कभी जिन यादो से दिन,
खिल कर संवर जाता था..
आज सोचता हूँ
वही बचपन,
वही स्पर्श,
वही नाते,
उतारता हूँ जब
दिल के कागज पर वो यादें
और उनकी जिन्दा गवाह वो मकां..
कि कतरा कतरा हुआ
कागज भी बिखर जाता है..
एक लम्हा गुजरता है
और
कितना कुछ बदल जाता है..
-समीर लाल ’समीर’