रविवार, जुलाई 04, 2010

संसाधन सीमित हैं, कृपया ध्यान रखें

कुछ दिनों से ब्लॉगवाणी का नियमित अद्यतनीकरण किंचित कारणों से स्थगित चल रहा है. ऐसे वक्त में अधिकाधिक चिट्ठाकार चिट्ठाजगत एवं कुछ चिट्ठाकार अन्य साधनों का प्रयोग कर नई प्रविष्टियों की जानकारी ले रहे हैं.

जब संसाधन सीमित हो जाते हैं तब हमारा ध्यान कुछ ऐसी बातों पर भी जाने लगता है जो कि अन्यथा नजर अंदाज की जाती रही हैं हालांकि खटकती तो हमेशा ही रहती थीं.

मैं आज ध्यान दिलाना चाहता हूँ उन प्रविष्टियों की ओर जिसमें एक ही प्रविष्टी को चिट्ठाकार साथी अलग अलग कुछ एकल और कुछ सामूहिक चिट्ठों से एक के बाद एक पोस्ट कर देते हैं. यहाँ तक देखने में आया कि एक ही प्रविष्टी पाँच से छः बार तक पोस्ट की गई. इससे चिट्ठाजगत के प्रथम पॄष्ठ पर जब वो प्रविष्टियाँ आती है तो उसके पहले की आई सारी प्रविष्टियाँ या तो अगले पन्ने पर चली जाती हैं या नीचे धकेल दी जाती हैं.

मैंने इस तरह से एक ही प्रविष्टी को एकाधिक बार पोस्ट करने के कारण को जानने की जिज्ञासा लिए कई चिट्ठों पर टिप्पणी के माध्यम से यह प्रश्न उठाया. कुछ मित्रों के जबाब आये और उन्होंने मेरी बात को पूर्ण खिलाड़ी भावना से लिया और समझा. मैं उनका आभारी हूँ और आज मात्र इतना निवेदन करना चाहता हूँ कि साधन सीमित हैं. कृपया सभी को यथोचित स्थान और संसाधनों का लाभ उठाने का उचित मौका दें.

अक्सर हो जाता है कि एक पाठक वर्ग व्यस्तता की वजह से एक चिट्ठे की प्रविष्टी पर ध्यान नहीं दे पाता ऐसे में कुछ दिवस के अंतराल के बाद वही पोस्ट दूसरे चिट्ठे से छाप कर उसका ध्यान आकर्षित कराया जा सकता है और ऐसा अलग अलग चिट्ठों से एक अंतराल विशेष के बाद दोहराया भी जा सकता है. किन्तु एक साथ सभी जगह से एक के बाद एक पोस्ट कर देने से तो कुछ भी हासिल न होगा क्यूँकि यदि पाठक किसी समय में व्यस्त है तो वो उस वक्त सभी जगह से अनभिज्ञ एवं अनुपस्थित रहेगा.

मैं स्वयं भी अपनी दीगर चिट्ठों और पत्रिकाओं में छपी प्रविष्टियाँ अपने चिट्ठे पर एक ही स्थान पर सहेजने और अपने पाठकों को पढ़वाने के उद्देश्य से लाता हूँ किन्तु एक अंतराल रखने का प्रयास हमेशा ही होता है.

आशा है आप मेरी बात को अन्यथा न लेते हुए सभी चिट्ठाकारों को उनका उचित स्थान देने में एवं सीमित संसाधनों का सर्वोत्कृष्ट उपयोगिता स्थापित करने में मदद करेंगे.

आज बस इतना ही और साथ में अपनी एक गज़ल का मतला और एक शेर आपकी नजर:

 

slaasman

 

पूरी गज़ल अगर सुनना चाहेंगे तो जरुर सुनाई जायेगी..अन्यथा सुनाई तो जायेगी ही. :)  बस, अंतिम चरणों में है.

65 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बात से पूरी तरह से सहमत |
    एक ही आलेख को कई सारे ब्लोग्स पर प्रकाशित करने का तुक समझ से परे है ,ये सर्च इंजन के नियमों का भी उलंघन है |
    एक आलेख एक बार में एक ही चिट्ठे पर छापना चाहिए |

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  2. आपकी सलाह बहुत ही सटीक है!
    --
    जनाब पूरी गजल भी तो पढ़वाइए!
    किसी शायर ने कहा है-
    "जब रात हो इतनी मतवाली,
    फिर सुबह का आलम क्या होगा...?"

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  3. पूर्णतया सहमत
    एक ही शीर्षक और एक ही पोस्ट एक से ज्यादा बार लगभग एक ही समय में पोस्ट करने का औचित्य मुझे भी समझ में नहीं आता है.

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  4. आपकी चिंता वाजिब है.में भी सहमत हूँ.

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  5. bhut sach khaa aapne. gazal ka intjara rhega

    regards

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  6. .
    .
    .
    जायज चिंता, सही बात!
    लेकिन क्या भाई लोग मानेंगे ?
    कुछ लोगों की इसी प्रकार की मूर्खता व हठधर्मिता के चलते एक शानदार संकलक आज बंद पड़ा है।

    आभार!


    ...

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  7. ब्लॉगवाणी के रुकते ही लोग तरह तरह के एग्रीगेटर पर हाथ आजमा रहे हैं और अपनी पोस्ट को लेकर भी अनेक तरह से प्रयोग कर रहे है फिर भी वो बात नही आ पा रही है जो पहले थी....आपने बिल्कुल सही कहा कि एक ही पोस्ट को कई बार पोस्ट कर देने से कुछ नही होता हाँ कुछ अंतराल के बाद तो पोस्ट किया जा सकता है..

    बढ़िया और सही चर्चा...क्योंकि अब जीतने भी संसाधन है वो सीमित है और उस पर सभी का ध्यान है...तो भीड़ संभव है..

    चार लाइन की ग़ज़ल है..पर लाज़वाब...सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार

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  8. समीर भाई.. जो अनजाने में करे उसे तो समझाया जा सकता है पर जो जानबूझ कर करे उसका तो भला ऊपरवाला ही करे...

    हम हिंदीवाले बहुमुखी प्रतिभा (विरोधाभाषी व्यक्तित्व) के धनी है.... हमारे ढेर सारे (हर एक बात के लिए अलग) असुल है... हम चीजों को बहुत सूक्ष्मता (सीमित सोच) से देखते है... पाना बहुत चाहते है पर योगदान नहीं करना चाहते... दूसरों की हर गल्ती पर एक पोस्ट चिपका सकते है पर अपनी गल्ती हम देखना ही नहीं चाहते..

    हम चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए वकालात कर सकते है.. पर अपनी पोस्ट पर एक नापसंद का चटका नहीं देख सकते...

    हम वोटिंग में "right of rejection" चाहते है.. पर अपनी पोस्ट पर वो अधिकार नहीं देना चाहते..

    जय हो..

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  9. पूरी तरह सहमत। धन्यवाद। नज़रें गजल ढूँढती रह गयी??????????

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  10. समीर भाई, आपसे सहमत हूँ ! कल अविनाश भाई ने भी यही मुद्दा उठाया था !

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  11. सहमत हूँ ध्यान देने वाली बात पर, और गजल तो गजब ढा रही है जनाब :)

    रंजन भाई ने बढ़िया कमेन्ट दी है ....

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  12. हम आप की बात क्यों मानें?
    पूरी लाइन में हम ही
    क्यों न नजर आएँ?
    होड़ पढ़ाने की नहीं है जनाब
    दिखाने की है।
    आप किस खेत की मूली हैं?
    मुफ्त मिले तो सारी चर जाएँ।

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  13. गुरुदेव,
    जहां तक मेरी समझ में आता है, एक ही पोस्ट को कई जगह चढ़ाने का ये सारा खेल सक्रियता क्रम में ऊपर चढ़ने के लिए किया जाता है...लेकिन जैसा आपने इंगित किया, इससे दूसरे की पोस्ट नीचे होती जाती है...इस तरह के हथकंडो से थोड़ी देर के लिए खुद को सुख दिया जा सकता है, लेकिन ये अपने को ही धोखा देना है...कोई कुछ कर ले रहेगा कंटेट ही किंग...

    बाकी ग़ज़ल के ट्रेलर पर इतना ही कहूंगा...आप जिस महफ़िल मे पहुंच जाएंगे, मेज़बान ज़रूर ये गाएगा...

    ये कौन आया,
    महफ़िल हो गई रौशन जिसके नाम से,
    मेरे घर में निकला है सूरज आज शाम से,
    ये कौन आया...

    जय हिंद...

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  14. सही कहा है गुरु देव।
    गज़ल पूरी सुनाईए और वह भी अपनी आवाज़ में.

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  15. आपकी बात पूर्णतः सही है....सभी को समान अवसर मिलना चाहिए...एक ही पोस्ट कई जगह छपने के कारण प्रथम पृष्ठ काफी भर जाता है और दूसरों को स्थान नहीं मिल पाता ...

    ग़ज़ल कि पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...अब पूरी गज़ल का इंतज़ार है..

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  16. सही कहा भाई साहब ..!!सुंदर अंतरा हमे इंतज़ार रहेगा पूरी ग़ज़ल का..!

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  17. सही सवाल उठाया गया है ।ये बात खटकती थी , अब शायद इस पर लोग ध्यान दें ।

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  18. jzabardasti kisi se apni rachna padhvana thik nahi hai aapne sahi nabz par haath rakha

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  19. बहुत ही कम शब्दों में सारगार्वित सामायिक विचार .... सीमित संसाधनों का दुरुपयोग न हो यह सभी की एक अच्छी पहल हो सकती है...आभार

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  20. यह बात आपने पूर्व में भी कही है. हम तो सहमत है. ग़ज़ल के मुखड़े में ही उसकी आत्मा बसी दिखती है. इर्शाद!

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  21. आपकी यह पोस्ट www.clipped.in में दो बार प्रकट हुई है !

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  22. आपकी बात से सहमत हूँ....

    गज़ल की प्रतीक्षा में....

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  23. अन्‍यथा न लें समीर भाई। बात सौ टका सही। पर देखिए न, यही बात कल ही तो हमने नुक्‍कड़ में एक निर्णय के परिप्रेक्ष्‍य में पढ़ी। आप भी वहां थे। हां यह ठीक है कि ऐसी बातों को दुहराने की जरूरत भी होती है। पर आपके ही शब्‍दों में कुछ अंतराल के बाद।
    चलिए आपके माध्‍यम से मैं यह तो ब्‍लागर साथियों से निवेदन कर ही सकता हूं कि अब वे इस बात को अपने ब्‍लाग पर दुहराने की बजाय इसका पालन करें। एक और बात,जैसा कि आपकी इस पोस्‍ट का शीर्षक है संसाधन सीमित हैं। उसमें मैं जोड़ दूं कि समय भी सीमित है। इसलिए कविता तो ठीक है। पर समसामयिक विषयों पर पोस्‍ट लिखते समय भी विषयों के दुहराव से बचा जा सके तो बेहतर है।

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  24. बहुत सही सलाह दी अंकल जी.

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  25. Sahi hai aapka kahna.
    Gazal apne aapme mukammal lag rahi hai...par jab aap use pooree karenge to shayad aur adhik aanand mile!

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  26. mei sahmat hu aapki is baat se...lekin aapki har post ko padne ke baad itna zaroor samjha hu, blogger par aap se achha likhne baale bahut se hai..bhale hi unhe aapke compare me kam comments milte ho.....shayad vo kinhi karno se jyada sakriye nhi h isliye.
    ye baat 'jalte huye, jalaane k liye nhi kah rha hu'
    jo dekha, so kaha.
    'apnatv' , 'bheegi gazal' blogs bhi dekhiyega.

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  27. सही कहा जी, सहमत है आप सब से

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  28. बिलकुल सही कहा समीर जी ! और गजल तो पूरी सुन्नी ही पड़ेगी कोई और चारा ही नहीं है :)

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  29. आपकी बात से पूरी तरह से सहमत

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  30. आपने बिलकुल सही कहा है. मेरा भी ध्यान इस ओर कई बार जा चूका है. मेरे विचार से ऐसे मंच के संयोजकों को इस बारे में सोच-विचार करना चाहिए. "नुक्कड़" ने इस बारे में अपने लेखकों से आग्रह किया भी है. ब्लॉग संकलकों को भी ऐसी मंचों की सदस्यता का ध्यान रखना चाहिए.

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  31. बिल्कुल सही बात लिखी है आपने। हां, गजल का इंतजार रहेगा।

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  32. इस पर अमल karne की कोशिश की जाएगी ...

    शेर बहुत अच्छा लगा ...

    ग़ज़ल की पूरी महफ़िल सजाये
    दिल जल रहा है और जलाएं ..:):)

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  33. सही तरीकों से आगे बढ़ना तो बिल्कुल जायज है किन्तु दूसरों को धकेल कर आगे बढ़ने को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।

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  34. संसाधन सीमित हैं । सच है ।
    गज़ल पूरी करें । सच में ।

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  35. समस्या की जड़ टिप्पणी की भूख मालूम पड़ती है। लोगों को टिप्पणी चाहिए-हर हाल में। क्या पता आप चूक गए हों पोस्ट पर नज़र डालने से। इसलिए,बार-बार पोस्ट कर ध्यानाकर्षण ज़रूरी हो जाता है। ऐसे ही,कुछ अन्य लोगों ने एक ही पोस्ट के लिए कई-कई ब्लॉग बना रखे हैं। समय आ गया है कि एग्रीगेटर अब कोई ऐसा फिल्टर डेवलप करें जो इन तिकड़मों की हवा निकाल दे।

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  36. यही हाल होता है जब एकदम फ्री छोड़ दिया जाता है. यहाँ भी अंकुश की जरूरत है.
    वैसे छपास रोग में हाल यही होता है.
    जय हिन्द जय बुन्देलखण्ड

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  37. मैं तो ऐसा नहीं करता हूं लेकिन जो लोग करते हैं उन्हें इस पर विचार करना चाहिए. आपकी सलाह बहुत ही उपयोगी है.

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  38. पते की बात -मैं खुद ही हैरान था -बाकी टिप्पणी आपकी फोटो देखकर फेसबुक पर है !

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  39. आपका सर्वेक्षण सही है । चिट्ठाजगत पर फालतू के और कई बार प्रकट होने वाले चिट्ठों की वज़ह से अजीब सा महसूस होता है ।
    इस मामले में ब्लोगवाणी का स्टेंडर्ड कहीं ऊंचा था ।
    पूरी ग़ज़ल का इंतजार है ।

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  40. आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।

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  41. १००० फ़ीसदी सही ।

    गजल की फ़रमाईश हमारी है, हम पूरी सुनना चाहते हैं, चार लाईन में ही हिल गये हैं।

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  42. सही बात, सही सलाह. दोनों शेर बहुत सुन्दर हैं.

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  43. बेनामी7/05/2010 02:05:00 pm

    यह कुंठित छपास का एक लक्षण है.

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  44. पूर्ण रूप से सहमत. अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि एक चिट्ठाकार के सभी चिट्ठे किसी एग्ग्रीगटर पर रजिस्टर नहीं होते.उन मामलों में तो ठीक है.

    बाकी चलिये इंतज़ार करें कि ब्लोगवाणी फिर सक्रिय हो तथा कुछ नये एग्ग्रीगेटर भी सामने आयें.

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  45. आपकी सलाह बहुत ही सटीक है!

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  46. इन हथकँडो से क्या लाभ मिलता है,
    मुझे आज तक समझ में नहीं आया ।
    आज इसका गणित कुछ कुछ पल्ले पड़ रहा है ।
    देखिये बाबा समीरानन्द के वचनामृत का कितना असर होता है ?

    आजकल आपके आसार ठीक नहीं लग रहे हैं..
    " हमें जलाने की कोशिश में क्यूँ खुद को ही तुम जला रहे हो.."
    भऊजी देख, तेरा सैंया बिगड़ा जाये !

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  47. आपकी बात से असहमत होने का तो सवाल ही नहीं.....एक नेक सलाह, गर कोई माने तो!

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  48. इतनी खूबसूरत गज़ल अधूरी क्यूं फूरी पेश करना तो बनता है । वैसे आपकी बात जायज़ है ।

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  49. हाँ चाहिए तो यही ..
    संसाधनों का संदोहन किया जाय न कि कु-दोहन !

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  50. बहुत आवश्‍यक थी यह पोस्‍ट. धन्‍यवाद भार्द जी.

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  51. सहमत हूँ आपकी बात से पूरी तरह ... समीर भाई
    और ग़ज़ल अच्छी है भाई ... हाज़मा ते है हमारा ... सुना ही दो अब ...

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  52. यह गजल पूरी की पूरी जल्द से जल्द सुनवाईये। बेसब्री से इंतजार है जी

    प्रणाम

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  53. bahut hi achi gazal likhi hai apne, poori gazal zaroor likhiyega. Aapki post sansadhan seemit hain,.... bahut hi achi lagee.

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  54. हम को हमी से मिला दो ...........
    बात सही रखी आपने

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  55. वो कोशिशें हम जला के रख दें,
    हों जिनकी फ़ितरत, तुम्हें जलाना
    हमारी कोशिश तो बस यही है,
    तुम्हारे दिल में चमन खिलाना

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  56. अभी तो तुमसे जमीं न संभली क्यूँ आसमां को हिला रहे हो.... बेहद सुन्दर ... पूरी ग़ज़ल का इंतज़ार रहेगा.

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  57. सही कह रहे हैं समीर भाई ।
    मेरी एक और परेशानी है मुझे चिठठाजगत पर देवनागरी दिखती नही न ही अंग्रेजी सब कुछ गिबरिश दिखता है कैसे जायें नये चिटठों पर ।

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.