बुधवार, अगस्त 10, 2011

डायरी के पीले पड़ चुके कुछ आवारा उखड़ते पन्ने

-१-
मैं बार बार वापस आने को उठता हूँ क्यूँकि मुझे पता है तुम रोक लोगी मुझे...मेरा हाथ थाम कर बिना कुछ कहे उन नम आँखों से मुझे ताकते...तुम्हारी आँखों से बात करने की अदा...और वो नाजुक छुअन का अहसास...बार बार वापस आने के लिए उठने का मन करता है.....

-२-
आज ढलती शाम फिर तुम कुछ उदास, बुझी बुझी सी छत पर मुझसे मिलने आई..आज फिर दूर बगीचे से उस काले और नारंगी डैने वाली चिड़िया ने एक मधुर गीत गुनगुनाया...शायद वो जान गई थी कि तुम कुछ उदास हो...मैं और तुम आसमान में न जाने क्या ताकते उस चिड़िया का गीत सुनते रहे...फिर तुमने मेरी तरफ देखा मेरी नजरों में अपनी नजरें डाल कर...और मुस्करा उठी...खो गये हम एक दूसरे की आँखों में. चिड़िया शायद तब निश्चिंत होकर सो गई...रात ने अपनी पहली अंगड़ाई ली है अभी...चाँद उल्लास में आसमान पर सितारे टांक रहा है हौले हौले...कि तुम्हारे मुस्कराने का उत्सव जो मनाना है अभी.....

-३-
वो मुझसे कहती है कि " तुम पान खाना छोड़ क्यूँ नहीं देते...जानते हो मैं जबाब नहीं दे पाती, जब अम्मा पूछती हैं मेरे ओठों की लाली का सबब.."
मैं सोच में हूँ कि अपने गुलाबी गालों और चमकीली आँखों के लिए क्या जबाब देती होगी वो अम्मा को?

और कुछ पन्ने उसके जाने के बाद:

-४-
कुछ सँवार कर लिखने की आदत ऐसी रही कि हमेशा ही दो कलम लिए घूमता रहा..एक लाल और एक काली...नीली रोशनाई आँख में चुभन देती थी सो कभी न भाई. वर्तमान लिखता तो काली स्याही की कलम से और अतीत की चुभन को लाल स्याही से उकेरता....तन्हा रातों में गुजरता उन पन्नों से ...शब्द शब्द चींटिंयों से रेंगते नज़र आते हैं..काली और लाल चीटियों की कतारें..रेंगती मेरे शरीर पर ..काली एक सिहरन पैदा करती और लाल अपने डंक गड़ाती-काटती..एक खामोश चीख उठती ..जाग जाता हूँ मैं..खिड़की से आती ठंड़ी हवा की छुअन..राहत देती है पसीने से भीगे बैचेन तन को और सोचता हूँ मैं कि आज के लिखे काले हर्फ भी अगर कल लिखूँ तो लाल हो जायेंगे...चुभन है कि मुई जाती नहीं इस जिन्दगी से..बेवजह काले हर्फों को सजाकर खुश हुआ जाता हूँ मैं..न जाने क्या सोचकर बिखरा देता हूँ काली स्याही की दवात डायरी के एक कोरे पन्ने पर...यही तो है मेरी डायरी के उस काले पन्ने का सबब और मेरी लाल कलम की कहानी...तुम आ जाओ तो फिर लिखूँ एक ऐसी नई कहानी-आसमानी रोशनाई से...कि भरमा के चाँद उतर आयेगा पाने पर मेरे...  

-५-
कैसे भूलूँ तुम्हारा मेरे सीने पर कान लगा कर घंटो मेरी धड़कने सुनना...कुछ पूछता तो तुम होठों पर ऊँगली रखकर धीरे से चुप रहने का इशारा करती और आँखें बंद किये ही मुस्करा देती...बाद में कहतीं कि कितनी सुन्दर धुन है तुम्हारी धड़कनों की...जी ही नहीं भरता सुनने से...मैं कहता कि मेरी धड़कन कहाँ जो मेरी सीने में धड़कती है..ये तो तुम्हारी अमानत है और मुस्करा देता..तुम शरमा जाती..गाल खिल उठते सुर्ख लाल गुलाब के मानिंद..

-६-
याद करो उस रोज बगिया में ऐसे ही क्षणों में एक भौरें ने तुम्हें गाल पर डंक मार दिया था..और तुम..दर्द की तड़प में ऐसा झपटी उसपर कि बेचारा जान गवाँ बैठा...शायद तुम्हारे गाल को गुलाब समझने की भूल...वो तो मैं अक्सर ही करता हूँ..बस यह कि भौंरा नहीं हूँ..वरना....बस!! तुमने मेरे होठों पर हाथ रख दिया और तुम्हारी आँखों से वो आँसू..कहती कि कभी ऐसी बात जुबां पर मत लाना.....

-७-
रेत पर लेटे बदलते मौसम में तुम अपनी नजरों से उन भागते बादलों संग न जाने कितनी देर खेला करती. फिर एकाएक तुमने मुझे दिखाया था वह विचित्र आकृति वाला बादल- कछुआ बादल कह कर तुम हंस पड़ी थी और न जाने क्या सोच संजीदा हो उठी..कहा था तुमने कि काश!! हमारी जिन्दगी भी कछुआ बादल हो जाये. वक्त है कि थमता नहीं..और बदल जाता है मौसम शनैः शनैः...तुम भी पास नही...दिखता है मुझे भी अब अक्सर एक बादल- आठ पांव वाला..क्या कहूँ उसे-ऑक्टोपस बादल..एक जकड़न का अहसास होता है मुझे और कोशिश कहीं दूर भाग जाने की...

-८-
तरसती रात की खामोशी घेरकर आगोश में तुमको करेगी जिस वक्त मजबूर इतना कि तुम बेबस और निढाल हो, कर बैठो आत्म समर्पण..और भूल जाओ मुझे.... याद रखना ठीक उस वक्त कोई दीवाना फना होगा झुलसते सूरज की तपिश में सात समुन्दर पार यहाँ...

diary pages

वक्त की गुल्लक में
यादों के कुछ हसीन लम्हें
जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
आज बरसों बाद जब
तुम मिलने आने को हो
तब उसमें से
एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
तुम्हारी अमानत..
तुम पर खर्च करने को..
न जाने फिर इस जनम में,
मुलाकात हो न हो!!!

-समीर लाल ’समीर’

65 टिप्‍पणियां:

  1. डायरी के आवारा पन्नों पर तो हमारा दिल आ गया, डायरी के सारे आवारा पन्ने कब पढ़ने को मिलेंगे।

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  2. सीधे दिल से की गयी भावुक मन की अभिव्यक्ति!

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  3. सरजी हमेशा की तरह इस बार आपने एक पोस्ट नहीं लिखी बल्कि दिल के उस पन्ने को यहां रख दिया जिससे आंसू की धारा स्याही के रूप में बाहर निकल रहे है
    बहुत प्रेमपूर्ण ।

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  4. डायरी के पीले पन्नों ने बहुत कुछ सहेज रखा है। चिड़ियों की चहक और फ़ूलों की महक कायम है।

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  5. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..

    दिल से निकले शब्द सीधे दिल को छूते हैं. यादों का सिलसिला ही ऐसा है.

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  6. जब उड़ने लगते हैं डायरी के पन्ने ...फ़ड़फ़ड़ाकर ...साँस भी रोकने को मन करता है ..दुबारा न उड़ जाए कहीं ये सोचकर ...
    उठाकर रख लेती हूँ उन्हें कुछ नम करके...

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  7. मैं ये सोच कर उसके घर से चला था,
    के वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको,

    हवाओं में लहराता आता था दामन,
    के दामन पकड़ कर बैठा लेगी मुझको,

    कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे,
    के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको,

    मगर उसने रोका, न उसने मनाया,
    न दामन ही पकड़ा, न मुझको बैठाया,
    न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया,
    मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया,
    यहां तक के उससे जुदा हो गया मैं,
    जुदा हो गया मैं,
    जुदा हो गया मैं...

    जय हिंद...

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  8. डायरी के पन्‍ने हैं या दिल के अलफाज? बहुत ही करीने से पिरोये हैं आपने। बहुत मनभावन।

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  9. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..
    न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!

    waah

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  10. आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..

    बहुत ह‍ी सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  11. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    bahot komal hain ye lamhe.....

    जवाब देंहटाएं
  12. समीर जी इसको संमरण ,आलेख ,पोस्ट ,डायरी ऐसा कोई भी नाम नहीं दिया जा सकता ..... ये तो विशुद्ध भावनायें हैं .... सादर !

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  13. न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!


    लरजते शर्माते अक्षर ....

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  14. नीली रोशनाई आँख में चुभन देती थी सो कभी न भाई. वर्तमान लिखता तो काली स्याही की कलम से और अतीत की चुभन को लाल स्याही से उकेरता....

    याद करो उस रोज बगिया में ऐसे ही क्षणों में एक भौरें ने तुम्हें गाल पर डंक मार दिया था..और तुम..दर्द की तड़प में ऐसा झपटी उसपर कि बेचारा जान गवाँ बैठा...

    याद रखना ठीक उस वक्त कोई दीवाना फना होगा झुलसते सूरज की तपिश में सात समुन्दर पार यहाँ...

    लाल का एक मतलब रत्न भी होता है और प्यारा भी होता है। आप सिद्ध रूप से लाल हो क्योंकि आपके इस लेख में उपरोक्त पंक्तियों ने दिल से डायरेक्ट प्रेमाश्रु ढुलका दिए भाई।

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  15. समीर जी प्रणाम !
    आपके लेखन के बारे में कुछ कहना तो सूरज को दिया दिखाना होगा..
    "आज के लिखे काले हर्फ भी अगर कल लिखूँ तो लाल हो जायेंगे..."
    प्रिय के चले जाने के बाद हर रंग बदरंग हो जाता है.....भाव विहल कर गयी ये पंक्तिया ...

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  16. बहुत भावपूर्ण और दिल को छूते पन्ने... आभार

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  17. यादों की पेटी से निकले इन मोतियों की चमक अनोखी है..

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  18. वक्त की गुल्लक में..... बहुत भावुक कर गये आपकी डायरी के पन्ने...

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  19. डायरी के पन्नों ने गहराई तक छू लिया, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  20. बेनामी8/11/2011 04:30:00 am

    खो गये हम एक दूसरे की आँखों में. चिड़िया शायद तब निश्चिंत होकर सो गई

    हो तो हम भी गए ऐसी पंक्तियाँ पढ़

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  21. kitna sukoon rahta hai is peele pannon mein...
    jaha hamari yaade bas kartee hain...
    sab kuch samet leti ye, na jane kaise...
    har baat jaha aankho se bahati hai...

    thank you for sharing...
    :)

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  22. क्या बात...क्या बात....बड़ी रूमानी और खुशनुमा यादें कैद हैं इन पन्नों में...उन्हें भी पढवाई या नहीं...जिनका जिक्र है...:)

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  23. न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!

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  24. दिल की गहराई से लिखी हुई और प्रेम से परिपूर्ण इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई!

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  25. डायरी के यही आवारा पन्ने अक्सर याद आते हैं बार बार ....दिल से लिखी यह मासूम बाते कभी भूली नहीं जा सकती है ....

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  26. आपके शब्द वाह दिल की न जाने कौन सी गहराई से निकलते हैं वाह सीधे वहीँ जाते हैं जहाँ से आप लिखते हैं दिल की गहराई से दिल की गहराई तक....



    कई जिस्म और एक आह!!!

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  27. वाकई! पुरानी वस्तु का महत्व है!
    --
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  28. छोटी सी गुल्लक का यह खज़ाना ऐसा है कि जितना खर्च करो फिर भर जाता है.. और जितना भरता है उतना ही तड़पाता है!!

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  29. मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था
    कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको... भाला हो उन पीले पन्नों का जो पोल-खोल कर दिया :)

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  30. बहुत सुन्दर प्रस्तुति समीर जी, वधाई !

    www.navgeet.blogspot.com

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  31. ये डायरी न हो, ये डायरी के पीले पड़ चुके पन्ने न हों तो शायद हम कभी अतीत में जाने की सोचें भी नहीं...हमें तो आभार मानना चाहिए इनका..
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  32. तरसती रात की खामोशी घेरकर आगोश में तुमको करेगी जिस वक्त मजबूर इतना कि तुम बेबस और निढाल हो, कर बैठो आत्म समर्पण..और भूल जाओ मुझे.... याद रखना ठीक उस वक्त कोई दीवाना फना होगा झुलसते सूरज की तपिश में सात समुन्दर पार यहाँ...

    Waah kya baat hai. Unwaan padhkar un awaara ukhadte panon ko padhne ki lalak yaha le aayi aur sach mein...bebak....hai aur padhne ki tamana hai

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  33. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..
    न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!


    Bahut khub ! javab nahi...

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  34. भावों के बादल से रिमझिम बरसती शब्दों की फुहार, बस खड़े खड़े भीगते रहे।

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  35. वो मुझसे कहती है कि " तुम पान खाना छोड़ क्यूँ नहीं देते...जानते हो मैं जबाब नहीं दे पाती, जब अम्मा पूछती हैं मेरे ओठों की लाली का सबब.."
    मैं सोच में हूँ कि अपने गुलाबी गालों और चमकीली आँखों के लिए क्या जबाब देती होगी वो अम्मा को?

    बहुत खूबसूरत राज़ छुपे हैं , इन पीले पड़ गए डायरी के पन्नों में । :)
    हर युवा दिल की धड़कन होती है , ये डायरी ।

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  36. nishabd bhavuk bhav dil se waah,teer aar paar ho gaya,paane ke har pankti ki tapish ko mehsus karne ka mann hai.ji karta hai sari diary ek saath padh le.

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  37. 'आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को'.
    - डायरी के पन्नों में एक मुस्कान के अलावा जो बहुत कुछ छिपा है उसे भी पीलेपन की सज़ा से मुक्त कर प्रकाश में आने दीजिये !

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  38. @वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..
    न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!
    इस रचना और भाव की जितनी तारीफ़ करूं कम है , सफर जारी रहे ,आभार.

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  39. आपकी डायरी के पन्ने...ने गहराई तक छू लिया....!

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  40. aap ki baat sada hi dil ko chhuti hai .aur aapki likhi kavita bahut gahri hoti hai.gullak pr ek kavita mene bhi likhi thi par aapki kavita kamal hai
    \saader
    rachana

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  41. यादों की सुन्दर चमक...आभार

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  42. उसके जाने से पहले के पन्ने ... उसके रोकने का अंदाज़ , होठों की लाली का राज़ .. और मुस्कुराने का उत्सव ..बहुत कमाल का है ..
    जाने के बाद के पन्ने ..काली लाल स्याही से लिखी तहरीर चींटियों के समान रेंगती हैं और काटती हैं .. गज़ब की अभिव्यक्ति है ..बादलों के आकर से ज़िंदगी की तुलना ..और चेहरे को गुलाब समझ भ्रांतिमान अलंकार से सजाना ... और अंत में
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..

    सब कुछ मिला कर एक भाव प्रवण अभिव्यक्ति /..

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  43. आपको परिवार सहित आनेवाले पावन पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  44. चचा, कटहल के अचार का जिक्र आप छिपा ले गए

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  45. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..
    न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!

    awesome, brilliant, beautiful!

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  46. डायरी के पन्नों ने भावुक कर दिया और वह मुस्कान जो आपने सहेजी है शायद उनके काम आ जाये.

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  47. उफ्! इतनी रूमानियत? एक अजीब सी बेचैनी भर गई है मन में।

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  48. मालिक क्या करते हो ... गज़ब करते हो यार ... सच बताना सब कुछ सच तो नहीं है ये ... क्या कोई टांका तो नही उखड गया पुराना कोई ...

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  49. बड़े सम्हाल के रखी है...डायरी...बाबा जी की लगती है...पूरी पढवाने की मंशा है या नहीं...इतनी शिद्दत से लिखने वाले को पढना भी जरुरी है...

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  50. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.

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  51. स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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  52. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें .

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  53. मार्मिक .....
    लालसा बढती जा रही है इस प्रेम गाथा की .....
    :))

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  54. वक्त की गुल्लक में
    यादों के कुछ हसीन लम्हें
    जमा किये थे तुम्हारे साथ के..
    आज बरसों बाद जब
    तुम मिलने आने को हो
    तब उसमें से
    एक मुस्कान निकाल लाया हूँ..
    तुम्हारी अमानत..
    तुम पर खर्च करने को..
    न जाने फिर इस जनम में,
    मुलाकात हो न हो!!!
    bahut badhiya rachna ,swatanrata divas ki badhai .

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  55. पुरानी डायरी के पन्ने हमारे जीवन का आइना होते हैं,
    जिन्हें पढ़कर हम कभी हँसते कभी रोते हैं !

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  56. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  57. "थोड़ा सा रोमानी हो जायें" टाइप पोस्ट :)
    सुन्दर है,राजा रवि वर्मा की पेंटिंग की तरह.
    आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो.

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  58. सर , मैंने अभी कुछ दिन पहले ही कहा है आपसे , कि ऐसा मत लिखा करो .. दो -तीन दिन मैं फिर अपने आप में नहीं रहता हूँ ..

    विजय

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  59. ऐसा लगता है कि कितनी बातें समझ में आ रही है अब, अनकही- सी थी जो.. फिर भी लगता है कि बहुत कुछ तो समझा ही नहीं.... खो- सी गयी डायरी के पन्नों में.....

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