दो माह पुरानी बात जरुर है मगर समायिक है तो कह दे रहे हैं.
एक शाम नहाने के बाद शीशे में चेहरा निहार रहा था. एकाएक चेहरे पर माहौल देख एकदम से शरमा गये. एक पिम्पल निकल आया था.
पत्नी कहती है कि आज जरा ए शर्ट पहन कर चलो, इसमें बहुत यंग दिखते हो आप.
कभी कहती है कि ऐसे बाल मत झाड़ो, एकदम बुढ्ढे से दिखते हो.
अब उम्र की इस पड़ाव में जहाँ जवानी की आवाजाही कपड़े और बाल की स्टाइल निर्धारित करती हो, एक पिम्पल निकल आना एक आलोकिक एवं अद्भुत घटना ही कहलाई.
पत्नी बाजार गई थी. तुरंत मोबाइल खटखटाया गया. पत्नी को बताया कि ’खुशखबरी सुनो, जवानी लौट आई है’
बाजार से तो क्या ज्यादा बात करती. सोचा होगा कि आज अकेले शाम को घर में छूट गये हैं सो रोक टोक तो है नहीं, ज्यादा पी गये होंगे और मदहोशी में समझ नहीं पा रहे कि क्या बात कर रहे हैं. हाँ हूँ करके फोन रख दिया कि आते हैं, फिर बात करेंगे.
जब लौट कर आईं तो भी हमारा चहकना जारी ही था मगर वो तो आते ही:’ अगर एक पिम्पल से जवानी लौटती होती, तो जितने दुनिया भर के लम्बे लोग हैं, सब अमिताभ बच्चन होते.’
यही आदत इसकी हमें पसंद नहीं है. ये कैसी बात हुई ऐसे खुशी के मौके पर. चुपचाप मूँह बनाकर सो गये.
सुबह उठे तो चहेरे पर दसियों दाने और हाथ और पीठ पर भी. तुरंत घबरा कर पत्नी को उठाया. वो तो उठते ही मुस्कराहट के साथ बोलीं: ’लगता है जवानी फूट पड़ी है.’
जब हमने अपनी तकलीफ बताई कि सहन नहीं हो रहा तब शायद रहम खाकर बोली: ’चलो, हमारे साथ और तुरंत डॉक्टर को दिखाओ, कोई एलर्जी लगती है.’
गये डॉक्टर के पास मूँह लटकाये. दो इन्जेक्शन लगे और शाम तक, हमारे हिसाब से आई जवानी, वापस लौट गई.
अरे, वो तो मेहमान का भी ठीक से स्वागत न करो, मान सम्मान न दो तो लौटना तो तय है ही. मगर ये बात पत्नी को कौन समझाये?
ये भी कोई बात है क्या कहने की कि एक लम्बाई अकेले से अमिताभ बच्चन नहीं बना जाता जैसे अकेले पिम्पल निकल आने भर से जवानी नहीं आती. और भी कई गुण साथ में चाहिये जैसे अदाकारी, सुन्दरता, आवाज में कशिश आदि सब मिलकर एक अमिताभ तैयार होता है.
मगर हमारी जैसी ही सोच के कई लोग अपने ब्लॉग लेखन जगत में भी हैं. एक फ्री का ब्लॉग हाथ लग गया और देवनागरी में टंकण सीख गये, तो लगे साहित्यकार समझने.
साहित्यकार हमारी पत्नी की तरह सोच वाले, वो क्यूँ मानने लगे आपको साहित्यकार.
किन्तु मेरा सोचना यह है कि साहित्यकारों को मेरी पत्नी की तरह इतना तल्ख व्यवहार नहीं करना चाहिये. मैं तो पत्नी से भी कहना चाहता था कि लक्षण दृष्टिगत हुए हैं तो आजमाने में क्या हर्ज है. क्या पता, सच में जवानी लौट आई हो.
वैसे ही साहित्यकारों से भी निवेदन है कि कोई भी बात सिरे से ना खारिज करें. एक बार आजमा कर, पढ़कर तो देखें. शायद वाकई कोई साहित्य रच रहा हो. बाकी बचों को डॉक्टरी परामर्श को भेज देना या अपने हाल पर छोड़ देना. बिना इलाज मर जायेंगे और क्या. मगर जिस में सच में लक्षण उजागर हो जायें, उसे तो मान्यता दे दो.
समझाईश दोनों तरफ के लिए है कि एक पिम्पल से जवानी लौट आई है, ये न समझो और जवानी लौट ही नहीं सकती, ये मान्यता भी मत बनाओ. आजमा कर तो देखो.
चमत्कार होते हैं, इस बात पर विश्वास रखो.
मूड चेन्जर पंक्तियाँ:
यूँ
तन्हा
गुमसुम
बैठा
सोचता हूँ मैं....
कि
क्यूँ
कुछ
सोचता नहीं...
-समीर लाल ’समीर’
लक्मे वाले अब पिम्पल फदफदाऊ क्रीम भी बेचने लगेंगे - नॉट सो यंग जेण्ट्री के लिये! :)
जवाब देंहटाएंलोगों के सहज बोध -सिक्स्थ सेंस आजमाने दें तब न ! मैं भी आस निराश हो रहा हूँ कोई आजमाए तो !
जवाब देंहटाएंवैसे ही साहित्यकारों से भी निवेदन है कि कोई भी बात सिरे से ना खारिज करें. एक बार आजमा कर, पढ़कर तो देखें. शायद वाकई कोई साहित्य रच रहा हो.
जवाब देंहटाएंआपकी बात सौ फीसदी सही है ! कब कौन गुदडी का लाल निकल जाये जी ! क्या पता ? आजमाने में क्या बुराई है !
एक पिम्पल के आने पर जवानी के वापस आने की बात वाकई काफी मौजूं है :)
जवाब देंहटाएं"साहित्यकारों से भी निवेदन है कि कोई भी बात सिरे से ना खारिज करें. एक बार आजमा कर, पढ़कर तो देखें. शायद वाकई कोई साहित्य रच रहा हो."
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात हे समीर लाल जी!
जीदन के खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ आपने बहुत बड़ी बात कह दी है।
आपके स्वास्थ्य लाभ एवं दीर्घायु की कामना करता हूँ।
शुक्र मनाएं पत्नी ने बचा लिया हंसी का पात्र बनने से ..वर्ना लोग तो बुढापे में लौटी जवानी को लेकर क्या क्या ताने नहीं देते ..!!
जवाब देंहटाएंबखूबी वितान रचा जाता है अपने अनुभवों से ब्लॉगिंग के अनुभवों तक का ।
जवाब देंहटाएंमूड चेंजर पंक्तियों ने तो चेंज कर ही दिया - सोचता ही रह गया कि क्यों कुछ सोचता नहीं ।
narayan narayan karo bhai.
जवाब देंहटाएंहमदर्द की साफ़ी पीने से मुंहासे गायब हो जायेंगे। खुद भी पिये और साहित्यकारों को जबरियन पिलायें। प्रिवेन्शन इज वेटर दैन क्योर कानून के तहत!
जवाब देंहटाएंwah ji waah ..........
जवाब देंहटाएंjawaani mubaarak.......
ab jawaani aayi hai to jalvaa to hoga hi......
समीर जी , शुभ प्रभात ,अच्छी रचना है ,पिम्पल से अब भी जवानी का पता चलता है ,वाह ॥
जवाब देंहटाएंलाजवाब अब क्या कहें हाँ सहित्यकार वाली बात बिलकुल सही है कोई जन्म लेते ही साहित्यकार नहीं भाण जाता और हर साहित्यकारगर अपनी पहली रचनायें निकाल कर पढें तो खुद ही समझ जायेंगे कि इन ब्लागर्ज़ मे कितने साहित्यकार छिपे हैं 19---20 साल के बच्चे भी यहां अच्छी रचनायें अभी से लिख रहे हैं तो अगले 10-- 20 वर्ष मे वो कहां पहँच जायेंगे । सही सलाह दी है आपने साहितकारों को आभार्
जवाब देंहटाएंडेन टेणा... टेणा-टेणा-टेणा-टेणा....
जवाब देंहटाएंजवानी जानेमन हसीन दिलरुबा, मिल तो दिल जवां निसार हो गया,
शिकारी खुद यहां शिकार हो गया, ये कैसे कब हुआ.... अब पता चला :)
come on " young man ".....
जवाब देंहटाएंआप ने तो एक नई कहावत रच दी - "एक पिम्पल निकल आने से जवानी लौट नहीं आती", समझाने के लिए आप की कथा सुनाया करेंगे।
जवाब देंहटाएंहम तो अभी भी जवान है.. तो अपने को साहित्यकार ही मानु ना..? :)
जवाब देंहटाएंबहुते गजब की बात बताए हैं. सबको आजमान चाहिये, पर इसको एलर्जी मे तब्दील ना होने दें.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
तेरे ही दम पे तो जमाने का ताज है,
जवाब देंहटाएंजवानी ओ दीवानी, तू ज़िंदाबाद...
अमिताभ इस उम्र में चीनी कम और निशब्द कर सकते हैं तो हमारे गुरुदेव में क्या कमी है...वैसे गुरुदेव आपने पिम्पल को एल्रर्जी में तब्दील कर कई हसीनाओं के अरमानों को दोबारा जागने से पहले ही तोड़ दिया..खैर मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा...
सुनहरी धुप कलियाँ खिलाती ............
जवाब देंहटाएंघनी शाखों में चिड़ियों को जगाती.........
आपकी सुन्दर पोस्ट की बधाई .
आपकी देखा देख मेरे भी एक पिम्पल "निकलूं निकलूं " कर रहा है.........
जवाब देंहटाएंनिकल जाने दूँ या ............?
जवानी की शुरुआत तो कह सकते है ना इसे..तो होने दीजिए ऐसे और कोई लक्षण हो तो अब किसी के पास मत जाइएगा बस जवानी को Maintain
जवाब देंहटाएंकरने की कोशिश कीजिए...
बधाई हो....शुरुआत अच्छी रही..
हे आदि रसिक संप्रदाय के सिरमौर तेरी बेबाक, मस्त अंदाज पे संपत सरल जी का कहा ये शेर याद आया :
जवाब देंहटाएं"बदन होता है, बूढ़ा, दिल की फितरत कब बदलती है,, पुराना कूकर क्या सीटी बजाना छोड़ देता है..:)"
इस प्यारे,चुटीले चिट्ठे से श्रीमान, आपने नवोत्पलों एवं वरिष्ठों दोनों को ही साध लिया है और इस चतुराई में एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी हल कर दिया......वाह....उड़न तश्तरी के कायल है हम सब........
....वैसे किसने कहा कि- आप जवान नहीं दिखते...:)
"किन्तु मेरा सोचना यह है कि साहित्यकारों को मेरी पत्नी की तरह इतना तल्ख व्यवहार नहीं करना चाहिये. मैं तो पत्नी से भी कहना चाहता था कि लक्षण दृष्टिगत हुए हैं तो आजमाने में क्या हर्ज है. क्या पता, सच में जवानी लौट आई हो..."
जवाब देंहटाएंपहले आलोचक की क़द्र करनी ही पड़ेगी...
बहरहाल बहुत गुदगुदाया आपने.
किसी चमत्कार के भरोसे ही तो अपन ठेले जा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंआदमी जवान दिल से होता है सरजी, पिम्पल से नहीं,
जवाब देंहटाएं१०० % गारेंटी है कि आप दिल से बहुत से जवानों से भी जवान निकलेगे |
एक बढ़िया पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई और बहुत बहुत शुभकामनाये |
आदमी जवान दिल से होता है सरजी, पिम्पल से नहीं,
जवाब देंहटाएं१०० % गारेंटी है कि आप दिल से बहुत से जवानों से भी जवान निकलेगे |
एक बढ़िया पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई और बहुत बहुत शुभकामनाये |
क्या करें कि पिंपल तो समाज के मुंह पर निकल आया है... अब ये तो आंख.. आंख की बात है... किसी को जवानी दिखती है और किसी को बीमारी... वैसे बेहतर व्यंगात्मक लेख है...
जवाब देंहटाएंआज पता चला कि हम बचपन में कितने जवान हुआ करते थे...हाथ-गोड़े नाक कान मुंह पीठ हर जगह पिंपल आए दिन निकलते ही रहते थे और घरवाले थे कि आम बगैहरा खाने की रोक-टोक लगाए रहते थे...आज समझ आया कि वे हमारी जवानी से कितना जलते होंगे...
जवाब देंहटाएंहमने भी खुद को आजमाने की सोची है जनाब | सो, रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ रहे हैं | कभी हमारे दर पे भी तशरीफ़ लायें तो शुभानल्लाह |
जवाब देंहटाएंये अपनी बात कहने का अंदाज़ ही आपको हजारों में से अलग करता है...लाजवाब है आपका लेखन...हमारे साथ अगर ये घटना घटती तो हमारी पत्नी तो इस बात पर विश्वास ही नहीं करती.... क्यूँ की जवानी में जो इंसान जवान नहीं रहा वो बुढापे में क्या खा के जवान होगा...:))
जवाब देंहटाएंनीरज
he he he he ....aapki jawaani chali gai? lekhan se lagta nahin :)
जवाब देंहटाएंkoi baat nahin , shukra hai ki kisi allergy ka dusprabhaav nahin hua .
haan aakhiri panktiyaan bahut pasand aai ...... क्यों कुछ सोचता नहीं ।
सुना तो यह था जो लौंट के न आये वो जवानी देखी , जो आके न जाये वो बुढापा देखा टाइटल पढ़ के एक मिनट तो भ्रम हुआ :)
जवाब देंहटाएंएक पिम्पल से मन में डिम्पल पड़ गए. समीर जी, ये तो अच्छा हुआ की आप एक पिम्पल के निकलते ही डॉक्टर के पास नहीं गए, वर्ना बेचारा डॉक्टर आपकी बातों में आकर असली बीमारी को नहीं पकड़ पाता और और बिना बात स्यु हो जाता.
जवाब देंहटाएंमज़ा आया पढ़ने में. रोचक.
जवाब देंहटाएंझकास ठेले है इस बार.....खास तौर से आखिरी पंक्तिया तो ..ऐसी है की ..........कैसी ......बस ....मत पूछिए
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत.... बहुत ही उम्दा. फिर, इस पंक्ति का तो कोई जवाब नहीं, 'जवानी फूट पड़ी है.' वैसे भी गोरखपुर वाले बूढे नहीं होते. भाई, जब मैं अब तक बूढा नहीं हुआ तो आप कैसे हो जायेंगे? आप अमिताभ नहीं हुए तो क्या हुआ, शंकर महादेवन होते होते रह गये, इसका दुःख नहीं, खुशी होनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंSAMEER BHAI ....... AAPKO JAWAANI KA PRAMAAN LENE KE LIYE PIMPLE KI KYA JAROORAT PADH GAYEE ....... AAP TO VAISE BHI MAASHAA ALLA AMITAABH KO MAAT KAR RAHE HO .........
जवाब देंहटाएं"साहित्यकार हमारी पत्नी की तरह सोच वाले, वो क्यूँ मानने लगे आपको साहित्यकार."
जवाब देंहटाएंमाने ब्लॉगरों का अनुमोदन पर्याप्त नहीं हैं । पत्नी का सर्टिफ़िकेट जरूरी है । साहित्यकार होने के लिये ।
ऐसे पतियों को डाक्टर के पास ही ले जायेंगी पत्नियां ।
हल्दी का लेपन करें।
जवाब देंहटाएंयूं पुनर्योवनप्राप्ति की हार्दिक शुभकामनाएं।
ईश्वर अब जवानी की दुश्वारियों से बचाए।
चढ़ी जवानी ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस बात से पूर्णत: सहमति है कि किसी को सिरे से नकारने की अपेक्षा अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका तो मिलना ही चाहिए....बाकी तो वक्त स्वयं इस बात का निर्णय कर देगा कि कौन साहित्यकार कहलाने के लायक है और कौन सिर्फ टाईमखोटीकार......
जवाब देंहटाएं"दो इन्जेक्शन लगे और शाम तक, हमारे हिसाब से आई जवानी, वापस लौट गई"
जवाब देंहटाएंबुरा हो उस डाक्टर का जिसने क्यूट पिम्पल को डिम्पल बना दिया। हाय जवानी...तू लौट क्यूं गई:)
आपकी चिरपरिचित शैली और धारदार रचना कर्म...वैसे समीर जी अभी तो आप जवान हैं...
जवाब देंहटाएंएक पिम्पल आदमी को जवान बना देता है :)
जवाब देंहटाएंअरे तो क्या आप अपने आप को बूढा मानते हैं। मेरी दृष्टि में आप ब्लॉग जगत के सबसे युवा ब्लॉगर हैं।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
Aapka 'comment box' kholte kholete, ham to boodhe ho gaye..aap to jaise the waise hee hain...!
जवाब देंहटाएंKabhi, 50 to kabhi 75...! Ye bhee kahungee,ki, aap jis tarah likhte hain, wo waqayee daad dene ke qabil to hota hee hai..na sochte hue bhi soch ke hee likha hai!
मेरी दादीमां कहा करते थे कि 100 साल के बाद इंसान को दतुलीयाँ फुट जाती हैं। पर खील के बारे में !!!!
जवाब देंहटाएंऐसा तो नहिं कहा!!!
चलो भाभीजी ने बचा लिया तो सही।
मज़ा आ गया वाक़ई!!!
पिम्पल से साहित्यकारो तक बहुत खूब साहब , जब बात निकली है तो दूर तक जायेगी । सहज बातों को आप एक बहुत ही विचारात्म पोस्ट का रूप दे देते है । यही बात आपको दूसरों से अलग करती है
जवाब देंहटाएंशुक्र है पत्नी ने बचा लिया ,पत्नियां ऐसी ही होती हैं सही समय पर बचा लेती हैं
जवाब देंहटाएंअसल में ये उम्र भी कुछ वैसी ही है जैसी कि बचपन कभी आप बड़े होते हैं कभी बच्चे। जैसे कि मेरे पापा।कभी तो कहते हैं अभी तो मैं जवान हूँ। और कभी ख़ुद को मज़ाक में बूढ़ा बाप कहते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंआपकी बात खारिज कौन कर सकता है . जनाब जब आप जवान हो गए है तो यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है . जवान होने का नुक्सा जरुर बताये जी .
जवाब देंहटाएंअजी हमारे सामने तो आप जवान ही है, बहुत खुशी हुयी आप की पल भर की जवानी की खवर सुन कर अब कोई किस्स भी सुना दे... तो मजा आ ्जाये
जवाब देंहटाएंजवानी के वापस लौटने और फिर फूट पड़ने का प्रसंग मज़ेदार लगा।
जवाब देंहटाएंआप साहित्यकार का टैग लगाने के लिए इतने आतुर क्यूँ हैं खासकर तब जब लोग समीरलाल ब्लॉगर को इतना पसंद करते हैं।
कहते हैं - लाइफ़ बिगन्स एट फ़ोर्टी. और आप फ़ोर्टी सिक्स में ही जवानी के जाने और फ़िर लौटने की बात कर रहे हैं? कमाल है.
जवाब देंहटाएंएक पिम्पल फिर से जवान बना देता है . उम्र से कम महसूस कीजिये पिम्पल को पिम्पल ही रहने दीजिये
जवाब देंहटाएंहा हा ! जवानी फूट पड़ी :)
जवाब देंहटाएंपढते तो नियमित हैं लेकिन मूड ऐसा जो टिप्पणी न करने देता लेकिन आज मूड चेंजर पंक्तियों ने मूड चेंज कर दिया...
जवाब देंहटाएंअमिताभ वाली चुस्की बहुत ही जबरदस्त है। मुझे तो एक गीत भी याद आ गया..जो पंजाबी में है...न मिट्टियां फरोल जोगिया..नीं लभणे लाल गवाचे...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना हमेशा जवान होती है...ऐसी कि कई युवा भी गश खा जाएँ...इसलिए मैं तो सदा की तरह नतमस्तक...
जवाब देंहटाएंसुनिये मेरी भी...
जवाब देंहटाएं.
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बेहतरीन पोस्ट,
सहमत हूँ इस बात से कि एक दो बार तो हर किसी को आजमाना चाहिये।
प्रवीण शाह
रोज्मर्रा की घटनाओं के बहाने जबर्दस्त रूपक रचा है आपने.अब भी जो आपको साहित्यकार न माने..वो जाये तेल लेने ;-)
जवाब देंहटाएंमूड-चेंजर बहुत सही है..मेरा अभी ९९% यही हाल रहता है.
बहुत खूब……………………हा हा हा ।
जवाब देंहटाएं"यूँ
जवाब देंहटाएंतन्हा
गुमसुम
बैठा
सोचता हूँ मैं....
कि
क्यूँ
कुछ
सोचता नहीं..""
अब क्या ही बोलू, मेरी आदत है चीजो को spoil कर देता हू....आप ऐसे ही लिखते रहिये और ऐसे ही यन्ग रहिये :)
अनूप जी की टिप्पणी हमेशा की भांति काबिल-ए-गौर है, आज़माईयेगा अवश्य, जवानी तो ठीक है लेकिन पिम्पल चेहरे पर नहीं होने चाहिए! :)
जवाब देंहटाएंसाहित्य के बारे में भी आप सही कहे हैं, अब साहित्य का मापदंड क्या है? किसको साहित्य कहा जा सकता है और किसको नहीं? और यह सर्टिफिकेट कौन देता है कि फलानी रचना साहित्य है और फलानी रचना साहित्य नहीं है? :)
biwiyon kko ghar ki murgui daal barabar samajhne ki aadat hoti hai.
जवाब देंहटाएंbhabhi ji ko batayen ki aap international figure hain. so atleast gaahe ba gaahe jawan mehsoos to karne den.
सोचता हूँ मैं....कि क्यूँ कुछ सोचता नहीं.."भाईसाहब मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को पढ़ाते हुए इन पंक्तियों का बखूबी उपयोग किया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा व्यंग पढ़ कर मजा आ गया
जवाब देंहटाएंbahut hi rochak post..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया लगा! बड़ा मज़ेदार! जवानी हमेशा बरक़रार रहनी चाहिए और उसके लिए अपने सेहत पर पूरी तरह से ध्यान देना चाहिए! अगर एक pimple भी आ जाए तो उसे किसी भी तरह से दवाई लगाकर ठीक करनी चाहिए!
जवाब देंहटाएंमेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
So funny!
जवाब देंहटाएंमगर हमारी जैसी ही सोच के कई लोग अपने ब्लॉग लेखन जगत में भी हैं. एक फ्री का ब्लॉग हाथ लग गया और देवनागरी में टंकण सीख गये, तो लगे साहित्यकार समझने. .......ई बात तुम हमरे लिए ही कहे हो भईया......हम सब जानते हैं......कह लो....कह लो......अभी तुम बिलागारों के अमिताभ बच्चन हो ना....कुछ भी कहोगे.....तो ये कमबख्त सारे बिलागर मान भी लेंगे....इ तो वक्त का खेला है भईया....रही पिम्पल्स की बात....तो ऊ ससुरी तो हमको भी ई चालीस का उअमर में धड़ल्ले से रोज दुई-चार ठो निकलती रहती है....की हमको देखने वाले रोज हैराने होते रहते हैं....कि बाप रे बाप....ई का हो रहा है....ऊ तो सार कान के पास की चांदी.....अऊर इ ससुरी खिचडी दाढ़ी अऊर मूंछ हमरी चुगली कर देती है....वरना भईया समीर हम भी बाताये देते कि हमहूँ कोई कम जवान नहीं....अरे....अरे.....बंद कर रहा हूँ भईया.....ससुरी बीवी आ रही है......बाकी एगो बात सोच-सोच कर हम बड़ा ही परेशान हूँ.....कि जब हम अऊर तुम मिलेंगे....तब गला मिलते वक्त झूला झूल लेंगे....क्योंकि सीना के निचे वाला हिस्सा तुमरा भी....""...........""......अऊर हमरा भी......""........."".....है......!!!! हे....हे....हे....हे....हो....हो....हो...हो...हा...हा...हा...हा...हा...देखो केतना टाइम लगाए हम तुमको टिपियाने में.....कभी तुम करते हो अयिसा.......कौनों पर.....!!!!?????
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी सहेज दी गई है और ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखने लगेगा.........bhoot sabke liye ee sab anushaashan nahin chaltaa....ham to aayise bhi tipiya sakte hain.....magar hataao.....toom logan kaa disipleeeeeeeen kahe ko tode....!!
जवाब देंहटाएंमान गये भाई साहब! आपका कोई जवाब नही।
जवाब देंहटाएंआप तो सदाबहार है जी ..:) कोई शक ??:)
जवाब देंहटाएंपोस्ट तो पोस्ट ..टिप्पणियाँ भी मस्त है ..वाह! आनन्द आ गया :-)
जवाब देंहटाएंएक बार गयी हुई जवानी सिर्फ ख्वाबों में हि वापस आ सकती है हकिकत में नहीं
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी कि तरह हमेंशा कि तरह एक ताजगी भरी पोस्ट ! भागदौड भरे इस जिन्दगी के तपते रेगिस्तान में एक ओस कि बुंद कि तरह जो न केवल सुकुन का अहसास कराती है बल्कि मानसिक हलचल को भी व्यवस्थ्ति करती है
तभी तो कहते है ओल्ड इज गोल्ड
धन्यवाद
तो फिर लीजिए हमारी ओर से बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह !!! क्या बात कही है आपने....वाह !!!
जवाब देंहटाएंचिंता की बात नहीं जो चिरंतन है,वह है,भले कोई मने या न माने....वैसे देर सबेर मानेंगे ही...
जवानी लौट आई
जवाब देंहटाएंफिर वो कहानी लौट आई
बड़े खुश थे , आप पिम्पल पे
इतने में वो बेगानी लौट गयी
बहुत बढ़िया पोस्ट !!
मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंजीवन के अनुभवों के साथ बहुत बड़ी बात कह दी है।
सुन्दर पोस्ट की बधाई
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जवाब देंहटाएंमैं भाभी के साथ हूँ, भला पिम्पिल दिखा कर कोई अपनी जवानी का वास्ता देता है, पत्नी को ?
गोया पिम्पिल सूखा, तो ज़वानी भी सूख गयी ?
ना जी ना, आप फुड़िया छाप बिलागर कम साहित्यकार जियादा पर निशाना साधे पड़े हो । हम सब बूझते हैं । पर कुछ बोलेंगे ना, ब्लाग साहित्य है या नहीं.. इस पर अच्छी भाँग घुट चुकी है । तो... इस कुँये में भाँग ही पड़ी समझो । आगे लिक्खा कम समझना जियादा ! जॉय रॉम जी की !
दर्पण भाई,
जवाब देंहटाएंमैंने आपका फोन नम्बर गलती से कई ऊट-पटांग लोगों को दे दिया है
मेरी बेवकूफी थी,
आज के बाद मैं किसी को भी किसी का फोन नंबर नहीं दूंगा....
देना भी नहीं चाहिए...
बहुत बेकार बात होती है ये....
हमें कोई हक़ नहीं के किसी को भी किसी का भी फोन नंबर दे डालें...!!
आप इस पोस्ट पे जरूर आओगे..
इस लिए यहाँ पे लिखा है..
आय एम सॉरी अगेन....!!!
Bat to badi majedar kahi apne...kahin multinational company wale apka idea na chura len.
जवाब देंहटाएंpimple pimple se main poochhoon yowan mera kahan hai koee batade.
जवाब देंहटाएंsameer ji, der se aya, aur soch raha hun itti badhia rachna par nazar kyun nahin gai.
जवाब देंहटाएंbahut badhia likha hai aapne aur use blogging se jod kar sarthak kar diya.
पता नही क्यो इंजेक्शन लगवा आये!! जवानी सुहाती नही क्या!! और फिर जवानी लौटे उसकी जिसकी गयी हो ---
जवाब देंहटाएंबहुत नेक सलाह दे गये आप
यूँ जवानी लौट के आई...
जवाब देंहटाएंPar itni jaldi chali bhi gayi?
समीर जी,
जवाब देंहटाएंजवानी तो दीवानी होती है, कभी भी आ सकती है। बहुत बढिय़ा :)
ye to bahut bura hua jo jawani aakar chali gayi :) :)
जवाब देंहटाएंसमीर जी ,वाणी गीत जी ने सही कहा,पिम्पल के जरिये आपकी जवानी लॊटने का वाकिया रोचक रहा
जवाब देंहटाएंहमारी नजर में तो आप वैसे भी सबसे युवा ब्लॉगर हैं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दद्दा अगर आपकी जवानी संन्यास न ले, तो हमारी जवानियों को कौन पूछेगा? सीनियर्स को आने वाली पीढियों का ख्याल रखना चाहिए के नईं? सचिन तेंदुलकर की राह चलकर किसी मनोज तिवारी, किसी रॉबिन उथप्पा का किरअर खराब नहीं कर रहे क्या? वैसे, हमें आपसे कोई खतरा नईं, बट परंतु... ??
जवाब देंहटाएं"यूँ जवानी लौट के आई..."
जवाब देंहटाएंsameer bhai,
jawaani gayi hi kab thi jo laut ke aayi.lekin ye to batao ki aap ko kisne bataya ki jawaani laut aayi.bahut khoob badhai!!
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
क्या बात कह डाली पिंपल और जवानी के बहाने महाराज। कौन टाइप के होते जा रहे हो यार आप ?बहुत ही बड़े साहित्यकार वाहित्यकार न बन जाना ऐसे कर्मों में। हाँ हम सही कह रहे हैं। क़दम उसी दिशा में अब तेज़ी से बढ़ रहे हैं आपके। ज्ञानपीठ वालों को पता भर चलने की देर है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआज मज़ाक समझेंगे लोग मगर वो दिन आएगा ज़रूर देख लेना। शुभकामनाएँ।
समझाईश दोनों तरफ के लिए है कि एक पिम्पल से जवानी लौट आई है, ये न समझो और जवानी लौट ही नहीं सकती, ये मान्यता भी मत बनाओ. आजमा कर तो देखो.
जवाब देंहटाएंभाई सौ बात की एक बात.
और शायद यह एक सौ एकवीं टिपण्णी भी है. यानि कि सेंचुरी अप
बधाई ही बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अरे जनाब !
जवाब देंहटाएंदिल जवान हो तो उम्र का क्या है !
पिम्पल शिम्पल मैं क्या धरा है !
वैसे लेख पढ़ के एकदम मज़ा ही आ गया हमेशा की तरह !
अगले का इंतज़ार रहेगा :)
अब बताइए, इतनी बेहत्रीन सोच के बाद आप कह रहे हैं कि-
जवाब देंहटाएंयूँ तन्हा गुमसुम बैठा सोचता हूँ मैं.... कि क्यूँ कुछ सोचता नहीं.../
जी हां चत्कार होते हैं, यदि नहीं होते तो उडन तश्तरी में बैठ ही नहीं पाते।
bahut achha samjhaaya hai aapne... thanks
जवाब देंहटाएंवैसे ही साहित्यकारों से भी निवेदन है कि कोई भी बात सिरे से ना खारिज करें. एक बार आजमा कर, पढ़कर तो देखें. शायद वाकई कोई साहित्य रच रहा हो.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही कहा आपने....
क्या पता?...कल को मैँ भी.... :-)...
हाय राम!...मुझे तो अभी से शर्म आने लगी
बढ़िया,पढ़ कर ऐसा लगा की यह तो बहुतो की आपबीती है.आपने बहुत ही खूबसूरती से तेजी से बदलती मान्यताओ को चंद पंक्तियो में समेट लिया.
जवाब देंहटाएंअरे ये क्या हुआ ...आप अमिताभ से कम न हैं ....हिन्दी ब्लॉग वर्ल्ड के डॉन ही तो हैं ...
जवाब देंहटाएंस स्नेह,
- लावण्या
bahut shandar
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