सोमवार, मई 26, 2008

किस की नजर लगी तुझे मेरे ब्लॉगजगत!

ब्लॉगजगत में जो चल रहा है, जो वातावरण बना है, सभी एक घुटन का अहसास कर रहे हैं. बस, चन्द मुट्ठी भर लोग, सारा माहौल खराब कर हैं. उनका होना या न होना, चिट्ठाकारों की गिनती पर कोई असर नहीं डालता मगर आगमन का मार्ग अवरुद्ध करता है.

आज ज्ञान दत्त जी की पोस्ट और कल शिव भाई की पोस्ट ने मुझे मजबूर किया कुछ सोचने को. मैं खुद इन हालातों से परेशान हूँ. स्वभाव के विपरीत बार बार कुछ कह देने को मन करता है, बस, रोक रखा है खुद को, संस्कारों की भारी भरकम जंजीरों से जकड़ कर. बहुत मजबूत है इनकी पकड़. इतनी आसानी से नहीं छूटने वाली.

फिर भी कुछ हल्का महसूस करुँ शायद, यह लिख कर, सो लिख रहा हूँ. कृप्या उदगारों को उदगार ही मानें आहत मन के और अन्यथा न लें.

depressed1

किस की नजर लगी तुझे मेरे ब्लॉगजगत!

नहीं जानता
क्यूँ एक कसैलेपन का
अहसास है
मेरे
भीतर भी
और
बाहर भी

नहीं जानता कि
यह क्या है?
जो उमड़ रहा है
अन्तस में भी और
बाह्य वातावरण में भी

मगर कुछ तो है...

नहीं जानता !

मन भटकता है
उन गलियों में
जा बसने को
जहाँ कुछ
बस, जरा सी कुछ
मिठास हो
झूठा ही सही-
अपनेपन का
अहसास हो.

कोई मुझे
राह दिखा दो,
उस गली का
पता बता दो!

मरने से पहले
दो घड़ी
सुकून से
जीना चाहता हूँ.

जहर पी कर तो
सभी जी रहे हैं यहाँ..
मैं मरने के वास्ते
अमृत
पीना चाहता हूँ.

नहीं जानता
क्यूँ!

-समीर लाल 'समीर'
(जैसा मन में आया-कहा, बिना किसी एडिट के और दूसरी बार पढ़े)

48 टिप्‍पणियां:

  1. जहर पी कर तो
    सभी जी रहे हैं यहाँ..
    मैं मरने के वास्ते
    अमृत
    पीना चाहता हूँ.
    ----------------
    अमृत मिलता होता तो यह दुनियां स्वप्नों की खुशनुमा दुनियां होती।
    बड़ा कण्ट्राडिक्शन है जिन्दगी में। :(

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  2. किसी की नजर नहीं लगी है, जो घुटन बढ़ा रहे हैं, वे सबकी नजर के सामने हैं। सबसे बड़े अपराधी वे हैं, जो इस हालात पर चुप्पी साध कर महान बने बैठे हैं। दरअसल ऐसे लोगों की चुप्पियों ने ही गुनहगारों की सबसे ज्यादा मदद की है। आपकी चिंता एकदम जायज है।

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  3. समीर जी,
    आपकी बात बिल्कुल सही है | मैंने भी यही अनुभव किया और एक जगह तो भावावेश में टिपण्णी भी कर दी, लेकिन शिवजी के ब्लॉग पर ज्ञानदत्तजी की टिपण्णी देखकर नैन खुले | हम नहीं बढावा देंगे इस गंदगी और ओछी राजनीति को | ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि और भी सार्थक लेखन करें | पहले हफ्ते में १ पोस्ट लिखते थे तो अब ३ लिखेंगे, सुंदर लिखेंगे और इस तनाव के माहौल को दूर भगाएंगे | ब्लॉग जगत में सकारात्मक सहयोग देंगे | बस आज यही सोचा है |

    आप जैसे अन्य लोग तो हैं ही इस यज्ञ में साथ निभाने के लिए |

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  4. आपकी तरफ गर्मी नहीं पड़ रही इसका ये मतलब कि हम अपनी तरफ वाली भूल जायें? हालांकि देखिये, चढ़ तो रही है बिना आप तक पहुंचे भी.. बिना दुबारा पढ़े कविता ठेल दे रहे हैं..

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  5. "ब्लॉगजगत में जो चल रहा है, जो वातावरण बना है, सभी एक घुटन का अहसास कर रहे हैं. "

    आपने जो कहा, एवं कविता द्वारा जो उदगार प्रगट किये मैं उनका अनुमोदन करता हूँ

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  6. बेनामी5/26/2008 11:54:00 pm

    उसके बाद भी न समझ में नहीं आया.
    (मज़ाक है ज़नाब.)
    मैं मरने के वास्ते अमृत पीना चाहता हूँ, यह वाक्य बहुत नया और आपके चरित्र के विपरीत सा लगा.
    इसी लिए तो आप मेरी टिपण्णी पा गए नहीं तो बरसों से आपके चिट्ठे पर आ रही हूँ और टिपण्णी नहीं की.
    कभी- कभी जिंदगी ऎसी लगने लगती है, भावनाओं का ईमानदारी से सही चित्रण है.
    अभी भी नाम नहीं दूँगी, आप भी क्या खूब याद रखेंगे.

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  7. ब्लाग जगत में इस वक्त जो भी हो रहा है वह अच्छा नही हो रहा है ..दुखद है यह सब होना ..

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  8. नजर लगी है तो उतर भी जाऐगी । दो चार लोगो की यह अंह की लडाई एक समय खत्म भी हो जाऐगी। यह गंदगी कब तक गंगा मे ठहर पाऐगी।
    समीर जी।

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  9. अब क्या कहे जी . कहे तो दिक्कत ना कहे तो दिल परेशान.
    "लेकिन अब हम कहे किसको
    सब तो लगे है काटो खिसको
    तुम समझाओगे किस किस्को
    यही है ब्लोग का दरदे डिस्को "

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  10. माहोल इनता बिगड़ गया है कि किसी से बात करना तो दूर अब तो लिखने की इच्‍छा भी नही करती है ।

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  11. इसी कसेलेपन ने मुझे भी दो पोस्ट इल्खने को मजबूर कर दिया था. मैं दुखी नही था लेकिन इन हरकतों से थोड़ा परेशां जरुर था.

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  12. नहीं जानता
    क्यूँ!

    सब कह दिया आपने समीर जी। आपकी पीडा समझी जा सकती है..

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  13. बेनामी5/27/2008 12:54:00 am

    समीर
    आप का ब्लॉगजगत भारतीय कुनठित परमपरा का हिस्सा हैं . वह परमपरा जहाँ सबकुछ छुप कर किया जाता हैं और जो करते हैं वही दूसरो के करने पर सबसे पहले निशाना साधते हैं।
    यहाँ पर महिला को उसी प्रकार से अनावृत किया जाता हैं जैसे शब्दों से बाहर कि दुनिया मे ।
    महिला नहीं सुनेगी अपशब्द तो निशान बनाओ उसके कपड़ो को ।
    जिनके पति भी ब्लॉगर हैं , भाई ब्लॉगर हैं वह सामाजिक व्यवस्था के चलते अपनी बहिन पत्नी के डिफेन्स मे खडे हैं ना खडे हो तो हम उनको प्रश्न चिन्ह करेगे और खडे हो तो हम महसूस करेगी की "वह क्या करे जो सिंगल महिला हैं " सिंगल हैं और ब्लॉगर हैं और महिला हैं तो वह तो सनकी हो ही गयी आप कहे तो मै पोस्ट साथ उन सब ब्लोग्स का रेफरेंस दू ?? पर जानती हूँ आप ख़ुद बहुत पढ़ते हैं ।
    आप व्यथित हैं पर क्यो ? क्या केवल जो नये लोग अब लिख रहे हैं उनके कारन आप का ब्लॉग जगत ऐसा हो गया हैं ?? क्या ये जो हो रहा हैं उसमे किसी उस ब्लॉगर का हाथ नहीं हैं जो एक साल से पहले यहाँ पर लिख रहे थे ।
    बिल्कुल यहाँ वही हो रहा हैं जो बाहरी समाज मै हो रहा हैं । और ये होता रहेगा । अगर आप इसमे बदलाव चाहते हैं तो Hindi ब्लोग्स का अग्ग्रेगेशन बंद करवा दे । ब्लॉगर वहाँ जाता हैं देखता हैं किस पोस्ट को कितनी हित मिली फिर उसी को खोलता हैं । कम से कम ये हित और कमेन्ट दिखाना और किसे कितना पढा गया बंद करवा सके तो आप को फरक ख़ुद महसूस होगा । इंग्लिश ब्लोग्स की तरह इधर उधर बिखरे ब्लोग्स होगे लोग खोज कर पढेगे

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  14. बहुत सही कहा..
    पहले पहल जब संचिका पर पढा तो मुझे भी आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है.. इससे पहले जब कभी भी ऐसी कोई बात होती थी तब मैं भी कुछ ना कुछ जरूर लिख डालता था.. मगर अब हालत बिलकुल वैसी ही हो गई है जैसे हम कोइ अपराध की खबर अखबार में पढ़ते हैं और 2 मिनट बाद भूल जाते हैं.. एक तरह से सैचुरेशन पाईन्ट पर पहुंचते जा रहें हैं..

    आप तो बिना एडिट के भी ऐसी लिखते हैं कि उसमें एडिट कि जरूरत ही नहीं रह जाती है.. कविता भी दिल को छू लेने वाली है..

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  15. एहसास कसैलेपन का खुद से निकाल दो,
    हिन्दी के ब्लोगरों बिगड़ी को सुधार लो।

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  16. आपकी व्यथा में हम जैसे कई लोग शामिल हैं, लेकिन फ़िलहाल कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है…

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  17. आप सही कह रहे हैं. चन्द मुट्ठी भर लोग, सारा माहौल खराब कर हैं हिन्दी ब्लाग जगत का. ऐसे लोगों को दरकिनार किया जाना चाहिए. अपनी कहा सुनी कहीं और करें. ब्लाग पर एक जिम्मेदार ब्लागर की तरह पेश आयें.

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  18. नर हो, न निराश करो मन को
    नाक पर रूमाल पर रख आगे निकल लो,
    गंदगी सूँघना अपरिहार्य तो नहीं ?

    बैकग्राउंड में कंट्रास्ट नहीं रहेगा
    तो धवलता चमकेगी कैसे ?
    खराब तो मुझे भी लग रहा है,
    यह अराजकता देख कर ,
    किंतु इससे डटे रहने का हौसला भी तो मिल रहा है ।
    डोन्ट वरी, बी हैप्पी

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  19. समीर जी,

    दिल छोटा न करें.. साईंस के सभी रूल सभी जगहों पर लागू नहीं होते... ब्लोग जगत तो एक परिवार की तरह है... और आपने कितने परिवारों को समूल नष्ट होते देखा है... यहां तो जन संख्या दिनो दिन बढती जा रही है... रिसोर्स बढते जा रहे है.. कम्पयूटर आम आदमी तक पहुंच बनाने लगा है... इस लिये ब्लोग जगत का तो विस्तार ही होगा... अगर हाफ़ लाईफ़ का कान्सेप्ट मान भी लिया जाये... और अगर थोडा उठा पटक न हो तो पढने में मजा कहां रहेगा...ज्यादातर उन्हीं पोस्ट को हिट्स मिलते हैं जहां विरोधाभास होता है या चटपटा टाईटल होता है.. शायद यही वह बात है जो चिट्ठाकारों को कुछ ऐसा लिखने के लिये प्रेरित करता है ... कविता तो गिने चुने लोग पढते हैं... मैं जानता हूं :)

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  20. आपने ये पोस्ट लिख कर मेरे मन की बात कह दी है......बहुत दिनों से अपने आप को रोक रहा हूँ की कही कुछ न लिखूं याधिपी मेरे स्वभाव मे नही है अच्छा हुआ सोमवार को व्यस्त रहा इसलिए अपनी एक पुरानी नज्म ही पोस्ट कर दी.....ज्ञान जी ओर शिव जी का विचलित होना स्वाभाविक है ओर आपसे ये लेख पाकर दिली खुशी हुई क्यूंकि आप पुराने ब्लोगर्स मे से एक है.......

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  21. हमारी हालत आपकी पोस्ट पर लगाये उस फोटो की सी है जी ........ कुछ समझ नही आ रहा ये हो क्या रिया है .....

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  22. कभी छवि के विपरीत बोलना भी चाहिए...आखिर ब्लॉग है किस लिए?

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  23. सही है. स्थिति वाकई व्यथित करने वाली है. मगर उपाय क्या है? हमारी समझ से तो भले लोगों को अपनी आवृत्ति बढ़ा देनी चाहिए. सुहावनी फुहारें अगर तेज होंगी तो गर्द गुबार अपने आप बैठ जायेंगे. ज्ञान जी काफ़ी लिख रहे हैं. आप भी रोजाना लिखने का प्रयास करें.

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  24. समीर जी आप की चिंता और दुःख ग़लत नहीं है...
    ब्लॉग स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम है..लेकिन इतना भी स्वतंत्र क्यों ??कि किसी का दिल ही दुखाने लगें?
    सभी को सोचना चाहिये..हम सब यहाँ कुछ पल अपनी मरजी से जीने हेतु आते हैं..क्यों छींटाकक्षी करना नहीं छोड़ते लोग???
    दुखी न होईये..हम सब आप के साथ हैं.

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  25. समीर जी
    आप भी किस झमेले में पढ़ रहे हैं...शिव और ज्ञान भईया को भी मैंने ये ही समझाया है...हर युग में ऐसे लोगों की कमी नहीं रही है जो वातावरण को दूषित करने में अहम् भूमिका निभाते रहे हैं...लेकिन ऐसे लोग चले कितने दिन हैं...हाथी अगर कुत्तों के भौंकने पर धयान देने लग जाए जो गरीब का सड़क पर चलना ही दुश्वार हो जाए...छोडिये उनको उनके हाल पर और अपनी दुनिया में मस्त हो जाईये...फ़िर से.
    नीरज

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  26. ऐसा तो सर्वत्र है. सिर्फ हिन्दी ब्लॉगजगत् में ही नहीं. ये कड़ी उदाहरण स्वरूप देखें-

    http://tinyurl.com/5zhqh5

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  27. अब क्या कहे और क्या ना कहे..

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  28. आप सही कह रहे हैं। मैं तो नया हूँ ब्लाग की दुनिया के लिए लेकिन जब हिस्सा नहीं था इस दुनिया की तब भी अजीब लगता था कि लोग आपसी खींच तान कर रहे हैं इस नये माध्यम पर जिसका बेहतर इस्तेमाल समाज की बेहतरी के लिए किया जा सकता है।

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  29. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  30. जो कुछ है सब मन मे है.
    "मन चंगा तो कठौती मे गंगा."
    पहले शिव सेंटीयाया और अब आप.
    ये तो सरजी ठीक लक्षण नहीं है.
    और फ़िर हर चीज का ही जीवन मे स्थान होता है, कंही न कंही सब जरुरी होता है.
    "नर हो ना निराश करो मन को"

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  31. बिल्कुल सही कह रहे है आप।
    पर अगर फ़िर भी लोग समझ जाएं तब ना।

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  32. परसों अनूप जी ने कुछ संकेत दिये थे कि माहोल बलाग जगत मे गरम है , लगता है कि वाकई मे कुछ सीरियस बात है ।

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  33. बेनामी5/27/2008 08:33:00 am

    समीरजी,
    द्रौपदी चीर-हरण को शांतिपूर्वक देखने वाले या नजरें झुकाकर बैठे रहने वाले, दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि अपनी कायरता, पस्‍तहिम्‍मती, असंवेदनशीलता को ऑटोसजेस्टिव ढंग से न्‍यायोचित ठहराने की कोशिश में किसी भी तरह से शांति, सद्भावना की दुहाई देना कहां तक उचित है। यूं भी बिना संघर्ष के शांति नहीं मिलती। बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलता/होता। संघर्ष के बाद ही गलत का अंत और सही की प्रतिष्‍ठा होती है। इसलिए, स्‍वयं को ज्‍यादा से ज्‍यादा दुखी बनाने के बजाय अपनी अवस्थिति रखिए, और इसे किसी मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश करें। छींटाकशी माहौल को प्रदूषित करती है, इससे बचें। अगंभीर लोगों को किनारे लगाएं, गंभीर लोगों का मंच बनाएं। एक स्‍वस्‍थ प्रयास करें।

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  34. ये तो होना ही था, कब तक सब कुछ अच्छा चलता...

    वैसे अगर हर तरह की बातें न हों तो ब्लॉग समाज का दर्पण कैसे बनेगा? समाज में तो सब कुछ होता है... वो ब्लॉग पर आज न कल तो दीखना ही था.

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  35. उडन तश्तरी वाले समीर लाल जी। को दिनेसराय दुबेदी का कोटा हिन्दुस्तान से राम राम बंचणा जी।
    आगे समंचार ये है जी कि आप फिजूल ही दुखी व्हे रहे हैं जी। काहे की नजर जी, ये नजर वजर के अन्ध बिसवास आप भी पालते हैं क्या जी? हम कतई दुखी नहीं हैं जी। सब अपना अपना धरम निभाए जा रहे हैं जी। ब्लाग कोई मंदर या मसीद नहीं जी। ये तो जंगल है यहाँ सब तरह के जीव जन्तु हैं जी। कुछ पेड़ों पर बसते हैं, कुछ जमीन पर, कुछ दलदल में, कुछ कीचड़ में, कुछ जमीन के भीतर जी। जीने दो जी सब को क्यों परेशान हो रहे हो। सब अपनी अपनी नियति को ही जाएंगे जी। आप-हम तो अपना अपना धरम निभाते चलें यही बहुत है। दीप से दीप जलाते चलें जी। ये अँधेरे वाले कब तक टिकेंगे जी।
    चिट्ठी को तार समझना जी, औरजवाब देना जी।

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  36. हमने तो तय ही कर लिया कि अब एग्रीगेटर मे नही जाना। जिनके ब्लाग पसन्द है उन्हे सब्सक्राइब कर लेना। इससे मै इन बक-झक से बचा रहा। आगे भी यही रास्ता अपनाना होगा। मैने तीन नये लोगो को प्रोत्साहित किया था हिन्दी ब्लाग बनाने। जब उंन्होने घमासान देखा तो हाथ खडे कर दिये और मुझसे भी कहा कि इससे दूर ही रहो।

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  37. जो कुछ हुआ है ,उसने मुझे shocked कर दिया है, पता नही क्या सच है क्या नही,लेकिन एक फ़ैसला करना था ,वो हो चुका है...

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  38. rजिन रास्तो पर बस्ती है नफरत
    वहां से कभी गुजरना नहीं
    पर जरूरी हो तो नजरें
    फेर कर निकल जाना
    कानों से किसी की बात सुनना नहीं
    चीखते लोगों के साथ जंग लड़ने के लिए
    मौन से बेहतर हथियार और कोई होता नहीं
    फिर भी नजर का खेल है
    जहां होती है नफरत की बस्ती
    वहां भी किसी शख्स में होती है शांति की हस्ती
    तुम उन्हें ढूंढ सकते हो
    अगर तुम्हारे दिल में है प्यार कहीं
    नहीं कर सकते अपने अंदर
    दर्द को झेलने का जज्बा
    तो रास्ता बदल कर चले जाना
    पर अगर मन में बैचेनी है तो
    तो कोई भी जगह तंग लगेगी
    कितनी भी रंगीन हो चादर
    नींद नहीं आने पर बेरंग लगेगी
    आंखें बंद कर लो
    खो जाओ अपनी दुनियां में
    बदलती है जो पल-पर अपना रंग
    कहीं होते झगड़े होती शांति कहीं
    उस पर मत सोचो कभी
    जो तुम्हारे बस में नहीं
    ...........................

    आपका ब्लाग ब्लागवाणी पर देखा। अगर कभी मेरी रचना पसंद न आये तो समझ लेना उसे वहीं से आने के बाद लिखा है। वहां जो पंसद का चक्कर है वह अच्छे खासे को चक्कर में डाल देता है। लोग उसी के लिए जूझ रहे हैं। इसी कारण ऐसे हालत हैं। यह अच्छा ही हुआ आपके ब्लाग पर दृष्टि पड़ गयी और यह कविता लिख मारी। तय बात है इसको कहीं पोस्ट के रूप में रखूंगा। कोई चिंता मत करिये। सब चलता रहेगा और इसकी आदत डालने का अलावा और कोई रास्ता नहीं।
    दीपक भारतदीप

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  39. घुटन कैसी भाई ! जैसी ये दुनिया है वैसा ही है ये ब्लॉग जगत। इसलिये ये सब तो होता रहा है।
    नियम मर्यादाएँ टूटती रही हैं टूटती रहेंगी। आपकी कविता आपके मन के कष्ट को व्यक्त कर रही है पर मैं तो यही कहूँगा कि इन हालातों को वास्तविक मान कर इसी में रहने की आदत डालनी होगी हम सबको।

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  40. कोई घुटन वाली बात नहीं है. हम हिंदी हैं, और हिंदी को बढ़ाते रहेंगे.
    हर अछे काम के बीच मुश्किलें आती ही हैं,और टोकने वाले अधिक मिलते हैं होसला बढाने वाले कम.मगर होसले से ही दुनिया जीती जाती है.

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  41. आज करीब रात्रि ११ बजे आपके ब्लॉग को देखा आपकी पोस्ट पढ़कर अत्यन्त दुःख हुआ है यह सच है कि हिन्दी ब्लॉग जगत मे जो कुछ हो रहा है चल रहा है उससे नेट पर हमारी भाषा के प्रचार प्रसार कार्यक्रम पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है . नेट पर विश्व स्तर के लोग आते है जाते है उससे हमारी भाषा की प्रतिष्टा को धक्का पहुँच रहा है . ज्ञान जी और शिव जी की पोस्ट पढ़कर लग रहा है कि ब्लागिंग करना छोड़ देना चाहिए . आपसी छी च ले दरी का माहौल अत्यन्त दुखद है खेदजनक है . अपने अपनी पोस्ट मे मेरी दिल की आवाज को छीन लिया है अभिव्यक्ति के लिए आभारी हूँ .

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  42. हम तो आपकी बात को अन्यथा ले रहे हैं। इत्ता भी दुखद मामला नहीं है जी।

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  43. हमे तो मालूम ही नहीं क्या हो रहा है...कौन किसको क्या और क्यों कह रहा है...पर आपकी भावनाओं ने जरूर छुआ...

    हा दो दिन से "नारद" जी नहीं दिख रहे...डाउन हैं का??

    रीतेश गुप्ता

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  44. यो जो चालीस या चवालीस अच्छे लोग हैं इन्हीसे एक बडी रेखा बनादें ता कि वो वाली छोटी हो जाये । कविता बेहद अच्छी लगी ।

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  45. ना दैन्यम ना पलायनम .......समीर जी आप तो हिन्दी जगत के शलाका पुरूष हैं ....भीष्म पितामह हैं ....हम तो यही मानते हैं -तो फिर अपनी पीडा को प्रगत न करें -आप तो नीलकंठ ही बने रहें ....

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  46. बेनामी6/01/2008 10:36:00 am

    jab aapko padhta hoon
    to lagta hai ki pahli bar padh raha hoon
    dhanyavad likhe aur likhne ke liye prereet karte rahe
    hame bhi
    scam24inhindi

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  47. vo kahavat to sabne suni hai..
    BANDAR KE HAATH USTARA

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