रविवार, जून 21, 2009

आप जलूल आना.....चोनू!!

जिन्दगी का सफ़र भी कितना अजीब है. रोज कुछ नया देखने या सुनने को मिल जाता है और रोज कुछ नया सीखने. पहले भी इसी पहलु पर कुछ सीखा था और आज नया सीखा.

पता चला कि दफ्तर की महिला सहकर्मी का पति गुजर गया. बहुत अफसोस हुआ. गये उसकी डेस्क तक. खाली उदास डेस्क देखकर मन खराब सा हो गया. यहीं तो वो चहकती हुई हमेशा बैठे रहती थी. यादों का भी खूब है, तुरन्त चली आती हैं जाने क्या क्या साथ पोटली में लादे. उसकी खनखनाती हँसी ही लगी गुँजने कानों में बेवक्त. आसपास की डेस्कों पर उसकी अन्य करीबी सहकर्मिणियाँ अब भी पूरे जोश खरोश के साथ सजी बजी बैठी थी. न जाने क्या खुसुर पुसुर कर रहीं थी. लड़कियों की बात सुनना हमारे यहाँ बुरा लगाते हैं, इसलिए बिना सुने चले आये अपनी जगह पर. हालांकि मन तो बहुत था कि देखें, क्या बात कर रही हैं?

जो भी मिले या हमारे पास से निकले, उसे मूँह उतारे भारत टाईप बताते जा रहे थे कि जेनी के साथ बड़ा हादसा हो गया. उसका पति गुजर गया. खैर, लोगों को बहुत ज्यादा इन्टरेस्ट न लेता देख मन और दुखी हो गया. भारत होता तो भले ही न पहचान का हो तो भी कम से कम इतना तो आदमी पूछता ही कि क्या हो गया था? बीमार थे क्या? या कोई एक्सीडेन्ट हो गया क्या? कैसे काटेगी बेचारी के सामने पड़ी पहाड़ सी जिन्दगी? अभी उम्र ही क्या है? फिर से शादी कर लेती तो कट ही जाती जैसे तैसे और भी तमाम अभिव्यक्तियाँ और सलाहें. मगर यहाँ तो कुछ नहीं. अजब लोग हैं. सोच कर ही आँख भर आई और गला रौंध गया.

हमारे यहाँ तो आज मरे और गर सूर्यास्त नहीं हुआ है तो आज ही सूर्यास्त के पहले सब पहुँचाकर फूँक ताप आयें. वैसा अधिकतर होता नहीं क्यूँकि न जाने अधिकतर लोग रात में ही क्यूँ अपने अंतिम सफर पर निकलते हैं. होगी कोई वजह..वैसे टोरंटो में भी रात का नजारा दिन के नजारे की तुलना में भव्य होता है और वैसा ही तो बम्बई में भी है. शायद यही वजह होगी. सोचते होंगे कि अब यात्रा पर निकलना ही है तो भव्यता ही निहारें. खैर, जो भी हो मगर ऐसे में भी अगले दिन तो फूँक ही जाओगे.

मगर यहाँ अगर सोमवार को मर जाओ तो शनिवार तक पड़े रहो अस्पताल में. शानिवार को सुबह आकर सजाने वाले ले जायेंगे. सजा बजा कर सूट पहना कर रख देंगे बेहतरीन कफन में और तब सब आपके दर्शन करेंगे और फिर आप चले दो गज जमीन के नीचे या आग के हवाले. आग भी फरनेस वाली ऐसी कि ५ मिनट बाद दूसरी तरफ से हीरा का टुकड़ा बन कर निकलते हो जो आपकी बीबी लाकेट बनवाकर टांगे घूमेगी कुछ दिन. गज़ब तापमान..हड्ड़ी से कोयला, कोयले से हीरा जैसा परिवर्तन जो सैकड़ों सालों साल लगा देता है, वो भी बस ५ मिनट में.

साभार: गुगल

खैर, पता लगा कि जेनी के पति का फ्यूनरल शनिवार को है. अभी तीन दिन हैं. घर आकर दुखी मन से भाषण भी तैयार कर लिया शेर शायरी के साथ जैसा भारत में मरघट पर देते थे. शायद कोई कुछ कहने को कह दे तो खाली बात न जाये इतने दुखी परिवार की. बस, यही मन में था और क्या.

शुक्रवार को दफ्तर में औरों से पूछा भी कि भई, कितने बजे पहुँचोगे? कोई जाने वाला मिला ही नहीं. बड़ी अजीब बात है? इतने समय से साथ काम कर रहे हैं और इतने बड़े दुखद समय में कोई जा नहीं रहा है. हद हो गई. सही सुना था एक शायर को, शायद यही देखकर कह गया होगा:

’सुख के सब साथी, दुख का न कोई रे!!’

आखिर मन नहीं माना तो अपने एक साथी से पूछ ही लिया कि भई, आप क्यूँ नहीं जा रहे हो?

वो बड़े नार्मल अंदाज में बताने लगा कि वो इन्वाईटेड नहीं है.

लो, अब उन्हें फ्यूनरल के इन्विटेशन का इंतजार है. हद है यार, क्या भिजवाये तुम्हें कि:

’भेज रही हूँ नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हें बुलाने को,
हे मानस के राजहंस, तुम भूल न जाने आने को.’

हैं? मगर बाद में पता चला कि वाकई उनका फ्यूनर है STRICTLY ONLY BY INVITATION याने कि निमंत्रण नहीं है तो आने की जरुरत नहीं है.

गजब हो गया भई. तो निमंत्रण तो हमें भी नहीं आया है. फिर कैसे जायेंगे. कैसे बाँटूं उसका दर्द. हाय!!

सोचा कि शायद इतने दुख में भूल गई होगी. इसलिये अगले दिन सुबह फोन लगा ही लिया. शायद फोन पर ही इन्वाईट कर ले. चले जायेंगे. भाषण पढ देंगे. दो बूँद आँसूं बहा कर कँधा आगे कर देंगे कि वो भी सर रख कर इस दर्द भरी घड़ी में हल्की हो ले. इन्सानयित का तकाज़ा तो यही कहता है और इसमें अपना जाता भी क्या है. कँधा कोई शक्कर का तो है नहीं कि उस दुखिया के आँसूओं से गल जायेगा.

पता चला कि ब्यूटी पार्लर के लिए निकल गई है फ्यूनरल मेकअप के लिए. भारतीय है तो थोड़ा गहराई नापने की इच्छा हो आई और जरा कुरेदा तो पता चला कि ब्लैक ड्रेस तो तीन दिन पहले ही पसंद कर आई थी आज के लिए और मेकअप करवा कर सीधे ही फ्यूनरल होम चली जायेगी. कफन का बक्सा प्यूर टीक का डिज़ायनर रेन्ज का है फलाना कम्पनी ने बनाया है और गड़ाने की जमीन भी प्राईम लोकेशन है मरघटाई की. अगर इन्विटेशन नहीं है तो आप फ्यूनरल अटेंड नहीं कर सकते हैं मगर अगर चैरिटी के लिए डोनेशन देना है तो ट्रस्ट फण्ड फलाने बैंक में सेट अप कर दिया गया है, वहाँ सीधे डोनेट कर दें एण्ड एक स्पेशल हिदायत, स्वाईन फ्लू के चलते, कृप्या फ्लावर्स न भिजवायें. स्वीकार्य नहीं होंगे.

हम भी अपना मूँह लिए सफेद कुर्ता पजामा वापस बक्से में रख दिए और सोचने लगे कि अगर हमारे भारत में भी ऐसा होता तो भांजे का स्टेटमेन्ट भी लेटेस्ट फैशन के हिसाब से निमंत्रण पत्र में जरुर रहता:

"मेले मामू को छनिवाल को फूँका जायेगा. आप जलूल आना....चोनू"

91 टिप्‍पणियां:

  1. हाय री पश्चिमी सभ्यता, अब आपका कुर्ता पजामा कब काम आयेगा, आपके कुर्ते पजामे के लिये आपको "इन्वीटेशन" मिलें...

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  2. च च च अफ़सोस की आप अपना शोक गीत /शोक संभाषण नहीं दे सके ! सहेज कर रख लीजिये ! सत्कर्म कभी जाया नहीं होते !

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  3. sameer ji, chalo naradmuni ki or se invitation svikar karen.jarur aana,thik hai. narayan narayan

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  4. रीति रिवाजों का चलन काल पात्र अनुसार।
    मेकअप फ्यूनरल के लिए जाना पहली बार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  5. पढकर सोंचने को मजबूर हो गयी .. क्‍या सचमुच भारत और कनाडा के लोगों के व्‍यवहार में इतना अंतर है .. या आप बढा चढाकर पेश कर रहे हैं ?

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  6. मृत्यु जैसी बात भी हास्य का आधार हो सकती है! इसे कहते हैं कलम की ताक़त। आप ने दोनों सभ्यताओं की अच्छी खबर ली।

    वैसे आचार्य रजनीश ने मृत्यु को उत्सव की संज्ञा दी है।

    अरे! कोयले को हीरा बनाने के लिए ताप के साथ भयानक दाब की भी आवश्यकता पड़्ती है। क्या वहां इसका भी इंतजाम है?

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  7. बड़ा अजीब लगा पढ़ कर, खास कर ड्रेस सेलेक्ट करने की बात. मैं तो मानने लगा हूँ की ये सब विकास के साइड इफेक्ट्स हैं. शायद पचास साल बाद भारत में भी ऐसा हीं हो. ये अनुसन्धान करना भी जरूरी लगता है की ऐसा कब शुरू हुआ और कैसे, या पहले से हीं ऐसा होता आ रहा है. कब ख़त्म हो गए उनके इमोशंस.

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  8. ओह!अब इसे सभ्यता का विकास की ओर बढ़ना कहूं या विनाश की ओर, समझ नहीं आता।

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  9. कितना त्रासद है एक व्यक्ति का वस्तु में परिवर्तित हो जाना। यह पूंजी के व्यापार की सर्वोत्तम उपलब्धि है। कैसे सामाजिक आर्थिक व्यवस्था व्यक्ति का विमानवीय करण कर चुकी है। हमें यह सब मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानी कफ़न में ही दिखा चुके थे।

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  10. आप कब किस बात को कैसे प्रस्तुत कर दें और सब अवाक खड़े रह जायें..यह देख मेरे दिमाग के तो पेंच ढीले हुए जा रहे हैं. थोड़ा बक्शो, चाचा..कही तो!!

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  11. हंसा जाये या रोये कोई यह पढ़ कर.

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  12. बेनामी6/21/2009 11:22:00 pm

    every country and every religion has its own cultural ethics . its really ignorance when people say that oh this happend this way and its good that thru your post many could see the cultural difference in two countries but i strongly feel sameer somewhere you should have mentioned that you have no intention to malign anyones grief . knowing you i dont think you would but if some hindi knowing person of some other nationality reads it they will feel we are here making fun of them
    regds
    rachna

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  13. रचना जी

    इसमें फन कैसा..मजाक तो हमने अपने निमंत्रण पत्र का उड़ाया है जो ऐसा रुप ले चुका है..उनकी परंपरा तो वो जानें..हम तो जो देखते हैं, उसे अपने से कम्पेयर कर लिख देते हैं. इसमें उनकी क्या सोच होगी, यह सोचने लगे तो क्या एक भी पंक्ति लिखना संभव हो पायेगा.

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  14. आखरी का पंच लाइन लाजवाब है.
    पर, भई अपनी अपनी संस्कृति है.

    अब एक गुजारिश. आप जेनी बन जाएं और भारत में रहती हुई वो भारतीय फ्यूनरल पर कैसे व्यंग्य मारती जरा ये भी लिख देखें. :)

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  15. ाब ऐसी सभ्यता पर और क्या कहा जाये----मुझे तो आपकी पोस्त बौत अच्छी लगी मगर ये समझ नहीं आ रहा कि पोस्त के लिये बधाई दूँ या भाशण ना दे पाने का अफसूस करूँ हाँ मैने अपने पति से कह दिया है कि मेरे मरने पर वो सफेद कुर्ते पाजामे की बजाये सुट टाई मे जायें ---- हो सके तो एक वेडिब्ग डरेस खरीद ले---इसके लिये शुक्रिया विदेशी मौत का भी लुत्फ उठा ही ले

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  16. मृत्‍यु से बड़ा उत्‍सव कोई नहीं
    बस मनाने वाला चाहिए
    वो आपने बतला ही दिया


    आप परिचित ही होंगे
    काका हाथरसी ने अपने श्‍मशान गमन को
    गमों से दूर रखा था
    वहां पर हास्‍य कवि सम्‍मेलन हुआ था
    सब हंसे थे खूब हंसे थे।

    पर विष्‍णु प्रभाकर ने
    जब कर दी अपनी देहदान
    तो उससे बड़ा मृत्‍यु उत्‍सव
    जो मानवता का भला कर सके
    मुझे कोई नहीं लगा।

    मृत्‍यु भी अब ब्रांडिड हो चली है
    बाजार है अब मृत्‍यु का भी
    कई अंत्‍येष्टियां तो जीवंत प्रसारित होती हैं
    वो बात अलग है कि
    नेताओं के साथ ही होता है ऐसा।

    पर पैसे का ही खेल है सब
    पर जिंदादिली इसी का नाम है
    मृत्‍यु न हो तो ठहर जाए सब
    फिर कहां मिलेगा हरा कब कहीं कौन
    इसलिए इस मामले पर
    हमारा मौन ?

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  17. जेनी के पति का इंडिया में hota तो शोकसभा का भाषण हो जाता और वगैर इन्विटेसन के लोग बाग़ मरघटाई तक कंधे देने पहुँच जाते है . आपने इस प्रसंग को भावपूर्ण ढंग से बारीकी से उकेरा है और कुछ नई बाते भी मालूम हुई . बहुत भावपूर्ण पोस्ट के लिए आभार. लिखना तो आपसे सीखना चाहिए .

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  18. तनिक रूकिये तो यह दिन हमारे भारत में भी जल्द आने वाले हैं .

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  19. ek gambhir vishay ko hasya ka chola pehnana bhi bada mushkil kaam hai,jo aapki kalam baht achh se kar gayi.jeni ke pati k maut ka efsos hai.baki sab ki sabhyata culture alag hote hai.aisa bhi hota hai,padhna aur jaanana achha laga.humne kabhi khwab mein bhi na socha ke funeral hi invitation se hota hai.

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  20. क्या कहूँ ? इस प्रच्छन्न वैपरीत्य का हिसाब ही नहीं लगा पा रहा हूँ । भाव से प्रतिभाव की उत्पति करा दी आपने अपनी इस प्रविष्टि से ।

    मैं हतप्रभ हूँ, इस प्रविष्टि के प्रभाव और आपकी प्रस्तुति दोनों से ।

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  21. अगर यही हाल रहा तो कोई बडी बात नहीं कि आने वाले दो चार वर्षों में अपने यहाँ भी ऎसा ही कुछ दिखाई देने लगे......

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  22. अब आगे कभी फौती हो तो इनविटेशन के लिए ऍप्लिकेशन बना कर रख लें.occidental और ओरिएण्टल तहजीब में यही तो अंतर है..

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  23. कितना अलग.... वैसे हमारे यहां भी निमंत्रण होता है.. सबके लिये.. ्सुचना जैसा अखबार में छाप देते है... लेकिन अगर कहीं से पता चल जाये तो पहुँच जाते है.. वैसे मृत्यु भी तो एक उत्सव है... हर उत्सव पर निमंत्रण होते है.. तो उसका भी सही.. पता नहीं..

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  24. हमारे यहाँ भावुकता को ज्यादा महत्व दिया जाता है . कहा जाता है किसी के सुख में शामिल भले ही न हो, दुःख में जरूर होना चाहिए . अपने यहाँ तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना .
    परम्पराएं हैं लोगों की अलग अलग

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  25. अपने शोक संभाषण के लिए शोकग्रस्‍त हूं।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  26. तौबा तेरी लेखनी का जलबा. घटना एक विसंगती है या दो सभ्यताओं का अंतर झलक रहा है?

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  27. बहुत दुःख हुआ आपकी सहयोगी के साथ हुई दुखद घटना का लेकिन....हम भारतीय हैं तभी ना हमारे दिल में उनके प्रति संवेदना उठी । पर ये रिवाज कुछ अटपटा सा लगा , क्रिया कर्म के लिए , निमंत्रण, मेक अपवगैरह ....फ़िर भी ये उनकी संस्कृति है । !?
    अन्तिम लाइन पढ़ कर विचलित मन को थोड़ा सा विनोद का सहारा मिला । एक और बढ़िया पोस्ट :)

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  28. बहुत सही लिखा. करारा व्यंग है. जब उपभोक्तावाद इस हद तक पहुंचता है तब उसकी यही परिणिति होती है. गनीमत है अभी हम इससे दूर हैं और हमारे यहां शोक भाषण देने की कला अभी पूरे जोरों पर है.

    और शवयात्रा मे भी निमंत्रित लोग ही जाते हैं ये दिन यहां तो शायद ही कभी आये. यहां तो दुश्मन की शवयात्रा मे पहले कंधा दिया जाता है.

    आखिरी में : "मेले मामू को छनिवाल को फूँका जायेगा. आप जलूल आना....चोनू"

    सुपर हिट लाईन है इस पोस्ट की. आपकी सोच को रचनाधर्मिता को सलाम.

    रामराम.

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  29. एक अंग्रेजी फिल्म मेलेना याद आ गयी जो बेहद खूबसूरत थी ..जिसके पति की म्रत्यु के बाद सारा क़स्बा उसे श्रदांजली देने उमड़ पड़ा क्यूंकि उनके यहाँ विधवा को गले लगाने ओर चूमने का रिवाज है ....कभी मौका मिले तो देखिएगा ....
    वैसे इत्तेफकान हमने कुछ ऐसे ही मौके की पोस्ट लिखी है...

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  30. लीजिये अब भला उड़नतश्तरी को निमंत्रण की क्या जरूरत...अरे पहुँच जाते उड़ते उड़ते......चलिए मारिये golee....जैसे ही यहाँ कोई नेता मरता है...आपको निमंत्रण भिजवाते हैं....बस वो जो शोक गीत है उसमें दो चार गालियाँ...(जो साएलेंट हों ) अभी डाल दें तो बिलकुल भारतीय श्रध्हांजलि हो जायेगी..जैसा की यहाँ लोग नेताओं को देते हैं....
    और हाँ आजकल व्यंग्य को भी गंभीर हो कर पढा जा रहा है...गंभीर हो कर लिख दिया जाए तो क़यामत हो सकती है....कुछ क़यामत ही हो जाए...

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  31. अरे राम-राम...आपकी तो पूरी मेहनत ही बेकार हो गई. लेकिन समीर जी सच-सच बताइये, क्या पश्चिमी देशों में लोगों के मनों में एक दूसरे के लिये ज़रा भी प्रेम नहीं ? अपने ही पति की मौत पर जब ड्रेस सेलेक्ट हो रही है, वो भी फ़्यूनरल के लिये, मेक-अप हो रहा है तो दूसरे की मौत तो इनके लिये कोई मायने ही नहीं रखती.

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  32. पश्चिमी सभ्यता का ऎसा वर्णन शायद ही कोई और दे सकेगा समझ मे नहीं आता इस पर दुखी हुआ जाए हसा जाए या आश्चर्य कीया जाए । शायद वहां मानवीय संवेदनाओं के लीये कोई जगह नही बची है।

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  33. बेनामी6/22/2009 04:12:00 am

    वैसे सबकी अपनी-अपनी परम्पराएं होती हैं, रचना जी की ये बात ठीक है....मगर जहां तक अपनी बात है तो इस परंपरा के बारे में कहना चाहूँगा कि हमें तो बिल्कुल नहीं भायी....संवेदनहीन लगती है.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  34. Pehlee baar hai,ki, meree tippanee, 70 ke baad walee qatar me nahee...khair...aisahee suna tha maine pashchyaty sanskruti ke bareme..
    Jis kiseene likhee ho, "neh nimantran.." ye pankityan behad pasand ayee...maine pahle nahee sunee/padhee theen..

    Apnee aulad ke wahan rahte hue bhee, maine US kaa visa tak nahee nikala..!
    (Aap Canada me rehte hain, ye to mujhe pata hai).

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  35. अलग देश,
    अलग भेष,
    अलग-अलग रीतियाँ,
    अलग-अलग रिवाज।
    अनोखे हैं ढंग,
    अनोखे हैं काज।

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  36. यही अंतर है हमारी सभ्यता और विदेशी सभ्यता में
    जहाँ दुख व्यक्त करने का भी हक नही दिया जाता है.

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  37. सही बयान किया है पाश्चात्य सभ्यता को........... जहाँ इंसानी रिश्तों की कीमत शायद संवेदना प्रगत करने तक ही होती है...... जहां अपने सिवा कुछ भी दिल पर नहीं लिया जाता................ भावनाओं को जहां बस पैसे में ही तोला जाता है......... भौतिक सुविधा ही जहां सब कुछ है

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  38. आज मृत्यु का भी आधुनिकरण हो गया है,

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  39. विदेश मे रह कर देश की सभ्यता की तुलना इस अन्दाज मे आप ही कर सकते है । आपकी इस लेखनी को प्रणाम ।

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  40. समीर जी एक बात तो लिखना भूल ही गये, दफ़न करने वाले दिन ही शायद वो नया साथी भी साथ ले आये...
    ओर हां हमारे यहां एक भारतीया इन्जिंयर थे,जिन की वीवी जर्मन है, पिछले साल उन्होने आठवी मजिल से छलांग लगाई ओर .....
    एक दिन के बाद सभी भारतियो को पता चला, वो हम सब के दोस्त भी थे,( ओर दो दिन बाद हमारे घर आना था,)अब उन के बारे सुन कर बहुत बुरा लगा, सोचा उन के घर जा कर अफ़्सोस जहिर कर आते है,अब हम ने अपने ओर उनके खास दोस्तो से सलाह कि की सब इकट्टॆ जायेगे, ओर आधा घंटा बेठ कर वापिस...ओर फ़िर फ़लां के घर चाय पानी पिय़ॆगे, क्योकि हमारी पार्टी तो उस वजह से ्खत्म,
    लेकिन तभी हमे अपने ही एक दोस्त का फ़ोन आया कि जब उसे पता चला ओर वो अपनी पत्नि के संग अफ़्सोस करने गया तो मरने वाले की वीवी ने उसे घर से बाहर निकाल दिया, ओर बोली मेने तुम्हे कब इन्वीटेशन भेजा था, जब कि वो दोस्त उस आदमी का खास दोस्त था,
    फ़िर हम सब ने भी अपने कुर्ते पजामे वापिस रख दिये.
    ओर जब यह दफ़ना कर वापिस आते है, तो होटल मै जा कर खाना ओर हंसी मजाक , फ़िर वही से नयी जिन्दगी.....

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  41. हाय अब क्या कहें, दुनिया के रंगों में एक ये भी है।

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  42. अगर जेनी का पति भारत मे मरा होता तो ट्रेफ़िक जाम हो जाता. आज भारत मे तो शवयात्रा और ऊठावना आदि शक्ति परिक्षण स्थल होते हैं कि किसके यहा कितने लोग आये?

    अभी हमारे यहां एक गणमान्य स्वर्ग या नरक का तो मुझे नही मालूम कि कहां गये होंगे? पर उनके ऊठावने की शोक सभा ने ट्रेफ़िक दो घंटे जाम कर दिया और लोग कहते सुने गये कि यार फ़ला आदमी शोक्सभा में तो ट्रेफ़िक आधा घंटा भी जाम नही हुआ और आज तो खुलने का नाम ही नेही ले रहा.

    बेचारी जेनी ट्रेफ़िक जाम नही करवाना चाहती होगी इसलिये आप लोगों को निमंत्रण नही भिजवाया होग?:)

    रामराम.

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  43. यही तो फर्क है भारत और अन्य देशों में...
    हमारी सहानभूति जेनी जी के साथ है...
    मीत

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  44. "वो बड़े नार्मल अंदाज में बताने लगा कि वो इन्वाईटेड नहीं है."
    कितने फ़ार्मल होते हैं ये लोग। एक किस्सा याद आया। एक अंग्रेज़ तालाब में डूब रहा था और दूसरा उसे देख रहा था। जब पूछा गया कि उसे क्यों नहीं बचा रहे हो तो उसने कहा I AM NOT INTRODUCED TO HIM:-)

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  45. बड़ी जगह की बड़ी बातें...हमारे यहाँ या तो लोगों को फुर्सत बहुत है या फिर प्रेम...ये ही दो कारण हो सकते हैं किसी के दाह संस्कार में जाने के...बल्कि कहा ये जाता है किसी के सुख में शामिल चाहे ना हों लेकिन दुःख में जरूर शामिल होना चाहिए...जो करीबी रिश्तेदार हैं वो पूरे बारह दिन तक रुदन का कार्यक्रम चलाये रखते हैं...बाकि के तीन चार दिन में सरक लेते हैं...और बैठक में जो नहीं जा नहीं जा पाया वो ज़िन्दगी भर उस परिवार को मुंह दिखने लायक नहीं समझा जाता...भारत भारत है केनेडा केनेडा......मरना भी जहाँ फास्ट ट्रेक पर है...
    नीरज

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  46. are wahan kiriya-karam ke baad khane pe nahi bulana hoga jaa ke maare na bulayo hogo. aur waise bhi aapku dekh ke koi bhi kah sake ki je aadmi 4-5 murga to naashte mein hi daboch lete hoyego.

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  47. हम पर तो संवेदनशील होने के आरोप गाहे बगाहे लगते ही रहते है.. आप भी इस तरह लिखने लगे?? अनूप जी डंडा लेकर आते ही होंगे...

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  48. ओह, मोहमुद्गर में स्वामी शंकराचार्य लिखते हैं कि मृत्यु के बाद शरीर से भार्या भी भय खाती है और चाहती है कि दाह शीघ्रातिशीघ्र हो।
    परदेश में तो मामला ही उलट गया है।

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  49. कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था पर छोड़िए, अधिकतर लोग बुरा मान जाएँगे! :)

    बाकी आप काहे टेन्शन लेते हैं, नहीं जाना हुआ तो न सही, भाषण वाला पर्चा संभाल के रख लीजिए, क्या पता फिर कभी काम आ जाए! :)

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  50. समीर जी,अब पश्चिमी सभ्यता के बारे में आपने जानकारी दे दी तो उस बारे में क्या कहे...लेकिन डर है यहां भी इसे अपनाने वाले तैयार न हो जाए।.....लेकिन एक शिकायत है आपसे......आप ने जो भाषण तैयार किया था वह हमें तो सुनवा देते.....(लिखकर)....आप की मेहनत किसी काम तो आ जाती..:))

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  51. हवाएं तो भारत में भी ऐसी ही बहने लगी हैं .....

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  52. जीवन चलने का नाम है और सबके अपने अपने तरीके हैं चलने के :-)

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  53. zindagi kya kya nahi dikhati...
    kahin kuch pehlu jagte hain to kahin kuch.....

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  54. लगता है कि "कृष्णा" की गीता का रहस्य ठीक से यही समझ पाये हैं।

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  55. मृत्यु के बाद हमारे यहाँ तो वायकायदा समारोह होते है . तेहरवी आदि . मृत्यु भोज तो प्रतिष्टा के अनुसार किया जाता है .

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  56. हा हा ! अफ़सोस आपका कुर्ता और रचना काम नहीं आ पाए. :)

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  57. वैसे तो भावनाएँ यहाँ भी मरती जा रही हैं बस हम थोड़ा कुछ साल पीछे चल रहे हैं।

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  58. पता नहीँ क्यूँ ,
    फिल्म "रुदाली "
    याद आ गयी :-(
    इन्सान भी अजीब प्राणी है

    सुख दुख समेकृत्वा
    - लावण्या

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  59. दिल को छू गई ये पोस्ट।

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  60. KAvi Hridaya hai na isi liye Zyada imotional ho jyata hai, Upar se Bhartiya Sanskar.

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  61. वाह........ इस चोनू वाले मिस्रे का जवाब नहीं.........

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  62. भाई समीर जी,

    दुखद वाकये का भी आपने जिस शैली और अंदाज़ से वर्णन किया वह हम सब के लिए आपके इन्वीटेशन, कुरते- पाजामें और भाषण से कही ज्यादा महत्वपूर्ण है.

    कम से कम पाश्चात्य संस्कृति में "राम नाम सत्य" के जीवंत दर्शन से हम सब रू-ब-रू तो हो सके.

    अपनी संस्कृति के हिसाब से जो अपमान आपने वहां महसूस किया, भारतीय होने के नाते हम भी महसूस कर सकते हैं, पर उनका GOD हमारा राम नहीं है न सो हम राम नाम सत्य की बाट क्यों जोहे. हम पंच रचित अधम शरीर को मिट्टी कहते हैं और वे राख़ से भी हीरा पा लेते हैं .......आपनी-अपनी संस्कृति अपने-अपने ढंग.......

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  63. विचित्र समाज पर अद्‌भुत लेखन। वाह।

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  64. अजब तमाशा है इससे तो बढ़िया अपना भारत है
    शव डाह में ४ घंटा लगता है मगर ये नौटंकी तो नहीं होती
    भगवान् बचाए
    वीनस केसरी

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  65. यंहा भी हाल कम बुरा नही है समीर जी बतायेंगे किसी दिन फ़ुरसत में।बाकी आपने जो लिखा वो एक टीस छोड़ गया है मन में।

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  66. समीर जी आपकी कहानी ने मन को झकझोर दिया ।
    अत्यंत हृदयग्राही। इधर मैने कुछ नहीं लिखा,कारण अन्य व्यस्तताएं,ब्लाग बहुत समय मांगता हैं.
    उषा वर्मा

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  67. समीर जी ,
    कहानी बेहद अच्छी लगी।
    उषा वर्मा

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  68. ब्रिटेन में तो इससे बुरी हालत है ।

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  69. समीर भाई
    आपका अंदाजे बयां कमाल का . क्‍या सचमुच भारत और कनाडा के लोगों के व्‍यवहार में इतना अंतर.

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  70. दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है ..सब भाव इमोशन खतम होते जा रहे हैं ..आने वाला वक़्त और भी लगता है डरवाना सा होगा ...

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  71. हमारे देश में भी धीरे धीरे लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे है । रही बात कनाडा में इस तरह के व्यवहार की तो इसमे आश्चर्य की बात संभव है,क्योंकि हम ने कभी ऐसा नही किया है । जानकारी ही बचाव है का फार्मूला हमें आज ही से अपनाना होगा .........

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  72. लेखन के बारे में क्या कहें? वो तो ज़बरदस्त है ही.

    हाँ, यहाँ संस्कृति का मज़ाक नहीं बल्कि उससे जुड़ी तथाकथित संवेदनाओं (?) की बात हो रही है. अगर सबकुछ बाई इनविटेशन ही हो तो फिर संवेदना कैसी?

    तब तो किसी की संवेदना भी लौटा देंगे भाई लोग. यह कहते हुए कि; "मैंने तो आपको संवेदना प्रकट करने के लिए इनवाईट नहीं किया. आपने क्यों प्रकट की?"

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  73. emotions to wahaan par bhi hai...inki kuch fimo me,aur usse zyada aham,inki kai serials me emotions ka aisa behtareen potrayal dekhne ko mila ki bharatiy serials sab sharmaa jaaye...kahin na kahin wo jazbaati pahloo to hoga....shayad ab poori tarah se dabta jaa raha hai...
    sach ye hai ki India me bhi kisi bahut bade parivaar me death ho to shayad nazaara aisa ho jaaye,wahaan parivartan kuch zyada aa gayaa hai...unfortunate hai,par kya kare...

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  74. अच्छा लिखा है. आपने साफ़ शब्दो मे अच्छा बताया है कि एक हिन्दुस्तानी दुसरो के कल्चर के बारे मे किस तरह से सोचता है. साधु सधु..................

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  75. हम पर तो संवेदनशील होने के आरोप गाहे बगाहे लगते ही रहते है.. आप भी इस तरह लिखने लगे?? अनूप जी डंडा लेकर आते ही होंगे... कुश
    हम आये लेकिन डंडा है ही नहीं सो अपना सा मुंह लिये वापस जा रहे हैं।

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  76. काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार वे पांच चीजे हैं जिन्हें हमारे यहाँ त्यागने की बात सुनते आये हैं हम. किन्तु पश्चिम मोह से छूट गया दीखता है.
    आपको पढ़कर, Father's Day, Mother's Day...का मतलब और ठीक से समझ आता है. यहाँ तो हर रोज़ ही हरेक का होता आया है, क्यों वहां कम से कम एक दिन तो किसी के लिए रखना ही पड़ता है...
    विश्वास और पक्का होने लगता है कि हम तो गंवार ही भले भाई...

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  77. समीर जी,
    आपके मनोभाव समझ में आ रहे हैं। जहॉं वश न चले स्थिति को सकारात्‍मक रूप में ले लें। अगली बार के लिये कम से कम आपका कॉस्‍ट्यूम तो तैयार है।

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  78. समीर भाई....क्या कहें हंसते हंसते बुरा हाल हो गया.....लाजवाब लिखा है आपने....एकदम लाजवाब !!!!

    लेकिन यह केवल व्यंग्य नहीं है....पश्चिमी सभ्यता का बढ़िया परिचय दिया आपने....

    अपने यहाँ विधवाएं बेचारी हुआ करती हैं....वहां तो कब्रिस्तान से ही दूसरा हमसफ़र मिल जाता है तो फिर बिचारियों का सजना धजना लाजिमी है.

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  79. वाह,मरने की बातें भी मुस्कान ला सकती हैं आज देखा।
    हम भी सोच रहे हैं कि मरने के बहाने ही ब्यूटी पार्लर जाया जाए। परिवार को बता देंगे कि हम भी सजधज कर चिता पर चढेंगे। नही, बिजली की भट्टी में घुसेंगे।
    घुघूती बासूती

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  80. padh kar thoda dar laga.jis tarah se hamaara desh pashchim unmukh ho raha hai,kahin isi tarah ki sanwedanshunyata hamaare yahaan bhi to nahin aa jayegi!

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  81. बेनामी6/23/2009 01:46:00 pm

    पंच लाइन तो बढ़िया लगी

    वैसे भारत में भी कुछ कुछ ऐसा ही होने लगा है।

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  82. अरे साहब वहां तो यही हाल है और बहुत जल्द यहां भी यही होने वाला है लेकिन यहां अभी तक इन्विटेशन की नौबत नही आयी है।

    लेकीन ज़रा झगडा होने पर दुसरे के गम और खुशी मे शरीक नही हो रहे है.....

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  83. यह भी अजब गजब बात बताई आपने और इसमें भी हास्य निकाल ही लिया. यही आपकी तारीफ है.

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  84. समीर भाई, आपके इस संस्मरण ने मुझे संजीदा कर दिया. मौत तो शाश्वत है. जो आया है, जायेगा ही. हम अपने देश में, रीति-रिवाजों, संस्कारों की आड़ में क्या क्या करने-सहने को मजबूर हो जाते हैं. मरने वाले का कट्टर दुश्मन भी घडियाली आंसू लेकर उपस्थित हो जाता है. सारी जिंदगी आलोचना करने वाले भी ऐसे अवसर ऐसी प्रशंसा तथा सराहना के पुल बांधने लगते हैं कि लगता है मृतक से इन कभी अनबन नहीं रही . वहां ठीक है कि कुछ लोगों को निम्न्त्र्ण देकर बुलाया जाता है. आप वहां मौजूद हैं, सोचें, क्या इतना समय होता है कि न चाहते हुए भी जाएँ ही. यहाँ तो किसी को खांसी भी आ जाये तो मर्जी न मर्जी देखने जाना अनिवार्य है. मैं दूसरी बहस में पड़ गया. आपने मेरे लेख पर अपनी सम्वेदना का इज़हार किया, आप मेरे साथ हैं, यह एहसास दिलाने का शुक्रिया.

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  85. jab hmare yha event menegar ho skte hai terhvi me,to vo din dur nhi ?jab yh sabhyta bhi aa jay.
    bhrhal man ko chu gai post aapki lekhni bandhe rkhti hai .
    abhar

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  86. चलो एडवांस में बोल दे रहे हैं, हमारी शोक सभा के लिए कुरता पजामा धुलवा के, प्रेस करवा के रखियेगा और एक अच्छी सी कविता भी लिख लाइयेगा!

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  87. शायद हम ही अपने समस्त देशवासियों सहित शेष दुनिया की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील लोगों की श्रेणी में आते हों ।

    खैर वहाँ शोक भाषण उस समय भले ही न हो पाया हो यहाँ तो सदा के लिये बढिया हास्य-व्यंग हो ही गया

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  88. इस पोस्ट को आज ही पढ़ने का मौका मिला...हमाले लिए छोकगीत नहीं मदूछाला गाने जलूल आइएगा :)

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