मंगलवार, सितंबर 13, 2011

एक कहानी जिसे शब्द नहीं मिले...

रेल की पांतों पर धड़धड़ाती हुई सी आई एक धुंध चीरती हुई खामोशियों की और मुझमें समा गई एक कहानी बन कर,जिसे मैं कोई शब्द न दे सका चाह कर भी. ...
मेरी कविता बन जाने की अभिलाषा को कितनी ही बार मैने कहानियों में उकेरा है. इतना सजीव चित्रण कि गद्य भी पद्य होने का भ्रम पैदा कर देने में सक्षम. मगर तुम, जो कि समाई हो मेरे भीतर.....क्यूँ नहीं उतर पाती कागज पर.
भावों को शब्द रुप देने की कला ही तो एक ऐसी कला है जो मैं समझता था कि मुझे आती है. परन्तु मैं गलत था..... हार गई मेरी यह एक मात्र योग्यता भी......... कलाकार होने की.
साधारण इन्सानों की तरह मैं जी नहीं पाता. सांस इन्कार करती है लौटने को. दम घुटता है मेरा--भीड़ का हिस्सा बनकर. एक विशिष्ट मुकाम होने की चाहत अलग-थलग कर देती है मुझे, हर उस चीज से जिसमें तनिक भी जुड़ाव की क्षमता हो.

याद है चाहतों के बदलते रंग??? बदलते वक्त के साथ. चाहा था कि अगर वक्त थम नहीं सकता तो कम से कम कुछ सुस्त कदम मेरे आंगन में ही ले ले. .....तब चाहता था कि झील हो जाऊँ. तब तुम साथ होती थी. एक सौम्य ठहराव की दरकार....... मन भावन खामोशी के बीच चन्द पत्ते साज बनते देखे थे. पेड़ हो जाने की इच्छा बस इसी साज की धुन तोड़ती आई.

पेड़ बहुत उदास देखे हैं मैने
पत्ते हो गये साज देखे हैं मैने
जिन्दगी की बुझती नहीं प्यास
जाने कैसे ज़ज्बात देखे हैं मैने.

गंगा जी में स्नान कर नदी बन जाने के बदले रामायण बन जाने का ख्वाब पाल बैठा. तुम्हें निहारते जाने कब पन्ने पन्ने बिखर गई पूरी पुस्तक. धार्मिक पुस्तकों का इस तरह उधड़ कर बिखर जाना, उड़ जाना, बह जाना- दादी कहती थी अपशगुन होता है. दादी की बात ख्याल आई जब तुम्हें खोया. सोचता रहा कि क्यूँ बन बैठा रामायण-सपने में ही सही.
धर्म तो प्रेम पर आकर रुक जाता है. मोहब्बत सिलेबस के बाहर की बात है..पुस्तक को तो बिखरना ही था.

Lake2

झरना बन कर ऊँचाई से गिरना और नदी में समा जाना कभी मन को भाया नहीं तो पहाड़ बना और फिसलता हुआ आ गिरा उसी की तलहटी में. एक गहरी अँधेरी खाई. कुछ सुझाई नहीं देता यहाँ तक कि पहाड़ भी नहीं. ऐसा क्या बन जाने की कोशिश कि खुद को ही न देख पाये.

दम तोड़ते एक के बाद एक चाहतों के सिलसिले. कभी आईना बन खुद को झाँका खुद में. एक नफरत के भाव उभरे जो बदले दयनीयता में हालात का अक्स ओह!! इतना दयनीय.....तोड़ दिया खुद ही खुद को..आईना चकनाचूर हो फर्श पर फैल गया. हर तरफ आईने ही आईने बच रहे.बाँधने वाला कोई नहीं.

गुलाब बनता मगर कांटों की चुभन से गुरेज. यूँ नहीं कि मेरे जेहन में कांटें नहीं मगर वो किसी को मेरे पास आने से रोकते नहीं. किसी को लहुलुहान नहीं करते. वो उगे हैं भीतर की ओर..आज जब तुम आकर समा गई और उतरती नहीं कहानी बनकर शब्दों में तो सहम सा गया हूँ मैं कि कहीं तुम घायल तो नहीं..कहीं उन कांटो ने तुम्हें लहुलुहान तो नहीं कर दिया.

आंसू उतर आये हैं यही सोच कर और लुढ़क गये उन पन्नों पर जिन पर उतरना था मेरे शब्दों को एक कहानी बन कर..तुम्हारी कहानी..जो मुझमें समाई है.

90 टिप्‍पणियां:

  1. आलेख का रूप बदलता रहा और अंत में संवेदनशील होगया

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  2. आलेख का रूप बदलता रहा और अंत में संवेदनशील होगया

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  3. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

    अभी तो शुभकामनाएं स्वीकार करें.....फिर आकर मिलता हूँ.....:)

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  4. इतना कवितामय लिखते हो भई कई बार लगता है कुछ-कुछ उड़ा कर अपने नाम से यहां वहां लगा दूं :)

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  5. हृदयस्पर्शी, मार्मिक। सरजी लगता है उदास है आप?

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  6. कमाल है. संवेदनाओं को उकेरना.

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  7. रंग-बिरंगी, रंग बदलती जिंदगी.

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  8. यह तो पूरी की पूरी आदमजात कविता है..सचमुच गहन अनुभूतियों में रची बसी और पगी ...
    फिर भी यह मलाल कि शब्द छोड़ जाते हैं साथ !
    यह तो अतिशय विनम्रता हुयी

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  9. भावुकता सिर्फ कहानियों, किताबों में ही सही , नजर तो आती है !

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  10. आपका अनुभव मेरे जीवन में भी पसर गया है, कविता लिखने बैठता हूँ, कहानी लिख बैठता हूँ।

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  11. मन तो वैसे भी उदास बैठा है और आपने भड़का दिया. यह भी अच्छा ही है.

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  12. एक खोयी हुई कहानी जो अनायास कविता बन गई !

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  13. @@पेड़ बहुत उदास देखे हैं मैने
    पत्ते हो गये साज देखे हैं मैने
    जिन्दगी की बुझती नहीं प्यास
    जाने कैसे ज़ज्बात देखे हैं मैने...
    ...वाह क्या कहनें हैं.

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  14. क्या बात है समीर भाई ....?

    बार बार समझाया सचमुच, मैंने दुखियारी आँखों को!
    वे तो डूब गयीं पानी में,लेकिन मैं बदनाम हो गयी !

    शुभकामनायें !

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  15. गली के मोड़ पर सूना सा एक दरवाज़ा...
    तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा...
    निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी....
    करोगे याद तो हर बात याद आएगी...
    गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी...

    जय हिंद...

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  16. सरजी लगता है उदास है आप?

    वास्तव में, पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है.

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  17. साधारण इन्सानों की तरह मैं जी नहीं पाता. सांस इन्कार करती है लौटने को. दम घुटता है मेरा--भीड़ का हिस्सा बनकर. एक विशिष्ट मुकाम होने की चाहत अलग-थलग कर देती है ...
    सच कहा , खुदा से अलग हुआ हर टुकड़ा अपनी पहचान ढूंढता है....इक नामालूम सी कोशिश इक नामालूम सा सफ़र ..

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  18. मोहब्बत सिलेबस के बाहर की बात है..कुछ नमी सी है

    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  19. कोमल भावनाओं को बहुत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है

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  20. बहुत ही भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  21. हर अल्फाज जैसे आंसुओ में डूबा हुआ ...हिचकिया लेता हुआ ..

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  22. .

    प्रेम एक समर्पण है जो दिल की गहराइयों में उतरकर अंतर्मन में समा जाता है। उसे वहीँ रहने जिजिये , वही जीवन का सबसे अनमोल खजाना है। उसे सबकी नज़रों से बचाकर रखिये। कागज़ पर आंसुओं को ढलने दीजिये प्रेम को रोम-रोम में समाये रहने दीजिये। स्वार्थी ज़माने की नज़र जल्दी लगती है।

    .

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  23. यर तो पूरी कवितामय पोस्ट है.

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  24. धर्म तो प्रेम पर आकर रुक जाता है. मोहब्बत सिलेबस के बाहर की बात है..पुस्तक को तो बिखरना ही था...

    समीर भाई ... क्या लिख रहे हो भाई ... कमाल की संवेदनाएं समेट दी हैं इन पंक्तियों में ... उफ ... गज़ब करते हो यार ...

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  25. उदास कर गया .एक कहानी जिसे शब्द नहीं मिले ..

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  26. वाह.... बहुत अच्छा लिखा है आपने,दिल को छुलेने वाली गहरे मनोभावों से परिपूर्ण कहानी.... कौन कहता है (सर) इसे शब्द नहीं मिले :)
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर॥हिन्दी दिवस की शुभकामनायें
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  27. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
    --
    हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  28. अत्यंत संवेदनशील ... कई भाव शब्दों से परे होते हैं...

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  29. अत्यंत गहन रचना जो अंदर तक समा गयी, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  30. ओह हो.. आज तो मौसम भीगा भीगा सा लगता है.
    आप कहानी लिखें या कविता मन की तह तक पहुँच ही जाती है.

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  31. क्या बात है गुरदेव
    सुन्दर प्रस्तुति......आभार

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  32. कोमल भावो की मार्मिक प्रस्तुति..
    .हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....

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  33. कोमल भावो की मार्मिक प्रस्तुति..
    .हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....

    जवाब देंहटाएं
  34. अब तो गद्य में कविता रचने लगे हैं आप !

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  35. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
    सुंदर और सारगर्भित रचना.. धन्यवाद!!

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  36. आंसू उतर आये हैं यही सोच कर और लुढ़क गये उन पन्नों पर जिन पर उतरना था मेरे शब्दों को एक कहानी बन कर..तुम्हारी कहानी..जो मुझमें समाई है.

    अत्यंत संवेदनशील कविता कहानी के रूप में. बहुत सुंदर.

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  37. AAPKEE YAH PRASTUTI BHEE LAJWAAB HAI .

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  38. बहुत बढ़िया लिखा है...

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  39. यूँ नहीं कि मेरे जेहन में कांटें नहीं मगर वो किसी को मेरे पास आने से रोकते नहीं. किसी को लहुलुहान नहीं करते. वो उगे हैं भीतर की ओर..आज जब तुम आकर समा गई और उतरती नहीं कहानी बनकर शब्दों में तो सहम सा गया हूँ मैं कि कहीं तुम घायल तो नहीं..कहीं उन कांटो ने तुम्हें लहुलुहान तो नहीं कर दिया...

    Bahut kuch kahta ye aalekh man ko bahut bhaya...kuch alag si baat hai ismen ...

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  40. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. bahut hi sundar kriti.

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  41. ओह बेहद भावपूर्ण... अत्यंत समा जाने वाले शब्द.. ऐसे शब्द जिनको मैं भी कोई मिसाल नहीं दे पा रहा हूँ...

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  42. पेड़ बहुत उदास देखे हैं मैने
    पत्ते हो गये साज देखे हैं मैने
    जिन्दगी की बुझती नहीं प्यास
    जाने कैसे ज़ज्बात देखे हैं मैने.

    क्या बात है समीर भाई ....?

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  43. जब उसे लिखना है , उसी को लिखना है,बस... वो है जिसे लिखना है..

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  44. संवेदनशील और भावुक करता आलेख .....

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  45. एक अजीब सी बेचैनी ,पीड़ा, छटपटाहट और फिर धीरे धीरे शिथिलता..जाने कैसा लगा...मूक हुए भाव

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  46. hamesha ki tarah komal bhaavo ko kaise marmik shabd dekhar man ki bat sahez hi kah lete hai.

    sunder.

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  47. आप ही की पंक्तियाँ याद आ गईं जो "बिखरे मोती" में पढ़ी थी -
    मौन मुखरित हो गया जब,कट गई रातें सभी
    आँख ही से कह गई वो,प्यार की बातें सभी
    जिंदगी के खेल में अब,चंद साँसें हैं बसी
    जाने क्या क्या रूप धर कर ,आ रही यादें सभी.
    (समीर लाल समीर)

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  48. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... आभार

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  49. सादर आमंत्रण आपकी लेखनी को... ताकि लोग आपके माध्यम से लाभान्वित हो सकें.

    हमसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े लेखकों का संकलन छापने के लिए एक प्रकाशन गृह सहर्ष सहमत है.

    स्वागत... खुशी होगी इसमें आपका सार्थक साथ पाकर. आइये अपने शब्दों को आकार दें

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  50. Namskar

    www.kranti4people.com per aapka swagat hai.
    raj
    kranti4people@gmail.com

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  51. http://premchand-sahitya.blogspot.com/

    यदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
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  52. बहुत ही खुबसूरत रचना ..

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  53. bahut gambheer bat kahi ki aur samajhte samajhte laga ki mujhe hindi tak nahin aati likhoongi kya khak?
    aalekh ka marm kahin gahare utar gaya.

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  54. मुझे इश्तहार सी लगतीं हैं ये मोहब्बतों की कहानियां...
    जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो...

    कुछ लिखने का मन नहीं हुआ...इसलिए सिर्फ प्रतिक्रियाओं तक ही सीमित रहा...

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  55. indradhanush si zindagi... alag-alag rango ko likhna mushkil nahi hai aapke liye...
    aur ye post bhi waise hi hai...

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  56. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
    सुंदर और सरगर्भीत रचना..इस रचना को कितनी तारीफ़ मिली है ..देखिए. शुभकामनाएँ.

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  57. इन्हीं हालातों में तो लेखन उभरता है..

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  58. कोमल भावनाओं को बहुत मार्मिक रूप ......

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  59. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!

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  60. इस अद्भुत पोस्ट के लिए कुछ न कह पाने में ही समझदारी है...शब्द कौशल कोई आपसे सीखे...वाह.

    नीरज

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  61. इस बार तो बहुत ही संवेदनशील लिखा है सर आपने,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  62. हिंदी दिवस पर सरल हिंदी में इतनी गूढ़ बातें लिख दी --हम तो एक सप्ताह से समझने की कोशिश कर रहे हैं . इतने गहरे भाव ! बहुत खूब .

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  63. बहुत "वैसा-सा"लिख डाला है आपने...जैसा कि पता नहीं कब से मैं लिखना चाह रहा था....लिख नहीं पाया मगर...और आज जब इन पक्तियों को पढ़ा तो लगा मैंने ही लिखा है....क्योंकि मैंने ही सोचा था इसे....इस्ससे ज्यादा इस पर मैं कुछ नहीं कह पाउँगा..!!

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  64. धर्म तो प्रेम पर आकर रुक जाता है. मोहब्बत सिलेबस के बाहर की बात है..पुस्तक को तो बिखरना ही था.
    kabhi kabhi kuchh shabd aise hote hain jo sahaj dikhte lekin man mein gad jaate hain. bahut tees hai in shabdon mein. bahut sashakt kriti, badhai Sameer ji.

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  65. पेड़ बहुत उदास देखे हैं मैने
    पत्ते हो गये साज देखे हैं मैने
    जिन्दगी की बुझती नहीं प्यास
    जाने कैसे ज़ज्बात देखे हैं मैने.

    "dil ko chu gya ye alekh"
    Regards

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  66. aadarniy sir
    man ke andar chal rahe antardvand ko koi nahi jaan sakaa hai.yah ek sach hai jise aapne bakhubi shabd diye hain.bahut hi marmikta se bhari hui prastuti.man ko bhigo gai puri tarah se
    bahut hi badhiya prastuti
    poonam

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  67. बहुत दिनों बाद आ पी.लिंक्स भी तो चले गए ब्लॉग के साथ.रहा सहा 'बुकमार्क' पूरा डिलीट हो गया.
    पर....ढूंढ लिया आपको.योगेन्द्र मुदगिल जी को दिए आपके बधाई सन्देश के थ्रू.हा हा हा क्या करू?
    ऐसीच हूँ मैं तो
    चार आर्टिकल्स पढे अभी आपके. एक बात बताइए आप लोग 'जग बीती'लिखते हैं कह कर बच निकलते हैं पर...क्या कोई जग बीती में इतना गहरा उतर सकता है?लगता है 'कोई' रह रह कर अनायास ही दबे पाँव आप तक चला आता है और आप....विचलित से दीखते हैं मुझे.
    प्यार ईश्वर का दूसरा नाम है.उसके अनेको रूपों की तरह अनेक रूप में जीवन भर हमारे साथ रहता है.फिर भी ...कहीं कोई आ कर चले जाने के बाद
    पीछे छोड़ गए अपने अहसास के साथ वापस लौट आता है?पहाड़ ही बन जाते तो भी 'उसका' अहसास हवा बन कर मन को छूता आपको...आज...और हमेशा...........क्या बोलू?राधे से दूर जाने के बाद जैसे कृष्ण की मनःस्थिति को शब्द दिए हैं आपने.

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  68. Collection of uncorrelated lovely words. A layman like me doesn't get anything out of it.
    Sad... Usually I liked ur posts.

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  69. पेड़ बहुत उदास देखे हैं मैने
    पत्ते हो गये साज देखे हैं मैने
    जिन्दगी की बुझती नहीं प्यास
    जाने कैसे ज़ज्बात देखे हैं मैने.

    in panktiyon ne dil ko chhu liya...beshak jindagi ki pyas shayad hi koi bujha paya ho...

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  70. बहुत सुन्दर, दिल से निकले इन तरानों के लिये हार्दिक आभार...

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  71. Very beautiful written post.
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  72. बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने...

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    एक लड़के को बहुत गुस्सा आता था। उसके पिता ने उसे कीलों का एक Bag देते हुए कहा कि, “जब भी तुझे गुस्सा आए तो इसमें से एक-एक कील लेकर घर के पीछे जो Wooden Boundary है उसमें जाकर एक कील ठोक देना। Read Full article on... http://www.bhannaat.com/2016/05/word-spoken-in-anger-can-leave-wound.html

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  73. वाकई शब्दो को एक एक करके धागों में पिरो कर ऐसी माला बनाना जिससे पढ़ने वाला उसकी खुशबू रूपी लेखनी में खो जाये को हम अद्भुत कला का ही नाम दे सकते है, बधाई हो आपको

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  74. लेखक महोदय,

    आपकी यह कविता जीवन की उन कुछ प्रछन्न उमंगों को जगाती है जो न जाने किन गहराइयों में छुपी हुई हैं इन सुन्दर शब्दों के लिये धन्यवाद

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  75. आदरणीय लेखक महोदय,

    आपकी यह कविता उन कुछ प्रछन्न उमंगों को जगाती हैं जो न जाने किन गहराइयों में छिपी हुई पड़ी हैं इन सुन्दर शब्दों के लियए हार्दिक धन्यवाद

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  76. Dil ko chhu jane wali post likhate hai aap. aise hi likhate rahiye hamesha.

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  77. बहुत ही खुबसूरत रचना .

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