सोमवार, अक्तूबर 24, 2016

शहर के पाँव


रामफल को विरासत में अगर कुछ मिला था तो मात्र दो चीजें.
एक तो पिता के द्वारा पुरखों से प्राप्त एक बीघा जमीन और उस पर बने दो कमरे के पक्के मकान की वसीयत और दूसरा, पिता से मिली कभी गाँव छोड़ कर शहर न जाने की नसीहत.
पिता का कहना था कि गाँव ने तुम्हें जन्म दिया है तो तुम्हारा फर्ज है कि उसका कर्ज अंतिम सांस तक अदा करो. ये गाँव की जमीन, मात्र जमीन नहीं, माँ है तुम्हारी.
और रामफल, जिसके सारे सहपाठियों से लेकर लगभग सभी हमउम्र जानने वालों के शहर पलायन कर जाने के बावजूद, इस नसीहत को थामे गाँव में ही मास्टरी करते हुए जीवन गुजारते रहा. उसे गर्व था कि उसने पिता की नसीहत का अक्षरशः पालन किया.
जब कभी शहर से कोइ मित्र लौट कर रामफल से अपने पैसों और सफलताओं की नुमाईश करता कि उसके पास मकान है, पैसा है, कार है...और तुम बताओ रामफल, तुम्हारे पास क्या है? तब गाँव की जमीन को माँ का दर्जा दे उसकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने वाला रामफल, कुछ कुछ दीवार फिल्म के शशी कपूर सा महसूस करता हुआ मुस्करा कर कहता कि मेरे पास माँ है!!
मित्र भी हँस कर रह जाते..कौन जाने, कौन हारा और कौन जीता..मगर माहौल तो हल्का हो ही जाता.
पिता की नसीहत इतनी गहरी पैठ कर गई थी कि साथियों की तमाम समझाईशों के बावजूद रामफल की बस एक जिद...गाँव छोड़ कर शहर नहीं जाना है.
समय बीता...रामफल गाँव में सिमटा अपने गर्व के किले में कैद, उसी जमीन और मकान को संभाले मास्टरी करता चला गया.
उसने अपनी इसी जिद को ही अपना अस्तित्व मान लिया और उसी अस्तित्व को बचाना उसके जीवन का एक मात्र ध्येय बच रहा. वो खुश था इस तरह से एक रक्षक का किरदार अदा कर....
रामफल जरुर गाँव में सिमटा रहा मगर शहर..उसके अपने पाँव होते हैं.. वो बढ़ता रहा और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब शहर बढ़ते बढ़ते उसके दरवाजे तक चला आया.
आज उसका गाँव खो गया है...वो विलीन हो गया है शहर में और रामफल..वो हताश है कि वो अपना अस्तित्व बचा नहीं पाया जिसके लिए उसने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया..
कहते हैं कोई नया कानून आया है जिसके तहत सरकार ने उसकी जमीन अधिग्रहित कर ली है ..
अब उसकी जमीन से शहर की एक बड़ी सड़क गुजरेगी.

-समीर लाल समीर

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा कहानी।
    हार्दिक बधाई/आभार

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  2. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... Thanks for sharing this!! :) :)

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  3. गाँवों को उजाड़ कर शहरों के विस्तार को बढ़ाती चली जानेवाली यह प्रवृत्ति कितने जीवनों को इसी प्रकार हताश करती रही है इसका बहुत प्रभावी चित्रण हुआ है इस छोटी-सी कहानी में .धन्यवाद .

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  4. Debasish Chakraborty10/26/2016 03:42:00 am

    Bahut badiya kahani hai, deepawali ki hardik shubh kamanae!

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  5. यूँ ही बहुत कुछ छीन जाता है, हताश होकर रहता है इंसान

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  6. यूँ ही बहुत कुछ छीन जाता है, हताश होकर रहता है इंसान

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  7. अब उसकी जमीन से शहर की एक बड़ी सड़क गुजरेगी.

    जिस पर अपनी मंजिल /अस्तित्व को तलाशने चल पड़ेंगे लोग ...

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  9. बढ़ते हुए शहर कितने गाँव भी खा गए हैं ... ये कोई नहीं जानता ...

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