याद आता है २००३ का पावर आउटेज -जिसने पूरे उत्तरी
अमेरिका को अपनी चपेट में ले लिया था ,सारे शहर तीन दिन के लिए बिना
बिजली के हो गये थे. कहा जाता है कि यहाँ का
जीवन यांत्रिक है. बिना बिजली के एक सांस लेना भी मुश्किल है. सब दावों को धता बताते
हुए जीवन चला था उन तीन
दिनों में भी..... लोगों ने एक दूसरे की इतनी
मदद की कि लोगों की मानवता से फिर मुलाकात हुई, फिर विश्वास जागा मानवता में. लगा कि ऐसा कार्यक्रम प्रायोजित करते रहना
चाहिये जनहित में, मानवता में भरोसा जगाये रखने के लिए.
तब अमरीका के राष्ट्रपति ने
टीवी पर राष्ट्र पर आई इस मुसीबत के लिए माफी मांगी और कड़ी निंदा से इतर एक वादा
किया कि आगे से ऐसा न हो, इस हेतु फलां फलां कदम उठायेंगे. वादे का दम या कदमों की धमक, उसके बाद से १४ साल बीत गये, फिर कभी वैसा न हुआ.
उस रोज उनके लिए भी संभव था कि इस घटना की कड़ी निंदा कर
देते, चन्द जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित कर देते. मगर नहीं, मूँह तोड़ जबाब की गीदड़ भभकी के बदले जी तोड़ मेहनत वाले समुचित कदम उठाये
इसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए और सफल भी हुए.
अब जरा सोचें कि हमारे देश के राष्ट्रपति
अगर बिजली चले जाने पर टीवी पर आये और राष्ट्र से माफी मांगे तब तो हमारे
राष्ट्रपति २४ x ७ टीवी स्टेशन पर ही माफी
मांगते नजर आयेंगे- युनिवर्सिटियों की डिग्रियां और पुरुस्कार
कब बांटेंगे?
इधर दो दिनों से एक नया नाटक चल रहा है कि सज्जन ने झूठ
क्रेडिट ले लिया अत: वह इस्तीफा दें?
व्याकरण के जानकारों को बताता चलूँ कि दरअसल ये सज्जन
विशेषण वाले नहीं, संज्ञा वाले हैं.
हरजीत सज्जन कनाडा के रक्षा मंत्री हैं. भारत यात्रा पर गये
थे..मौसम का तकाजा कहो या संगत का..बोलने लगे तो फेंकने लगे..फेंके भी ऐसा कि मानो
मितरों से कह रहे हों कि अफगानिस्तान की जब कनाडा ने ईंट से ईंट बजाई, तो उन ईंटों
के बजाने की धुन मैने बनाई थी.
मानो सज्जन सज्जन न होकर भारतीय म्यूजिक कम्पोजर हो लिए, हर धुन को
अपनी मौलिक धुन बता कर क्रेडिट ले लेते है. चलो, राजनीत में
है तो म्यूजिक की बात न भी करें तो समझो हमारे सबसे बड़े नेता हो लिए हों कि मंगल
यान से लेकर सबसे सस्ते जलपान का क्रेडिट लिए जा रहे हैं. मानो इनके पहले सब हाथ
पर हाथ धरे बैठे थे और पिछले ६७ सालों में सब मात्र दाँत चियारे बैठे हों पूरे
भारत में,,काम अब शुरु हुआ है नोट बंदी के साथ.
बस, सज्जन जी से भूल इतनी सी हो गई कि हैं भले ही
सरदार, मगर भूल गये कि कनेडीयन भी हैं और वो भी कनाडा जैसे
देश के रक्षा मंत्री.
सैनिकों ने बवाल मचा दिया कि ये उस समय अफगानिस्तान में थे जरुर
मगर एक सैनिक की हैसियत से और प्लान टीम का बनाया हुआ था और ये तो टीम लीड भी न थे
बस टीम मेम्बर थे. फिजूल में क्रडिट ले लिया है..इस्तिफा दें.
बवाल मचा तो इन्हें याद आया कि ओए, हुंड तो कनेडियन सी...तो लिहाज करते माफी वगैरह मांगी. भारतीय हैं तो
सेटिंग तो कर ही लेते हैं. अतः कनाडा के प्रधान मंत्री ने भी कह दिया कि चलो,
जाने दो..बंदे ने देश की सेना से लेकर पुलिस में इत्ती सेवा की है.
मगर विपक्ष है कि अड़ा है कि इनको मॉरेल ग्राऊण्ड पर इस्तीफा देना चाहिये..
विपक्ष को कौन समझाये कि हम भारतीय हैं..भले ही कनेडीयन
नागरिकता ले ली हो..डी एन ए तो वही है न... झूठ बोलने पर या झूठा क्रेडिट लेने पर
इस्तीफा देने लगे तो हमारी सरकार मय प्रधान मंत्री से लेकर पार्षद तक ऐसी भड़भड़ा कर
गिरेगी कि उसकी धमक विश्व भर की सारी न्यूक्लियर संधियों को नेस्तनाबूत कर देगी.
फिर होती रहे विश्व भर में हमारे धमाके की कड़ी निंदा..
हमें तो पता ही है कि कड़ी निंदा से कुछ नहीं होता जाता बस
मूँह छुपाने का बहाना मिल जाता है.
-समीर लाल ’समीर’
http://epaper.subahsavere.news/c/18853044
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
जवाब देंहटाएंसंघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्या बात है. :-)
जवाब देंहटाएंक्या बात .. :-)
जवाब देंहटाएंकुछ आदतें हमारे राष्ट्रीय चरित्र में शामिल हो गई हैं जैसे बड़ी-बड़ी बातें करना,इनकी जगह कुछ कर दिखाने का दम होना चाहिये .
जवाब देंहटाएं