जिसको देखो बस एक लाईन बोल कर भाग जाता है कि साहित्य नहीं रचा जा रहा है ब्लॉग पर.
मगर कोई ये बताने तैयार ही नहीं कि आखिर साहित्य होता क्या है, क्या है इसकी परिभाषा और हमें क्या करना होगा कि साहित्य रच पायें. बहुत बार और बहुत जगह जाकर पूछा, रिरिया कर पूछा, गिड़गिड़ा कर पूछा मगर जैसे ही पूछो कि आखिर साहित्य है क्या, भाग जाते हैं. बताते ही नहीं..मानो सरकार बता रही हो कि भारत का विकास हो रहा है. पूछो कहाँ, तो भाग जाते हैं? आप खुद खोजो.
अरे, हम खुद ही खोज या जान पाते तो आपको इतना कहने की तकलीफ भी न देते कि साहित्य नहीं रचा जा रहा है. रच ही रहे होते और तब आप इतना बोलने के पहले ही भाग लिये होते. प्रेम चन्द के गुजर जाने का दुख आज से पहले कभी इतना ज्यादा नहीं हुआ. वो होते तो उनसे पूछ लेते.
बहुत शोध किया. यहाँ वहाँ पढ़ा. एक दो वीरों ने इसे परिभाषित करने की नाकाम कोशिश भी की. पिछले वाक्य में नाकाम अंडरलाईन मानें. कर नहीं रहे बस आप मानें. जब वो बिना ’साहित्य क्या है’ बताये बता सकते हैं कि ’यह साहित्य नहीं है’ तो हम भी बिना अंडर लाईन लगाये बता दे रहे हैं कि नाकाम शाब्द अंडारलाईन है. इस पर भी मन न भरा हो तो और लो, बोल्ड भी है.
भारत के विकास को लेकर सोचता हूँ कई बार इसी तरह. किसको विकास मानूँ: बढ़्ती मँहगाई को, अवय्वस्था में आये इजाफे को, बिजली पानी की अनुपलब्धता की बढ़ती दर को, गिरते सेन्सेक्स को, एकता कपूर के सीरियलस में बढ़ते एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयरर्स को, बढ़ती किसानों की खुदकुशी को या फिर बढ़ती नेताओं की ढिटाई और उनके बढ़ते भ्रष्टाचार को.
जैसे साहित्य की परिभाषा हो वैसे ही कोई ज्ञानी बता जाता है कि भारत भी विकास की राह पर है. विनती बस इतनी सी है कि बम्बई, दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास और बैंगलोर को ही भारत मानें और उसकी भी पाँच प्रतिशत आबादी को. विकास के आंकलन में कृप्या ट्रेफिक जाम, बिजली, पानी आदि को रोड़ा न बनायें, वह इस आंकलन में शामिल नहीं है. यह सब सामन्य परिस्थियाँ हैं जिसके आप सब आदी हैं. इसमें सिर्फ मॉल, कॉल सेन्टर (प्राफिट वाले) अंबानी लेवल के उद्योगपति, अमर सिंग लेवल के नेता, लीलावति अस्पताल का वी आई पी एरिया, बिना गिरा हुआ दिल्ली मेट्रो का भाग, अम्बे वेली पूणे का रहवासी इलाका, बिग सिनेमा, नेता घराने के नव नेता, मल्लिका सेहरावत, मुटुकनाथ जूली कथा, कानून की धारा ३७७, ब्रेन मैपिंग, चन्द्र यान के साथ चाँद और फिज़ा कथा, मकाओ में अंग्रेजी में हुआ भारतीय हिन्दी सिनेमा का समारोह, चीयर बालायें (२०-२० कुछ दिन इस लिस्ट से अलग किया गया है), पेज ३ पार्टियाँ एवं विजय मलैय्या, आदि आदि को शामिल माना जाये. देखिये, भारत कितना विकास कर गया है.
कहते हैं जल्दी ही विकसित भारत में व्यक्ति को नाम की बजाय यूनिक नम्बर आईडेन्टिटी से जाना जायेगा. अरे, जहाँ इंसान परेशान हो कर चन्द रुपये में किडनी बेच दे रहा है, वहाँ नम्बर कब तक सहेजे रहेगा? पुलिस की गोली से मरेगा कोई और जेब से प्राप्त आई डी से मृत दर्ज होगा कोई. खैर, उम्मीद तो अच्छे की ही होना चाहिये, तब अच्छा ही होगा.
तो ऐसे ही मानने न मानने के चक्कर में, पत्रिकाओं के गरिष्ट ओह नो!! वरिष्ट साहित्यिक संपादकों से संबंधो के आभाव में, आलोचकों और अनेक साहित्यकारों के कम्प्यूटर ज्ञान के आभाव में, ब्लॉग पर साहित्य नहीं रचा जा रहा है विषय पर सारे ब्लॉगर चिंतित हैं.
चिंता है तो कभी न कभी निवारण भी होगा ही, यही एक आशा की किरण है जो जिन्दा रखे है इस अफलातूनी लेखन को.
खैर, जो अब तक प्राप्त जानकारी के आधार पर एक बुद्धु ब्लॉगर (साहित्यकारों के नज़रिये से) की परिकल्पना है साहित्य के बारे में, उसे देखें:
अब जो है, जैसा है. वैसा है.
हमने अपनी तरफ से कोशिश की है यह बता पाने की कि कविता क्या है. कुछ हद तक तो बता ही पाये होंगे, आप देखिये.
कविता क्या है ?
कविता है,
शब्दों मे व्यक्त
भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार
कविता है
मन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
कविता है
संस्कृति की वाहक
भ्रांतियों की निवारक
और क्षुब्ध ह्रदय में
चेतना की कारक
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई
कविता
मिटाती है संशय
बढ़ाती है
आदि से अंत का परिचय
जगाती है निश्चय
और
अमावस में
लाती है सूर्योदय
कविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि
इसका रचयिता कवि
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
-समीर लाल ’समीर’
नोट:
१. कोई भी प्रोफेशनल कार्टूनिस्ट इसे हमारे द्वारा किया गया उनके क्षेत्र का अतिक्रमण न मानें, ये कोशिश तो हम साहित्य के क्षेत्र में करेंगे. :)
२. यह आलेख कल के लावण्या जी के आलेख के पहले ही लिख गया था और इसलिये उसकी विषय वस्तु यह यह कतई प्रभावित नहीं है.
कार्टून बहुत मज़ेदार है जी
जवाब देंहटाएंअब हमारी भी समझ में आगया कि सड़कों के साइन बोर्ड को साहित्य कहते है
ओह! तो यहां बड़े-बड़े दिग्गज भी ये पूछ रहे हैं कि साहित्य क्या है? अब अपना क्या होगा? ऐ मेरे दिल कहीं और चल, इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
जवाब देंहटाएंकविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि
सही कहा।
भारत में विकास का बहुत खूबसूरत विश्लेषण किया है समीर जी. आप विदेश में रहकर देश के बारे में इतनी जानकारी रखते हैं, इतना तो यहाँ रहने वाले भी नहीं सोच पाते.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता तो लाज़वाब है. यूँ कहिये आपने हमारे भी मन की बात कहदी.
आज शायद सबसे पहले आप के ब्लॉग पर आने का अवसर मिला है.
जो रचनाये लेखको से सरकार खरीद कर छापती है उसे साहित्य कहते है . और जो आम आदमी की समझ में न आये और उसकी समीक्षा लिखी जाए वह ही साहित्य कहलाता है
जवाब देंहटाएंअजी थक गये पर कविता ज़ोरदार लिख दी है!
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें
साहित्य ..हाय मैं तो अब तक इस शब्द का मर्म समझे बगैर ही हिंदी और अंगरेजी की हजार पुस्तकें पढ़ गया .....अब तो नहीं पहुँगा जी..बिलकुल भी नहीं एक लाइन भी नहीं..न न जोर मत डालिए..क्या कह रहे हैं..मुझे इस जन्म में पता ही नहीं चलेगा की साहित्य क्या है..तो फिर इस भरोसे में यदि पढ़ना छोडा तो हो गया बंटाधार ..चलिए फिर ठीक है ..मैं दोनों .अजी ब्लॉग और साहित्य को ..दाल चावल की तरह मिक्स करके पढूंगा...फिर तो हजम होगा न ..
जवाब देंहटाएंकविता की परिभाषा गजब की है...
हम भी तो ढूँढ़ रहे हैं कि कोई तो बताये ये ब्लोग को साहित्यिक कैसे बनाया जाये ? आपको मिले तो हमें भी बताइयेगा ।
जवाब देंहटाएंहम भी यहाँ साहित्य की परिभाषा ढूंढ़ते ढूंढ़ते ही आये था शायद बाबा समीरानंद के आश्रम में ही मिल जाए | हाँ भारत जरुर विकास कर रहा है देखिए न कैसे विकसित देशों की पाश्चात्य संस्कृति की बराबरी करने में लगा है |
जवाब देंहटाएंब्लाग में साहित्य नहीं रचा जा रहा .. तो क्या हुआ .. कुछ तो रचा जा रहा है .. चलते रहें .. थक जाने से कैसे काम चलनेवाला ?
जवाब देंहटाएंसमीर जी हम भी थक गए हैं अ़ब तक बताते बताते की साहित्य वही नहीं है जो हिन्दी विभागों की चारदीवारी में भाखा जाता है और चंद हिन्दी साहित्य (?) के डिग्रीधारी उसका कलेवर बनाते बिगाड़ते हैं ! चिट्ठा साहित्य क्यों ऐसे साहित्य की बराबरी की कुंठा पाले !
जवाब देंहटाएंकविता की इतनी कवितामय व्याख्या पहले कभी नहीं पढ़ी !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
किस लफड़े में पड़े हैं भाई साहब .... बढ़िया लिख रहे हैं ..... लिखते रहिये ....
जवाब देंहटाएंऔर "कविता क्या है" ..... बहुत सुन्दर लिखा है. बहुत ही बढ़िया.
ओपन सोर्स से डरा माइक्रोसोफ़्ट जैसी हरकतें करता रहता है, ब्लागज़ को देखकर-सुनकर वैसी ही हरकतें करते रहते हैं ये बेचारे खिसियाए से तथाकथित साहित्यकार.
जवाब देंहटाएंइंटरनेट की ताकत से डरे बैठे हैं..अब खंभा न नोचें तो क्या करें.
चिंता है तो कभी न कभी निवारण भी होगा ही,
जवाब देंहटाएंआप चिंता बनाए रखें।
चीजें जैसे चल रही हैं हमेशा नहीं चल सकतीं। उन्हें बदलना होगा।
टिप्पणियां जो सैकड़ों की संख्या में आयें
जवाब देंहटाएंवो भी साहित्य ही कहलायें
जिससे लिखने वाले
और पढ़ने वालों का हित सध जाए
वही साहित्य कहा जाए।
समीर लाल जी!
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्तियों का नाम,
शब्दों का आयाम,
लो बन गया साहित्य,
सुन्दर-सुखद-ललाम।
साहित्य क्या है?
कविता क्या है?
यह आज ही जाना।
बढ़िया पोस्ट है,
आभार,
अरे! आपने तो बडा गम्भीर विषय छेड दिया.बडे बडे विद्वान आज तक एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दे पाये. अरे साहब ये तो नेति-नेति है. उन विद्वानों से बहुत अच्छी परिभाषा तो आपने अपनी कविता के माध्यम से बता दी.
जवाब देंहटाएंव्यंग्य जोरदार है - बिना गिरा हुआ दिल्ली मेट्रो का भाग - खास पसंद आया!
जवाब देंहटाएंआपको शायद ''गर्भनाल'' पत्रिका में पढ़ा है .........बहुत बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएं२१ वी सदी में हमारे देश में व्यक्ति की किडनी का भी यूनिक आईडेन्टिटी नम्बर होगा .सचमुच आज भावुक कर देने वाली पोस्ट है क्या कहें साहित्य और साहित्यकारों की मानसिकता को ? अपने राम ब्लागिंग में अपने विचार अभिव्यक्त करते रहें यही सबसे बड़ी उपलब्धि और आत्मसंतुष्टि होगी....... आपकी पोस्ट पर बहुत लिखने का मन हो रहा है पर समय हो रहा है जाने का बाद में फिर से पढूंगा . आभार. शुक्रिया धन्यवाद. ..... पर थकिये नहीं
जवाब देंहटाएं२१ वी सदी में हमारे देश में व्यक्ति की किडनी का भी यूनिक आईडेन्टिटी नम्बर होगा .सचमुच आज भावुक कर देने वाली पोस्ट है क्या कहें साहित्य और साहित्यकारों की मानसिकता को ? अपने राम ब्लागिंग में अपने विचार अभिव्यक्त करते रहें यही सबसे बड़ी उपलब्धि और आत्मसंतुष्टि होगी....... आपकी पोस्ट पर बहुत लिखने का मन हो रहा है पर समय हो रहा है जाने का बाद में फिर से पढूंगा . आभार. शुक्रिया धन्यवाद. ..... पर थकिये नहीं
जवाब देंहटाएं२१ वी सदी में हमारे देश में व्यक्ति की किडनी का भी यूनिक आईडेन्टिटी नम्बर होगा .सचमुच आज भावुक कर देने वाली पोस्ट है क्या कहें साहित्य और साहित्यकारों की मानसिकता को ? अपने राम ब्लागिंग में अपने विचार अभिव्यक्त करते रहें यही सबसे बड़ी उपलब्धि और आत्मसंतुष्टि होगी....... आपकी पोस्ट पर बहुत लिखने का मन हो रहा है पर समय हो रहा है जाने का बाद में फिर से पढूंगा . आभार. शुक्रिया धन्यवाद. ..... पर थकिये नहीं
जवाब देंहटाएं२१ वी सदी में हमारे देश में व्यक्ति की किडनी का भी यूनिक आईडेन्टिटी नम्बर होगा .सचमुच आज भावुक कर देने वाली पोस्ट है क्या कहें साहित्य और साहित्यकारों की मानसिकता को ? अपने राम ब्लागिंग में अपने विचार अभिव्यक्त करते रहें यही सबसे बड़ी उपलब्धि और आत्मसंतुष्टि होगी....... आपकी पोस्ट पर बहुत लिखने का मन हो रहा है पर समय हो रहा है जाने का बाद में फिर से पढूंगा . आभार. शुक्रिया धन्यवाद. ..... पर थकिये नहीं
जवाब देंहटाएंसाहित्य का तो पता नहीं कार्टूनित्य में आपका लोहा मानना पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंऔर लो यह बोल्ड भी है पर हंसी शुरू हुई और साइनबोर्ड तक आते आते तो मैं हंसी के मारे औंधा हो गया।
जवाब देंहटाएंवैसे अभी साहित्य के लिए काफी इंतजार करना पड़ेगा ब्लॉगिंग को, जब तक पुराने मठाधीश यहां नहीं पहुंच जाते। :)
नई तकनीक ने तो बेड़ा गर्क कर दिया है। :)
एक बात और समीर भाई थकिए मत ऊर्जा बनाए रखें। कभी भी टंकी पर चढ़ने की नौबत आ सकती है। थक गए तो चढ़ेंगे कैसे ?
जवाब देंहटाएंकविता है
जवाब देंहटाएंमन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
waah bahut khub,cartoon satik:):)
श्री समीर जी,
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे,
बहुत ही सटीक प्रश्न है कि साहित्य क्या होता है? शायद ब्लॉग्स को कोसने वाले भी इस प्रश्न का उत्तर दे पाने में बगलें झांकने लगे या गलने लगे(महाभारत कालीन एक यक्षकथा के संदर्भ से)।
यह एक सतही सोच या पुरातनपंथी नज़रिया है जो साहित्य को कभी सुलभ नही होने देता उसे व्याकरण, वाद, शैली और भाषा की बेड़ियों से जकड़ कर रखता है और रचनाकार को अपना दास बनाकर रचना को अपने आँगन नचवाना पसंद करता है।
मैं व्यक्तीगत तौर पर यह मानता हूँ कि अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता जो हमारे मौलिक अधिकारों में निहित है अब कहीं जाकर मिल पायी है, दुनिया के प्रथम ब्लॉगर को मेरा कोटि-कोटि नमन। ब्लॉग है; नही तो इस आपा-धापी से भरे प्रतिस्पर्धा के युग में ना जाने कितनी जिन्दगियाँ अपने विचारों को व्यक्त ना कर पाने के अपराधबोझ से दबी अवसाद का शिकार हो जाती।
कविता की नवेली परिभाषा के लिये साधुवाद और ब्लॉगर्स की अगुवाई के लिये शुक्रिया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
'Sahitya' Dayitva hai!
जवाब देंहटाएंManav aur manavata ke udhaar evam uthann; manas ke parishkar evam parivardhan hetu abhivyakt koi bhi bhav 'Sahitya' hota hai!
Sahityik sakriyata ke liye kuch anshdaan mera bhi hai ...aap mere blog par use paa sakte hain...pata hai:
http://www.yoursaarathi.blogspot.com/
Aaapka
Neelesh Jain
Mumbai
अप्प्न को भी नई पता ये ह्टेला साहित्य किधर मिलता है?पता लगे तो बताना दो चार किलो अप्प्न भी खरीद लेगा।
जवाब देंहटाएंसाहित्य जो है वह है. ब्लॉग का अपना महत्त्व है और ताकत भी. विवाद ही समझ से बाहर है, जब विद्याएं दो है.
जवाब देंहटाएंकार्टून का जवाब नहीं...
जवाब देंहटाएंऔर उससे भी ज्यादा अच्छी है आपकी रचना....
मीत
समीर जी, वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं…Ravi Srivastava
हम क्यूँ साहित्य की व्याख्या साहित्यकारों की तरह करें या विश्लेसकों की तरह खोजें. हमे तो आदत सी हो गयी है साथ साथ साहित्य रस लेने की. क्षमा करे, हम तो ऐसे कवि / लेखक हैं, हमे तो हर जगह साहित्य नज़र आता है.
जवाब देंहटाएं- जैसे की राईटर बनाम कंप्युटर
कभी हँसाता
जवाब देंहटाएंकभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया आपने, आभार्
क्या समीर भाई आप भी।
जवाब देंहटाएंमैं बताता हूं साहित्य क्या है। हम दिन भर जो बकबकाते रहते हैं वही साहित्य है। बस सलीके से लिखा जाए। और, लिखा तो आजकल सबकुछ सलीके से ब्लॉग पर ही जा रहा है। तो, अब थकिए मत और लिखिए। हमारा आपका लिखा साहित्य है। अभी कोई नहीं मान रहा हम भी जब प्रेमचंद्र की तरह निपट जाएंगे या बुढ़ऊ साहित्यकार हो जाएंगे तो, सब मान लेंगे।
अब देखिए ई सब लिखने पे भी कोई 'साहित्यकार' विरोध न जता दे।
लो जी आपने भी साहित्य की एक श्रेणी" व्यंग्य "लिख दिया !
जवाब देंहटाएंसाहित्य वो हवा है जिसे सब महसूस कर रहे हैं पर पकड़ नहीं पा रहे हैं.....और इस लाइन के बाद हम भाग रहे हैं...:)
जवाब देंहटाएंविकास और साहित्य की असली नब्ज पकड़ ली आपने तो :)
जवाब देंहटाएंसाहित्य क्या है ये तो कोई भी नहीं बता पायेगा............ जो कहता है बस वो ही बता सकता है तो अपने आप को बेवकूफ बना रहा है........... साहित्य भी प्रेम की तरह है जिसको परिभाषित करना सूरज को दीपक दिखाना है.......... कार्टून लाजवाब है
जवाब देंहटाएंकविता क्या है यह तो समझ में आ गयी. अब देखें कहाँ से साहित्य पर शोध प्रबंध प्राप्त होता है.
जवाब देंहटाएंउम्मीद है...
जवाब देंहटाएंकि कभी तो ऐसा दिन आएगा जब साहित्य-ब्लोगित्य साथ साथ बोला जायेगा....
शुभकामनायें....
www.nayikalam.blogspot.com
नमस्कार समीर आज आप ने बहुत ही अच्छा विषय उठाया आप की इन चार लेनो ने ही सारा हाल वयान कर दिया चार पंक्तिया लिखना चहुँ गा इन पर माफ़ करना
जवाब देंहटाएंभारत के विकास को लेकर सोचता हूँ कई बार इसी तरह. किसको विकास मानूँ: बढ़्ती मँहगाई को, अवय्वस्था में आये इजाफे को, बिजली पानी की अनुपलब्धता की बढ़ती दर को, गिरते सेन्सेक्स को, एकता कपूर के सीरियलस में बढ़ते एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयरर्स को, बढ़ती किसानों की खुदकुशी को या फिर बढ़ती नेताओं की ढिटाई और उनके बढ़ते भ्रष्टाचार को.
आयो हम आज भारत के विकाश की बात करते है ,,
कुछ गाली खुद को और कुछ उन पर भी धरते हैं ...
विजली पानी का पता नहीं महगाई भर पूर मिले
बढा अव्यवस्था का आलम, संसेक्स भी खूब गिरे .
यहाँ किसान खुदकुशी करते अपनी बर्बादी पे ..
हुडदंग मचा है ड्रामो में बिन शादी की शादी पे ,,
बजट बाँट बन्दर की नाई घर में जा छिपाते है ,,
भर आते ही भर्ष्टाचार भर्ष्टाचार चिल्लाते है ,,,
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बेहतरीन पोस्ट है. कार्टून तो गजबे है. विकास और साहित्य, दो बिलकुल अलग विषय एक ही जगह....ऐसा एक ब्लॉगर ही कर सकता है.
जवाब देंहटाएंभारत विकाश हर क्षेत्र में हो रहा है " बढ़्ती मँहगाई, अवय्वस्था में आये इजाफे, बिजली पानी की अनुपलब्धता की बढ़ती दर, गिरते सेन्सेक्स, एकता कपूर के सीरियलस में बढ़ते एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयरर्स, बढ़ती किसानों की खुदकुशी, बढ़ती नेताओं की ढिटाई और उनके बढ़ते भ्रष्टाचार. ये हैं विकाश !
जवाब देंहटाएंसाहित्य वही जो शादियों बाद भी पढा जा सके संगमरमर पे खुदवा दें क्या? क्योंकि पोथी पानडे शादियों बाद कहाँ से मिलेंगे |
चिंता है तो कभी न कभी निवारण भी होगा ही, यही एक आशा की किरण है जो जिन्दा रखे है इस अफलातूनी लेखन को.
जवाब देंहटाएंये कही है लाजवाब बात..कारवां चलता रहे..एक दिन मंजिल मिल हि जायेगी. शुभकामनाएं
रामराम.
चिंता है तो कभी न कभी निवारण भी होगा ही, यही एक आशा की किरण है जो जिन्दा रखे है इस अफलातूनी लेखन को.
जवाब देंहटाएंये कही है लाजवाब बात. चलते रहें..मंजिल तो एक रोज मिल ही जायेगी. शुभकामनाए.
रामराम.
ब्लोगर समीरानंद जी अगर थक जायेंगे, तो इतनी रोचक पोस्ट तथा टिप्पणियां कौन देगा. थकान दूर कीजिये एवं "शब्द-शिखर" पर इस बार "ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी'' का आनंद लेकर अलमस्त हो जाइये.
जवाब देंहटाएंबहुत विकास हो रहा है, दाल सौ रुपये किलो पहुंचने वाली है और किसान फिर भी आत्महत्या करते रहेंगे.
जवाब देंहटाएंनिदा फाज़ली की यह कविता हाल ही में डॉ. सुधा ओम ढींगरा के नये ब्लॉग पर टिप्पणी के साथ पेस्ट की थी, आपकी पोस्ट पढ़कर यहाँ भी संलग्न करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ. बहुत माफी के साथ.
जवाब देंहटाएंलिखो कि
चील के पंजों में
साँप का सर है
लिखो कि
साँप का फन
छिपकली के ऊपर है
लिखो कि
मुँह में उसी छिपकली के
झींगुर है
लिखो कि
चेंवटा झींगुर की
दस्तरस में है
लिखो कि
जो भी यहाँ है किसी
क़फस (पिंजरा) में है
लिखो कि
रंग है जो भी नज़र में
कच्चा है
जो एक दर्द है साँसों में
वो ही सच्चा है
ये एक दर्द ही
संघर्ष भी है ख्वाब भी है
लिखो कि
ये ही अँधेरों का
माहताब भी है.
लो इत्ती सी बात। साहित्य वो जो पढ कर सुनाया जा सके, समझाया ना जा सके। सरकारी मान दिला सके, पर पाठक ना जुटा सके।
जवाब देंहटाएंशायद भागने वालों को किसी ऐसी चीज की जरुरत हो।
कविता है
जवाब देंहटाएंमन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
mujhe to ye bahut hee achchhee lagee...baki bahas par nazar hee nahi padtee...
अच्छा साहित्य, सुन्दर कविता और देश का विकाश?........ आपने तो कमाल कर दिया है. आपकी लेखनी के बस में ही हैं इन तीनो को एक साथ जोड़ना और सुद्ध्र रूप देना. बहुत अच्छा लिखे हैं.
जवाब देंहटाएंAap bhi kamaal hai
जवाब देंहटाएंsahitya kya hai aakhir aapne dhoondh hi nikala sadar baazar wala photo hahaha
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जात
kavita kya hai wo bhi bakoobi samjha diya
aap waqayi ustaad hai
आप कैसे थक सकते हैं जी ..चलते चलो ..कविता शानदार लगी आपकी ..साहित्य तो जुड़ ही गया है साथ इस लेख के :)
जवाब देंहटाएंइस सवाल पर तो हम भी बहुत परेशान हैं कि साहित्य कहते किसे हैं?
जवाब देंहटाएंक्या कहानियाँ, कविजायें, गजल, लेख आदि ही साहित्य की निशानी हैं?
लेखों की बात करें तो समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं में छापते राजनैतिक लेख भी क्या साहित्य की श्रेणी में आते हैं? यदि ऐसा है तो देश में सभी साहित्यकार हैं।
वैसे इस पर आप कह सकते हैं-
कोउ नृप होए हमें का हानि,
बेचो दूध मिला के पानी।
आपको इतना परिश्रम करते देखकर मेरा साहस नहीं होता आपको ब्लॉगर कहने का,
जवाब देंहटाएंआप साहित्यकार हो जी साहित्यकार ! जो आपको ब्लॉगर कहे उसे हमारा नाम बता देना !
Very valid and contemporary questions have been raised in ur post . One may differ on the answers ,but one thing is certain that those always wanted to express in the realm of literature ,they have a very potent and powerful weapon in the form of blogging .
जवाब देंहटाएंAs laptops become more affordable, we shall witness another powerful wave of literature.Now is the time for u to inspire new talent by giving them awards.
कविता है
जवाब देंहटाएंएक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई..........
बहुत बेहतरीन लिखा है समीर जी.मैं उन लोंगों से पूछना चाहता हूँ कि साहित्य रचने से उन्हें कौन रोक रहा है ,क्यों नहीं रचते वे साहित्य.
ओह तो क्या हम अब तक झख मार रहे थे जब पत्रिकाओं मे छपते थे तब तो साहित्य ही था अब ये साहित्य नही? आप ने तो लिखने का उत्साह ही नश्त कर दिया मगर मेहर्बानी होगी जब पत चले तो हमे जरूर बता दें तब तक कविता कहानी लिख कर दिल बहला लेते हैं कविता की परिभाशा एक दम मुकम्मल है
जवाब देंहटाएंकविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहरा लाजवाब्
मैंने पाया है कि ये विदेश में रहने वाले भारतीय अपने देश भारत की बहुत चिंता करते हैं....क्यों ना करें आखिर भारत में रहने वाले तो बिल्कुल करते ही नहीं
जवाब देंहटाएंकल ही एक पुराने जानकार को कहते सुना कि यार भारत हमें बहुत प्यारा है और भारत में ये है, भारत ऐसा है, भारत वैसा है....क्या करें अगर पापी पेट का सवाल ना होता तो हम भी भारत में ही रहते...
भारत की सरकार ऐसा कर रही है, भारत की सरकार वैसा कर रही है ....(अगर हम सरकार होते तो ऐसा कर देते) ...हम उनको देख कर मुस्कुरा दिए
"वैसे आपने कविता बहुत अच्छी लिखी है"
@ अनिल कान्त जी
जवाब देंहटाएंआपके मन जो विचार आया, वह नया नहीं है, बहुतों के मन में आता है और वो बातें सुन इसी तरह मुस्कराते भी हैं..:) मुस्कराना तो खैर स्वास्थय के लिए हमेशा ही अच्छा माना गया है-
घर से एक भाई किसी भी वजह से अगर बाहर चला जाये, तो भी रहता तो परिवार का सदस्य ही है. परिवार की, घर की चिन्ता, परेशानी के विषय में सोचना उसका भी अधिकार होता है. जो घर में रह रहे हैं, वो तो परेशानियों से जूझने में ही परेशान हैं, कम से कम बाहर वाला परेशानियों का आंकलन तो कर ही सकता है.
दर्द यहाँ भी उतना ही होता है बल्कि दूरियों की चोट एडीशनल है, वजह मजबूरी हो या स्वतः का निर्णय, दूरी तो दूरी ही है और परिवार और अपना वतन भी अपना ही है.
इस अधिकार पर तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार रहेगा ही.
आपके मन में विचार उठा तो सोचा, निराकरण करता चलूँ. आशा है अपनी बात कह पाया हूँ.
आशा है अन्यथा न लेंगे..मैने भी नहीं लिया है. वैसे इस विषय पर तो बहुत अधिक विस्तार से लिखने की क्षमता रखता हूँ.. :)
सच में आज तो हम भी थक ही गए। तभी तो रात के साढे ग्यारह बजे टिप्पणी करने आए हैं:)
जवाब देंहटाएंसमीर जी ,
जवाब देंहटाएंजो कहते हैं ब्लॉग जगत में साहित्य नहीं रचा जाता .....उनसे कहें की भई वे हमें एक साहित्यिक ब्लॉग बना कर दिखाये ताकि हम उनसे कुछ सीख सकें ....!!
कविता की लाजवाब परिभाषा की है आपने ....!
समीर भाई ,
जवाब देंहटाएंअपने जो साहित्य की परिभाषा की है उसमें काफी दम है.मैं तो यही मानता हूँ की जिससे समाज का प्रतियक्ष या अप्रतियक्ष रूप से हित साधता हो उसे साहित्य कह सकते हैं.आपकी कविता भी जानदार बन गयी है बधाई !एक बात और कहता चलूँ आपकी शैली आपकी भाषा लेखन की विशालता एवं विषय की रोचकता किसी को भी बांधे रखने में सक्षम है.और क्या कहूं आप अद्वितीय हैं.
समीर भाई ,
जवाब देंहटाएंआपने जो साहित्य की परिभाषा की है उसमें काफी दम है.मैं तो यही मानता हूँ की जिससे समाज का प्रतियक्ष या अप्रतियक्ष रूप से हित साधता हो उसे साहित्य कह सकते हैं.आपकी कविता भी जानदार बन गयी है बधाई !एक बात और कहता चलूँ आपकी शैली आपकी भाषा लेखन की विशालता एवं विषय की रोचकता किसी को भी बांधे रखने में सक्षम है.और क्या कहूं आप अद्वितीय हैं.
koi kuch bhi bole....koi fark nahi padta....abhi sahitya ko paribhashit karne ki baat kahe to hazaar ban jayegi aur ek bhi sahi nahi.....Desh, Kaal, Samaj, haalat ke hisaab se rachna ka srijan hota hain..... Marne ke baat hi jayada sahityakaar yaad kiya jata hain..... Galib ko kya diya duniya ne..... Prem chand ne jinke liye likha wo kitna jante hain prem chand ko....Jinke pass waqt jayad hain wo aalochna karke kaat lete hain..... Anyways... Aapka subject bhi badiya hain... aur rachna bhi lajawaab
जवाब देंहटाएंनमस्कार समीर भाई ,
जवाब देंहटाएंसाहित्य क्या है ? इसको शब्दों की परिभाषा मैं बंधना उतना ही कठिन है जितना प्यार को कुछ पंग्तियों मैं बांध देना | हिंदी ब्लॉग जगत मैं कुछ लेखन तो निश्चित तौर पे साहित्य है किन्तु ऐसे ढेर सारे लेखन मिलेंगे जिसे साहित्य नहीं कहा जा सकता | और यदि वैसे लेखन को साहित्य कहा जाये तो मुझे ये कहने मैं कोई गुरेज नहीं की हिन्दी ब्लॉग, साहित्य के स्तर को घटिया बनने वाला है |
आपकी भारत के विकास को लेकर सोच ग़ज़ब की है | सरल सब्दों मैं बहुत सुंदर लिखा है |
यूनिक नम्बर आईडेन्टिटी पे भी आपकी सोच वाजिब है |
कविता क्या है तो बहुत सुंदर है | अपनी ऊर्जा बनाये रखें और इसी लगन से हिंदी ब्लॉग जगत की शोभा बढ़ते रहें |
धन्यवाद
समीर जी,
जवाब देंहटाएंयह प्रश्न सुनकर-सुनकर तो मैं भी थक गई...
और यह भी कि ब्लाग्स में साहित्य कहाँ है ?
आप का हल ....हा -हा
कविता का भाव बहुत सुंदर है..
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
कविता क्या है -पर कुछ पंक्तियाँ हमनें भी लिखी थीं ,आपनें पढ़ी होंगी ,पर आपका जवाब नहीं ,आपनें तो सारी सृष्टि ही समेट दी उसमे । बहुत सुंदर । साहित्य पर लेख साहित्य ज़रूर है । मेरी रचनाएँ पढने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा आपका पोस्ट! ख़ूबसूरत रचना के साथ साथ शानदार और मज़ेदार कार्टून बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंबड़े नकारात्मक विचार हैं। साहित्य को पूरा फ़ाहित्य बना के छोड़ दिया। ऐसी उलट-पुलट बातों को कविता लिखने के चक्कर में ही बेचारे कवि बदनाम हो जाते हैं। करे कोई भरे कोई!
जवाब देंहटाएंजो अपने भावों को लिखने की क्षमता रखता है वह साहित्यकार है
जवाब देंहटाएंतो ब्लॉगरों ने कोई गुनाह किया है क्या :-)
बहुत अच्छा लिखे हैं,आभार.
जवाब देंहटाएंसाहित्य और ब्लॉग की जंग तो मंदिर मस्जिद से भी भीषण हो चली है...छोडिये न...साहित्य हो न हो भावाभिव्यक्ति तो है ही...बस इतना काफी है...
जवाब देंहटाएंजहाँ अच्छा लगे वहां टिपिया दो ,
जहाँ बुरा लगे वहां जाने दो....
{बतर्ज़ : मेरी बात के माने दो
जो अच्छा लगे उसे अपना लो,
जो बुरा लगे उसे जाने दो }
कविता बहुत अच्छी और सच्ची लिखी है आपने...बधाई.
नीरज
साहित्य कि तो नहीं जानता पर देश के विकास का बहुत सही चित्रण किया है
जवाब देंहटाएंसमीर जी मेरे विचार में आप व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं । क्योंकि हमारे कहने और न मानने से कुछ नहीं होता । समय के क्रूर हाथों से निकल कर जो जिंदा बचेगा वो साहितय होगा । जो खत्म हो जायेगा वो साहित्य था ही नहीं । चाहे जो पत्रिकाओं में हो चाहे ब्लाग पर जो शेष रहेगा वो ही साहित्य होगा । समय की हवाएं जिसे समाप्त कर देंगीं वो साहित्य नहीं होगा ।
जवाब देंहटाएंकविता बहुत ही अच्छी है और भारत के विकास पर जो बातें कही हैं वे भी सच के करीब हैं.
जवाब देंहटाएंकार्टून मजेदार है..और थक गए कह कर जो व्यंग्य लिख दिया वह भी खूब है.
ये भी बताइए कि इतनी मगजमारी करने के बाद पता चला "साहित्य क्या है?" या नहीं ????????
जवाब देंहटाएंजो हमारे समझ मे नही आये वह उच्च कोटि का साहित्य है ।
जवाब देंहटाएंचलिए....कम से कम आपका थकना तो सार्थक हुआ...वैसे भी हम जैसे लोग तो अब शायद सदर बाज़ार की राह ही पकडेंगे...ताकि साहित्य की खोज़ में कोई साहित्यिक रचना ही नसीब हो जाए...
जवाब देंहटाएंवैसे जिसका अंत सही हो...यानी सही इति...तो साहित्य बन ही जाता है....फिर इसे भारत के विकास से जोड़ा जाए या फिर खुद के।
चलिए....कम से कम आपका थकना तो सार्थक हुआ...वैसे भी हम जैसे लोग तो अब शायद सदर बाज़ार की राह ही पकडेंगे...ताकि साहित्य की खोज़ में कोई साहित्यिक रचना ही नसीब हो जाए...
जवाब देंहटाएंवैसे जिसका अंत सही हो...यानी सही इति...तो साहित्य बन ही जाता है....फिर इसे भारत के विकास से जोड़ा जाए या फिर खुद के।
समीर जी,
जवाब देंहटाएंआप की चिन्ता जायज है....साहित्य ब्लाग पर भी है ये भला वो कैसे जान सकते हैं जिन्हें माउस पकड़ने भी नहीं आता...और समस्या ये है कि वही साहित्य के भाग्यविधाता बने बैठे है.....
तो ऐसे ही मानने न मानने के चक्कर में, पत्रिकाओं के गरिष्ट ओह नो!! वरिष्ट साहित्यिक संपादकों से संबंधो के अभाव में, आलोचकों और अनेक साहित्यकारों के कम्प्यूटर ज्ञान के अभाव में, ब्लॉग पर साहित्य नहीं रचा जा रहा है विषय पर सारे ब्लॉगर चिंतित हैं.
जवाब देंहटाएंआप का उपरोक्त कथन बिलकुल सही है,किसी भी स्थिति में तथाकथित साहित्यकार जो नेट का न नहीं जानते छिद्रान्वेषण में जुट जाते हैं
Kahne wale kahte rahenge, likhne wale likhte rahenge.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
SAHITYA...
जवाब देंहटाएंpachada he, jhagda he, lafada he..
bole to jise pata he vo bataye..ham kyu dimag khapaye..//itana sundar likhate he aap hame to isime maza aaye,,aour kya bataye..//
vese is gambhir vishaya ki vyakhya bhi kar li jaaye to koi na koi turram khaa nikal hi aayega jo 'sahitya kaat' ki upadhi se vishubhit hoga//dekhe koun nikalata he esa maha pandit?
lovely read. i can see your heart and soul are still in india
जवाब देंहटाएंकमल है साहब.
जवाब देंहटाएंआप सचमुच बहुत डूब कर लिखते हैं,
पर पाठकों को उबार देते हैं.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
itna steek aalekh aur utni hi sundar kavita ki vyakhya .ham to bhai abhari hai aapke jo aapne itni shjta se blog ke sahity ko, jo log sahity nhi mante unko nya sahity rchkar de diya hai .jeevan ki mushiklo me sukun de ,ak dusre ko aaps me jod de aise blog ke sahity ke pujari hai ham .
जवाब देंहटाएंham ye nhi jante ki itihas me darj hoge ya nhi vrtman me khush hai ham.
dhnywad
साहित्य साहित्य सब चिल्लाता है,
जवाब देंहटाएंपर पूछो तो कोई नही बताता है,
व्याकरण और शब्द पर,
सब आवाज़ उठाता है,
और प्रेम की सच्ची अभियक्ति,
कोई नही समझ पाता है.
भावनाओं और विचार का संगम ही साहित्य हैं,
ग़रीबों के जख्म का मरहम ही साहित्य है,
कठोर और बड़े शब्द से वाह वाही लुटना नही,
जो बांट ले दूसरों का गम वही साहित्य है.
आपकी बात बहुत सच्ची लगी,
मन को भा गया,
आपके सुंदर विचार से हमे भी,
थोड़ा बहुत साहित्य आ गया.
हम कुछ डर सा गया हू़. सबसे हम कहते फिरे हम साहित्य पढे बहुत, सो हम पढे लिखे. अब कौन सुसर बतायगो के प्रेम चन्द जो लिख गये ऊ साहित्य है कि नाही, ऐसे ही बच्चन वा भौत पढे कल काऊ हिन्द युग्म की अगली बैठक मे़ आके कह दे कि सहित्य वो ही है जाय हिन्दि के कठमुल्ला चौडे मे़ कह दे़ कि भाई ई साहित्य है. तब तक आगे पढना लिखना बन्द. ओर्कुटिन्ग चालो आहे.
जवाब देंहटाएंसमीर जी, जो पढ़ा जाता है वह चाहे न चाहे साहित्य का ही हिस्सा होता है. अच्छा, घटिया सब बाद में तय होता है. पर आपकी परेशानी को देखकर एक नए चाँद के दिखने का खतरा लगने लगा है. यह अलग बात है कि यह कनाडा से दिखेगा. और हाँ, यह अपना नाम आपने दिलचस्प कर लिया है - समीर लाल उड़नतश्तरी वाले - इस खोजी नाम के लिए आपको बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट है| टिप्पणियां इतनी ज्यादा हैं कि निश्चय ही यह साहित्य नहीं है!
जवाब देंहटाएंहम तो बड़ी देर से पहुंचे ! समस्या आपने बड़े विकट तरीके से उठाई है |
जवाब देंहटाएंदेखो बड़े भाई ! बात बस इतनी सी है कि साहित्य वही है जिसको साहित्यकार घोषित करे कि यह 'साहित्य' है और साहित्यकार उसको बोलते हैं जो साहित्य लिखता है |:)
Samir Zee sahitya ki chrcha se vikas ki pagdandi per bakhubi utren hain ap. mn ya atma ki abhiwyakti ko sahityavidon dwara banaye gye niyamon mein bandha nahi ja sakta. sahitya to mn aur atma ki sahaj abhiwyakti hai. jo shabd zeevan ko gune-bune aur hamare ander tak uter jye wohi sahitya hai. Apne kamal ka likha hai.
जवाब देंहटाएंइसका रचयिता कवि
जवाब देंहटाएंकभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
बढिया ।
कार्टून भी मजेदार ।
आपका आलेख पढना आरम्भ किया,हर वाक्य पर सहमति और दाद में सर हिलाए जा रही थी कि आपकी कविता मिल गयी पढने को.......बस थम कर रह गयी......
जवाब देंहटाएंऐसे लेखन और रचनाओं को सिर्फ इसलिए कि ये ब्लॉग पर लिखे जा रहे हैं,साहित्य नहीं कहा जायेगा........जो सोचते हैं,वो बड़े ही भ्रम में हैं.....
समय सिद्ध करेगा कि क्या साहित्य है और क्या नहीं.....
Bahut lajwab likha...sochne par majbur kar diya.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग "शब्द सृजन की ओर" पर पढें-"तिरंगे की 62वीं वर्षगांठ ...विजयी विश्व तिरंगा प्यारा"
बहुत ही उच्च स्तरीय व्यंग!!
जवाब देंहटाएंलगता है कि हरिशंकर परसाईजी की आत्मा नें परकाया प्रवेश कर लिया हो. अब ये उच्च कोटी का साहित्य नही तो क्या है?
लगे रहो समीरभाई...
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना,
छोडो बेकार की बातों में, कहीं अगली पोस्ट नही छूट जाये...
अपना लिखा हुआ छपवा लीजिए, या न बन पाये तो कागज पर अपने हाथ से उतारकर झोले में रख लीजिए और प्रकाशकों मुद्रकों की ड्योढ़ी पर इसे लेकर घूम आइए। ससम्मान वापस भी कर दें तो भी वह साहित्य की श्रेणी में आ ही जाएगा। इंटरनेट पर ठेलकर आप इसे साहित्य की ‘चारदीवारी’ से बाहर कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआपका साहित्य ‘बिखरे मोती’ में सिमटा है...। क्या कहा? वह सब यहीं से लिया गया है? ओहो, हें हें, हें हें...।
majedaar cartoon
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमीर जी, मज्जा आ गया |
जवाब देंहटाएंबढ़िया उडान |
वैसे ,धरती के इस जीव के ब्लॉग में रूचि लेने के लिए उड़न तस्तरी को बहुत बहुत धन्यवाद |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज की दूरदर्शनी दुनिया में साहित्य एक बिजूका है.
जवाब देंहटाएंअब थकने के बाद अगर ये जलवा है तो फुल चार्ज में क्या करेंगे आप समीर जी...
जवाब देंहटाएंन न थकने का नहीं, बस चलते रहने का, मतलब कलम चलते रहना का...
हम भी यही जानना चाहते हैं की साहित्य की परिभाषा क्या है ?
सुना तो था की समय के साथ-साथ साहित्य की परिभाषा भी बदलती जाती है, अब कोई लेटेस्ट परिभाषा का बाद ज्ञाता हो कृपया हम पर भी किरपायिगा...
..जबलपुर मे ही एक मित्र से जबर्दस्ती एक किताब (नामी साहित्यकार की) ले ली थी...बडी चर्चित है पुस्तक इन दिनो..
जवाब देंहटाएंपढी तो एक अजीब सी कसमसाहट पैदा कर गयी मन मे.. दुख नही हुआ मुझे कि मैने "साहित्य" नही पढा है.:)