सर, आप जेड सिक्यूरिटी ले लिजिये.
नही !... हमे सिक्यूरिटी की कोई जरुरत है ही नहीं. हमारे साथ तो सारी जनता है. हम सरकार से जन लोकपाल बिल मांग रहे हैं, और आप हमें जेड सिक्यूरिटी दे रहे हैं?
सर, ये तो आपको लेना ही पड़ेगा, आपकी जान को खतरा है, और आपकी जिन्दगी सरकार की जिम्मेदारी है।
मुझे...खतरा..वो भला किससे?
सबसे पहले तो आप को सबसे बड़ा खतरा खुद से है...न उम्र देखते हैं, न बॉडी. बस, चार जवानों के बहकावे में आकर भूखे बैठ गए हैं। वो सब तो खाते पीते रहते हैं,और आप...बस, अड़े हैं वन्दे मातरम, इन्कलाब-जिन्दाबाद करते. कभी कुछ ऊँच नीच हो जाये तब वो तो सरकार पर थोप कर अलग हो जायेंगे. निपटोगे आप और फ़ँसेगी ---बेचारी सरकार.
अरे भाई, हमारा क्या है? हम तो यहाँ भी मंदिर में सोये हैं पंखे में..और वहाँ तो चैम्बर मिल गया था और बढि़या कूलर वगैरह लगा था,तो नींद भी ठीक से आ-जा रही थी. वो भी कह रहे थे कि एक दो दिन में सब सेट हो जायेगा फिर बढ़िया खाना खा लिजियेगा, तो रुके रहे. एक बार तो लगा भी था कि -सरकार और उनके चक्कर में हम पिस गये..१३ दिन निकल गये. मगर कम से कम यह बढ़िया रहा कि इस बहाने पूरा मेडिकल चैक अप- टॉप डॉक्टरों से और टॉप के अस्पताल में हो गया. शानदार गद्दे वाले बिस्तर पर तीन दिन सोये अनशन के बाद. अब कम से कम हेल्थ की तरफ से कुछ दिनों तक कोई टेंशन नहीं. ये तो पता ही था कि- उस समय कोई तो क्या अगर मैं खुद भी मरना चाहता तो भी वेदांता अस्पताल के डॉक्टर मुझे मरने न देते.
एक रात जब स्वास्थय को लेकर थोड़ा डाऊट था, तो पुलिस ने डिसाईड कर ही लिया था कि उठवा कर ग्लूकोज लगवा देंगे तो एक प्रकार से चिन्ता मुक्त ही था. ऐसे में मुझे जेड सिक्यूरिटी की क्या जरुरत?
देखिये अन्ना जी, आप समझ नहीं रहे, पिछले दिनों भी आपसे मिलने वाले छलनी होकर ही मिल रहे थे. जिन्हें आपके वो चार स्तंभ चाहते थे वो ही आपसे मिल सकते थे. तब जेड सिक्यूरिटी जैसा काम वो संभाले थे. अब उनका नाम और काम हो गया, वो अपने रास्ते पर चले गये हैं. फिर जब जरुरत पड़ेगी, तब फिर आवेंगे आपके पास. अभी उनको आपकी मेन टेंशन नहीं है, इसलिए सरकार को चिन्ता करनी पड़ रही है. सरकार तो आपका आभार भी कह चुकी है. प्लीज, ले लिजिये न जेड सिक्यूरिटी...ऐसी भी क्या नाराज़गी है सरकार से ...आखिर आपकी सो कॉल्ड जनता ने ही तो सरकार चुनी है...जब जनता आपकी है तो सरकार भी तो आपकी ही कहलाई..कभी हल्का मनमुटाव आपसी वालों में तो होता है, अब भूल भी जाईये उसे..ले लिजिये न प्लीज़ जेड सिक्यूरिटी. देखिये, मना मत करियेगा.
चलिये, अब आप इतनी चिन्ता जता रहे हैं, संबंधों की दुहाई दे रहे हैं तो आपका मान रख लेता हूँ. मगर पब्लिक को क्या कहूँगा कि तुम्हारा अपना मैं, तुम्हारे और मेरे बीच ऐसा बाड़ा क्यूँ बाँध रहा हूँ?
सर, आप अपनी शर्तें डाल दिजिये इस जेड सिक्यूरिटी को लेने में...
व्हाट एन आईडिया सर जी...आप तो मेरे भी अन्ना निकले ! ! तो ऐसा करो..जेड सिक्यूरिटी तो दो मगर सादी वेषभूशा में ----हैं भी है और नहीं भी. पब्लिक को पता भी न चले और मिल भी नहीं सकती. सादी वेशभूषा में ए के ४७ धारक.. सर्फ एक्सल की तरह काम भी बन जायेगा और वजह...बस ढूँढते रह जाओगे. यह बोलते वक्त न चाहते हुए भी जाने कैसे उनकी एक आँख चंचलता में दब ही गई और सुबह का समय था तो पोहा और केला खाने लगे.
बात आगे बढ़ाते हुए बोले कि एक बात ध्यान रखना कि जेड सिक्यूरिटी ले तो रहा हूँ मगर सिर्फ इतनी खबर और कर दो सरकार को...
क्या हुजूर..फरमायें?
देखो, अगले अनशन के लिए ऑफर लाल बत्ती की गाड़ी का चाहिए मगर कण्डीशन ये- कि उसमें लाल बत्ती न हो...आँख को दबाते वे बोले
हो जायेगा सर..
और उसके बाद वाले में दिल्ली में एक सरकारी बंगला..एयर कन्डिशन्ड...मगर स्प्लिट एसी..जो बाहर से न दिखें...
हो जायेगा, सर...
और फिर केबीनेट मिनिस्टर का दर्जा...मगर मैं कैबिनिट मिनिस्टर नहीं बनूँगा...
ठीक है सर...
और मंत्री वाली तनख्वाह और भत्ते भी...
वैसे ये अलग से बताने की जरूरत नहीं ये तो खैर दर्जे के साथ पैकेज डील में आयेगा ही... है न!!
और मुझे लोकपाल का पद....
चलिये, इस पर भी विचार कर लेंगे...आखिर कितने साल के लिए देना ही होगा ये पद आपको
क्यूँ...
सर, आप ७४ साल के हो चले हैं....तो ऐसे ही पूछ लिया ...
मगर जेड सिक्यूरिटी का फिर क्या फायदा?
सॉरी सर ...चलिए इस पर कमेटी बैठा देते हैं कि लोकपाल किस तरह नियुक्त किया जा सकता है...
ओके,...और मेरे लिए भोजन के लिए खानसामा मेरे गाँव से, वो ही दिल्ली जायेगी जो पिछले ३० साल से मेरा खाना बना रही है....
मगर सर, वैसा खाना तो कोई भी बना देगा ...एकदम सादा है....
नहीं ! ! कोई भी कैसे बना सकता है ??और फ़िर मुझे उसी के हाथ का खाना है..मेरी जिद्द...
सर, आप जिद्द बहुत करते हैं...चलिए कोशिश करेंगे वो भी हो जाए.
वैसे .....आपकी डाईट तो आजकल दुबले होने की ख्वाहिश लिए युवाओं में अन्ना डाईट के नाम से पापुलर हो रही है...आपकी डाईट ने तो वाईब्रेशन क्रिएट कर दिया है फिटनेस फ्रीक्स में::
अन्ना डाईट...
सुबह एक कटोरी पोहा, दो केला
दोपहर में दो सूखी रोटी, एक कटोरी दाल, एक कम मसाले की हरी सब्जी
रात ७ बजे एक ग्लास फ्रेश फ्रूट ज्यूस....
बस!!!!
अब आखिरी...
अब क्या?
एक इन्फोर्मेशन और निकलवा कर रख लेना बस, यूँ ही देखने के लिए चाहिये...
क्या?
ये स्विस बैंक में एकाऊन्ट कैसे खुलता है?
आप भी बहुत मजाकिया हैं सर जी...
हा हा!! चलो, कल से जेड सिक्यूरिटी भेज दो!!
ओके सर
याद आता है बचपन में बुजुर्गों से मिली नसीहत कि नशेड़ी पैदा नशेड़ी नहीं होते. शुरु में कोई मित्र हल्की सी चखवा देता है...फिर धीरे धीरे आदत लग जाती है. फिर उसके बिना रहा नहीं जाता. मात्रा भी बढ़ती जाती है और लो, बन गये नशेड़ी. अब वो उनकों ढूँढेगा, जहाँ से नशा मिल जाये...बस!!! और फिर सुविधाओं और पावर से बड़ा नशा और कौन सा?
ये भी याद है कि पहले पंखा लगा मिल जाये तो अच्छी खासी गरमी में भी सुकून से सो लेते थे और अब हालत यह है कि ए सी न मिले तो कुलर में भी रात करवट बदलते ही गुजरती है. यह सुविधाओं की प्रवृति है, जकड़ लेना उसका स्वभाव!!
आज डा.अंजना संधीर की कविता, अमरीका सुविधायें देकर हड्डियों में समा जाता है, की याद भी अनायास ही हो आई.
डा.अंजना संधीर की कविता का अंश:
............
............
इसीलिए कहता हूँ कि
तुम नए हो,
अमरीका जब साँसों में बसने लगे,
तुम उड़ने लगो, तो सात समुंदर पार
अपनों के चेहरे याद रखना।
जब स्वाद में बसने लगे अमरीका,
तब अपने घर के खाने और माँ की रसोई याद करना ।
सुविधाओं में असुविधाएँ याद रखना।
यहीं से जाग जाना.....
संस्कृति की मशाल जलाए रखना
अमरीका को हड्डियों में मत बसने देना ।
अमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में जम जाता है!
आपकी पोस्ट पढ़कर मन से यह लाइनें निकल ही पड़ी!
जवाब देंहटाएं--
अन्ना ऐसी भी ज़िद ना करो!
दोष सरकार के मत हरो...!!
अच्छा तो अब मालूम हुआ अन्ना जी को मनाने कि टीम में आप भी थे , अच्छी पोस्ट व्यंग्य साथ साथ चलता रहता है |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@संस्कृति की मशाल जलाए रखना
जवाब देंहटाएंअमरीका को हड्डियों में मत बसने देना ।
अमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में जम जाता है!
---यह लाइनें मन को छू गईं ,आभार.
बहुत ही उत्कृष्ट व्यंग्य पोस्ट बधाई भाई समीर जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट व्यंग्य पोस्ट बधाई भाई समीर जी
जवाब देंहटाएंस्नेह और प्रेम भी अमेरिका की तरह होता है तो क्या यह भी नहीं करे कोई !!
जवाब देंहटाएंहर कीमती चीज का संरक्षण सरकार की जिम्मेदारी?
जवाब देंहटाएंMast vyangya hai....Abhar
जवाब देंहटाएं"A"nna था आज "Z" तक पहुंचा दिया मुझे,
जवाब देंहटाएंभूखा रहा इनआम में ये क्या दिया मुझे !
शोहरत मुझे तलाशती है उसको मैं नहीं,
किसने चने के झाड़ पे चढ़वा दिया मुझे?
"Stand" अब "कमेटी" रहेगी ये कब तलक,
'Nervous' हूँ 'Nineties' का खींचोगे कब तलक?
http://aatm-manthan.com
Der se aaya lekin badhiya hai...
जवाब देंहटाएंSampaadkeeya bahut likhte hain... H. Parsai birla hota hai...
सुविधाये हड्डियों का पानी निकाल लेती हैं, तब झटका लगते ही ढह जाता है शरीर।
जवाब देंहटाएंमज़ेदार व्यंग.
जवाब देंहटाएंअरे ,आप क्या बख़्शेंगे नहीं किसी को भी -और डॉ. अंजना संधीर की पंक्ति (अमरीका हड्डियों में जम जाता है) का बढ़िया सदुपयोग किया है !
जवाब देंहटाएंधन्य, हे व्यंग्यकार !
हम तो ए श्रेणी वाली से भी काम चला लेंगे क्योंकि जेड तक अनशन करना अपन के वश का नहीं है !
जवाब देंहटाएंअब ये सत्ता के प्रति मेरा रोष और उसके खिलाफ़ खडे हुए आम लोगों से एक रिश्ता बन जाने के कारण है या और किसी वजह से ठीक ठीक नहीं जानता , लेकिन जाने क्यों अन्ना को लेकर सिर्फ़ एक ही विचार आता रहा वो है सीधे नतमस्तक होने का ।
जवाब देंहटाएंआपने हास्य में भरपूर कोण निकाले , और यकीन मानिए कठिन पक्ष चुन कर । मैं होता तो निश्चित रूप से सरकार की बखिया उधेडने के लिए उसको निशाने पर रखा । किंतु फ़िर भी अन्ना टीम किसी भी सूरत में प्रश्नचिन्ह लगाने से परे रही है , आज भी जाने कौन कौन सी नोटिसों का जवाब बनाते ही दिन बीत रहा है उनका । मैं जानता हूं कि आप निर्मल हृदय हैं , यदि आदेशित न किया होता तो अग्रज के सामने दुस्साहस क्योंकर करूं मैं । आपका स्नेह अब हमेशा रहेगा मैं जानता हूं सो निश्चिंत रहता हूं । ..
वंदे मातरम
सरस और सरल व्यंग्य
जवाब देंहटाएंसुविधाओं में असुविधाएँ याद रखना।
अंजना संधीर से परिचय हेतु आभार ...
रही सही कसर निकल दी आपने तो ....अब सोचना पड़ेगा उन्हें भी कोई कदम उठाने से पहले.....!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है सर।
जवाब देंहटाएंसादर
यह सुविधाओं की प्रवृति है, जकड़ लेना उसका स्वभाव!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने, शुभकामनाएं.
रामराम.
बेहद ह्ल्के-फ़ुल्के अन्दाज़ में बहुत बड़ी बात कह दी ....
जवाब देंहटाएंव्यंग्य मे ही सही सच कहा है आपने इस साहस के लिए हमारा समर्थन और बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग है ..पर अन्ना की हड्डियों में सुविधाएँ नहीं जम सकतीं ...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट व्यंग्य के साथ अन्ना आन्दोलन की बेबाक समीक्षा को भी शामिल किया है आपने।
जवाब देंहटाएंअन्ना आन्दोलन की बेबाक समीक्षा समेटे हुए उत्कृष्ट व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंव्यंग तो अच्छा है . लेकिन यहाँ देश में अन्ना का कोई मजाक नहीं उड़ा रहा .
जवाब देंहटाएंहाँ , अन्ना की आड़ में हास्यास्पद बातें ज़रूर हुई हैं .
कविता बहुत गहरी है .
बहुत ही रोचक और उत्क्रष्ट व्यंग... आभार
जवाब देंहटाएंअन्ना के बहाने बहुत कुछ कह दिया समीर भाई ... पर अन्ना ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेलीं ... वो सरकार के झांसे में नहीं आने वाले ...
जवाब देंहटाएंऔर कविता में वाकई दम है ... अमेरिका हड्डियों में घुसने लगता है ...
♥
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
आपकी हर पोस्ट की तरह शानदार है यह भी ।
अन्ना के अनशन का एक सुफल ऐसा गुदगुदाता व्यंग्य भी होगा किसने सोचा होगा … :)
बहुत ख़ूब ! बधाई और शुभकामनाएं !
अभी बहुत सारी अस्त-व्यस्तताओं और समस्याओं के चलते आपकी कई पोस्ट पर पहुंच कर भी हाज़िरी रजिस्टर में दस्तख़त नहीं कर पाया :(
…लेकिन आपका अपनत्व , स्नेह और सद्भाव मेरे प्रति सदैव बना रहा है … यह मेरा सौभाग्य है !
आभार !
चलते चलते … आपको सपरिवार बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अब तो ले ही लीजिए
जवाब देंहटाएंwah!!!
जवाब देंहटाएंकविता की आखिरी पंक्तियाँ काफी कुछ कह गईं. उत्कृष्ट व्यंग.
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज़बरदस्त व्यंग्य... एकदम सटीक....
जवाब देंहटाएंएक इन्फोर्मेशन और निकलवा कर रख लेना बस, यूँ ही देखने के लिए चाहिये...
जवाब देंहटाएंक्या?
ये स्विस बैंक में एकाऊन्ट कैसे खुलता है?
आप भी बहुत मजाकिया हैं सर जी...
सबसे अच्छा व्यंग्य क्योंकि ये नेतागिरी का आखिरी पडाव है आपका बहुत बहुत धन्यवाद , उड गयी उडन्तश्तरी........सरर्र
बहुत ही ज़बरदस्त व्यंग्य....समीर जी
जवाब देंहटाएंये तो है कि ज़ेड सेक्युरिटी के लिए ज़ेड आमदनी भी तो चाहिए :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट व्यंग्य ....
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब ...करारा व्यंग....
जवाब देंहटाएंजैसे पैदायिश से नशेडी नहीं होते वैसे ही ज़ेड सेक्यूरिटी भी नहीं मिलती, उसके लिए समा बांधना पड़ता है :)
जवाब देंहटाएंइस पूरी बात को आपने बखूबी निखार-निखार कर बेहद खूबसूरत व्यंग के रूप में लिखा है। पढ़ कर मज़ा आगया बहुत ख़ूब...
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत ही रोचक और उत्क्रष्ट व्यंग| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंvery nice post sameer ji.
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार पोस्ट !!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर जी .. एकदम सटीक व्यंग्य. ....
जवाब देंहटाएंस्विस बैंक तिहाड़ जेल में ही एटीएम खुलवाने की सोचने लगा है...एक साथ, एक ही जगह पर इतने मोटे ग्राहक कहां मिलेंगे...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
शनिवार सुबह पढाने के लिए बचा कर रखी थी..
जवाब देंहटाएंएक एक लाइन पढ़ कर मजा आ गया...इससे बेहतर दिन कि शुरुआत नहीं हो सकती..
जय अन्ना...
कहीं पे निगाहें...कहीं पे निशाना ..
जवाब देंहटाएंनीरज
सार्थक और गंभीर लेख ,गुदगुदाता हुआ ।
जवाब देंहटाएंआम आदमी के लिए सरकार सुरक्षा तो दे नहीं सकती...अन्ना को आम आदमी से अलग करने की हर मुहिम सरकार की सोची समझी साजिश है...
जवाब देंहटाएंजुगलबंदी तो देख ही रहा था |
जवाब देंहटाएंउड़न-तश्तरी भी खूब ||
आप आये |
बहुत-बहुत आभार ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/
कल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
कमाल है...
जवाब देंहटाएंअमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में जम जाता है!
जवाब देंहटाएं.
बहुत ही गहरी बात कही हैं डा.अंजना संधीर लेकिन इसका अन्ना के लिए व्यंग मैं इस्तेमाल कुछ उचित नहीं लगा.
अति सुंदर....आगे शब्द नहीं मिल रहे हैं..
जवाब देंहटाएंयाद आता है बचपन में बुजुर्गों से मिली नसीहत कि नशेड़ी पैदा नशेड़ी नहीं होते. शुरु में कोई मित्र हल्की सी चखवा देता है...फिर धीरे धीरे आदत लग जाती है. फिर उसके बिना रहा नहीं जाता. मात्रा भी बढ़ती जाती है और लो, बन गये नशेड़ी. अब वो उनकों ढूँढेगा, जहाँ से नशा मिल जाये...बस!!! और फिर सुविधाओं और पावर से बड़ा नशा और कौन सा?...
जवाब देंहटाएंachchhi post
बहुत अच्छा व्यंग्य बहुत-२ बधाई...
जवाब देंहटाएंसमीर भाई आप के इस व्यंग्य लेख के बारे में नीरज भाई ने मेरे मन की बात कह दी। मुझे विश्वास है आप का खोजी दिमाग अभी कुछ और भी बतियाना चाहता था, खैर कोई बात नहीं - धीरे-धीरे।
जवाब देंहटाएंअंजना जी की कविता सत्य से परे भी बोल रही है। इतनी उत्कृष्ट कृति के लिए हमारा साधुवाद उन तक पहुंचाने की कृपा करें।
एक बेहतरीन पोस्ट. गाने को जी कर रहा है "हम लुट गए"
जवाब देंहटाएंसर बहुत अच्छा, अमरीका पर कविता उससे भी अच्छी।
जवाब देंहटाएंअमरीका केवल हड्डियों पर ही कहाँ ,दिमाग और आँखों पर भी तो चढ़ जाता है ...नहीं ?
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक व्यंग्य ........
जवाब देंहटाएंअमरीका को हड्डियों में ना बसने देने वाली बात पसंद आई । अण्णा पर व्यंग!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंमगर कम से कम यह बढ़िया रहा कि इस बहाने पूरा मेडिकल चैक अप- टॉप डॉक्टरों से और टॉप के अस्पताल में हो गया...
जवाब देंहटाएंये भी खूब कही .....हा...हा...हा......
और ये अन्ना डाईट...
सुबह एक कटोरी पोहा, दो केला
दोपहर में दो सूखी रोटी, एक कटोरी दाल, एक कम मसाले की हरी सब्जी
रात ७ बजे एक ग्लास फ्रेश फ्रूट ज्यूस.... बस!!!!
अब आप भी ये डाईट शुरू कर दें ....:))
कायल है समीर जी आपकी बेबाक शैली के.
जवाब देंहटाएंआप और हम क्या अलग हैं अन्नाजी की रैली के.
अनुपम हास्य से पूर्ण आपकी इस प्रस्तुति का आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
कायल है समीर जी आपकी बेबाक शैली के.
जवाब देंहटाएंआप और हम क्या अलग हैं अन्नाजी की रैली के.
अनुपम हास्य से पूर्ण आपकी इस प्रस्तुति का आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
satta aur insaani khwaahish par bahut sateek vyang likha hai aapne. hum suvidhabhogi log hain, haddi mein suvidha paane ki kaamna samai hui hai chaahe jaise mile. Anjana ji ki kavita achchhi lagi. haasya vyang ki tashtari yun hin udti rahe, aur hum sabon ko sochne ke liye vivash karti rahe. shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंबहत खूब समीर जी |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना देखें-
**मेरी कविता:राष्ट्रभाषा हिंदी**
श्री मान जी अगर अन्ना जी सचमुच स्विस बैंक का खाता खुलवाने की सोचने लग जाएँ तो इस देश का क्या होगा |
जवाब देंहटाएं......व्यंग भरी ये पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी ....
................धन्यवाद् .......
nice one, I 've also written a poem on ANNA. If u could see..........
जवाब देंहटाएंसमीर जी नस्मस्कार बहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक शैली मे आपकी जेड सेक्युरिटी चलती रही। अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएं