आज आपके मास्साब छुट्टी पर है इसलिए आज आपकी निबंध की क्लास मैं लूँगा. मैं छात्रों को बता रहा हूँ. आज का विषय है: ’अंदर की बात एवं बाहर की बात’
क्या आप में से कोई छात्र इस विषय पर कुछ कह सकता है?
’सर, परिभाषा तो नहीं मगर उदाहरण से बता सकता हूँ.’ यह वही छात्र है जिसने पिछली बार निबंध में टॉप किया था.
मैं बहुत खुश हुआ कि अगर उदाहरण से बता देगा तो परिभाषा सिखाना तो बहुत आसान हो जायेगा.
’सर, आपने अभी कहा कि मास्साब छुट्टी पर हैं, यह बाहर की बात है और असल में मास्साब को छुट्टी पर भेजा गया है क्यूँकि उन पर हमारे निबंध चुरा कर छापने की इन्क्वायरी चल रही है, यह अंदर की बात है.’
चुप रहो-मैं मास्साब की बची खुची इज्जत पर डांट का पैबंद लगाने की मित्रवत कोशिश करता हूँ. तुम लोग बस शारीफ लोगों को बदनाम करना जानते हो.
अब मैं उनको बोलने का मौका न देते हुए परिभाषा पर आ जाता हूँ:
दरअसल, बाहर की बात वह होती है जो अंदर से आती है बाहर सबको बतलाने के लिए और सामन्यतः उसी के द्वारा भेजी जाती है, जिसके विषय में बात है. अंदर की बात सामन्यतः बाहर से बाहर के लिए आती है और सामन्यतः अंदर से टूटे हुए व्यक्ति द्वारा भेजी जाती है.
उदाहरण के लिए, संसद में चमका चमका कर दिखाया गया कि हमें १ करोड़ घूस दी गई. यह बाहर की बात कहलाई एवं यह उन्हीं के द्वारा कही गई जिन्हें घूस मिली. इसमें अंदर की बात यह है कि घूस दरअसल २५ करोड़ मिली और यह बात उसने बताई जिसने घूस दिलवाने के लिए अंदर के आदमी का काम किया-देयता और ग्रेहता के बीच सेतु के समान.
मगर सर हमने तो सुना था कि अंदर की बात अक्सर अफवाह होती है! यह फिर वही विद्व छात्र पूछ रहा है.
बेटा, अंदर की बात स्वभाववश अफवाह जैसी ही लगती है किन्तु अफवाह और अंदर की बात के बीच एक बारीक धागे जैसी लकीर का विभाजन है इसे ज्ञानी लोग समझ जाते हैं और मौका देख कर किनारा कस लेते हैं जैसे अडवानी जी ने इस घूस कांड में किया. अफवाह अक्सर कोरी बकवास होती है जबकि अंदर की बात मूलतः ठोस. अतः यह अंतर करना सीखना परम आवश्यक है और यह मात्र अनुभव से आ सकता है. जिस तरह घाघ नेता बनने की कोई किताबी पाठशाला नहीं है, बस अनुभव से बना जा सकता है, ठीक वैसे ही इसे पहचानने के लिए भी मात्र अनुभव की ही आवश्यक्ता है.
जैसे उदाहरण के तौर पर अमरीका का कहना कि इराक के पास वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन हैं, यह बाहर की बात थी असल में अंदर की बात यह थी कि इराक के पास तेल के लबालब कुएं थे, जिस पर अमरीका की नजर थी.
एक अन्य उदाहरण के माध्यम से यह बात समझने की कोशिश करो कि अडवानी जी चिल्ला रहे थे कि परमाणु करार नहीं होना चाहिये, यह बाहर की बात थी यानि मात्र जनता के लिए दिखावा. पुख्ता बात यह थी कि होना तो चाहिये मगर हमारे शासन काल में, न कि कांग्रेस के.
बाहर की बात है मनमोहन सिंग कहते है यह परमाणु संधि देश हित में है. इसमें अंदर की बात का विशिष्ट उदाहरण है कि मैडम ने ऐसा कहने को कहा है बाकि तो मनमोहन सिंग को खुद नहीं मालूम कि किसके हित में है. यह अपने आप में एक विचित्र उदाहरण है.
ऐसा ही अपवाद एक और है कि जब अंदर की बात कई बार अंदर से ही धीरे से बाहर करवा दी जाती है बाहर वाले के द्वारा जो अंदर का आदमी होता है-जैसे कि अडवानी जी नहीं चाहते कि मायावती प्रधान मंत्री बने.
मगर सर, यह बात तो बाहर से बाहर आई थी, बालक कुतहलवश पूछ रहा है.
हाँ मगर भिजवाई तो अंदर ही से थी, मैने बताया.
अन्य भारतीय समस्यायों के जंजाल में फंसी आम जनता जिस तरह इन नेताओं की चालों और बयानों से कन्फ्यूज होकर चुप बैठ जाती है, कुछ वैसे यह छात्र भी अपनी कुर्सी पर वापस बैठ गया.
इसी तरह अपवादवश कभी बाहर की बात बाहर से ही अंदर वाला बाहर वालों के लिए अंदर के व्यक्ति के द्वारा कहलवा देता है जिसका उम्दा उदाहरण अटल जी के समस्त संदेश स्व. महाजन जी द्वारा प्रसारित किए जाना था.
अब बालक और ज्यादा कन्फ्यूज था, शायद किसान होता तो आत्महत्या कर लेता मगर सारांश में इतना समझ पाया कि बाहर की बात झूठी और अंदर की बात सच्ची, अगर अफवाह न हुई तो और अफवाह और अंदर की बात के बीच भेद करना अभी उसके लिए बिना अनुभव के संभव नहीं.
फिर भी हिम्मत जुटा कर वो पूछ ही लेता है कि फिर वो मास्साब की चोरी की इन्क्वायरी वाली बात तो अंदर की बात कहलाई.
मुझे जबाब नहीं सुझता और मैं सर दर्द का बहाना बना कर निकल लेता हूँ यह कहते हुए कि जब तुम्हारे मास्साब आ जायें, तो उनसे पूछ लेना.
अंदर की बात बाहर आ रही है,लीकेज ठीक करवा लीजिए :)
जवाब देंहटाएंकौन अंदर की और कौन बाहर की हम समझ नहीं पाए। आप समझे? तो बताएँ ठीक से।
जवाब देंहटाएंएवजी क्लास के 40 मिनट कटे वही बहुत।
bahar ki baat ye hai ki sab aapki waise hi tarif karenge jaise main kar raha hun,aur under ki baat ye hai ki main bhi us vidvaan chhatra ki tarah confusiya gaya hun.wah sameer jee maaza aa gaya sach me,ye sach hai,wo under waali baat darasal afwah thi
जवाब देंहटाएंबाहर की बात तो ये है की मज़ा आ गया आपको पढ़कर.. बढ़िया लेख रहा.. और अंदर की बात तो ही ही ही.... आप जानते ही है..
जवाब देंहटाएंमुझे जबाब नहीं सुझता और मैं सर दर्द का बहाना बना कर निकल लेता हूँ यह कहते हुए कि जब तुम्हारे मास्साब आ जायें, तो उनसे पूछ लेना.
जवाब देंहटाएं" ha ha ha ha तभी तो कहा है न जिसका काम उसी को साजे ......."
great to read Regards
प्रथम आने वाली स्टुडेंट की चर्चा ......धासु च फांसू रचना :-)
जवाब देंहटाएंमास्साब के खिलाफ साजिश चलरेली है। मास्साब छुट्टी पे नहीं हैं. मास्साब के बच्चे बहुत बदमाश टाइप हैं, आखिर ट्रेन्ड किसने किया है।
जवाब देंहटाएंउनसे संभल कर रहें।
अंदर की बात ये है कि यह पोस्ट पढ़ते-पढ़ते मुझे ऑफिस की देर हो रही है; इसलिए एक ही बार पढ़ पाया और एक बार में पूरा बोध नहीं हो पाया। ...बाहर की बात ये है कि अगर शुरू में टिप्पणी नहीं पहुँची तो सैकड़ों के बीच में बिला जाऊंगा।
जवाब देंहटाएंतो लिजिए, मेरी ओर से-
“ग़जब लिखा है सर जी...”
समीर साहब,
जवाब देंहटाएंन ये बाहर की
और न अन्दर की बात है,
यह तो ब्लॉग धुरंधर की नई सौगात है.
कितने मुद्दे और कितने रंग दे जाते हैं आप
और...और होंगे साब...आप तो बस आप हैं !
==================================
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
पता नही यह बात दिमाग से बाहर हो गई है इस बार :) अब जब हमें मास्साब [यानी आप मिलंगे ] तो आपसे यह समझेंगे ..:)फिलहाल क्लास बंक कर रही हूँ :)
जवाब देंहटाएंमान गए आपको समीर जी,वाह, क्या कहानी है...वैसे अन्दर की कौन और बाहर की कौन, ये आप हमें बताएं...अंत में इतना कहूँगी की अंदाज़ आपका वैसे ही जुदा है...
जवाब देंहटाएंmaine aaj pahli bar aapko padha. Aap bahut uchch likhte hain.
जवाब देंहटाएंक्या व्यू रचा है, अन्दर बाहर का. आखिर अन्दर की बात बाहर आ ही गई, मगर बाहर बाहर से ही.
जवाब देंहटाएंबहूत खुब लपेटा मास्टरजी को :) और उसी बहाने बाकियों को.
अंदर अंदर बहुत कडवी बातें समा गई... और बाहर बाहर हम हंसते ही रह गए!!
जवाब देंहटाएंमान गए साहब!! समस्या यही है कि वो अंदर की बात ठोस हैं या अफ़वाह... खैर अनुभव से समझ लेंगे... :)
क्या खूब सच कहीं अंदर की बात बाहर की बात।
जवाब देंहटाएंलीक ठीक से नही कर पा रहे है जी .हमे ठेका दे दे १००% लीक होने की २५०% गारंटी :)
जवाब देंहटाएंअन्दर की बात कभी बाहर की हो जाती है और बाहर की बात कब अन्दर की बात थी पता ही नहीं चला… मैं बहुत कन्फ़्यूज्ड हूँ…
जवाब देंहटाएंबाहर की बात झूठी और अंदर की बात सच्ची, अगर अफवाह न हुई तो और अफवाह और अंदर की बात के बीच भेद करना किसी के लिए संभव नहीं। आप बच्चों को सिखाने चले हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और दिलचस्प अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंओर confuse हो गया हूँ...दुबारा attend करूँगा तब समझ आयेगा .....
जवाब देंहटाएंपहले आप ये बताएं की इतनी सारी अन्दर की बातें आप कहाँ से निकाल लाये?
जवाब देंहटाएंसमीर जी आप इस अंदर ओर बाहर की बात मे सभी की निकार भी खीच रहे हे, ओर साथ साथ मे मुकर भी रहे हे, भाई इस ४०,४५ मिनट की कलास मे तो हमारा खोपडा ही घुम गया,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
kathin hai tah tak jaana fir use likhna aur sabko samjhana agar apsi talmel khoob hota to koi dhokha na tha
जवाब देंहटाएंइस अन्दर बाहर का नतीजा रहा कि मास्साब कॉ सिरदर्द हो गया .लगता है ये बातें कई दिनों से ब्लॉगर के दिमाग में उमड़ घुमड़ रही थीं आज बाहर आ गयीं -अभी भी कुछ अन्दर होंगीं उन्हें भी जल्दी बाहर करिये क्योंकि बाहर की कई बातें अन्दर होनें को बेताब हो रही होंगीं .यह तो बने क्या बात जहाँ बात बनाए न बने वाली परम्परा की पोस्ट हो गयी !यह भी खूब रही !
जवाब देंहटाएंक्या बात है सर....
जवाब देंहटाएंअब मुझे भी इस तरह से देखने का ज्ञान मिला।
आभारी रहूँगा।
कन्फ्यूज हो गया। चला आत्महत्या करने .. :)
जवाब देंहटाएंबाहर से पोस्ट पढ़कर लगा कि पोस्ट अन्दर की बात के बारे में है. अन्दर जाकर देखा कि बाहर जो लगा वो अन्दर नहीं है. आख़िर अन्दर की बात हमेशा बाहर की बात से जुदा होती है. मसलन अन्दर की बात ये है कि ये पोस्ट किसी मास्साब को बदनाम करने की साजिश का नतीजा है. ये अलग बात है कि बाहर से ऐसा नहीं दिखाई दिया. बाहर से तो यही लगा कि अन्दर की बात वही है जो बाहर से दिखाई दी. लेकिन अन्दर की बात कुछ और निकली. इस अन्दर और बाहर की बात के चक्कर में मास्साब बेचारे मारे गए. आज अन्दर की बात का पता चला कि निबंध छापने के आरोप में मास्साब के ऊपर इंक्वाईरी बैठी है.
जवाब देंहटाएंकब वो दिन आएगा जब बाहर और अन्दर की बात एक ही होगी.
हा हा हा बहुत अच्छे समीर जी
जवाब देंहटाएंमुझे तो कुछ समझ नहीं आया। मैं भी बस उसी विद्यार्थी की तरह सोचती हूँ। सुन्दर व्यंग्य है। बधाई स्वीकारें।
अन्य भारतीय समस्यायों के जंजाल में फंसी आम जनता जिस तरह इन नेताओं की चालों और बयानों से कन्फ्यूज होकर चुप बैठ जाती है, कुछ वैसे यह छात्र भी अपनी कुर्सी पर वापस बैठ गया.
जवाब देंहटाएंअच्छा भिगो कर मारा है.
.
जवाब देंहटाएंई अंदर के बात..बाअर के बात क्क्या करना जी ?
अइयो..ओन्नोल्युलूऽ ..ऽऽ
एक्क बात बोलने का, नाज्जि..
अइयो अंदर बोलो..याफेर बाअर बोलो
वइसे येब्भी सैकड़ा टिप्पणी पोस्ट होयेंगा जी
बड़ी गहरी बात कह गए हैं, भाई। अति रोचक और गहरे सत्य से भरी।
जवाब देंहटाएंमान गये सब्स्टीटुयूट गुरुजी को.अंदर बाहर की सारी पोल खोल दी.
जवाब देंहटाएंगुरुजी इब यो ताऊ तो थारी क्लास तैं कितै
जवाब देंहटाएंजा भी नही सकदा ! मैं तो बाबू के लट्ठ तैं
डरके इत थारी क्लास मैं ही बैठ्ठ्या २ बात
नै समझण की कोशीश कर रहा हूँ ! समझ
आ ज्यागी त टिपणी म लिख देंगे ! नही
त आपणी बुद्धि किम्मै मोटी सै ! वैसे
मोटी बात या सै के पढण मै मजा आण
लाग रया सै !
bhai ye andar bahar ke chakkar mein andar ka bahar aur bahar ka andar aa raha hai. Dhanya bhag prabhu aapke jaise shikshak hum jaison ke palle nahin pade :)
जवाब देंहटाएंसंसद में चमका चमका कर दिखाया गया कि हमें १ करोड़ घूस दी गई. यह बाहर की बात कहलाई एवं यह उन्हीं के द्वारा कही गई जिन्हें घूस मिली. इसमें अंदर की बात यह है कि घूस दरअसल २५ करोड़ मिली और यह बात उसने बताई जिसने घूस दिलवाने के लिए अंदर के आदमी का काम किया-देयता और ग्रेहता के बीच सेतु के समान.
जवाब देंहटाएंवह क्या बात है अन्दर-बाहर की, कितनी अन्दर, कितनी बाहर.........????????
अंदर-बाहर रोज ही घटे कोइ समझ ना पाये,
जवाब देंहटाएंबलिहारी समीर जी, जो अर्थ दिया समझाये।
बिलकुल सच लिखा है आपने और
जवाब देंहटाएं" समझनेवाले समझ गये हैँ,
ना समझे वो , अनाडी है ! "
:-))
- लावण्या
par andar ki baat to wahi hui na,jo us topper ne puchha?
जवाब देंहटाएंbahut achhe dhang se samjhaya......
बस देखने का कोण और नजरिया अलग है.. घुमा-फिरा के बात तो एक ही है... और इस घुमा-घुमा के कही गई बात को हम समझ तो गए ही !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बहुत अच्छा अपने मास्साब के दिल के अन्दर की बात बहार कर दी . मजा आ गया .
जवाब देंहटाएंमहेंद्र मिश्रा जबलपुर
हिन्दी ब्लॉग समयचक्र और निरन्तर
आपको बहुत बहुत धन्यवाद! आपने बताया था की मेरा ब्लोग ब्लोगवानी पर नही है। सच ही कहें।
जवाब देंहटाएंऔर मै ब्लोग्वानी पर रजीस्टर करने चला गया पर रजीसटर नही हूंवा।
चीट्ठाजगत पर मेरा ब्लोग है।
ये पोस्ट मै दो - दो बार पढा क्यो की बहुत दीमाग लगा कर लीखा है आपने।
सबने इतनी तारीफ कर दी कि लिखने को कुछ बाकी ही नहीं रहा। पढ कर मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही रोचक और दिलचस्प कथन
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही रोचक और दिलचस्प कथन
जवाब देंहटाएं'सब चलता है- हमें क्या!' की पलायनवादी मानसिकता को झकझोरती है यह रचना।
जवाब देंहटाएंअन्दर की बात तो यह रही कि आप बहुत जबर व्यंग्यकार हैं! बधाई!
जवाब देंहटाएंअंदाज पसंद आया। दिलचस्प है।
जवाब देंहटाएंसमीर भाई,
जवाब देंहटाएंआपने बात कहने का जो तरीका चुना है कबीले तारीफ है. मजा आ गया.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत शानदार वयंग्य!
जवाब देंहटाएंपढ़ कर मज़ा आ गया
उम्मीद है आगे भी ऐसी मजेदार रचनाये पढ़ने को मिलेंगी
मास्साब की निबंध चोरी वाला मसला वाकई अंदर की बात है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है . बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है . बधाई !
जवाब देंहटाएंव्यंग्य बढिया है . बधाई !
जवाब देंहटाएं"बाहर की बात बाहर से ही अंदर वाला बाहर वालों के लिए अंदर के व्यक्ति के द्वारा कहलवा देता है"
जवाब देंहटाएंबहुत "confusion" है.. पर लाजबाब है..
अंदर बाहर के चक्कर में चक्कर आगया उस छात्र को भी और हमें भी इतनी बार तो अंदर बाहर कभी नहीं हुए।बाप रे...confuse fully confuse
जवाब देंहटाएंआपका व्यंग्य बड़ा पैना है। क्लास जो आपने ल्रगाई है।अनूठी है।
जवाब देंहटाएंक्या बोलूं सर जी... शब्द नहीं हैं... क्या क्या सटीक उदहारण मार मार के समझाया है. बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट का हमेशा इंतज़ार रहता है..
अन्दर से बाहर और फिर बाहर से अन्दर आने मे बड़ा मज़ा आया।
जवाब देंहटाएंवैसे सिर तो कुछ चकराया लेकिन ये समझ ज़रूर आया कि
अतीक अहमद और मायावती के बीच जो बातें हैं वो अन्दर की है या बाहर की …
अनुभव मिल गया लगता है :)
भई,आप कबसे इतने पॉलिटिकल हो गए समीर भइया ? समझ के हिसाब से व्यंग्य समझ में कम आया किंतु बहुत ही पसंद आया
जवाब देंहटाएंहम तो कनफूजिया गये हैं, समझ ही नहीं आ रहा कौन अंदर और कौन बाहर , बडी बमचक है भाई।
जवाब देंहटाएंअन्दर और बाहर की बात में तो हम चक्र गये. हम तो सर खुजा रहे है और सोच रहे हैं की मास्साब आ जाए तो उन्ही से समझ लेंगे. लिखा अच्छा है लेकिन समझ में क्या आया इसकी गारंटी नही....हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंमास्साब की जांच रपट आ गयी? क्या निकला?
जवाब देंहटाएंkya likhoo aapne to nishabd kar diya.shandar kataksha.sidhe bhitar tak choobh jaanevaalaa.maja aa gaya.aise andar aur bahar ki baat ka sach bataenge to bhoochaal aa jayega.
जवाब देंहटाएंkya likhoo aapne to nishabd kar diya.shandar kataksha.sidhe bhitar tak choobh jaanevaalaa.maja aa gaya.aise andar aur bahar ki baat ka sach bataenge to bhoochaal aa jayega.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्ययंग,बात ये है की बात अन्दर की हों या बाहर की बात तो बात होती है फिर आप से अच्छी बात और कौन बना सकता है बात ही बात में बात बता जाते है आप,आप की बात ही निराली है , वाह समीर जी क्या बात है
जवाब देंहटाएंव्ययंग लेखन का शानदार नमूना ,हर तरफ बात ही बात
जवाब देंहटाएंव्ययंग लेखन का शानदार नमूना ,हर तरफ बात ही बात
जवाब देंहटाएंव्ययंग लेखन का शानदार नमूना ,हर तरफ बात ही बात
जवाब देंहटाएंसत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; YAH अंदर की बात HAI.
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह, मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह, मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरुदेव ,
जवाब देंहटाएंपरिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !
jbpहनुमान जयंती के अवसर पर आपके द्वारा लिखी पोस्ट आज बेहद याद आ रही है .कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आपके न सही आपके ब्लॉग के दर्शन कर लिए है. जन्माष्टमी पर्व के अवसर पर हार्दिक शुभकामना .
जवाब देंहटाएंसमीर जी अन्दर बाहर कि बात बताते बताते अमरीका से लेकर हमारे पि ऍम साहब कि पोल खोल दी आपने!
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी कि हार्दिक शुभकामनाएं !!!
बाहर की बात ये कि अछ्छा लिखा था, अन्दर की बात ये कि कुछ् समझ मे नही आया :(
जवाब देंहटाएंहम तो पोलिटिकल इंसान हैं नहीं इसलिए बाहर की बात सुन कर अन्दर बिठा लेते हैं और फ़िर उसे अन्दर की बात कह कर बाहर सुना देते हैं...समझे आप? नहीं ना...हम भी कहाँ समझे हैं?
जवाब देंहटाएंनीरज
Bhaee itanee saree tippaniyon ke peeche aur wo bhee sab kee sab +ve ,andar kee bat kya hai ?
जवाब देंहटाएंबाहर की बात है मनमोहन सिंग कहते है यह परमाणु संधि देश हित में है. इसमें अंदर की बात का विशिष्ट उदाहरण है कि मैडम ने ऐसा कहने को कहा है बाकि तो मनमोहन सिंग को खुद नहीं मालूम कि किसके हित में है. यह अपने आप में एक विचित्र उदाहरण है
जवाब देंहटाएंबहुत सही !!! बेचारे मनमोहन!!
Andar se koi bahar na aa sake....
जवाब देंहटाएंआपको पढ़कर बहुत अच्छा लगता है. आप भी एक लेख से कितनी दूर तक चोट करते हैं.
जवाब देंहटाएंare baap re baap
जवाब देंहटाएंchumbanpuraan
कमाल का लिखते हैं..भाई। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंसादर,
पंकज