मेरे हमसफर मेरा साथ दे, मैं बहुत दिनों से उदास हूँ..
मेरे गीत को कोई साज दे, मैं बहुत दिनों से उदास हूँ
मुझे हाल तिरा जो दे सके मुझे उस खबर की तलाश है
मेरी बात का तू ही जबाब दे, मैं बहुत दिनों से उदास हूँ...
- तो उस रोज जबाब आ ही गया....और चल पड़े हम- “सेन फ्रान्सिस्को की धुँध के आगोश से निकल..प्रशान्त महासागर से उठते उन ठंडी हवाओं के झोकों को जेहन में समेटे...पहाड़ों की चढ़ाई और ढलान के मस्त कर देने वाले आलम से निकल जो मानो चुपके से समझाईश देता था रोज साथ चलते चलते- जिन्दगी के उतार और चढ़ाव को खुशी खुशी झेल नित नई सीख लेने को –शुरु में उस चढ़ान से कोफ्त भी होता- थकान भी होती और सांस भी फूलती मगर इस तसल्ली के साथ कि चलो, अभी चढ़ान है तो क्या- शाम लौटते में ढलान होगी...तो चेहरा मुस्करा उठता...काश, जिन्दगी को भी ऐसे ही मुस्कराते जिये चले जाते हम- सिखा दिया सेन फ्रान्सिस्को ने यह फलसफा यूँ”,
- चल दिये हम अपने घर टोरंटो वापस......पता ही नहीं चला कि कब चार महिने यूँ ही गुजर गये- खैर पता तो तब भी न चला था जब जिन्दगी के इतने बरस भी यूँ ही उतार चढ़ाव झेलते गुजरे मगर कोशिश तो फिर भी रही इस सीख सी..मुस्कराते हुए गुजर जाने की.
- तो अलविदा सेन फेन्सिस्को!! अलविदा बे एरिया- अलविदा ओ पहाड़...अलविदा समुन्द्र...अलविदा वो धुँध कि जिसके साये में खोया खोया फिरता था मैं जाने कहाँ कहाँ.. बुनते हुए कुछ चमकीले ख्वाब.. इस शहर की वादियों में..
- एक अजब सा शहर... बेहद अमीरी और बेहद गरीबी के बीच सामन्जस्य बैठाता..एक तरफ बेपनाह दिमाग (फर्टाईल ब्रेन) कि सिलिकोन वैली के नाम से विश्व विख्यात..वहीं शहर के बीचों बीच अमेरीका की क्राईम केपिटल ओकलैण्ड..अपराधों का गढ़..अपराधियों की जन्नत....एक तरफ फैशन के जबरदस्त हस्ताक्षर तो दूसरी तरफ ड्रग्स और एड्स की मार...सब एक साथ खुली आँख देखता.... ये शहर जो परिशां फिर भी न था..याद तो आओगे तुम ओ सेन फ्रान्सिस्को..और याद रहेंगे सदा वो साथी..जो करीब हुए यहाँ....कहीं दफ्तर में .. तो कहीं मुशायरों में.. तो कभी परिवार के साथ तो कभी दोस्तों में यूँ ही...
- तब कहता हूँ किसी शायर की बात मौके पर....
बिछड़ते वक्त उन आँखों में थी हमारी गज़ल
गज़ल भी वो जो किसी को कभी सुनाई न थी..
कि धूप छांव का आलम रहा
जुदाई न थी
वो हमसफर था....
-समीर लाल ’समीर’