पिछले साल वेलेन्टाईन डे पर सब को कुछ न कुछ अपनी
बीबी, प्रेमिका के लिए खरीदता और खिलाता देख कर मुन्ना ने यह तय किया था कि चलो,
इस बार तो अम्मा की तबीयत पर खर्चा लगा है मगर अगली बार तुमको पक्का वो गुलाबी
वाला मंहगा सलवार सूट दिलवायेंगे. अम्मा भी चला चली की बेला में हैं तब तक न रुक
पायेंगी तो तुम पर कोई रोक टोक भी न होगी. एक चश्मा भी खरीद देंगे. खूब सलवार सूट
पहन कर और चश्मा लगा कर सेल्फी खींचना.पुतनी भी मुन्ना की बात सुन कर बहुत खुश हो
गई थी.
अम्मा स्वास्थय में ऊँच नीच लगाये छः माह पूर्व समय
रहते निकल गई. कुछ दिन कमी खली मगर जीना तो है ही यही सोच कर पुतनी वेलेन्टाईन डे
का इन्तजार करने लगी. अक्सर सोचती तो चेहरे पर गुलाबी रंग उतर आता. उसके गांव में
तो ऐसे त्यौहार का पता भी नहीं था शादी से पहले उसे. शहर का यही तो अन्तर होता.
मगर होनी को कौन टाल सकता है? इस बार मुन्ना की
ऐन वेलेन्टाईन डे से पहले चुनाव की ड्यूटी लग गई. मुन्ना बोल कर गया है कि कोई बात
नहीं, अगले साल दिला देंगे और साथ में वो घूमने वाले रेस्टॉरेन्ट में खाना भी खिलवायेंगे.
बिना मौके के ये सब भला कब होता है एक आम निम्न वर्गीय परिवार में.
पुतनी उदास भी है और सरकार से गुस्सा भी कि ये भी
कोई समय है क्या चुनाव कराने का?
पुतनी इस बार गुस्से में वोट डालने नहीं जायेगी,
बस्स!!
किसी को अच्छा लगे या बुरा...किसी ने उसके अच्छा
बुरा लगने की भी कहाँ सोची भला?
-समीर लाल ’समीर’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
जवाब देंहटाएं"उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक