गुरुवार, जुलाई 21, 2011

बड़ी दूर से आये हैं….ब्लॉगर मिलने!!!

उत्साहित तो थे ही लन्दन जाकर मित्रों से मिलने को और साथ ही सुबह ७:५० की बस जानी थी यॉर्क बस अड्डे से. ५ बजे ही उठ गये. सूरज महाराज पहले से ही तैनात थे खिड़की के रास्ते. जाने कब सोते हैं और कब उठते हैं यहाँ गर्मियों में. रात १० बजे तक तो आसमान में टहलते नजर आते हैं और सुबह ४ बजे से फिर आवरगी. पावर के नशे में नींद नहीं आती होगी शायद. विचित्र नशा होता है यह भी.
खैर, दो दिन का सामान, लैपटॉप, एक किताब बाँध कर निकल पड़े घर से ७.१५ बजे बस अड्डे के लिए और ठीक ७.५० पर बस चल पड़ी लन्दन ले जाने को. दीपक मशाल से पहले ही भारत से बात हो गई थी कि वह शाम ६ बजे तक भारत से लन्दन पहुँच जायेंगे. होटल बुक कर लिया था, वहीं हम दोनों का रुकना तय हुआ. दिन इतवार था अतः तय पाया कि शाम होटल में बिताई जायेगी इतने दिनों की ढेरों बात करते और फिर अगले दिन सुबह शिखा वार्ष्णेय जी के घर धावा बोला जायेगा. वहीं डॉ कविता वाचक्नवी जी भी आ जायेंगी. नाश्ता, लंच, शाम का नाश्ता, रात रास्ते के लिए पैक करवा कर एक बार में ही पूरा हिसाब किताब तय कर शाम को अपने अपने घरों के लिए वापसी, मैं यॉर्क, दीपक नार्थ आयरलैण्ड और कविता जी अपने घर लन्दन में ही लौट जायेंगे. इस तरह एक अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की योजना बनी जिसमें लन्दन, कनाडा और आयरलैण्ड का ब्लॉगर मिलन होना तय पाया था.
रास्ता आरामदायक, दर्शनीय और ’दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ फिल्म के सरसों के खेत की याद दिलाता मजेदार था. ७.५० को बस चली और बादलों ने सूरज को आ घेरा. बरसे नहीं, बस घेर कर बैठ गये. शायद सूरज से पूर्व में समझौता करके आये थे कि बस, कुछ देर घेर कर बैठे रहेंगे और फिर निकल जायेंगे. बरसे बरसायेंगे नहीं सिर्फ जनता को बरसात का मनोरम सपना दिखायेंगे. मगर दो घंटे बीत गये. बस रास्ते में एक शहर मिडलैण्ड भी पहुँच गई, जहाँ से लन्दन के यात्री ट्रेन में बैठा दिये जाते हैं उसी टिकट पर लन्दन जाने को मगर बादल थे कि हटने का नाम ही न लें. ट्रेन भी १२.३० बजे लन्दन किंग क्रास इन्टरनेशनल स्टेशन पहुंच गई और बादल अपना घेराव जारी रखे हुए थे अनशन पर डटे से नजर आये.
इस बीच मैने मेन से लोकल स्टेशन बदला. मकड़ी के रंग बिरंगे जालेनुमा उलझा उलझा नक्शा देख समझ कर लन्दन ट्यूब ट्रेन (शहर के भीतर चलने वाली ट्रेन) पकड़ी और निकल पड़ा उस जगह जाने को जहाँ होटल मौजूद था और वो था शिखा जी के घर से मात्र १० मिनट की दूरी पर. एक स्टेशन पर ट्यूब बदलकर फिर जिस स्टेशन पर उतरा, वही स्टेशन शिखा जी के घर जाने के लिए उतरने का उचित स्थान है मगर वहाँ से होटल पैदल जाने के लिए जरा ज्यादा दूर और टैक्सी पकड़ने के लिए जरा ज्यादा नजदीक था सो बीच का रास्ता संभालते हुए सामने से उस दिशा में जाती बस पर चढ़ लिए. १० मिनट में होटल पहुँच गये.
दोपहर का तीन बजने को था. कमरे में चाय बना कर पी गई और लैपटॉप कनेक्ट करके बैठ गये. दीपक का इन्तजार शुरु हुआ. इस बीच जाने कहाँ से ख्याल उड़ते आये और विदेश का धन- भगवान पद्मनाभम वाला आलेख भी लिख गया और पब्लिश करने हेतु शेड्यूल भी कर दिया. खिड़की के बाहर नजर पड़ी तो देखा बादल सूरज द्वारा खदेड़े जा रहे हैं. लगा कि पूर्व समझौते के अनुसार समय पर न हट कर जनता याने मेरी पसंद देखते हुए उनके अनशन पर डटे रहने से खफा सूरज ने लाठी चार्ज करवा दिया हो. कोई बादल कहीं भागा, कोई कहीं कूदा, कोई कहीं काले से सफेद बादल का वेश बदल कर भागा. बादल भी न!! समझते नहीं हैं- उनका क्या है- आज है, कल नहीं होंगे. सूरज को तो हमेशा रहना है. रामलीला मैदान और बाबा रामदेव की याद हो आई बिल्कुल से.
इन्हीं सब में दो घंटे बीत गये. आम जन की भाँति इस अफरा तफरी भरे मौसम का मैने भी आनन्द उठाया. तब तक दीपक का फोन भी आ गया कि एयरपोर्ट पहुँच गया है. १ घंटे में होटल पहुँच जायेगा. भारत से आया था इतने दिन रह कर और वो भी शादी करके तो मैने स्वतः उसके अनुमान को ठीक करते हुए उसके कहे १ घंटे को २ घंटे मानते हुए सोच लिया कि ७.३० से ८ के बीच आयेगा और मैं आसपास के इलाके में घूमने निकल पड़ा.
इल्फोर्ड नामक इलाका- पूरा पाकिस्तान, बंगलादेशी और पिण्ड के सरदारों से भरा पड़ा. सब नौजवान सरदार लेटेस्ट मॉडल के बर्बाद से बर्बाद हेयर स्टाईल, कान में बाली, लगभग घुटने तक झूलती जिन्स, गैन्ग टाईप बनाकर घूमते, लड़कियाँ छेड़ते, गालियाँ बक बक कर बात करते, संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त से नजर आते बड़ा असहज सा वातावरण निर्मित कर रहे थे. जगह जगह देशी दुकानें, रेस्टारेन्ट, पान की दुकानें, साड़ी, ज्वेलरी, सलवार सूट, ग्रासरी से लेकर हर देशी सामान का बाजार. थोड़ा सा परेशान करता माहौल. कुछ देर उस भीड़ भरे माहौल में टहलकर मैं कमरे में वापस आ गया. अनुमान से ज्यादा भारत से अपना आना साबित करते दीपक महाराज ९.३० बजे अवतरित हुए. फिर शुरु हुआ कुछ जामों का दौर, लम्बी चर्चायें, कविताबाजी, खाने का आर्डर और देखते देखते, बतियाते बतियाते, पीते पीते रात दो बजे हालात ऐसे कि बिना गुड नाईट कहे अपने अपने बिस्तर में कब सो गये, पता ही नहीं चला.
सुबह ८ बजे उठकर होटल में ही ब्रेकफास्ट कर लिया और ११ बजे चैक आऊट कर शिखा जी के घर पहुँच गये.
स्वागत की पूरी तैयारी बेहतरीन नाश्ते के साथ. तैयारी देखकर यह बताने की हिम्मत ही नहीं हुई कि नाश्ता करके आये हैं बल्कि अफसोस ही हुआ कि क्यूँ करके आ गये. खैर, एक दिन की बात थी तो फिर से काजू, बदाम से लेकर तले हुए प्रान्स खाये गये. कविता जी लन्च टाईम तक पहुँचने वाली थी. अतः शिखा जी द्वारा बनाई मनपसंद चाय के साथ बातों का सिलसिला प्रारंभ हुआ. किताबें दी गईं. संगीता स्वरुप जी कविता की किताब प्राप्त की गई. शिखा जी से उनकी आने वाली किताब, हाल के हिन्दी सम्मेलन और जावेद अख्तर, शबाना आज़मी और प्रसून जोशी से मुलाकात का ब्यौरा और नेहरु सेन्टर की गतिविधियों के बारे में जानकारी ली गई. तब तक कविता जी आ गई.

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लन्च हुआ. एक से एक लज़ीज़ पकवान बनाये थे शिखा जी ने. कुछ ज्यादा ही खा लिए. फिर चाय का दौर.
कविता जी के आ जाने से पुनः ढ़ेर वार्तालाप. उनकी रचना यात्रा, ब्लॉगिंग पर चिन्तन. फेसबुक पर पलायन करती ब्लॉगरों की भीड़. इस व्यवहार पर अपने अपने मत. एग्रीगेटर्स की भूमिका और आवश्यक्ता. कमेंटस की महत्ता आदि पर विमर्श किया गया.
इस बीच दीपक को मौसम की बदलाव की मार पड़ती रही और उनकी नाक धीरे धीरे दिल्ली के पीक ट्रेफिक की स्थिति को प्राप्त होते हुए लगभग बन्द हो गई. दवाई खाकर वो इस लायक हुए कि अब चुपचाप सो जाये. अतः वह उपर सोने चले गये. तभी शिखा जी के प्यारे प्यारे बेटा और बेटी भी स्कूल से आ गये. दोनों ने मिलकर हम लोगों की तस्वीरें खींची.
घंटा भर सो लेने के बाद दीपक इस लायक हुए कि फोटो खिंचवा कर ट्रेन पकड़ी जाये और वो एयरपोर्ट जायें और मैं यॉर्क के लिए ट्रेन लेने किंग क्रास स्टेशन. कविता जी, मैं और दीपक एक साथ ही ट्यूब ट्रेन से शिखा जी की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठा कर गदगद हो निकले. रास्ते में पहले कविता जी उतरी. फिर चन्द स्टेशन बाद दीपक और आखिर में मैं. रात ११ बजे जब ट्रेन से यॉर्क घर वापस पहुँचा, तो दीपक का फोन आ चुका था कि वो आयरलैण्ड पहुँच चुके हैं और घर जाने के लिए एयरपोर्ट से बस ले रहे हैं.
इन दो दिनों में दीपक जितना हमारे साथ थे, उससे दुगना भारत में थे. एक माह भी पूरा नहीं हुआ है अभी विवाह को. उनकी पत्नी का भारत से लगातार फोन पर उनके मूमेन्टस का लिया जाना और दीपक का बार बार किनारे जाकर बात करना मजा दे रहा था. दीपक इस मिलन और अपनी भारत यात्रा पर दो दिन पूर्व लिख ही चुके हैं. शायद शिखा जी और कविता जी की कलम भी चले.
एक यादगार यात्रा, ढेरों वार्तालाप, मधुर कभी न भूल सकने वाली मुलाकात साथ में सहेज लाये हैं. लगा ही नहीं कि सबसे पहली बार मिले हैं.

कुछ चित्र देखें इस मिलन के.

83 टिप्‍पणियां:

  1. संपूर्ण विश्‍व हिन्‍दी ब्‍लॉगरमय हो गया है। शुभकामनाएं

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  2. वाह ! सूरज का सोना -जागना !!!!

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  3. तो यह रहा अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगेर सम्मेलन रिपोर्ट के किय आभार :)

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  4. बाप रे! इत्ता लंबा दिन?
    फिर सर्दी में जब इत्ती लंबी रात होती होगी तब?

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  5. बल्ले बल्ले. ब्लागरों की दुनिया कितनी पास आ गई है

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  6. एक बढ़िया मीट . ऐसी मीटिंग होती रहनी चाहिए. आज इस पोस्ट को मेरे हेलीकाप्टर (संकलक) पे दौड़ा दिया है कल इस को चर्चा मंच पे स्थान  मिलेगा. ऐसे ही मिलते रहें और लिखते रहें.

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  7. विदेश में फलते-फूलते भारत की सच्‍ची तस्‍वीर.

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  8. यह यात्रा संस्मरण एक नहीं दो बार पढ़ा!
    सारे चित्र भी देख लिए!
    बहुत रोचक और क्रमबद्ध विवरण लय में दिखा!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  9. ब्लागर मिलन के बारे में बढ़िया जानकारी दी है ... आभार

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  10. अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगेर सम्मेलन रिपोर्ट के किय आभार......गुरदेव

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  11. अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगेर सम्मेलन रिपोर्ट के लिए आभार ....गुरदेव
    पिछली टिपण्णी में लिए की जगह किये हो गया था

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  12. कमाल है, गुरुदेव...बस पर यॉर्क से लंदन तक का DDLJ सफ़र और रास्ते में आपको कोई सेनोरिटा नहीं मिली...

    शिखा जी के घर पर उनके साथ कविता जी, दीपक और आप...

    जहां चार ब्लॉगर मिल जाएं चार, दिन हों वहीं गुलज़ार...

    जय हिंद...

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  13. such meeting are very healthy for the blogging ..
    it gives new energies and enthusiasm ..
    i wish i will get a opportunity to meet to you a day ..

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  14. फेसबुक या कहें सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ओर भागते ब्‍लॉगर के साथ ब्‍लॉग अखबारों (एग्रेगेटर्स) पर भी अब चर्चा करने का समय है...


    सार्थक मिलन...

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  15. आपके रोचक संस्मरण पढकर आनंद आ गया.
    ब्लोगर मिलन के चित्र बहुत अच्छे लगे.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  16. कोई बादल कहीं भागा, कोई कहीं कूदा, कोई कहीं काले से सफेद बादल का वेश बदल कर भागा. बादल भी न!! समझते नहीं हैं- उनका क्या है- आज है, कल नहीं होंगे. सूरज को तो हमेशा रहना है.......baadlon ki uchal kud bahut bhai ...bahut khubsurat lekh eakdam jita jagta...photo bhi bahut pasnd aayi sabki...aapka sabse milna bahut saari yaaden aapke man men basa gaya ...yahi to hai ache logon ki pahchan jo chhap chhod jayen....aapki hi trha...bahut2 badhai..

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  17. kya bhaiya ek passport, visa aur ticket ki to baat thi, ham bhi aa jate...bas itna hi to sponsor karna tha:):)

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  18. समीर जी, आप की पोस्ट के पहले हिस्से का शीर्षक "बादल मीट" होना चाहिये था, क्योंकि बादलों का विवरण बढ़िया है!

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  19. आपने इस तरह बयान किया है कि पढ़ते हुए लगा कि हम भी आपके ही साथ हैं :)
    बहुत ही रोचक और अच्छा लगा यह पढ़ कर।

    सादर

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  20. समझते नहीं हैं- उनका क्या है- आज है, कल नहीं होंगे. सूरज को तो हमेशा रहना है.. प्रकृति से भारत की राजनीति का दृश्य सटीक लगा ..
    रोचक यात्रा वृतांत ..ब्लॉगर्स मिलन की एक विस्तृत रिपोर्ट अच्छी लगी ..

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  21. अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर सम्मेलन रिपोर्ट के लिए आभार! बहुत ही रोचक संस्मरण रहा!

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  22. very very interestingly narrated
    from first word to last the post cant be left unread without completing it in one go

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  23. बहुत ही अच्‍छा लगा यह सब पढ़कर ...बेहद रोचकता से आपने अक्षरश: व्‍यक्‍त किया सब बातों को ...शुभकामनाएं आगे भी यूं ही सबसे मुलाकात होती रहे ..।

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  24. बेहद सुखद ब्लोग्गर मिलन ... हैं ना दददा !!

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  25. पावर का नशा सूरज क्यों ना दिखाये

    भारत में आने और शादी के बाद क्या सचमुच स्लोपन (आलस्य) आ जाता है।

    अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की रिपोर्ट के लि्ये धन्यवाद

    प्रणाम

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  26. बड़ा अच्छा लगा कि देश से दूर भी ब्लोगिंग सम्मलेन हो रहे हैं....

    यह हर किसी के बस का नहीं इसके लिए मिलने की इच्छा और संवेदनशील ह्रदय चाहिए !

    आप सब लोगों को बढ़िया दिल के लिए बधाई !

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  27. बढ़िया है यूँ ही मिलते रहे सब ....ब्लॉगर मिलन की रिपोर्ट के साथ सैर भी हुई ...:)

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  28. बहुत रोचक यात्रा वृतांत..आभार

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  29. उमर है हमारी घूमने फ़िरने की और ड्यूटी आप दे रहे हैं.. लेकिन खाने पीने की बात से बेहद अफ़सोस हुआ. खिलाने के मामले में पीछे रहते हैं और खाने के मामले में ऐसे कि दो बार नाश्ता कर लिया. :)

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  30. वैसे ये इंटरनेशनल नहीं यूनिवर्सल ब्लोगर सम्मलेन था.आखिर बादल भी तो साथ थे :):).
    बहुत अच्छा लगा सभी से मिलकर.
    धन्य भाग्य हमारे जो आप हमारे घर पधारे.
    आभार इज्जत अफजाई का.

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  31. waise ek baat puchhni thi, Shikha ne lajij pakwan banaye the, ya restaurant se mangwaye the???:D

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  32. बहुत ही रोचक वृतांत

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  33. समीर जी,

    अभी आपका लंदन यात्रा का रोचक लेख पढ़ा, स्मृतियाँ पुनः ताज़ा हो आईं।

    जिस भाग को मैंने `मिस' किया था, उसे अब जाना। आपकी लौटती यात्रा में बादलों की तफ़रातफरी का क्या रहा ? इस वर्ष तो गग्रीष्म ऋतु में भी लगातार यहाँ वर्षा चल रही है। उस दिन जाने कैसे मौसम सूखा था।

    आप सब से मिलना सुखद रहा; आपके बहाने शिखा के आतिथ्य और पकवानों का मधुर स्वाद भी मिल गया ! :)

    एक निवेदन है कि कृपया मेरा नाम सही कर दें। सही शब्द " वाचक्नवी " है।

    पुनः धन्यवाद .

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  34. AAPKAA DILKASH YATRA VRITAANT
    PADHAA TO SAHIR LUDHIANVI KE
    GEET KAA MUKHDA YAAD AA GYA ---

    JEEWAN KE SAFAR MEIN RAHI
    MILTE HAIN BICHHUD JAANE KO
    AUR DE JAATE HAIN YAADEN
    TANHAAEE MEIN TADPAANE KO

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  35. रोचक संस्मरण!! सफ़र में आत्मीयता छलक छलक दिखी.शिखा जी के पकवान..ओह पानी चुआ आया ...

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  36. बहुत रोचक यात्रा वृतांत ...अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  37. एक बार पढ़ना शुरु किया तो फिर रुकना नामुमकिन ...यात्रा...प्रकृति-वर्णन..ब्लॉगर मीट इतना रोचक और सजीव कि जैसे सब आँखों के सामने घट रहा हो...

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  38. '................सुबह ४ बजे से फिर आवरगी. पावर के नशे में नींद नहीं आती होगी शायद. विचित्र नशा होता है यह भी.' :) सूरज के सफर को इस नजर से देखना ....एक कवि ,साहित्यकार के लिए ही सम्भव है.बहुत खूब!
    और फिर.....
    '....नजर पड़ी तो देखा बादल सूरज द्वारा खदेड़े जा रहे हैं. लगा कि पूर्व समझौते के अनुसार समय पर न हट कर जनता याने ..............' न भी लिखते रामदेवजी का नाम तो भी बादलों का यूँ अफरा तफरी के साथ हडबडा कर भागना ....रामलीला मैदान के 'उस' घटना को आँखों के सामने लाकर खड़ा कर दिया आपकी कल्पना शक्ति की दाद देनी पडेगी बादलों के झुंड में ..... 'वे सब'...रामलीला में उस दिन बैठे वे निरीह,निर्दोष लोग ....उफ़.
    आप सबका मिलना आपके लिए सुखद अहसास था तो मेरे लिए उस मिलन के बारे में पढ़ना. दीपक बहुत प्यारा नौजवान है.शिखा जी और कविता जी ...........स्मार्ट एंड इंटेलिजेंट ! हम कब मिलेंगे दादा?

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  39. ब्लागर मिलन के बारे में बढ़िया जानकारी दी है ... आभार...

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  40. वाह .. कहाँ कहाँ से आकार हिंदी के प्रेमी एक जगह मिले ... समीर भाई ये यात्रा संस्मरण और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लोगेर मीट ... एक मेल में गोनो ही ठेल दिए अओने ऐसे नहीं चलता ...
    दिन यादगार रहा होगा आपका ... बहुत बहुत शुभकामनाएं ...

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  41. dilchasp tarike se likha gaya ek sansmaran. Itne saare hindi bloggeron se milwane ka shukriya.

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  42. विलायत में देसी बैठक ! भई मज़ा आ गया देखकर .
    लेकिन दीपक की भी हिम्मत है , नई नई शादी और अकेले घूम रहे हैं .

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  43. इस यादगार यात्रा को हमसे शेयर करने के लिए आभार!
    बड़ा अच्छा लगता है यह सब पढ़ना और जानना जब इस तरह के आत्मीय हिन्दुस्तानी माहौल में विदेश में ब्लॉगर मिलते हैं।

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  44. बढिया यात्रावृत्त। दीपक की शिखा पर कविता का वाचन तो हुआ ही होगा :)

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  45. बहुत अच्छा और रोचक शैली में प्रस्तुत यात्रा-संस्मरण...बहुत-बहुत धन्यवाद! "यात्रा-वृत्तांत:प्रकृति और प्रदेय" टापिक पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट है मेरी बेटी का लगता है इस हेतु आपके संस्मरणों से सहायता लेनी पड़ेगी|

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  46. रोचक और जीवंत चित्रण .
    लेकिन दीपक जी की भी हिम्मत है , नई नई शादी और घूम रहे हैं अकेले.

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  47. हे हे हे हम भी कविता जी द्वारा उनके नाम नहीं सिरनाम के इश्पेलिंग में अईसे ही धराए थे जैसे ऊ आपको इहां धर ली हैं । चलिए पहिले नाम ठीक करिए ।

    का हो , एतना गनगनाते घूमते रहते हैं ..एक ठो डीटीसी धर लेते न उहें से , एक चक्कर लगा जाते इहां से सो नहीं जी

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  48. उफ़..आप तो जला रहे हैं :(
    मजा आया लेकिन पढ़ के
    :)

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  49. दिलचस्प सफ़र नामा!

    चंद्र्मोलेश्वर प्रसाद जी की टिप्पणी भी मनमोहक है.


    "बढिया यात्रावृत्त। दीपक की शिखा पर कविता का वाचन तो हुआ ही होगा"

    m.hashmi

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  50. रोचक सफरनामा..... बधाई ।

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  51. बेनामी7/23/2011 02:38:00 am

    जैसा रोचक यात्रा वृतांत वैसा ही उत्सुकता जगाता
    ब्लॉगर मिलन कथानक

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  52. ये तो बहुत ही सुखद और रोचक ब्लोगर मीट रही………और चित्रमय प्रस्तुति ने तो चार चाँद लगा दिये।

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  53. कोई बादल कहीं भागा, कोई कहीं कूदा, कोई कहीं काले से सफेद बादल का वेश बदल कर भागा. बादल भी न!! समझते नहीं हैं- उनका क्या है- आज है, कल नहीं होंगे. सूरज को तो हमेशा रहना है|

    अरे भैये मगर यहाँ आपके जब्बलपुर में तो ठीक इसके उलट हुआ जाता है। हफ़्ते-खाँड़ से तो यहाँ बादलों ने ही बड़े धूँआधार ढंग से सूरज के ऊपर आँसूगैस छोड़ दी है पानी की लगातार धारों से उस बेचारे को लठियाये पड़े हैं। सूरज हैज़ बीन कन्वर्टेड इन्टु बाबा रामदेव यार। खंदारी-पंदारी, परियट-मरियट, बरगी-मुर्गी, हनुमानताल, अधारताल, सड़्कें-नाले-नालियाँ-घर-बार,नगर-डगर निगम-विगम सबके सब लबालब। यहाँ तो सबै लोग छींक-खखार बुखरयाए पड़े हैं। हा हा भजिया औ बा के साथ सुनील शुक्ला जी ऐसे भीगे भीगे मौसम में आपकी याद और तिस पर ये ७५ फ़ुट लम्बे साँप के समान मजेदार लेख। दीपक जी, कविता जी और न जाने कौन कौन (अब तो सबै नप गए) हा हा। आपके साथ इस लेख में मौजूद सभी सदस्यों को हमारा यथायोग्य नमस्कार।

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  54. सुहाना सफ़र. सुहानी मुलाकातें. क्या खूब लिखी है. आभार.

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  55. हिन्दी की सेवा में जुटे आप और आप के सभी सहयोगियों का हार्दिक अभिनन्दन|

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  56. समीर जी, आप अपनी पोस्‍ट में सिर्फ ट्रेलर ही नहीं दिखाते, पूरी फिल्‍म दिखा देते हैं और इस रोमांचकता के साथ कि पढ़ने वाला एक बार ही पूरी पोस्‍ट पढ़े बिना नहीं रहता।

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  57. जिस तरह से आपने कुछ राज बना कर रखने वाली बातों को राज से गुलाम कर दिया, आम कर दिया वो मुझे अंदाज़ बहुत पसंद आया.. असल व्यंग्य वही है कि जिसमे अगर किसी का मखौल भी बनाया जाए (हालांकि यहाँ मेरा मखौल नहीं उड़ाया गया लेकिन यह मुद्दे से थोड़ी हट कर बात कर रहा हूँ, जिससे कि नए व्यंग्यकार आपके लेखन से सीख सकें) तो इस तरह से कि पढ़ कर उसे भी गुदगुदी हो जिसके बारे में लिखा गया ना कि ऐसा कि आपस में दुश्मनी को बढ़ाने वाले कांटे ही निकलने शुरू हो जाएँ.. यह एक व्यंग्यकार की खूबी है और यह खूबी आपको बड़े अच्छे से आती है.. बेतकल्लुफ होकर मिलने के लिए मैं माफी चाहता हूँ क्योंकि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे मिलकर लगता ही नहीं कि पहली बार मिले हैं.. इसलिए फोर्मलिटी चाह कर भी नहीं हो पाती..
    आपने फिर से चुलबुले लेखन के लिए इंस्पायर किया है.. तत्काल प्रभाव से जल्द ही विस्तार में यात्रा का वर्णन दिखेगा मेरे ब्लॉग पर.. :)

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  58. वैश्विक सम्मेलन में लिये निर्णयों से अवगत भी कराया जाये। माहौल ऐसा ही मस्त बना रहे।

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  59. अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन की लाजवाब रिपोर्टिंग के लिए आपका बहुत आभार, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  60. ब्लागर मिलन के बारे में बढ़िया जानकारी दी है ... आभार

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  61. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
    बधाई ||

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  62. हा हा हा ..पहला कम्मेंट तो पहले पाराग्राफ का है...कमाल की लेखनी है आपकी... सूरज को पावर के नशे में नींद नहीं आती है... हँस हँस कर अब हमें रात को नींद नहीं आएगी...

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  63. इस मिलन का इतना सुन्दर वर्नान ..वाह ..ऐसा लगा कि हम भी वह थे..उम्दा ...सादर

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  64. bahut achchha lagta hai is kadar milna julna ,kisi utsav se kam nahi ye sama .

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  65. ब्‍यौरा कुछ इस तरह से पेश किया है मानो हम भी पूरे समय वहीं मौजूद रहे।

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  66. वाह… खूब शानदार वर्णन…
    दीपक मशाल जी की सभी हरकतों पर बारीक नज़र…
    जामों का दौर… सभी कुछ एकदम चकाचक…

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  67. बादलों और सूरज की आवारगी का जबरदस्त चित्रण किया, और ब्लॉगर मीट की रपट लिखना तो कोई आपसे सीखे ।

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  68. badi hi saafgoyee se likha behad rochak sansmaran....

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  69. आपकी पोस्‍ट से ही दीपक के विवाह का पता चला,बहुत अच्‍छी पोस्‍ट है। आप लोगों का मिलना सुखद लगा।

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  70. क्या कहने ,बस जमाये रहिये,ठाढ़े रहिये की तर्ज पर :) !

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  71. aap ke blog men pahli bar aaya. nai jankari hasil kee. har jagah aapne hai, is dunitan men.

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  72. aap ke blog men pahli bar aaya. nai jankari hasil kee. har jagah aapne hai, is dunitan men.

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  73. ऐसा बिल्कुल होते रहना चाहिए...
    बहुत बढ़िया ..ऐसे ही मिलते रहना चाहिए...

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  74. एक यादगार यात्रा, ढेरों वार्तालाप, मधुर कभी न भूल सकने वाली मुलाकात


    वाह और क्या चाहिए

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  75. उनके अनशन पर डटे रहने से खफा सूरज ने लाठी चार्ज करवा दिया हो. कोई बादल कहीं भागा, कोई कहीं कूदा, कोई कहीं काले से सफेद बादल का वेश बदल कर भागा. बादल भी न!! समझते नहीं हैं- उनका क्या है- आज है, कल नहीं होंगे. सूरज को तो हमेशा रहना है. रामलीला मैदान और बाबा रामदेव की याद हो आई बिल्कुल से.

    क्या बात है । आपका ब्लॉगर मिलन सुखद रहा ये तो पढ कर पता चल ही गया ।

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  76. देर से ही सही हम आये तो सही यहाँ टिपण्णी करने...दीपक बहुत प्यारा बच्चा है...आदरणीय महावीर जी के निधन की सूचना मुझे फोन पर रोते रोते उसी ने दी थी...बहुत संवेदनशील है...और लिखता भी क्या गज़ब का है...वाह...आप लोग भारत आते हैं लेकिन पता नहीं क्या संजोग है के मिलना हो ही नहीं पाता...हर बार ये सोच कर के इस बार मिलेंगे रह जाते हैं बस..शिखा जी और कविता जी की तो बात ही अलग है...दोनों अपने अपने क्षेत्र की बेहतरीन लेखिका हैं...शिखा जी खाना भी अच्छा बनाती हैं ये अब पता चला, कभी लन्दन जाना हुआ तो उनसे जरूर मिलेंगे...बादलों द्वारा सूरज के घेराव की बात ने मजा ला दिया...दाल में तड़का लगाना कोई आपसे सीखे...ग़ज़ब

    रोचक पोस्ट...

    नीरज

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  77. दिल्ली में बैठे हम जैसे लोगों को घर बैठे-बैठे ही लन्दन की यात्रा और वाहन बने देसी व्यंजनों का स्वाद मिल गया....प्रस्तुतीकरण का रोचक अंदाज़

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.