वालिटी कंटेंट बचेगा और जिसमे क्वालिटी नहीं है वो टाइम लाइन में दफ़न हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख। एक और गुजारिश थी आपसे आप कनाडा के विषय में क्यों नहीं लिखते हैं। उसके विषय में भी लिखा कीजिये। एक नया नजरिया मिलेगा हमे।
इस मोदीसागर में सब डूबकी लगाये बैठे हैं....लाजवाब व्यंग.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " स्व॰ कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल जी की ५ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंये तो पब्लिक है ये सब जानती है ...
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं होने वाला ... अब हर सुनामी को उठा फेंकने को तैयार है जनता ...
मर्यादा में ही अच्छे से रहा जा सकता है
जवाब देंहटाएंसार्थक विचारशील प्रस्तुति
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं !
मर्यादा में ही अच्छे से रहा जा सकता है
जवाब देंहटाएंसार्थक विचारशील प्रस्तुति
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं !