नजर की पहचान थी उससे यही कोई तीन चार बरसों की. सिर्फ दफ्तर आते जाते हुए ट्रेन में पड़ोस के डिब्बे में उसे चढ़ते उतरते देखता था और नजर मिल जाती थी. लबों के हाथ कभी इतने नहीं बढ़े कि कोई मुस्कराहट उस तक पहुँचा दें और उसके लबों के तो मानो हाथ थे ही नहीं. भाव विहीन चेहरा.
हाँ, एक बार झुंझलाहट देखी थी उसके चेहरे पर..मगर वो भी मुझे लेकर नहीं..ट्रेन के देर से आने की वजह से. कनाडा में ट्रेन का लेट होना यदा कदा ही होता है अतः सभी चेहरे झुंझलाये से थे उस दिन तो उसका चेहरा फिर भीड़ के चेहरे सा ही दिखा. मेरा चेहरा सामान्य था बिना झुंझलाये. मैने उस दिन भी उसकी नजरों से वैसे ही नजर मिलाई थी जैसे हर रोज. उसे पक्का आश्चर्य हुआ होगा मेरा चेहरा देखकर कि मानो ट्रेन के देर से आने का मुझ पर कोई असर हुआ ही न हो.
उसे क्या पता कि ट्रेन का इस तरह, न जाने कितने दिनों बाद, ४५ मिनट देर से आना मुझे मेरे देश की यादों में वापस ले गया था..मुझे लगा कि मैं अपने शहर के स्टेशन पर खड़ा उस ट्रेन का इन्तजार कर रहा हूँ जो लेट है अनिश्चित काल के लिए. लेट आने वाली ट्रेन का इन्तजार खुशी खुशी करना और किसी भी तरह की समस्या के वक्त के साथ गुजर जाने पर विश्वास कर स्थितियों से समझौता कर लेना मेरे भारतीय होने की वजह से मेरे डी एन ए में है.
यही डी एन ए तो है जो आज तीन चार बरस बीत जाने बाद भी मुझे अपने लबों के हाथो के कद बढ़ जाने की उम्मीद हर रोज सुबह शाम रहती है..जो शायद उसके लबों पर एक मुस्कान ला दें कभी और वो मुझसे पूछे ..कैसे हो आप? और मैं उससे कह सकूँ..कि तुमने पूछा तो अब बेहतर महसूस कर रहा हूँ मैं!
ये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!
कुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.
ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..
-समीर लाल ’समीर’
सच कहा आपने...विदेशों की यह संवादहीनता सच में दिल को टीसती है...
जवाब देंहटाएंसच कहा
जवाब देंहटाएंलोग एक कर्म के बाद दूसरे कर्म को ही जीवन की सततता मानते हैं, हमने तो प्रतीक्षा में कितने जीवन जी डाले हैं।
जवाब देंहटाएंबधाई। बढ़िया पोस्ट है
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है समीर जी! हमारा डी इन ऐ शायद ऐसा ही है पर हम तो दुश्मनों को भी दोस्त समझ अनजानों के साथ बतियाते, उनके साथ अपना खाना बाँटते और ताश के पत्तों के सहारे अपने स्टेशन आने का इंतज़ार करने वाले लोग हैं तब आप कैसे लबों के हाथ अपने कोट की जेब में डाल कर बैठ गए। शायद कनाडा की ठण्ड का असर है!!!! लबों का कद बढ़ा मुस्कुरा ही दीजिये और उसके बाद क्या हुआ, उसे अगली पोस्ट में बताइयेगा।। इस पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जयंती - बालकृष्ण भट्ट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंकई बातें, कई यादें और कितने ही किस्से ... एक ही पोस्ट में सब कुछ समेट लोगे क्या ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
अच्छे दिनो का इंतजार बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंवाह...सम्मोहन इसे कहते हैं।
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है!!
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है!!
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है!!
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...हमेशा की तरह निराला अंदाज।
जवाब देंहटाएंहाहाहाहा बहुत सही इंतज़ार का डीएनए
जवाब देंहटाएंलगता है, मेरा डी एन ए बदल गया है। भारत जाता हूँ तो हर जगह इन्तज़ार करने के समय मेरा चेहरा तो झुंझला जाता है।
जवाब देंहटाएंये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!
जवाब देंहटाएंकुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.
ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..
..आखिर में हम भारतीयों के दिल की कसक आ ही गयी ..अच्छे दिन जाने कब आएंगे ...
..बहुत सटीक प्रस्तुति
ये इन्तजार अनिश्चित कालिन भी हो तो क्या और सतत बना भी रह जाये तो क्या..इन्तजार और वक्त के साथ समझौता कर लेना तो हम भारतीयों के डी एन ए में है...कर ही रहे हैं अच्छे दिनों के आने का इन्तजार!!
जवाब देंहटाएंकुछ हर्फ मेरे उतरे ही नहीं, जीवन के कोरे पन्नों पर.
ये दुनिया वाले अजब से हैं, उसको भी गज़ल बुलाते हैं..
..आखिर में हम भारतीयों के दिल की कसक आ ही गयी ..अच्छे दिन जाने कब आएंगे ...
..बहुत सटीक प्रस्तुति
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
इंतज़ार करना हमारी मजबूरी है। सहनशील तो इतने हम भी नही।
जवाब देंहटाएंIndia hi kaafi bda h yha pr kuch log america ki high profile life ji rhe hain to kuch
जवाब देंहटाएंbhootan ki gareebi
बहुत बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंaakhir ki do sentemce ne sabhi kuch itne saral shabdon mein bayan kar diya !! adhbut !!
जवाब देंहटाएंऔर इस लेट-लतीफी के बीच चाय, समोसे,पकौड़े,कुली,पानी के लिए लाइन,अमीर,ग़रीब,भिखारी,बन्दर,और ज़मीन पर लेटे हुए ना जाने का ट्रेन का इन्तज़ार करते हुए लोग,ये भी है हमारे dna में.......
जवाब देंहटाएंइंतज़ार का डीएनए
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