रविवार, मई 29, 2011

अभी कुछ और..बाकी है!!!

मित्र प्रवीण पाण्डेय जी का एक बहुत लोकप्रिय ब्लॉग है : न दैन्यं न पलायनम्  उस ब्लॉग पर अपने आस पास की नितचर्या के माध्यम से इतना बेहतरीन जीवन दर्शन का पाठ मिलता है कि हमेशा इन्तजार रहता है कि कब नया आलेख आये और उससे कुछ लाभ मिले. कुछ दिनों पहले वहीं एक आलेख ’जीवन दिग्भ्रम’ पढ़ा था. जाने कैसे पढ़ते पढ़्ते भाव उभरे उस आलेख पर कि एकाएक दिल कह उठा:

इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है

बस, यही शेर दर्ज कर दिया वहाँ टिप्पणी में. टिप्पणी किये पाँच मिनट भी न बीते होंगे कि मित्र नवीन चतुर्वेदी  का ईमेल आ धमका; मस्त मस्त शेर सर जी!!!!!!!!!!!!!!!!! आप का ही है न?

तब हमें समझ आया कि अरे, हम तो शायद कोई शेर कह गये. :)

मेरी स्वीकारोत्ति पाकर उन्होंने इतना अच्छा शेर पीछे छोड़ आने के बतौर जुर्माना आदेश पारित किया कि अब इस पर आप पूरी गज़ल लिखें, तभी बात होगी.

हीरे को पारखी ने पहचान लिया वरना हम तो कोयला समझ छोड़ आये थे वहीं. (आजकल खुद की पीठ ठोंकने में महारत हासिल कर रहा हूँ, नये जमाने का यही चलन है) :) नवीन जी से छंद ज्ञान ले रहे हैं और साथ ही अपनापन सदा से रहा है, तो भला उनका आदेश कैसे टालता, हामी भर दी. लगे जोड़ा जाड़ी करने. रदीफ, काफिया मिलाने. जोड़ जाड़ कर किसी तरह चार दिन भट्टी पर चढ़ाये पकाते रहे, सुबह शाम फेर बदल करते रहे और फिर प्राण शर्मा भाई साहब  का आशीर्वाद लिया अपने लिखे पर और ये देखो, चले आये आपके सामने गज़ल लेकर.

अब आप पढ़े और बतायें:

infinite

इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है


हमेशा ज़ख़्मी दिल को दोस्तो ये खौफ रहता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है


दिखा मैं साथ जो तेरे तो दिल ये हंस के कहता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है


ये शायद सोच कर आँसू मेरी आँखों से गिरता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है


यही कह कर वो रातों में सभी तारों को गिनता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है


हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी  है


दिलों के बैर को कोई कुछ ऐसे साफ़ करता  है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है


अजब इन्सान का चेहरा हमेशा यूँ ही दिखता है
अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

-समीर लाल ’समीर’

84 टिप्‍पणियां:

  1. हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है

    @शानदार पंक्तियाँ

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  2. चलो जी एक शेर के चक्कर में हमें पूरा कुनबा ही मिल गया है,

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  3. अच्छा हुआ नवीन जी का..हीरा परख लिया.. बहुत बेहतरीन गजल बन गई..

    वाह वाह..

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  4. दिलों के बैर को कोई कुछ ऐसे साफ़ करता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    उम्दा गजल बनी है, एक एक शेर लाजवाब हैं।

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  5. बेहतरीन रचना। पढ़ कर बहुत मजा आया। इस की स्टाइल ने बहुत आनंद दिया।
    बरसों पहले हमने ढाई फुट का एक स्टूल बनवाया था। उस के टॉप पर एक और डेढ़ फुट का स्टूल फिट किया जा सकता है। इस तरह जरूरत पड़ने पर हम उसे चार फुट का स्टूल बना कर काम में लेते हैं कभी छत का पंखा सुधारना हो या ऊंचा बल्ब बदलना हो तो। पर ढाई फुट का स्टूल रोज तो काम आता नहीं तो उस के लिए चार फुट का एक गोल टॉप भी बनवा लिया गया। अब वह गोल टेबल बन जाती है।
    इस ग़जल को पढ़ कर विचार आया कि उस स्टूल के लिए चार-छह टॉप और बनवा लेते हैं। फिर उस स्टूल को ग़ज़ल कहा करेंगे।

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  6. हाँ जरुर, बाकी क्यों नहीं है -
    अब इतनी बार अगर फिर कुछ और बाकी है ..कुछ और बाकी है की रट है तो फिर तो यही होगा -
    बड़े बेआबरू हो तेरे कूंचे से हम निकले ..... :)
    बाकी मुझे काफिया रदीफ़ कुछ पता नहीं

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  7. समीर जी,

    पहले तो मैं आप को इतना सुंदर भाव लिखने पर बहुत बहुत मुबारिक देता हूँ! आप महानुभाव है कहने का मन तो नहीं और हो सकता है मैं गलत हूँ, ग़ज़ल के असूल के मुताबिक इस में काफिया, रदीफ़, मतला व् मकता का ग़ज़ल में होना जरूरी होता है. उदहारण के तौर पर मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल पर गौर करें :

    हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले!
    बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले!!

    यह इस ग़ज़ल का पहला शेयर 'मतला' हुआ जिस में 'दम' और 'कम' काफिया है व् 'निकले' रदीफ़ हुआ! काफिये से ही ग़ज़ल में जान आती है। हमारी पूरी की पूरी ग़ज़ल ही काफिये के आस पास होती है । अब हमको केवल इसी बात का ध्‍यान रखना है कि 'दम', 'कम' 'खम' 'नम' जैसा क़ाफिया बनाएं और वो भी ऐसा कि उसके साथ रदीफ का भी निर्वाहन हो सके ।इसी ग़ज़ल का आखिरी शेयर मकता कहलाता है जिस का असूल है के शायर उस में अपना नाम भी शामिल कर सकता है! जरा गौर फरमाए:

    कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़,
    पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले !

    गलत कहा हो तो मुआफी चाहूँगा!

    आशु

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  8. सुमंत मिश्र5/29/2011 10:25:00 pm

    `इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है'.....इस एक अच्छे भले शेर को बाकी मिल के खा गये।

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  9. ये ‘कुछ और .. बाक़ी’ ताउम्र बाक़ी रहता है। ... रहना भी चाहिए ..!
    अपनी ही एक क्षणिका .. पेश करने की इजाज़त है ...?

    थी यह अभिलाषा
    ज्ञान इतना पा जाऊं
    हो जाए परिचय मेरा
    मुझसे ही।

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  10. हमारे शब्द तो पढ़ लो, मगर निर्णय नहीं लेना।
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    बस यूँ ही लिखते रहें और हमें अह्लादित करते रहें।

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  11. इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है... waakai

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  12. बहुत बढ़िया।
    ब्लॉग पढ़ते-पढ़ते, कमेंट करते-करते, कई बार मेरे साथ भी ऐसा हुआ है कि कुछ नया लिख गया हूँ। मन से पढ़ने व मन से कमेंट करने का यह लाभ तो मिलता ही है।

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  13. ये शायद सोच कर आँसू मेरी आँखों से गिरता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    यही कह कर वो रातों में सभी तारों को गिनता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है...
    वाह! क्या बात है! हर एक शेर लाजवाब है! उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!

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  14. सुंदर गजल और सटीक चित्र दोनो का मेल दिलकश है

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  15. दिलों के बैर को कोई कुछ ऐसे साफ़ करता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    इस पोस्ट में अभी कुछ और बाकि है... अपनी आवाज़ भी दे दीजिए इस गज़ल को ...

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  16. वाह, वाह... कितनी बार कहें कम ही लगता है. बहुत सुन्दर बहुत बढ़िया....

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  17. धन्यवाद नवीन जी जिनकी प्रेरणा से खुबसूरत गज़ल पढने को मिली आपको बधाई ...

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  18. हीरा और पारखी दोनों मिल गए ,अब तो हम लोगों की आँखें ऐसे ही चौंधियाती रहेंगी -
    वाह-
    ''अजब इन्सान का चेहरा हमेशा यूँ ही दिखता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

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  19. bahut badhiya ghazal hai... poora padh gaye fir bhi laga jaise kuchh aur baaki hai :-)

    Fani Raj

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  20. सारे शे'र ग़ज़ब हैं ।

    हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है

    यह सबसे ज्यादा प्रेक्टिकल लगा और पसंद आया ।

    जवाब देंहटाएं
  21. ये शायद सोच कर आँसू मेरी आँखों से गिरता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    यही कह कर वो रातों में सभी तारों को गिनता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है




    बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन ग़ज़ल

    प्रेमरस.कॉम

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  22. दिलों के बैर को कोई कुछ ऐसे साफ़ करता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    बहुत खूबसूरत गज़ल ... अभी भी ....
    अभी कुछ और बाकी है अभी कुछ और बाकी है

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  23. बहुत सुन्दर पोस्ट!
    अपनी विशेष शैली में सब कुछ कह दिया है आपने!

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  24. इसी ब्लॉग से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है

    अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है।

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  25. इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है ..

    Bahut khubsurat gazal ...ye sher bahut pasnd aayaa bahut2 badhai..

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  26. समीर भाई मज़ा आ गया| वो पंक्तियाँ खुद अपने आप में एक मुकम्मल शेर थीं| कई बार मित्रों की टिप्पणियाँ, पोस्ट से कहीं अधिक बेहतर होती हैं और हिला डालती हैं| सब से कहना मुनासिब नहीं होता - परन्तु जिन मित्रों ने स्नेह सिक्त अधिकार दिया हुआ है - उन के दडबों में बेझिझक घुस के कानाफूसी कर लेता हूँ| आपने मित्र की प्रार्थना स्वीकार की, उस के लिए बहुत बहुत आभार|

    प्राण शर्मा जी का आशीर्वाद पा कर यह कृति मस्त मस्त हो गयी है| एक पंक्ति को ले कर अनगिनत बेहतरीन ख़यालात प्रस्तुत किए हैं आपने| बधाई स्वीकार करें|

    आप के कुंडली छन्द तो धूम मचा ही चुके हैं, अब बारी है आप के घनाक्षरी छन्दों की|

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  27. कवि हृदय तो कहीं से भी प्रेरणा पा लेता है।

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  28. हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है

    क्या बात है...सुन्दर ग़ज़ल बन पड़ी है.

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  29. राह चलते चलते सृजन का आनंद ही कुछ और है. प्रवीण जी वाकई अच्छा लिखते हैं और गंभीर भी

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  30. वाह वाह!!१ जी बहुत सुंदर

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  31. `आजकल खुद की पीठ ठोंकने में महारत हासिल कर रहा हूँ, नये जमाने का यही चलन है'....

    लगता है एक और गज़ल की तैयारी हो रही है,,, प्राण शर्मा जी तैयार रहें इस्लाह के लिए :)

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  32. उम्दा गजल एक एक शेर लाजवाब ...

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  33. जब दो गुणीजनों के दिलो दिमाग मिलते हैं तो कुछ नया घटित होता है। तुलसीदास जी ने दोहे की पहली पंक्ति लिखकर एक भिखारी को रहीम के पास मदद के लिए भेजा था, 'सुरतिय नरतिय नागतिय अस चाहत सब कोय।' रहीम ने याचक की यथोचित सहायता करते हुए उस दोहे को यूं पूरा किया था, 'गोद लिये हुलसी फिरैं, तुलसी सो सुत होय।' यहॉं याचक हम पाठकगण हैं जो पूरी गजल पढ़ना चाहते थे और पढ़ भी ली।

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  34. इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है...

    सच ...बेहतरीन लिखा है आपने ।

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  35. हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है .

    बेहतरीन लाइनों के लिए क्या कहें? कुछ आता नहीं है लेकिन ये पढ़ाने और सीखने की कोई इति नहीं है, हम सदैव इस भूख को लिए ही भटकते रहते हैं और जो मिल गया पढ़ लिया फिर भी भूखे हैं.

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  36. सभी बाकियों को जोड़ेंगे तो हिसाब बहुत लम्बा हो जाएगा, आईये इस बीच एक 'BREAK' करले:-

    तू 'नच' न पाएगी 'मुन्नी' जिसे "CAN-CAN" कहते है,
    जहां कहता है दर्शक कि "अभी कुछ और बाकी है."

    http://aatm-manthan.com

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  37. आपकी तारीफ में हम भी बहुत कुछ कहते मगर रुक गए ... सोचा ...
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है ...

    जय हो दददा !

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  38. बहुत खूब ..क्या बात है..

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  39. वाकई !
    अभी बहुत कुछ देखना बाकी है....
    शुभकामनायें !

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  40. बहुत ही बढ़िया समीर जी, ऐसे ही लिखते रहिएगा..
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

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  41. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

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  42. ज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है
    बहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है....

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  43. पूरी ग़ज़ल पढ़ डाली मगर क्यूँ लगता है...
    अभी कुछ और, अभी कुछ और, अभी कुछ और बाकी है...

    काफी भरी-भरी ग़ज़ल थी...कुछ तो बाकी नहीं छोड़ा...

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  44. उम्दा गजल,लाजवाब शेर.

    वाह..!

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  45. अब जब चार दिन से पाक रहे थे शेर तो स्वाद तो उम्दा होना ही था. बेहतरीन गज़ल बनी है. मज़ा आ गया.

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  46. हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है
    गज़ब ...आपने तो पूरे मिसरे को ही रदीफ़ बना डाला...एक और प्रयोग...लाजवाब शेर हुए हैं....बधाई!
    ---देवेंद्र गौतम

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  47. अगर कुछ कसर रह गई तो वह टिप्‍पणियों से पूरी हो गई. पोस्‍ट, उसका संदर्भ और टिप्‍पणियां सभी मजेदार.

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  48. ''हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है'' लाजवाब पंक्ति...

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  49. आपके ब्‍लाग से नवीन जी के ब्‍लाग का पता लगा, इसके लिए आभार। आप तो हमेशा की तरह ही गद्य और पद्य दोनों में माहिर है। बधाई।

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  50. प्रवीण भाई का ब्लॉग निसंदेह सबसे अलग और अनूठा है...आप की ग़ज़ल...क्या कहूँ? ताज़े हवा के झोंके की तरह है...लाजवाब...दाद कबूल करें...

    नीरज

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  51. दिखा मैं साथ जो तेरे तो दिल ये हंस के कहता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    बहुत उम्दा ....है सभी शेर

    काश ऐसी कोशिश हम भी कर पाते

    आये है यहाँ कुछ कर के दिखाने को
    नहीं जानते कि कौन सी राह पर
    अब मंजिल मिलेगी ..कुछ देर
    ठहर जाने को ...........(अंजु...अनु )

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  52. अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है
    बहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है....

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  53. अजब इन्सान का चेहरा हमेशा यूँ ही दिखता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    wah...bahut achchi lagi.

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  54. किसी प्रतिक्रिया के बहाने एक शानदार और जानदार ग़ज़ल मयस्सर हो गयी.

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  55. हर शेर अपने आप को बखूबी अभिव्यक्त कर रहा है ...
    बहुत अच्छे भावों की उम्दा ग़ज़ल ......अच्छी लगी

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  56. किसी प्रतिक्रिया के बहाने एक शानदार और जानदार ग़ज़ल मयस्सर हो गयी.

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  57. दिलों के बैर को कोई कुछ ऐसे साफ़ करता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    वाह बहुत सही कहा आपने समीर जी ...आज कल के हालात पर सही बात कही आपने

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  58. बेहतरीन ग़ज़ल .......ग़ज़ल लेखन की शैली अथवा नियमों के विषय में तो कुछ नहीं जानती पर पढ़ने को लालायित मन यही कह रहा है "अभी कुछ और ,अभी कुछ और ......."
    सादर !

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  59. शायद यह कविता अभी कुछ और बाकी है :)

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  60. दिखा मैं साथ जो तेरे तो दिल ये हंस के कहता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है


    ये शायद सोच कर आँसू मेरी आँखों से गिरता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    waah kya baat hai sir ji, ye do sher hame behad pasand aaye,jaise dil ke bahut karib ho.khubsurat.

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  61. अभी कुछ और बाकी है... वाह क्या बात है वाकई अन्दाजेबयाँ निराला

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  62. अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    वाह !!! बोलती ही बंद है .....जनाब हमारी तो ?

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  63. मैंने तो कुछ और, कुछ और को जोड़ दिया तो लगता है अभी तो बहुत कुछ बाकी है :)

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  64. SUNDER KAVITA HAI ..............MOOD ME LIKHA HAI AAPNEY............

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  65. @यही कह कर वो रातों में
    सभी तारों को गिनता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,
    अभी कुछ और बाक़ी है !---
    वाह समीर जी ! गज़ब की भावनाएं और गजब की पंक्तियाँ ! गज़ल पढ़ कर लगा -वाकई आपकी ओर से अभी कुछ और नहीं ,बल्कि बहुत कुछ बाकी है,जिन्हें शायद आप आगे प्रस्तुत करेंगे . हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .

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  66. Bhai ji,bahut wazandar ghazal ke liye badhai/bato bato mey hi itni saralta se badi baat kahna to koi aap se seekhey.
    aapki kitab ka abhi intejar hi hai ,fir bhi intejar kar raha hoo/kabhi to bisale yaar hoga/
    Green publication ke funde ke baarey mey kuch bataiye n?humney mail kiya par jawab n mila /
    kaiseho aap?sader,
    dr.bhoopendra singh
    rewa mp

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  67. गुरुदेव को कितना भी पढ़ने के बाद हसरत यही रहती है,
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है...

    जय हिंद...

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  68. यही कह कर वो रातों में सभी तारों को गिनता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है...

    क्या बात है समीर भाई ... जिंदगी जितनी भी खर्च हो जाए ... फिर भी तो यही लगता है ... अभी कुछ और ... कुछ और ... कुछ और बाकी है ...

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  69. हज़ारों ग्रन्थ पढ़ डाले मगर क्यों नित ये लगता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाकी है..

    कितना सही कहा....

    सभी एक से बढ़कर एक नगीने काढ़े आपने...

    बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल बन पड़ी है....

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  70. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  71. ये शायद सोच कर आँसू मेरी आँखों से गिरता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    यही कह कर वो रातों में सभी तारों को गिनता है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है
    bahut sunder gazal.navin ji ka dhnyavad ki itni sunder gazal likhva di aapse .bahut khub
    saader
    rachana

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  72. आपके सब लेख पढ़ डाले,
    मगर अब नित ये लगता है,
    बहुत कुछ और,बहुत कुछ और,
    बहुत कुछ और,बांकी है...

    लाजवाब लिखते है आप...मजा आ गया...

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  73. हज़ारों ठोकरें खाई मगर फिर भी यूं लगता है ,
    अभी कुछ और अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाकी है .
    भाई साहब सुन्दर भावाभिव्यक्ति !बधाई स्वीकार करें और रचना को बचाके रखें आजकल हम रिमिक्स कर रहें हैं ग़ज़लों को चढ़ गई है आपकी ग़ज़ल अब उतरना मुश्किल है .

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  74. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है ,.
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  75. Bohot badhiya Ghazal kahi hai Sir ... Dil khush ho gaya ... Main zyada to nahi jaantaa lekin apni tarah ki ye pehli ghazal padhi hai .
    Shubhkaamnaayein!!

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  76. Abhi kuch aur abhi juch aur abhee kuch aur bakee hai.
    Sahee kaha aage aur gajalon ke intjar me

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  77. एक बहुत ही बेहतरीन और आला दर्जे की ग़ज़ल। समीर क्या है ये परिलक्षित होता है इसमें।

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.