मंगलवार, जून 02, 2015

हम भारतीयों का डी एन ए!!

नजर की पहचान थी उससे यही कोई तीन चार बरसों की. सिर्फ दफ्तर आते जाते हुए ट्रेन में पड़ोस के डिब्बे में उसे चढ़ते उतरते देखता था और नजर मिल जाती थी. लबों के हाथ कभी इतने नहीं बढ़े कि कोई मुस्कराहट उस तक पहुँचा दें और उसके लबों के तो मानो हाथ थे ही नहीं. भाव विहीन चेहरा.

sl_intezaar

हाँ, एक बार झुंझलाहट देखी थी उसके चेहरे पर..मगर वो भी मुझे लेकर नहीं..ट्रेन के देर से आने की वजह से. कनाडा में ट्रेन का लेट होना यदा कदा ही होता है अतः सभी चेहरे झुंझलाये से थे उस दिन तो उसका चेहरा फिर भीड़ के चेहरे सा ही दिखा. मेरा चेहरा सामान्य था बिना झुंझलाये. मैने उस दिन भी उसकी नजरों से वैसे ही नजर मिलाई थी जैसे हर रोज. उसे पक्का आश्चर्य हुआ होगा मेरा चेहरा देखकर कि मानो ट्रेन के देर से आने का मुझ पर कोई असर हुआ ही न हो.

उसे क्या पता कि ट्रेन का इस तरह, न जाने कितने दिनों बाद, ४५ मिनट देर से आना मुझे मेरे देश की यादों में वापस ले गया था..मुझे लगा कि मैं अपने शहर के स्टेशन पर खड़ा उस ट्रेन का इन्तजार कर रहा हूँ जो लेट है अनिश्चित काल के लिए. लेट आने वाली ट्रेन का इन्तजार खुशी खुशी करना और किसी भी तरह की समस्या के वक्त के साथ गुजर जाने पर विश्वास कर स्थितियों से समझौता कर लेना मेरे भारतीय होने की वजह से मेरे डी एन ए में है.

यही डी एन ए तो है जो आज तीन चार बरस बीत जाने बाद भी मुझे अपने लबों के हाथो के कद बढ़ जाने की उम्मीद हर रोज सुबह शाम रहती है..जो शायद उसके लबों पर एक मुस्कान ला दें कभी और वो मुझसे पूछे ..कैसे हो आप? और मैं उससे कह सकूँ..कि तुमने पूछा तो अब बेहतर महसूस कर रहा हूँ मैं!

ये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!

कुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.

ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..

-समीर लाल ’समीर’

27 टिप्‍पणियां:

  1. मधु अरोड़ा, मुंबई....6/02/2015 09:21:00 pm

    सच कहा आपने...विदेशों की यह संवादहीनता सच में दिल को टीसती है...

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  2. लोग एक कर्म के बाद दूसरे कर्म को ही जीवन की सततता मानते हैं, हमने तो प्रतीक्षा में कितने जीवन जी डाले हैं।

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  3. बधाई। बढ़िया पोस्ट है

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  4. अच्छा लिखा है समीर जी! हमारा डी इन ऐ शायद ऐसा ही है पर हम तो दुश्मनों को भी दोस्त समझ अनजानों के साथ बतियाते, उनके साथ अपना खाना बाँटते और ताश के पत्तों के सहारे अपने स्टेशन आने का इंतज़ार करने वाले लोग हैं तब आप कैसे लबों के हाथ अपने कोट की जेब में डाल कर बैठ गए। शायद कनाडा की ठण्ड का असर है!!!! लबों का कद बढ़ा मुस्कुरा ही दीजिये और उसके बाद क्या हुआ, उसे अगली पोस्ट में बताइयेगा।। इस पोस्ट के लिए बधाई

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जयंती - बालकृष्ण भट्ट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. कई बातें, कई यादें और कितने ही किस्से ... एक ही पोस्ट में सब कुछ समेट लोगे क्या ...

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  7. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  8. अच्छे दिनो का इंतजार बहुत खूब :)

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  9. वाह...सम्मोहन इसे कहते हैं।

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  10. बेनामी6/04/2015 11:19:00 am

    कुछ बात तो है!!

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  11. बेनामी6/04/2015 11:19:00 am

    कुछ बात तो है!!

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  12. बेनामी6/04/2015 11:19:00 am

    कुछ बात तो है!!

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  13. बहुत खूब...हमेशा की तरह निराला अंदाज।

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  14. हाहाहाहा बहुत सही इंतज़ार का डीएनए

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  15. लगता है, मेरा डी एन ए बदल गया है। भारत जाता हूँ तो हर जगह इन्तज़ार करने के समय मेरा चेहरा तो झुंझला जाता है।

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  16. ये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!
    कुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.
    ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..
    ..आखिर में हम भारतीयों के दिल की कसक आ ही गयी ..अच्छे दिन जाने कब आएंगे ...
    ..बहुत सटीक प्रस्तुति

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  17. ये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!
    कुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.
    ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..
    ..आखिर में हम भारतीयों के दिल की कसक आ ही गयी ..अच्छे दिन जाने कब आएंगे ...
    ..बहुत सटीक प्रस्तुति

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  18. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  19. इंतज़ार करना हमारी मजबूरी है। सहनशील तो इतने हम भी नही।

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  20. बेनामी6/12/2015 06:47:00 am

    India hi kaafi bda h yha pr kuch log america ki high profile life ji rhe hain to kuch
    bhootan ki gareebi

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  21. बहुत बहुत बढ़िया

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  22. बेनामी7/01/2015 12:14:00 am

    अद्भुत प्रस्तुति

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  23. aakhir ki do sentemce ne sabhi kuch itne saral shabdon mein bayan kar diya !! adhbut !!

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  24. बेनामी8/22/2015 02:34:00 pm

    और इस लेट-लतीफी के बीच चाय, समोसे,पकौड़े,कुली,पानी के लिए लाइन,अमीर,ग़रीब,भिखारी,बन्दर,और ज़मीन पर लेटे हुए ना जाने का ट्रेन का इन्तज़ार करते हुए लोग,ये भी है हमारे dna में.......

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