नोटबंदी के बाद ऐसा माना जा
रहा था कि अब लोगों के पास कैश खत्म हो गया है. लोग एटीएम की लाईन में खड़े ४५०० रुपये का इन्तजार करते ही
रह जायेंगे और उधर वो चुनाव करवा कर धीरे से जीत कर निकल जायेंगे. लाईन में खड़े लोग जिन लोगों का वोट बैंक हैं, वो गरीब, मध्यम वर्गीय और शोषित समाज
के आका अपना सिर धुनते रह जायेंगे.
ऐसे में दंगल फिल्म ने इनकी आँखें खोली और सबित कर दिया कि कैशलेस
के दौर में भी फ्लॉलेस दंगल का जलवा ऐसा होता है कि आप स्वयं आश्चर्यचकित रह
जायेंगे. जो देश सुबह से शाम तक सारा व्यापार और नौकरी चाकरी छोड़ कर एटीएम की लाईन
में खड़ा था, वो एकाएक सिनेमा देखने चला आया. १५ दिन में ४०० करोड़
रुपये इक्कठे कर लिए. हालाँकि यह डाटा अभी आना
बाकी है कि इसमें से कितना कैशलेस माध्यम से और कितना नगदी में आया. वैसे ऐसे समय में इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक बात नहीं है कि
हमारे पास यह डाटा मौजूद नहीं है जबकि डिजिटल युग के स्वयंभू प्रणेता और उनके
सिपहसालर यह नहीं जानते कि रिजर्व बैंक में कितना रुपया लौट आया.
ऐसी हालत में जग हंसाई और
आगामी चुनावों में धुलाई से बचने के लिए यह एक मंत्र सा नजर आया. उन्हें लगने लगा कि लोगों के दिलो दिमाग पर दंगल का जबरदस्त
असर पड़ता है. तो एक ऐसा बड़ा दंगल कराया
जाये और लोगों का ध्यान अपनी विफल नोटबंदी और किसी तरह पांव जमाती कैशलेस समाज की
स्थापना की आड़ से भटकाया जाये –वैसे मैं सिद्धांतः इसके
खिलाफ नहीं हूँ किन्तु जिस तरह से तुगलकी तौर पर बिना किसी प्लानिंग के इसे लागू
किया गया वह असहनीय एवं नितांत अनुभवहीनता का परिचायक है.
अतः एक विशाल समाजवादी दंगल
की रुपरेखा तैयार हुई. परिवार और पार्टी टूट की कागार पर खड़े हो गये. बाप बेटे में
सत्ता को लेकर तलवारें तन गई. दिल्ली और राजनीति से इतना तो सीख ही लिया है कि
किसी का ठीकरा किसी के भी सिर फोड़ दो और किनारे खड़े होकर तमाशा देखो तो इस
समाजवादी दंगल का ठीकरा भी उनके नाम कर के इस दंगल का भी आनन्द उठाया जाये. किसी
का मानना है कि मुलायम के पुराने साथी जिनके आने की वजह से यह समाजवादी सियासी दंगल
मचा हुआ है, उनका आगमन स्पॉन्सर्ड है. हो सकता है..राजनीति में कुछ भी हो सकता है.
अधिकतर कदम स्पॉन्सर्ड एवं स्टेज़्ड ही होते हैं आम जनता की आँख में धूल झौंकने के
लिए.
अब देखना यह है आमिर खान के
दंगल ने जिस सफलता से लोगों का ध्यान नोटबंदी से उठी समस्या से हटाया है और सरकार
को कुछ राहत का अहसास कराया है (वैसे सच मायने में तो अंगूठा दिखाया है), यह समाजवादी दंगल भी कुछ मददगार साबित होगा कि
नहीं.
वरना ढ़लान पर तो सरकार की
गाड़ी आ ही गई है – बस, दुर्गति की गति को कुछ विराम मिले, यही एक प्रयास है.
-समीर लाल ’समीर’
#jugalbandi #जुगलबंदी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "न्यूनतम निवेश पर मजबूत और सुनिश्चित लाभ - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसटीक और बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंsupar hit
जवाब देंहटाएं