हिन्दुस्तान की समस्या यह नहीं है कि हम क्या करते हैं? जो हम करते हैं वह मानव स्वभाव है, वो कोई समस्या नहीं.. सारी दुनिया वही करती है मगर समस्या यह है कि हम जो भी करते हैं अति में करते हैं. यही हमें औरों से अलग विशिष्ट पहचान देता है. विशिष्टता नामी और बदनामी दोनों की ही होती है.
ज्ञानी तो हर हिन्दुस्तानी होता ही है. हो न हो मगर मानता तो है ही. शायद ही कोई ऐसा हिन्दुस्तानी हो जिसे आप अपनी कैसी भी कठिन से कठिन समस्या या बीमारी बतायें और वो सलाह न दे. चाहे फ़िर आपको मात्र खरोच आई हो,या पेट दर्द हो,,केंसर हुआ हो, एडस हो जाये, हर हिन्दुस्तानी के पास हर मर्ज की देशी विदेशी दवा का नुस्खा जेब में हाजिर मिलेगा. करेले से लेकर लहसुन, अर्जुन की छाल से लेकर इसबगोल की भूसी तक, मंत्र से केले में भस्म भर कर पीलिया के ईलाज तक, आरंडी के बीज से लेकर सौंफ के पानी से गठिया वात के ईलाज की, बुखार में बिना वजह जाने क्रोसिन से कॉम्बीफ्लेम तक और तो और एन्टीबायोटिक भी बिना खून के जांच के और मिर्चे और नीबू शहद विनेगर के घोल से हार्ट ब्लॉकेड खोलने का तरीका तक बताने को लोग हर क्षण तैयार बैठे हैं.
पीलिया का ईलाज तो मंत्र से ऐसा करते हैं कि हाथ धुलवा कर परात भर पानी में पूरा पीला पानी उतार देते हैं. गले में कंठा पहना कर उसे नाभी तक चार दिन में पहुँचा देना तो हर पीलिया रोगी जानता है. गुप्त समस्याओं के चूरण और शिलाजीत की गोली देना तो लगता है कि भारतीयों के मौलिक अधिकार में से एक है.
आप समस्या बताने चलें और उसके पहले हर समस्या का उपाय और सलाह हाजिर. दिल्ली शिफ्ट होना हो,या फिर आपको विदेश जाना हो,जन्म मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाना हो या पासपोर्ट,. पान की दुकान पर अनजान सलाह देकर निकल जायेगा और आप सोचते रह जायेंगे कि यह बंदा कौन था. सब के सब देवीय शक्ति लिए घूमते हैं चप्प्पल फटकाते गली गली. उनकी सलाह पर चलता तो सचिन कब का सौ शतक लगा चुका होता. अन्ना भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेक चुके होते और भारत अमेरीका से ज्यादा विकसित राष्ट्र होता. मगर सलाह देते देते इतना अति कर गये कि लोगों ने उनकी सलाह ही सुनना बन्द कर दी. मगर वो सलाह देने से अब भी बाज नहीं आते.
कोई डॉक्टर का पता नहीं बताता और न ही डाईग्नोसिस सेंटर का. हड्डी में दर्द- पुत्तुर में जाकर अंडा मलवा लो. सांस भरती है, केरल जाकर जिन्दा मछली वाला ईलाज करा लो, केंसर है- हिसार वाले बाबा जी की रोटी खा लो...पगला गये हो मतलब गधे से कम तो होगे नहीं..फलाने खेत की घास चर लो....न सुधार दिखे तो लोकसभा का चुनाव लड़ लो...सारे साथी एक जगह तो ईक्कठे हो लोगे कम से कम..हद है सलाहकारी की.
कहीं तो रुको...हर व्यवसाय के गुर जानने वाले अलग अलग विशेषज्ञ है, उन्हें मौका तो दो. मगर मौका देते तब हो जब बाकी सलाहकारी से निपट कर आखिरी दिनों मे पहुँचते हो. कोई राह बच नहीं रहती. अब विशेषज्ञ कोई भगवान तो है नहीं कि हर बिगड़ी स्थिति ठीक ही कर दे. जब शुरुवात थी तब मित्रों का साथ निभाते रहे और अंत में कोसने को विशेषज्ञ बचा.
सलाहकारी के क्षेत्र में अति- ज्ञान उपजाने में अति.
भारत के इंजिनियर विश्व को अपनी सेवायें देकर लुभाने क्या लगे कि उनकी ऐसी खेती शुरु हुई कि पान की दुकानों से ज्यादा इंजिनियरिंग कालेज खुल गये. बेटा नालायक निकल जाये तो उसे पहले एल एल बी करवाते थे और अब इंजिनियरिंग. बात डिमांड एंड सप्लाई की है जी.
निख्खटू से निख्खटू बेटा बेटी आज जब कुछ नहीं कर पा रहे तो इंजिनियर बन जा रहे हैं. ऐसे में वकील कौन बनेगा...चलो, वो कोई और बन जायेगा तो ठेकेदार कौन बनेगा.चलो, वो भी कोई न कोई बन जाये तो नेता कौन बनेगा...फिर तो कोई बचेगा ही नहीं फिर साईकिल और हाथी चुनाव चिन्ह का क्या दोष. निकॄष्ट मे से निकॄष्ट्तम चुनना भी तो हम भारतीयों की ही पहचान है.
अति की सीमा देखनी हो तो टी वी पर भारतीय सिरियल की महिमा देखिये. जरा सी टी आर पी मिल भर जाये फिर तो मानो सिरियल ने अमरत्व प्राप्त कर लिया. उस सिरियल के हीरो हीरोईन वैसे के वैसे ही टमाटर बने रहेंगे और आप समय के साथ अपना सर धुनेंगे कि सिरियल देखते देखते बाल काले से सफेद हो गये, संख्या में भी आधे से अधिक विदा हो चुके और बच्चे स्कूल से कालेज में जा चुके मगर सिरियल है कि चले ही जा रहा है. ये तब तक नहीं मानते जब तक बढ़ी हुई टी आर पी घट कर शून्य न हो जाये. फिर वो चाहे प्रतिज्ञा हो या छोटी बहु...छोटी बहु कायदे से अब तक सास बन कर भी गुजर भी चुकी होती मगर अति की महिमा कि छोटी बहु अभी तक छोटी बहु ही है.
बुराई कितनी भी बुरी हो या चाहे गंधाती हो मगर हर बुराई में भी एक न एक अच्छाई तो होती ही है. कम से कम इसी बात का महत्व समझ कर ही पाकिस्तान से सिरियल समय पर खत्म करना सीख लें. अब उनके ही सिरियल ’धूप किनारे’ की हिन्दी कॉपी ’कुछ तो लोग कहेंगे’ को भी उसी राह पर ले चल पड़े हैं..देखना अति करके ही मानेंगे. अभी तो ऐसा ही लग रहा है.
वही हाल परिवारवाद का है राजनिति में-पांचवी पीढ़ी तैयार है जी हुजूरी करवाने को..तैयार क्या है-करवा ही रही है. छटवीं भी इस उ.प्र. विधानसभा में हल्की सी झलक दिखाई ही गई अपनी मम्मी के साथ मंच पर. कुछ अति तो इसमें भी है. इतनी विकल्पहीनता की दुहाई भी ठीक नहीं.
हम भारतीय जानते हैं दुर्गति की गति को धीमा करना..काश!! सीख पाते इसकी दिशा बदल कर बेहतरी के तरफ ले जाना.
होली आई. हर साल आती है. अब बधाई का सिलसिला ऐसा शुरु हुआ कि उसकी भी अति हो ली है इस होली पर. फेस बुक पर आये तो हर घंटे बधाई ही दिये जा रहे हैं. हर बार हमको टैग कर देते हैं. अब उस पर जो कमेंट आयें सारे हमारे ईमेल में. रंग तो एक बार नहा लो तो छूट जाये. छूटना ही होगा आखिर नकली रंग की भी तो अति है. मगर हम ईमेल साफ ही किये जा रहे हैं और टैग हैं कि खत्म ही नहीं हो रहे. मुबारकबाद में टैगिंग कैसी? वो तो हम यूँ भी ले लेंगे- अब टैग करके क्या साबित करना चाह रहे हो भाई.
एक सज्जन ने मुबारकबाद भेजी और सी सी में १२०० ईमेल एड्रेस...अब वे सारे जबाब देंगे और हम १२०० ईमेल की सफाई करने में जुटे नजर आयेंगे. मानो हमें होली खेलना ही नहीं है बस नगर निगम ने जमादार की नौकरी दी है कि चलो, ईमेल की सफाई करो.
बक्शो मित्र. माना तुम अच्छे कार्टून बना लेते हो, फोटोशॉप में काट छांट कर इसकी तस्वीर उसकी बना देते हो..तुकबंदी कर मुक्तक रच लेते हो, बधाई संदेश देने के नये आयाम गढ़ लेते हो मगर उन सब से उपर..यह टैगिंग क्यूँ करते हो? यह फेस बुक की सुविधा है या मेरी दुविधा.
ईमेल में सीसी के बाद ठीक नीचे बीसीसी भी है,,वो तुम्हारी मोतियाबिंदी आँखें क्यूँ नहीं देख पाती? कहीं तो तुम यह तो दिखाना नहीं चाह रहे कि तुम्हारी पहुँच कहाँ कहाँ तक है? पहुँच से होता क्या है? मात्र तिहाड़ में बेहतर सुविधा और अच्छी सैल. रहोगे तो तिहाड़ में ही और कहलाओगे तो अपराधी ही.
अति बन्द करो,प्लीज!!
दो चार करोड खा जाओ- वादा है कि कोई हिदुस्तानी जो जुबां भी खोले..हम आदी हैं मान कर चलते हैं कि इतनी तो बनती है. मगर अब २००० करोड़ खा जाओगे एक खेल आयोजन में और सोचो कि सब चुप रह जायेंगे हमेशा की तरह- तो यह तो तुम्हारी ही बेवकूफी कहलाई. इतनी अति भी कैसे बर्दाश्त करें?
कलमाड़ी न बनो, कनुमोजी भी न बनो, तेलगी का फेस बुक से क्या लेना देना, २ जी को राजनिति में रहने दो, ईमेल को इससे दूर रखो....यहाँ तो अति न करो वैसी.
वरना एक दिन फेसबुक पर भी एक अन्ना जन्म लेगा...ईमेल पर बाबा रामदेव रामलीला करेंगे सलवार सूट पहन कर...प्रशासन अपनी चाल चलेगा और फिर...तुम कहोगे कि यह ठीक नहीं हुआ...
ऐसी नौबत ही क्यूँ लाते हो...पहले ही संभल जाओ!!!
सुना है तुम सभ्य हो..
कभी शहर में रहे नहीं...
फिर यह विष कहाँ से पाया...
आश्चर्य में मत डालो मित्र..
मैं अज्ञेय नहीं हूँ...
हो तो तुम भी साँप नहीं!!!
-समीर लाल ’समीर’