रविवार, जून 12, 2011

झैन कथाओं की चपेट में....

इधर कुछ झैन कथायें पढ़ने का संयोग बना. तीन लाईन की कहानी, २५ लाईन के विचार देती. जो पढ़े, वो पढ़े कम, समझे ज्यादा और फिर अलग अलग मतलब लगाये अपनी बुद्धि के अनुरुप और खुश रहे. भीषण दर्शन. बस, मन किया कि कुछ उसी स्टाइल में कोशिश की जाये. देखें और अगर अपने हिसाब से व्याख्या करने का मन करे तो टिप्पणी में दर्ज करें. यदि आपको पसंद आयेगी, तो और कोशिश की जायेगी आगे:

अर्धरात्रि के बाद का उनिंदा हाईवे.
पीछे बायें बाजू की लेन में हाईवे पर अधिकतम गति सीमा १०० किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती एक और कार.
एक ही रफ्तार होने की वजह से सम दूरी बनी हुई है दोनों के बीच.
एकाएक कुछ आलस्य, कुछ मन का भटकाव, कुछ निद्रा का भाव. मेरी रफ्तार कुछ कम होती है...और
बाजू वाली कार पूर्ववत रफ्तार में मुझसे आगे निकल जाती है.
(इति)

 

running-race

ये 
आलस/ भटकन/उदासीनता
ये
उमंग/ लगन/ अनुशासन
ये
हार/नाकामी/विफलता
ये
जीत/कामयाबी/सफलता

उफ्फ़ !!!
-ये जीवन!!

-समीर लाल ’समीर’

70 टिप्‍पणियां:

  1. लगातार काम करते रहने के बाद सुस्ती एक आवश्यक विराम की आवश्यक्ता को प्रदर्शित करती है।

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  2. ये
    हवा/झौंका /समीर ...
    उफ्फ़.....

    (कम पढ़े ज्यादा समझे )

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  3. समीर जी,
    ये जैन कथाँए तो सुनी थी, ये झैन कथाँए किसे कहते है।

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  4. कहानी कहती है कि जीवन के दौड़ में जिसने आलस किया, पिछड़ जाता है। जो निरंतर चलता रहता है, मंजिल पा लेता है। रूक कर सोने वाला खरगोश, कछुए से हार जाता है।
    कविता पूछती है कि क्या हार-जीत ही जीवन है?
    ...मानसिक खुराक देती पोस्ट।

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  5. नया झेन फकीर आया है... नई कहानियाँ लाया है...

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  6. झेन कथाओं के विषय में तो कोई ज्ञान नहीं परन्तु आपकी यह कथा पढकर उत्सुकता जरूर जागी है इन कथाओं के बारे में जानने की.

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  7. इतना भी न करें कि पाँच पंक्तियों में पचास वर्ष की जीवन समेट दें।

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  8. कम मे ही ज्यादा समझे

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  9. युं ही चलती है जीवन की रेल ।
    कभी खाली तो कभी ठेलम ठेल॥

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  10. उफ्फ़ !!!
    -ये जीवन!!
    --
    हाँ यही तो है जीवन!
    सुस्ती-मस्ती तो आती-जाती ही रहतीं हैं!

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  11. उफ़्फ़!! कम शब्दों मे आपका ये भीषण दर्शन! :)

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  12. ये
    हार/नाकामी/विफलता
    ये
    जीत/कामयाबी/सफलता ...
    बिल्कुल सही लिखा है आपने! आख़िर इसी का नाम है जीवन !सच्चाई को सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने ! शानदार प्रस्तुती!

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  13. Jeevan ka saar to in chand panktiyon me hai aur iski vyakhya kya karein. bas isi highway par chalte jaana hai... nirantar... jab tak aapka paddaw aa nahi jaata hai... beech beech me tarah tarah ke anubhaw to hote rahenge... in anubhawon se aap kis prakaar seekhte hain ye aap par nirbhar hai


    Regards
    Fani Raj

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  14. झैन कथाओं के बारे में पहली बार पढ़ा आपका आभार

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  15. सतत काम के बाद आराम को वो आवश्यक तत्व जो अगली उर्जा संयोजन के लिये शायद आवश्यक है । अगली कार को उसके बाद भी पुनः सम पर लाया जा सकता है और पीछे भी छोडा जा सकता है ।
    कुछ और ऐसी कथाओं को जानने के बाद...

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  16. ये
    आलस/ भटकन/उदासीनता
    ये
    उमंग/ लगन/ अनुशासन
    ये
    हार/नाकामी/विफलता
    ये
    जीत/कामयाबी/सफलता

    उफ्फ़ !!!
    -ये जीवन!!




    इन शब्दों में बहुत ही गहराई है... झैन कथा के मर्म को बखूबी समझा रहे हैं....

    प्रेमरस

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  17. कम शब्दों में ज्यादा बात

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  18. गागर में सागर शुरु से ही भाता है...ब्लॉग़जगत के हाइवे की बात करें तो यहाँ इन सभी कारणो के अलावा और भी कई कारणों से रफ़्तार कम हो जाती है और हम पिछड़ जाते है :)...
    जीवन तो है ही इन सभी का मिला जुला रूप...जैसे भोजन में खट्टा, मीठा, नमकीन और कड़वा..!

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  19. kabhi kabhi nirantar chalne se dimag ya jeevan susti chahta hai,bas aakhari uffffffff ne saari kavita ka saar mann mein bhar diya,waah.

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  20. आलस्य, भटकाव, निद्रा ये चाहा तो नहीं था, ये सब प्रकृति के हाथ में है। हम पीछे हैं ये भी और आगे थे तब भी।

    झेन कथाओं को पढने का बहुत शौक रहा है। कम शब्दों में कितना कह जाती हैं। आपकी पोस्ट भी ऐसी ही है। आशा है आगे भी ऐसी पोस्ट पढने को मिलती रहेंगी।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  21. कविता विधा में 'हाईकू' या 'क्षणिका' की तरह शायद यह भी एक विधा है। कृपया इस विधा के जन्‍म एवं विकास के बारे में और बतायें।

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  22. अगर आलस्य और मन का भटकाव इतना प्रभावी था तो बहुत अच्छा रहा दूसरी कार का आगे निकलना ..... सादर !

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  23. KAVITA KEE SAHAJ AUR SUNDAR
    BHAVABHIVYAKTI !

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  24. पूरे जीवन का सार ही समेट दिया इन पंक्तियों में...
    जारी रहे ये प्रयोग...

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  25. रफ़्तार तो बना कर रखनी होगी ... नही तो कितना कुछ छूट जायगा पता नही ....

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  26. झेन चीनी प्रज्ञा की उपज है और तर्कनिष्ठ
    मन के लिए इसे समझना टेढ़ी खीर जैसा है !
    दो विपरीत ध्रुओ के बीच जो संबध है
    वह है झेन ! अच्छी कहानी और प्रयास करने में
    बुराई नहीं !

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  27. व्यक्ति जितना सफल होता है उतनीही
    उसकी सदा सफल होने की चाह बढती जाती है
    क्या यही तो इस कहानी का मतलब नहीं है ?

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  28. प्रयोग के लिए यह कथा छोटी है, उपरोक्क्त पंक्तियाँ कलात्मक हैं|

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  29. अभी तक तो हाईकू ही समझने की कोशिश कर रही थी अब आप ले आए झैन कथाएं ..

    अब इस कथा से तो यही सिद्धह हो रहा है कि मन का भटकाव हो या आलस्य या फिर थकान जीवन की गति को कम कर देता है ..

    और जीत और हार तो मिलती रहती है ...

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  30. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  31. समीर जी. झैन कथाओं के बारे में पहली बार पढ़ा अच्छी जानकारी धन्यवाद…आपका आभार

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  32. झेन दर्शन पर ओशो का प्रवचन सुनने लायक है। कभी गौर फरमाइएगा।

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  33. लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है

    मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें

    कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.

    मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.

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  34. कहा जाता है किसी की लाइन छोटी करने के लिए अपनी लाइन बड़ी करो... यह यहां तो अपनी लाईन छोटी कर ली और दूसरी खुद-ब-खुड बडी हो गई :)

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  35. पूरा जीवन इन चार पंक्तियों में उलझा रहता है ......

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  36. समीर भाई हमारे लिए ये एक नयी चीज है| देखते हैं| आप प्रयोग वादी व्यक्ति हैं, आप के साथ साथ हम भी कुछ सीखने का प्रयास करते हैं|

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  37. स्‍टाइल तो सही पकड़ में आती दिख रही है.

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  38. 'झेन' उक्तियाँ पहेलियो से कम नही है, अच्छी खासी ज़हनी वर्ज़िश है, 'समीर उक्तियाँ' भी जारी रहे.

    "था जोशो जुस्तजूं कभी इक कायदे के साथ,
    अलसा गए, भटक गए, परवाह जब न की,
    नाकामियों ने 'जीत' का जज़्बा जगा दिया,
    उफ़! इस तरह ही अपनी तो ये ज़िन्दगी कटी."

    http://aatm-manthan.com

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  39. चिंतन को उकसाती ,विचारों के घोड़े दौडाती ,जीवन को समझाती पोस्ट .सोचने का वक्त नहीं है चलते चलो रफ़्तार से फ्री वे पर .ये न सोचो इसमें अपनी जीत है के हार है .

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  40. समीर जी इन झैन कथाओं पर कुछ तो रोशनी डालिये। हम तो इन्हें समीर कथायें ही कहेंगे। देवेन्द्र जी ने सही कहा है। कभी कभी गति को कम करना और दूसरों को आगे निकलते देखना दूना साहस भर देता है। आगे चलते हुये मंज़िल तक पहुँचे तो क्या पहुँचे मज़ा तो तब है जब पीछे से आ कर आगे निकल गये। शुभकामनायें।

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  41. थोडे शब्दो मे बहुत कुछ कह दिया।

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  42. झैन कथा और कविता दोनों बहुत प्रभावी हैं...

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  43. he he he he ! achha taana maara gaya hai sameer ji ! he he he he ! maza aaya ! :-)

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  44. श्रीमति उर्मिला सिंह ’मन के मनके’ http://munkemanke.blogspot.com/ ईमेल से प्राप्त:

    मुझे तो जिन्दगी का सफ़रनामा समझ आ रहा है.
    वैसे तो कहावत चरितार्थ होती है,’जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.,
    अपनी-अपनी मनःस्तिथि होती है,कोई डंडे को सांप समझ लेता है,तो कोई सांप को डंडा.
    मैं अपनी मनःस्थिति के अनुरूप इन पंक्तियों की व्यख्या कुछ इस प्रकार करूंगी----
    जीवन-यात्रा,जीवन-मार्ग(हाइवे) पर चलती रहती है.
    जब हम युवा होते हैं मन में भरपूर साहस व उमंग होती है,मंजिल को पाने की
    होड भी होती है,तब हम किसी को भी अपने से आगे नहीं निकलने देते हैं.
    लेकिन,जब उम्र बढ्ने लगती है और जीवन के सत्य समझने आने लगते हैं,उस
    स्थिति में यह भागम्भाग बेअर्थ लगने लगती है.
    बुद्ध ने भी यही कहा है,’मैं तो ठहर गया,तू कब ठहरेगा.,
    स्वयं के द्वारा लिखी दो पंतियों से इस व्याख्या की इति करना चाहूंगी---

    क्या फ़र्क पडता है,
    तुम वहां पहुंचे,
    हम रह गये यहां.

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  45. सतसई के दोहों की तरह की रचना है ये आपकी...देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर...अद्भुत प्रयास...कामयाब है जी और आने दो.

    नीरज

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  46. कभी उमंग , कभी उदासीनता , कुछ ऐसी ही होती है ज़िन्दगी।

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  47. जीवन में गति ना हो तो दुर्गति होती है.
    अभिलाषा जीवन के प्रति ना हो तो दुष्कृति होती है.
    (कम पढ़े ज्यादा समझे )
    बहुत बढ़िया,मजा आ गया...

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  48. ये चार पांच लाईनें तो बहुत तेज हैं,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  49. कोशिशें कामयाब होती हैं...बड़ी से बड़ी कहानियों में भी ये सार नहीं मिलता...जारी रखिये...

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  50. चचा, इसके लिए फेसबुकिया दोस्तों ने लप्रेक (लघु प्रेम कथा) और मुझ जैसे गरीबों ने फेलक (फेसबुक लघु कथा ) अभियान शुरु किया है। रवीश कुमार तो लप्रेक के जनक मने जाते हैं। आप अपनी कथाओ को इन्ही श्रेणियों में रख सकते।

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  51. जो आप कहना चाहते थे , कह गये ,सफल प्रयास

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  52. बिना कहे सब कुछ कह देने का अन्दाज तो बहुत पुराना भारतीय अन्दाज है

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  53. सटीक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद |
    "लगे रहिये, लगन से, लगातार "
    ये तिन शब्द इन्सान को हमेसा आगे बढाता है |

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  54. ये
    हार/नाकामी/विफलता
    ये
    जीत/कामयाबी/सफलता ...
    बिल्कुल सही लिखा है आपने!

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  55. ये
    हार/नाकामी/विफलता
    ये
    जीत/कामयाबी/सफलता ...
    वाह... कितने कम शब्दों में जीवन का सार समेट दिया आपने... लाजवाब...

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  56. जो भी अनुभव करके लिखेंगे,फ़साना बन ही जायेगा !
    लघु-कथाओं को पढ़ा भी ज़्यादा जाता है...आप लिखते रहें,सन्देश हम निकाल लेंगे !

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  57. बहुत सुन्दर समीर जी ...

    कुछ पंक्तियों में ही सम्पूर्ण जीवन की कशमकश समाहित है

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  58. जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते.....हर एक लम्हे को पकड़ लेने की चाहत में इंसान भागे जा रहा है, शायद यही जीवन है ?
    संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित उपरोक्त पोस्ट हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ .

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  59. bahut khoob, sms ke baad ab SPS yani short post services. bahut hi achcha tarika hai. wonderful.aage bhi jari rakhen vakai main mazedaar hai.

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  60. झैन कथाएं? ये क्या हैं?
    ये तो कुछ ज्यादा ही गहरी लगती है..
    समझ तो यह आया है कि जहाँ थोड़ी सी ढ़ील दी, वहीं दुनिया फुर्र से आगे निकल लेगी.. और हम अपना सा मुंह लेके बंगले झांकेंगे..

    अगली पोस्ट में झैन कथाओं के बारे में और बताइए..

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  61. Pooja Goswami to me

    उफ्फ़ !!!
    -ये जीवन!!

    अब तो झेन कथाएं पड़ेगी.... अच्छी कोशिश....

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