जाने किस आहट से नींद खुल जाती है.कोई थकान नहीं, शायद नींद पूरी हो गई. खिड़की के बाहर झांकता हूँ. सफेद रात. जहाँ तक नजर जाती है, बरफ ही बरफ और रुई के फाहे की तरह गिरती लहराती बरफ अभी भी थमी नहीं है.
घड़ी पर नजर डालता हूँ. ३ बज कर १० मिनट. अब फिर से सोने की कोशिश करना याने सुबह ५ बजे शुरु होने वाली दिनचर्या बिगाड़ना. रसोई में जा कर एक कप गर्म काली कॉफी बना लाता हूँ और फिर सामने कम्प्यूटर. ऐसे ही शुरु होती है अधिकतर दिनचर्या.
कुछ यहाँ वहाँ की खबरें. आँख लगने से आँख खुलने के बीच बदली दुनिया की ताजा तरीन जानकारी. कोई खास नहीं. शायद लोगों के मरने जीने, कुछ बलात्कार, कुछ घोटाले, कुछ मजबूर किसानों की आत्महत्या सभी तो इस दौर में कुछ खास नहीं के दायरे में आ ठहरी हैं. जाने क्यूँ पढ़ता हूँ यह खबरें. क्या देखना चाहता हूँ जिस दिन कह सकूँ कि हाँ, कुछ कुछ खास समाचार है. कुछ भी तो समाचारों के नाम पर अब विचलित नहीं करता.
कभी सोचता हूँ कि क्या मेरी संवेदनाएँ मर गई हैं लेकिन फिर नजर पड़ती है कुछ कहानियों पर, कुछ आलेखों पर जो भीतर तक झकझोर जाते हैं तो एक विश्वास जागता है कि नहीं, अभी जिन्दा हूँ मैं और साथ जिन्दा है मेरी संवेदनाएँ.
ऐसे जी विचारों के उतार चढ़ाव में नजर पड़ती है उद्धव जी पर छपी कहानी ’आरती’ पर. सधी हुई शुरुवात बाँध लेती है. छोटी सी कथा और गहराई इतनी कि डूबा ले गई दो जन्मों की सोच में. कहानी वो जो सोचने को मजबूर करे और कुछ नये भावों को जन्म दे. बस, बह निकले चन्द शब्द एक रुप ले:
एक अमर प्रेम,
एक रुढ़ीवादी समाज,
एक संस्कार
माँ बाप
का सम्मान,
धन लोलुपता,
मान्यतायें,
समर्पण..
त्याग.
एक समझौता
एक इन्तजार
एक विश्वास,
एक आस्था
पुनर्जन्म की,
एक अव्यक्त वादा,
एक निर्वहन,
एक तपस्या.
एक अहसासने वाला
धड़कता दिल,
एक संवेदना,
एक कलम
शब्दों की
बेजोड़ ताकत,
संप्रेषण,
एक लेखक
कशमकश,
श्रृद्धा.
एक पाठक
नम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!!
-समीर लाल ’समीर’
Bhavanao ke antradwand ka bahut rumani bakhan kiya hai aapane..Aabhar!
जवाब देंहटाएंSaadar
RaniVishal
ख़बर की दुनिया से वास्ता है...हादसे में जितने ज़्यादा लोग मरते हैं, उतनी ही ख़बर बड़ी और बढ़िया हो जाती है...यानि संवेदनाएं भी अब धंधे का सच बन गई है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सच मे सम्वेदनाये मर रही है . ह्रदयविदारक घटनाये भी उद्देलित नही करती जब तक अपने पर ना बीते
जवाब देंहटाएंबर्फ ही बर्फ...ऱूई के फाहे....वाह।
जवाब देंहटाएंख़बर की दुनिया से वास्ता है...हादसे में जितने ज़्यादा लोग मरते हैं, उतनी ही ख़बर बड़ी और बढ़िया हो जाती है...यानि संवेदनाएं भी अब धंधे का सच बन गई है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सन्न मानसिक -समीर लाल ’समीर’
जवाब देंहटाएंअनुप्रास तो ग्रेट है ....कहानी भी पढता हूँ फुरसत से .
ये कविता बहुत कुछ कहती है। पहाड़ों पर हुई बर्फबारी का असर इधर यहाँ तक पहुँचा है। रात मेनगेट को ताला लगाने गया तो हवा तेज और ठंडी थी। आज सुबह सूरज के अभी तक दर्शन नहीं हुए हैं। हवाओं ने कोहरे और बादलों का सृजन किया है।
जवाब देंहटाएंआपका हर अंदाज जुदा होता है.
जवाब देंहटाएंI share ur concern !
जवाब देंहटाएंविवेकानंद जी का एक वक्तव्य याद आ जाता है कि एक व्यक्ति को दुर्घटना में जख्म हो गया था, उनके सामने तो संवेदना से वे रो पड़े। सबने पूछा आप रो क्यों रहे हैं, आपको जख्म थोड़े ही हुआ है उसे हुआ है। विवेकानंद जी ने कहा कि मेरी संवेदनाएँ अभी तक जीवित हैं और मुझे उसकी संवेदना, दर्द महसूस होता है।
जवाब देंहटाएंसच्ची दुनिया का वास्ता आज बहुत ही कठिन है..लोग अपने स्वार्थ और लालच के लिए भावनाएँ मार रहें हैं..आज के दौर का एक सही चित्रण चंद शब्दों में बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया आपने...चंद लाइनों में भाव विभोर कर डाले...
जवाब देंहटाएंउस कहानी ने अंतस को जितना द्रवित किया ...आपकी कविता से उससे अधिक मन में श्रद्धा भर गयी ...
जवाब देंहटाएं...हम एक दूसरे की भावनाओं , अभिव्यक्ति और सप्म्प्रेषण से कितना जुड़ जाते हैं कि कई बार लगता है कि
क्या सच ही यह सिर्फ आभासी दुनिया है ...!!
आहत होने से कुछ नहीं बदलने वाला,
जवाब देंहटाएंअफ़सोस जताने से भी कुछ नहीं बदलने वाला
जब तक हम "कुछ नहीं बदलने वाला" जैसी सोच रखेगें
तब तक सवेदनाऎं हमें सतायेंगी
सुंदर पोस्ट.
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivyakt kiya hai aapne kahani padhkar upje khayalon/bhavnaon ko.
जवाब देंहटाएंकविता में रवानी है,
जवाब देंहटाएंउमड़ती इक कहानी है!
जहाँ सम्वेदनाएँ है-
वहाँ कायम जवानी है!
कविता और कथा का ताल-मेल
सुन्दर रहा!
samvednayein marne bhi lagein to unhein jivit rakhna hoga ........bahut hi khoobsoorti se abhivyakt kiya hai.
जवाब देंहटाएंआपका हर अंदाज जुदा होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएँ मरती नही है ..... इसका सबूत तो खैर आपकी रचना ही बता रही है जो उद्वेलित हो कर लिखी है .... अगर संवेदनाएँ न हों तो ऐसा लिखना आसान नही ....... और अगर पाठक की नम आँखें हैं तो संवेदना भी है ......
जवाब देंहटाएंसमीर जी,आपकी रचना के भावों को समझने के लिए "आरती" को पढ़ ना बहुत जरूरी लगा...आप का लिखा भी बहुत गहरे तक छू गया।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव भरी रचना...मन को छूती हुई.. एक कोमल मन ही निकल सकती है
जवाब देंहटाएंमेरे शब्दों में
"किसी के लिये अजनबी का आंसू रखता है मायने
और कोई जां लेकर भी न कभी शर्मसार होता है"
एक समझौता
जवाब देंहटाएंएक इन्तजार
एक विश्वास,
एक आस्था
पुनर्जन्म की,
एक अव्यक्त वादा,
एक निर्वहन,
एक तपस्या.
वाह, लाजवाब अंदाज है.
रामराम.
मनुष्य तभी तक जीवित है जब तक उसके अंदर संवेदनायें हैं.
जवाब देंहटाएंbhawnaye jab shabd ka rup leti hai to asrra ki khushbu fijayo men failati hai.....
जवाब देंहटाएंkahani,kavita dono ka jawaab nahi
जवाब देंहटाएंmujhe to lagta hai sanmvednayen khtm hoti ja rahi hai..
जवाब देंहटाएंकहानी और कविता में से किसे बेहतर कहूं या कि किसके लिए कहूं कि उसने ज्यादा द्रवित किया , अभी तय नहीं कर पाया हूं । आपको इन दिनों पढना एक अलग अनुभव दे रहा है
जवाब देंहटाएंएक विश्वास जागता है कि नहीं, अभी जिन्दा हूँ मैं और साथ जिन्दा है मेरी संवेदनाएँ.'
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओ का मरना और संभावनाओ का मरना आदमी के मौत से भी भयानक होता है.
संवेदनाओं को जिन्दा रखना ही होगा : खुद मे भी औरों में भी
katha main bhi kavya sa anand hai or kavita ke to kehne hi kya.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजावाब करती हुई पोस्ट....
जवाब देंहटाएंकहानी और कविता दोनों ही लाजवाब हैं...
जवाब देंहटाएंआभार..
हर बार की तरह रंग मे भंग डालता हुआ मेरा प्रश्न तो होना ही था ! क्या नायिका की कोई अर्धविक्षिप्त या अन्य दोषयुक्त कोई दूर की बहन, भाँजी न थी? न भी थी तो कोई गाँव की ऐसी लड़की तो रही ही होगी। क्या नायक से भी कोई त्याग करवाकर उसे महान नहीं बनाया जा सकता या महानता केवल स्त्रियों के हाथ आती है?
जवाब देंहटाएंखेद सहित,
घुघूती बासूती
वैसे आह बर्फ, वाह बर्फ ! विवरण पढ़कर मन खुश हुआ।
घुघूती बासूती
बाकी सब तो ठीक है जी लेकिन नींद पूरी लेनी चाहिए। अपनी नींद यदि पूरी न हो तो दिन की वाट लग जाती है, सारा दिन सुस्ती से भरा रहता है! :)
जवाब देंहटाएंHamesha ki tarah hi bemisaal..
जवाब देंहटाएंJai Hind... Jai Bundelkhand...
जब तक संवेदना के खत्म होने की पीड़ा सताती है तब तक वह खत्म कैसे हो सकती। आपकी संवेदना यंू ही बरकरार रहे, इस शुभकामना के साथ..
जवाब देंहटाएंजब तक संवेदना के खत्म होने की पीड़ा सताती है तब तक वह खत्म कैसे हो सकती। आपकी संवेदना यंू ही बरकरार रहे, इस शुभकामना के साथ..
जवाब देंहटाएंजब तक संवेदना खत्म होने की पीड़ा सताती है तब तक वह खत्म हो ही नहीं सकती। आपकी संवेदना यंू ही बरकरार रहे, इसी शुभकामना के साथ
जवाब देंहटाएंजीवन के रहते ही संवेदनाएँ जिन्दा रहती है ... आभार
जवाब देंहटाएंजब तक संवेदना खत्म होने की पीड़ा सताती है तब तक वह खत्म हो ही नहीं सकती। आपकी संवेदना यंू ही बरकरार रहे, इसी शुभकामना के साथ
जवाब देंहटाएंकभी सोचता हूँ कि क्या मेरी संवेदनाएँ मर गई हैं लेकिन .................................... एक विश्वास जागता है कि नहीं, अभी जिन्दा हूँ मैं और साथ जिन्दा है मेरी संवेदनाएँ.''
जवाब देंहटाएंयही जीवन है,बेहतरीन पोस्ट रही यह भी.
mired mirage ji! रंग का मजा कई गुना बढ़ जाता है जब साथ में भंग भी हो .
जवाब देंहटाएंकितना खूबसूरत सवाल किया आपने ! आपके हिम्मत की दाद दूंगी
यहाँ लोग 'ठकुर सुहाती ' ही बोलते हैं
कोई तो हो जो 'हिला देने ' वाला बोले ,
सीखने सिखाने को प्रेरित करने वाला बोले
हाँ ,मेरे मन भी आक्रोश है नायक के लिए ...
पर ये बलिदान की बेदी पर चढ़ जाना इतना आसान भी नही होता.
,बहुत दम,बहुत हिम्मत चाहिए .
ठेस नही पहुंचा रही मैं किसी को , क्षमा करें
और स्वयम से पूछे-' है इतनी हिम्मत?'
माना कि वो नायक आप ही थे/ हैं ,क्या करते ?
महानता स्त्रियों के हाथ में आती है?
नही,उनमे वो हिम्मत,साहस,गुण है कि महान बन जाये या बना दी जाये.
बहुत छला गया इस के नाम पर औरत को ....
बिरले ही थे अंगुलियों पर गिन लिए जाने जितने ही ऐसे पुरुष ,पर औरतें ?
तभी तो 'वो' पुरुष नही और आप लोग...????????
पर आपके व्यूज़ ?? प्रणाम आपको
बेहतरीन। बधाई।
जवाब देंहटाएंएक पाठक
जवाब देंहटाएंनम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!
कमाल का उपसंहार...
समीर जी, आनन्द आ गया आपसे बात करके.
जवाब देंहटाएंkahani aur kavita dono hi bas laazabaab hain....ye andaaz-e-bayaan ,taarif-e-kabil hai..
जवाब देंहटाएंकहानी और कविता दोनों ही लाजवाब हैं।
जवाब देंहटाएंsameer ji. maine bhi padhi thi aarti wali kahani. aur aapne apne shabdo me jo kahani par vichar diye unse bhi sehmat hu...lekin mujhe is kahani me dhan lolupta kahi nazer nahi aayi. ha.n mana ki mata-pita ko shayed dahej ki lolupta hogi..lekin jinhone tyag kiya unke liye dhan koi mayne nahi rakhta tha. bas aadhe aaye to unke sankar,maa-baap k prati samman aur ankho k ansu.
जवाब देंहटाएंkalam dwara shabdo ki bejod takat se lekhak ne(Indu ji ne) bahut kuchh urek diya hai jo kahani ko safalta pradaan karta hai.
संवेदना बड़ी अजीब हो गई है..या हम मालूम नहीं..संवेदनाहीन तो नहीं हुआ है शायद मन..पर वो भी नफा नुकसान अनायास तोल लेता है हमारे सोच पाने से पहले ही..कई बार जब संवेदना जगती है तब तक जिसके लिए जिस समय जगना हो, वो खत्म हो जाती है..ठीक वैसे ही जैसे रोगी को दवा दो दिन बाद दी हो..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख. कविता कमाल की है.
जवाब देंहटाएंकहानी और कविता दोनों ही अपने आप में बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंBahut achchee praveeshtee rahee ...
जवाब देंहटाएंab aapke diye link bhee dekhtee hoon
कहानी और कविता संवेदनशील है.... उद्वेलित करती.... खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंआज ही गोरखपुर से आया हूँ.... आजकल समय ही नहीं मिल पा रहा है....
सादर
महफूज़...
एक पाठक
जवाब देंहटाएंनम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!!
Perfect!
जवाब देंहटाएंRegards
Ram Krishna Gautam
भावपूर्ण रचना है.
जवाब देंहटाएंBahut sundar bhavpurn prastuti ki liye badhai.
जवाब देंहटाएंMahashivratrik ki haardik shubhkamneyne
संवेदना कभी नहीं मरती।
जवाब देंहटाएंहाँ संवेदनशील लोग ज़रूर कम हो गए हैं।
लेकिन फिर भी एक उम्मीद बची है आप जैसे लोगों से ।
अच्छी प्रस्तुति।
पहले आर्ती को पढा फिर पदम जी के ब्लाग पर आपका कमेन्ट देखा बस निशब्द हूँ आपकी संवेदनाओं की अभिवयक्ति पर शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंsamvedna..marti nahi, bas knahi kisi kone me jad ho jaati he aour esi ghatna ka intjaar karti he jo use pighlaa de.../barf ki tarah.
जवाब देंहटाएंकई बार सोचता हूं कि शायद पुनर्जन्म की अवधारणा मन को समझाने का ही एक दूसरा तरीक़ा है
जवाब देंहटाएंएक रुढ़ीवादी समाज,
जवाब देंहटाएंएक संस्कार
माँ बाप
का सम्मान,
धन लोलुपता,
मान्यतायें,
समर्पण..
त्याग. एक समझौता
एक इन्तजार
एक विश्वास,
एक आस्था
पुनर्जन्म की,
bahut hi saarthak rachna kuchh baate man ko sochne ke liye vivash kar gayi kuchh chhoo gayi
समीरलाल जी आदाब
जवाब देंहटाएंएक अमर प्रेम...
........नम आँखें
..आवाक....स्तब्द्ध चेहरा
और...सन्न मानसिक हालात.....
एक कहानी, एक कविता..
..आपकी क़लम से निकली
परिवेश की व्यथा..
ये संवेदनाएं आपके हमारे दिलों में हमेशा कायम रहें..
समीर जी,महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना...हर हर महादेव!!!
जवाब देंहटाएंबाप रे बड्डे क्या ही ऊँची उड़ान है आपकी उड़न तश्तरी की। कितनी शाश्वत बातें हैं पोस्ट पर। हम क़ाइल हुए।
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा ! बधाई!
jab apne par beet ti hai tabi such ka ehsaas hota hai.ekdm saty vachan
जवाब देंहटाएंpoonam
आपकी ये पोस्ट तो सचमुच मन को उद्वेलित कर गई...बेमिसाल रचना!!!
जवाब देंहटाएंकविता कितना कुछ कह गई ..इतने कम शब्दों में...
जवाब देंहटाएंशिवरात्रि (और ओलंपिक्स) की शुभकामनाएं! वेन डायर कहते हैं कि अखबार/टीवी/फिल्म में हम इतने अधिक (सिमुलेतिड) अपराध/हत्याएं देखते/भोगते हैं कि संवेदनाएं मरना अवश्यम्भावी है.
जवाब देंहटाएंसमाचार क्यों पढ़ता हूँ, पता नहीं। सही फरमाया आपने। लेकिन कविता ठोस सच्चाई पेश करती है।
जवाब देंहटाएंसच्ची अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसब कहत है कि अकेले आये है अकेले जायेगे ।
जवाब देंहटाएंपर
सच तो ये है
दो के बिना को आता नही
चार के बिना कोई जाता नही
Thought provoking thoughts...
जवाब देंहटाएंएक पाठक
जवाब देंहटाएंनम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!!
bhaavnaaon nahi mari hai waqayi saboot aise hi dhoondhna padta hai
mujhe hamesha aashchary hota hai ki kaise khud ko samvedansheel kahne / samjhne wale log patthar ki tarah behave kar sakte hain
bahut sateek kavita hai ....... kisi ki mout dard ab krantikari badlaav nahi lata
kahne ko to aapki rachna mein kuch nahi hai....lekin fir bhi bahut kuch...Sach bolu to sameer sir...bilkul sunn rah gai....socha kuch likhoo ya fir yunhi chali jaoo....fir socha chalo keyboard par haath chalaoon....
जवाब देंहटाएंआप अपनी रचनाओं में जैसे जान डाल देते हैं।
जवाब देंहटाएंएक लेखक
कशमकश,
श्रृद्धा. एक पाठक
नम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!!वाह!!!!!वाह!!!
एक पाठक
जवाब देंहटाएंनम आँखें
आवाक,
स्तब्द्ध चेहरा
और
सन्न मानसिक हालात!!
बहुत प्रभावशाली मार्मिक रचना सुंदर दिल को छूते शब्द .
जब रात को नींद नही आती तो... फ़िर ऎसे ही ख्याल आ आ कर हमारी संवेदनाएं जगाते है, ओर फ़िर तरस भि आता है ओर गुस्सा भी आज के जमाने पर, लगता है अब भावनाये,संवेदनाएं भी बिकने लगी है, इंसान की कीमत जीरो है....कविता भी बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी कविताओं में एक छिपी हुई टीस सी है, जो ती ए नीमकश जैसे कलेजे में आधी गड़ जाती है, और हम बौराये रहते हैं कि क्या निकालें या रहने दें.
जवाब देंहटाएंएक संवेदना,
जवाब देंहटाएंएक कलम
शब्दों की
बेजोड़ ताकत,
...यूँ ही भावनाओं का समुन्दर बहता रहे...लाजवाब रचना !!
"शब्द-शिखर" पर सेलुलर जेल के यातना दृश्य....और वेलेंटाइन-डे पर "पहला प्यार" !
जवाब देंहटाएं"शब्द-शिखर" पर आप भी आयें, रहेगा आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार !!
ek kahaani aur kavita bhoot achhi hai aap kee tiparee mere blog per aayee thee par usake bad aapka asirvad nahi mila aap apane sujav dene kee kripa kare danyavad
जवाब देंहटाएंलाजबाब ! लिखने का अंदाज़ सबसे अलग.
जवाब देंहटाएंkahani kavitayen aawashyak manushya ko manushya banaaye rakhne ke liye uski samvedna jagaye rakhne ke liye .
जवाब देंहटाएंbahut sunder prastuti ,badhai.
आपका ब्लॉग यहाँ ब्लॉगवुड जोड़ दिया गया है शायद आपको जानकार खुशी हो। शायद न भी हो।
जवाब देंहटाएंनम आखे
जवाब देंहटाएंअनबोले बोल
आज़ाद आसू
अवाक
सन्नाटा
और पढ रहा हू आपकी पोस्ट...full of true emotions... you are a TRUE writer sir..purely emotional..
good post..asar chod gayee.....
जवाब देंहटाएंआपके बहुत ही ख़ूबसूरत आलेख और भावपूर्ण कविता ने इतनी उत्सुकता जगा दी कि इनकी प्रेरक कहानी 'आरती' को पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूं | क्या आप इसकी लिंक मुझे दे सकते हैं ? आभारी रहूँगी |
जवाब देंहटाएंBahut achcha likha he.
जवाब देंहटाएं