तीरथराम साईकिल रिक्शा चलाता और पत्नी किशोरी घर सम्भालती. दोनो दिन-रात काम करते.
घोर ईश्वर भक्त. ईश्वर भी उसकी निरन्तर भक्ति से प्रसन्न हो एक के बाद एक लगातार आठ बच्चे प्रसाद स्वरूप देता गया.
किशोरी को पूजा पाठ में कोई दिलचस्पी नहीं रही. वह इसे पाखंड मानती थी. पति की थोड़ी सी कमाई में किसी तरह घर सम्भाले कि पूजा पाठ पर खर्च करे.
और तीरथराम..?- कहता था कि ईश्वर तो इस बरस भी फिर प्रसन्न हुआ. सातवां चल रहा था, किशोरी को खून की उल्टी हुई और फिर न तो बच्चा बच सका और न किशोरी.
सारा दोष मूरख किशोरी का है-नास्तिक कहीं की!!!
किशोरी की भूल की माफी मांगने पहाड़ी वाले मंदिर जाना पड़ा था भरी बरसात में.
पैर फिसला. खाई में गिर कर चल बसा!!
अब... आठ अनाथ बच्चे!!
ईश्वर ही पालेगा उन्हें!!.....घोर ईश्वर भक्त जो था तीरथराम.......
(लगता तो है कि पल ही जायेंगे, जब पूरा देश बिना किसी नाथ के उसी के भरोसे पला जा रहा है!!)
कल रात अँधेरे
टकरा कर
फट गया था
माथा उसकी बीबी का
और
उतर आया था
माँग के सिंदूर का निशान
जिस पत्थर पर....
आज गाँव में उसे
बड़ी श्रृद्धा से
पूजा जाते देखा!!!
-समीर लाल ’समीर’
हमारे देश की गरीबी और बदहाली का एक प्रमुख कारण है ,सब कुछ ईश्वर पर ठेल देना
जवाब देंहटाएंअसरदार.
जवाब देंहटाएंsir ji namskaar
जवाब देंहटाएंshardha or viswash
....
बड़ी सहजता से बयां कर दी देश में बदहाली की जड़ों की कहानी।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित पोस्ट सोचने को मजबूर करती हम क्या करते है कहाँ है?
जवाब देंहटाएंओह्ह!!!!
जवाब देंहटाएंअंध श्रद्धा पर करारा व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंकरे कराए आप है
जवाब देंहटाएंपलटू पलटू शो ।
अंधविश्वासी हो कर पूजा करने वालों को आपने बखूबी संदेश दिया ।
जवाब देंहटाएंशायद कुछ लोगों की आँखे खोल जाये , इसको पढ कर ।
अंधविश्वास और ईश्वर में विश्वास दोनों अलग-अलग चीजें हैं.. बेहद अलग...
जवाब देंहटाएंसही कारण खोजा है आपने
जवाब देंहटाएंजिस देश में लालू जैसे नेता हो, तीरथराम जैसे फॉलोअर तो होंगे ही...
जवाब देंहटाएंजीते जी न सही बीबी इसी बहाने पूजी तो जाने लगी...
जय हिंद...
ghor andhvishwaas aur badhali ka jita jagta chitran
जवाब देंहटाएंत्रासद सच... तेरा रामजी करेँगे बेडा पार.
जवाब देंहटाएंईश्वर विश्वास या अंधविश्वास ?
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
सादर
अंध विश्वास पर करारा प्रहार करती पोस्ट।
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास का खेल...
ईश्वर की दी हुई बुद्धि का प्रयोग न कर केवल अंध भक्ति का आश्रय लेने की यही परिणति होती है.
जवाब देंहटाएंसच मे सब कुछ ईश्वर भरोसे ही चल रहा है अपने देश का हाल देख कर तो यही लगता ह
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सटीक मारा सरजी, अपना देश आज भी इन सब चीजों में उलझा हुआ है, आभार।
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बड़ी बात कही है आपने। मेरे विचार भी आप से मिलते हैं इस संबंध में।
जवाब देंहटाएंखून की उलटी हुई.... ये भी ईश्वर की कृपा ही तो थी वर्ना तीरथराम तो किरकिट की टीम तैयार कर ही लेता :)
जवाब देंहटाएंलगता तो है कि पल ही जायेंगे, जब पूरा देश बिना किसी नाथ के उसी के भरोसे पला जा रहा है..... बेबाक बात कही...साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंसब कुछ समझा दिया इस प्रसंग और कविता में.
जवाब देंहटाएंदेश की बदहाली ...क्या खूब निकाली .......सुंदर असरदार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहाँ अच्छा तरीका है न भगवान पर डाल कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री.
जवाब देंहटाएं"पैर फिसला. खाई में गिर कर चल बसा!!
जवाब देंहटाएंअब... आठ अनाथ बच्चे!! "
गरीबी और अशिक्षा पर बेहतरीन कटाक्ष !
सटीक चित्रण !
जवाब देंहटाएंआज कल हर तरफ जिधर देखो कुछ ऐसा ही देखने को मिल जाता है !
आभार !!
सार्थक सटीक प्रहार किया है आपने...par काश कि यह सन्देश वहां tak पहुँच पाटा जहाँ इसे पहुंचना aur बसना चाहिए...
जवाब देंहटाएंअसरदार|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त व्यंग लिखा है, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत अच्छा संस्मरण,उतनी ही अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंजी हाँ , पल ही जायेंगे ।
जवाब देंहटाएंऔर कुछ नहीं तो वे भी एक मंदिर खोल लेंगे किसी सड़क किनारे ।
यही विडंबना है हमारे देश की ... सब ईश्वर का आशीर्वाद समझ ग्रहण करते हैं ..मार्मिक प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंयहाँ अंधश्रद्धा मिल जाएगी पर मनुष्यों में विश्वास नहीं हैं ...... अफसोसजनक बदहाली की हकीकत पर करारा कटाक्ष .....
जवाब देंहटाएंdesh main isi tarah se andhvishwas faila hua hain
जवाब देंहटाएंaur ye desh ko andar se khokhala kar raha hain
वाह ,गजब का भाव-चित्रण है रचना में.
जवाब देंहटाएंsochne par vivash karti rachna .... keep smiling :)
जवाब देंहटाएंइस देश में तीरथरामों की कमी नहीं....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंलाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...
आठ के ठाठ भगवान भरोसे छोड़कर चला गया तीरथराम!! जैसे देश जी रहा है ठाठ से!! दिल को लग गई बात,समीर बाबू!!
जवाब देंहटाएंपुरा भारत भरा हे इन तीर्थरामो से.....
जवाब देंहटाएंअबला जीवन हाय!
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा। ईश्वर तो है लेकिन कर्म भी कुछ है। चिंतन करने योग्य पोस्ट।
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाय, सच ही है.
जवाब देंहटाएंबहुत पैना प्रहार किया है आपने । बधाई हो ।
जवाब देंहटाएंrastogi.jagranjunction.com
कम शब्दों में बड़ी बात कही है आपने।
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर लाल जी..
जवाब देंहटाएंप्रेमदिवस की शुभकामनाये !
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
.
जवाब देंहटाएंदास मलूका कह गए , सब के दाता राम ...
अंधविश्वास पर एक उम्दा व्यंग ।
.
तीरथराम पर कुछ भी लिख लो कुछ भी कह लो ये समस्या क़ा रूट्काज़ नहीं जैसा कि प्रवीन जी ने कहा यहाँ उल्टी गंगा बहती है जो लालू के घर होगा वही तीरथराम की नजीर होगी. और दूसरी बात अंधविश्वास क़ा परीक्षण अति कठिन है हम बड़ी सरलता से किसी के विश्वास को अंधविश्वास कह देते है जबकि मुसीबत में बड़े से बड़ा तार्किक इकिसी अवाक्त क़ा आसरा देखता है.
जवाब देंहटाएंप्रपंच करना बेहद सरल समस्या क़ा समाधान ढूँढना फिर क्रियान्वित करना उतना ही कठिन.
प्रियवर समीर जी
जवाब देंहटाएंसस्नेहाभिवादन !
लघुकथा और कविता दोनों में ही नासमझी और अंधविश्वास की प्रवृत्तियों पर कटाक्ष करते हुए चेतना जाग्रत करने का सफल प्रयास आपकी लेखनी के माध्यम से हुआ है । आभार और बधाई !
♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं! :)
बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
prabhavshali evam yatharthparak laghu katha....
जवाब देंहटाएंlaghu kavita ..kam shabdon me badi baat.
सचमुच, अब तो उन्हें ईश्वर ही पालेगा।
जवाब देंहटाएं---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
जैसे देश चल रहा है वैसे पल ही जाएँगे! टचिंग!!
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी यह लघु-कथा. आभार .
जवाब देंहटाएंआस्था और अंधविश्वास दो अलग चीज हैं बस आवश्यकता समझने की है। शेष तो..समीर जी किसी शायर ने कहा है-
जवाब देंहटाएं''शब को खूब-सी पी सुबह को तोबा कर ली
रिन्द के रिन्द रहे हाथ से जन्नत न गई ।''
अच्छी लगी बात जो आपने कही।
जवाब देंहटाएंaapki har prastuti bemisal hoti hai........
जवाब देंहटाएंपूरा देश बिना किसी नाथ के उसी के भरोसे पला जा रहा है...पोस्ट के माध्यम से बहुत सार्थक चिंतन .... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चिंतन .... आभार
जवाब देंहटाएंजबरदस्त कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंनीरज
Satya chitran kiya hai sir ji...
जवाब देंहटाएंHamre blogg par aap ka agam idhar nahi ho raha hai.
kripya padhare.
चटपटी चुभन वाली रचना।
जवाब देंहटाएंandhvishvas hamen yahi deta hai. apane vivek ka prayog bhi kab karen? din rat roti ke liye kamana aur phir thak ke so jana. bas ishvar ke sahare hi chalte rahe.
जवाब देंहटाएंdesh par jo vyangya mara hai vo vaakai sochane ko majaboor kar raha hai.
सुन्दर और सार्थक लघुकथा!
जवाब देंहटाएंविश्वास अच्छी बात है
जवाब देंहटाएंपर अन्धविश्वास नहीं
विश्वास से व्यक्ति आगे बढ़ता है
अन्धविश्वास उसे पीछे ढकेलता है
सम्यक् प्रकाश डाला है आपने गरीबी की समस्या पर............
श्रीमती कुसुम जी ने पुत्री के जन्म के उपलक्ष्य में आम का पौधा लगाया
श्रीमती कुसुम जी ने पुत्री के जन्म के उपलक्ष्य में आम का पौधा लगाया है।
‘वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर’ एवं सम्पूर्ण ब्लॉग परिवार की ओर से हम उन्हें पुत्री रूपी दिव्य ज्योत्स्ना की प्राप्ति पर बधाई देते हैं।
हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़े काफी गहरी हैं। आज आवश्यकता है , आम इंसान को ज्ञान की, जिस से वो; झाड़-फूँक, जादू टोना ,तंत्र-मंत्र, और भूतप्रेत जैसे अन्धविश्वास से भी बाहर आ सके.
जवाब देंहटाएंअंध विश्वास पर करारा प्रहार करती पोस्ट।
सिलसिला जारी रखें । हमारी शुभकामनाये आपके साथ है,
दिलचस्प...अच्छा कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंआम आदमी की जब सोच यही है की सब राम भरोसे हो जायेगा तो फिर वो सरकार से कैसे उम्मीद कर सकती है की वो कुछ करे देश भी राम भरोसे चल जायेगा जैसे अभी तक चलता आ रहा है |
जवाब देंहटाएंishwar par shraddha ho par andhvishwas nahi,gehre samasya par marmikta se prashana uthaya hai?samadhan shayad har insaan ko apne aap hi dhundhana hoga,apne karm se.
जवाब देंहटाएंkya baat hai
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