किस्मत कुछ ऐसी रही कि जिस जमाने में हम पैदा
हुए, शराफत और इमानदारी इस दुनिया से विदा हो चुके थे. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं हमारे
शहर भर के बुजुर्ग बताया करते थे. जिससे सुनो बस यही सुनते थे कि..अब शराफत का
जमाना नहीं रहा. विदा तो खैर तब तक गाँधी जी भी हो चुके थे मगर उनके बारे में जान
लेने के लिए और बताने के लिए इतिहास की किताबें थी और ज्ञानी लोग थे.
शराफत के विषय में किताब में जो कुछ भी दर्ज पाया
या लोगों से जाना वो बड़ा कन्फ्यूज करने वाला रहा अतः कभी कोई निश्चित जबाब मिला ही
नहीं. जब तक हम किसी की किसी हरकत को शराफत समझते वो उसे छोड़ने की घोषणा करता
मिलता है कि बस, अब तक हम शराफत से पेश आ रहे थे तो तुमको समझ नहीं आ रहा था, अब
हम बताते हैं तुमको अपनी असली औकात...
पुलिस वाला तक शराफत और इमानदारी की बात करता नजर
आता है तो सारा पढ़ा लिखा पानी हो जाता है. उस दिन पुलिस वाला कहता मिला कि शराफत
से पूछ रहा हूँ इमानदारी से बता दो वरना तो फिर तुम जानते हो हमें उगलवाना आता
है..
लोग शराफत को कपड़ो की तरह उतारते पहनते दिखते
हैं. कोई उसे कही छोड़ आता है तो कोई कहता है कि शराफत गई तेल लेने. एक सज्जन का तो
तकिया कलाम ही यही मिला कि हमसे से शराफत की उम्मीद मत रखना, उधार देना जानते हैं
तो ब्याज वसूलना भी जानते हैं.
एक तरफ तो बुजुर्ग बता गये कि शराफत का जमाना गया
तो दूसरी तरफ ऐसे ऐसे विवादास्पद दृष्य देखकर आज तक ये ही नहीं समझ आया कि शराफत
होती क्या है. ऐसे में कल को जब बच्चे पूछेंगे कि शराफत क्या होती है तो क्या जबाब
देंगे?
यही सब सोच कर अब तो हम भी आजकल इतना ही कहते हैं
कि अब शराफत का जमाना नहीं रहा. हालांकि उम्र के इस दौर में बच्चों के लिए हम शहर
के वैसे ही बुजुर्ग है जिनका शुक्र में हमने जिक्र किया था हमारे जमाने वाले.
-समीर लाल ’समीर’
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
लगता है कोई दुर्लभ कीड़ा बन के रह गयी है शराफत आज ...
जवाब देंहटाएंBahut Khoob !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... शानदार पोस्ट .... Nice article with awesome depiction!! :) :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मैं सजदा करता हूँ उस जगह जहाँ कोई ' शहीद ' हुआ हो ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहर ज़माने का ये हाल है। बुजुर्गों के ज़माने में उनके बुजुर्ग कहते थे शराफत का जमाना नहीं रहा। बढ़िया व्यंग।
जवाब देंहटाएंसच में अब शराफत का ज़माना नहीं रहा...बहुत सुंदर प्रस्तुति...
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