सोमवार, अक्तूबर 29, 2007

१.३० घंटे मे ५० चिट्ठे मय टिप्पणी निपटायें

बचपन में परीक्षा की तैयारी करते थे. मास्साब सफलता का पाठ पढ़ाते थे ट्यूशन में. गुर दिया गया कि जैसे ही परचा हाथ में आये, सबसे पहले एक नजर पूरा परचा देख लो. फिर एक एक दो दो नम्बर वाले प्रश्न, जिसमें सिर्फ हाँ नहीं, छोटे छोटे जबाब देने हैं, उन्हे फटाफट कर डालो. फिर वो प्रश्न उठाओ, जिसका उत्तर तुम बखूबी से जानते हो. उन्हें फटाफट हल कर दो. अब बाकि के धीरे धीरे सोच समझ के जबाब देते जाओ. अगर किसी में फंस रहे हो, हल नहीं निकल रहा, तो जहाँ तक किया है वहीं छोड़ कर आगे अगले प्रश्न पर चले जाओ. बाद में समय बचे तो आकर फिर कोशिश करना. ध्यान रहे, जितने ज्यादा हल करोगे, उतना अच्छा परिणाम आयेगा. छूटे प्रश्न पर अंक भी शून्य मिला करते हैं. कुछ भी कोशिश की होगी तो शायद कुछ हिस्सा सही निकल जाये और परीक्षक उतने हिस्से के अंक दे दे.

उनका कहना था कि परीक्षा भी मेनेज्मेंट की बात है. टाईम मेनेज्मेंट, एक्साईटमेन्ट मेनेज्मेंट, कन्टेन्ट मेनेज्मेंट सभी लागू होते हैं. कहीं भी चूके और गये. उनके गुर हर परीक्षा में काम आये.

ऊँचे दर्जे के साथ जब कोर्स की किताबें मोटी होने लग गई तो समय तो वही २४ घंटे रहा उल्टे कॉलेज में ज्यादा समय लगने लगा. दोस्त बढ़ गये. घूमने फिरने का दायरा बढ़ गया. दीगर शौकों में समय जाने लगा. तब एक दिन उन्होंने हमें समस्या से जूझते देख एक नया गुर सिखाया-स्पीड रिडिंग-शीघ्र पठन जो रियाज के साथ साथ अतिशीघ्र पठन यानि रेपिड रिडिंग को प्राप्त हुआ. वही ध्यान तेज लेखन याने फास्ट राईटिंग की तरफ भी दिलवाया गया.

उनके शीघ्र पठन वाले गुर का भरपूर फायदा हमने उस समय नावेल पढ़ने में उठाया. वो सिखाते थे कि अगर मटेरियल सिर्फ जानकारी और मनोरंजन के लिये पढ़ा जा रहा और याद रखने की महती आवश्यक्ता नहीं है तो उसे पढ़ते वक्त शब्द शब्द नहीं, लाईन लाईन पढ़ो. पैराग्राफ नजर से स्कैन करो और आगे बढ़ो. किस विषय में है वो प्रस्तावना थोड़ा अधिक ध्यान से, व्याख्या स्कैनिंग मोड में और फिर निष्कर्ष पुनः थोड़ा ध्यान से. बस. इस तरह आप पूरा जान भी लेंगे और शब्द शब्द पढ़ने की अपेक्षाकृत १० प्रतिशत समय में आपका काम हो जायेगा. कभी कोई चीज विशेष पसंद आ जाये तो जितना चाहे लुत्फ लेकर पढ़ो. समय तुम्हारा है कौन रोक सकता है.ऐसे ही कुछ पठन, उसकी प्रस्तावना, शीर्षक और विषय देखकर भी छोड़ सकते हो कि वो आपके पसंद का नहीं हो सकता. समय बचता है. कितनी नावेल बस प्रस्तावना पढ़कर आगे नहीं पढ़ीं. कई उपन्यासकारों की शैली देखकर आपको रुचिकर नहीं लगता तो आप फिर उसका नाम देखकर दूसरी किताब पर चले जायें. ९५% आपका निर्णय सही ही होगा.

इस परीक्षा देने के, अतिशीघ्र पठन और तेज लेखन के गुरों की गठरी बना कर मैने इसका ब्लॉगजगत में पिछले एक वर्ष से खूब इस्तेमाल किया.

आज की स्थितियों में मान लिजिये, दिन की ५० पोस्ट आ रही हैं. मुझे इन ५० पोस्टों को पढ़ने और टिप्पणी करने में मात्र १ से १.३० घंटे का समय देना होता है बस!! क्या आप विश्वास करेंगे? इतना समय तो सभी चिट्ठाकार बिताते होंगे नेट पर बल्कि ज्यादा ही.
computer
मेरा नियम होता है कि पहले मैं छोटी छोटी पोस्ट, कविता आदि निपटाऊँ. फिर समाचार, फोटो आदि और फिर बड़े गद्य. उन बड़े गद्यों में अधिकतर स्कैन मोड़ में. कुछ जो पसंद आये, उन्हें अपना समय है के अंदाज में. मगर जो भी पढ़ूँ, देखूँ या सरियायूँ (स्कैन रिडिंग का हिन्दीकरण), उस पर शीघ्र लेखन (टाईपिंग और अब तो कट पेस्ट की सुविधा हमेशा हाजिर रहती है, कुछ वाक्य वर्ड पैड में लिखकर रख लें न, क्या बार टाईप करना जब दो की स्ट्रोक में १० की स्ट्रोक निपट सकते हैं) का फायदा उठाते हुए टिप्पणी अवश्य दर्ज करुँ ताकि अगला जान सके कि उसकी मेहनत पर हमारी नजर गई है. वो आगे भी मेहनत करने का उत्साह प्राप्त करेगा और आप जब मेहनत करेंगे, तब वह भी आपको उत्साहित करने आयेगा.

२० मिनट में फ्रस्ट फेज (छोटी छोटी पोस्ट, कविता) १५ मिनट में सेकेन्ड फेज (समाचार, फोटो आदि ), १५ मिनट में बाकी स्कैनिंग (बड़े गद्यों में अधिकतर स्कैन मोड़) बाकि का समय अपना पसंदीदा इस स्कैनिंग मोड से उपलब्ध लेखन. अब यदि आप १.३० घंटा दे रहे हैं तो पसंदीदा देखने के लिये आपके पास ४० मिनट बच रहे याने कम से कम १२० लाईन...अधिकतर गद्य २० से ४० लाईन के भीतर ही होते हैं ब्लॉग पर.(अपवाद माननीय फुरसतिया जी, उस दिन अलग से समय देना होता है खुशी खुशी) तो कम से कम ४ से ५ आराम से. चलो, कम भी करो तो ३. बहुत है गहराई से एक दिन में पढने के लिये. (कुछ इस श्रेणी में भी निकल जाते हैं - कुछ पठन की प्रस्तावना, शीर्षक और विषय देखकर भी आप उसे छोड़ सकते हैं कि वो आपके पसंद का नहीं हो सकता.)

अब यदि आपके मन में प्रश्न है कि १ मिनट में दो लाईन कैसे पढ़ पायेंगे (इस स्पीड में तो लाईन याद हो जायेगी, मेरे भाई)- तो भाई मेरे, आप इस लाईन में ही गलत आ गये हो. यहाँ से तो नमस्ते कर लो और राजनीति में किस्मत आजमाओ, सफलता आपके कदम चूमेगी, यह मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ और मेरी शुभकामनायें तो हैं ही.

अंत में निष्कर्ष कि जितना अपने लेखन को समय दो उससे चार गुना समय पठन को दो. कोई आवश्यक नहीं कि रोज लिखें. नये लोगों को नाम देख देख कर अहसास होने लगता है कि मैं खूब लिखता हूँ मगर विश्वास जानिये मेरी एक माह में मात्र १० से ११ पोस्ट होती हैं अर्थात हफ्ते में दो से तीन का औसत. अक्सर दो ही. मगर समय वही रोज १.३० से २ घंटे औसत. किया जा सकता है इतना शौक के लिये, हिन्दी की सेवा के लिये, खुद के मन की शांति के लिये और नाम कमाने के लिये. क्या पता कल को यह भी जुड़ जाये कि कुछ कमाई के लिये.

(आशा है शास्त्री जी, ज्ञान जी और अनूप शुक्ल जी को मेरे इतना समय चिट्ठाकारी को देने का रहस्य उजागर कर मैं संतुष्ट कर पाया और यह नये लोगों के लिये भी उपयोगी सिद्ध होगा)

तो शुरु करें अपनी टिप्पणी यात्रा इसी पोस्ट से.

57 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत अच्छा किया समीर जी यह स्पष्ट कर। सोचते हम भी हैं इसी प्रकार का। पर रोज ठेल रहे हैं - क्यों कि अभी दशकों से दमित ठेलास बाकी है। जब वह बोरियत में बदलने लगेगी, बन्द हो जायेगी। पढने का काम तो योजना बद्ध और समय चुरा कर ही होता है।
    बहुत धन्यवाद।

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  2. गुरूदेव आज टिप्पणी देने का मन कर रहा है,आपकी पोस्ट पूरी मन लगाकर पढता हूँ चाहे कितना ही समय लग जाये

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  3. ज्ञान ले लिया.वैसे मैं भी ज्यादा समय चिट्ठों को पढ़ने में देता हूँ.जो डेढ़ घंटे से ज्यादा होता है. इसी चक्कर में पोस्ट नहीं डाल पाता :-)
    पत्नी बोलती है इतना पढ़ने की बजाय लिखा करो पर दिल है कि मानता नहीं.

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  4. समीर भाई
    टिप्पणी देने का क्रम तो, आपके, शास्त्रीजी और ज्ञानदत्तजी जैसे लोगों की प्रेरणा से ही मैंने शुरू किया। लेकिन, मैं एकाध बार ही एक साथ 10 टिप्पणियां दे पाया। अब इस विधा का भी इस्तेमाल करके देखता हूं।

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  5. 100 में 100

    परीक्षा की तरह तैयारी करते है।

    :)

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  6. आपके परममित्र ने मुझे बताया है, कि आपने अपनी फोटो कापी करवा रखी है, एक कापी चश्मा लगाकर सुकन्याओं को घूरती है, दूसरी सिर्फ कमेंट करती है। प्रभो सच्ची मे यह बताइए कि अपनी फोटूकापी कईसे करायें।

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  7. सत्य वचन महाराज,
    अब हम भी जा कर और टिप्पणियाँ बाँटनी हैं ।

    वैसे आपका परीक्षा वाला मन्त्र पसन्द आया हम भी कुछ ऐसा ही किया करते थे ।

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  8. अच्छा लिखने का भी उपाय बताएं.....

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  9. बहुत सही कहा है आपने कि जितना अपने लेखन को समय दो उससे चार गुना समय पठन को दो।
    लेकिन क्या करूं आत्मग्रस्त हूं। अभी लिखने जितना ही समय पढ़ने में दे पाता हूं। आगे अभ्यास और प्रयास करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा ब्लॉगों को पढ़ सकूं।

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  10. काश हमने भी अपने गुरू लोगों की बात उतने ही ध्यान से सुनी होती ! किन्तु अब आपकी बात गाँठ बाँध ली है गुरूजी ।
    घुघूती बासूती

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  11. बेनामी10/30/2007 12:58:00 am

    हाँ, उपयोगी है. फास्ट रीड किया और स्पीड में टिप्पणी भी कर दी है. अब दूसरे ब्लॉग पर जाता हूँ...

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  12. मतलब यह कि यहाँ भी पूरे अनुशासन से पढ़े, समझे और टिपियायें...यह अनुशासन से पीछा छुड़ाते छुड़ाते तो ब्लॉग पर पहुँची....इससे पीछा छूटेगा नहीं क्या ?!!

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  13. वाह समीर भाई, शुक्रिया। देर से ही सही, आपने ये टिप्स बता दिए तो हममें से बहुतों की ब्लॉगिंग में चुस्ती आएगी।

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  14. आपका लेख आपकी ही बताये स्पीड रीडिंग तरीके से पढ़ कर तुरत च फुरत टिप्पणी कर दी है, अब दूसरे चिट्ठों पर आजमा कर देखते हैं।

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  15. पूरी की पूरी पोस्ट शब्द शब्द पढी क्योंकि याद भी करना था, समझना भी था. यदि स्केन करते ( लाइन टू लाइन) तो काफी कुछ छूट जाता.

    भाई मान गये आपकी कला को. हां साधुवाद भी कि आपने इस कला को सब तक पहुंचाने की कोशिश भी की.

    इसे पढने के बाद निश्चय ही टिप्पणियां बढेंगी.

    ( यह टिप्पणी नितांत एक्स्क्लूसिव है, और इसमें कोई कट या पेस्ट का सहारा नहीं किया गया है.)

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  16. आपकी बहुत अच्छी सलाह के लिए धन्यवाद. इसी समस्या से झूज रहा हूँ. अब शायद मुश्किलें कुछ आसान हो.

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  17. आपकी बहुत अच्छी सलाह के लिए धन्यवाद. इसी समस्या से झूज रहा हूँ. अब शायद मुश्किलें कुछ आसान हो.

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  18. उपयोगी जानकारी
    करता मैं भी यही हूँ, फिर भी पढ कर लाभ हुआ । रैपिड रीडिंग का अभ्यास हो गया ।
    संजय गुलाटी मुसाफिर

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  19. बिना पढ़े ही टिप्पणी करें तो और बेहतर! मूल लेख से दुगुनी बड़ी टिप्पणी करें तो और बेहतर! जिनके चिट्ठे को बहुत कम लोग पढ़ते हैं, वे यदि प्रसिद्ध चिट्ठाकारों की ब्लॉग-रचनाओं पर टिप्पणियों में अपने लम्बे लम्बे विचार-लेख ठूँस दें तो और बेहतर!

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  20. सरियायूँ

    शब्द पसंद आया।

    मैंने कुछ दिन पहले आपकी शैली अपनाई तो थी, पर पूरे दो घंटे लगे थे, कुछ ३० चालीस चिट्ठे पढ़ के टिप्पणी करने में। खैर अभ्यास जारी है।

    आलोक

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  21. समय का सदुपयोग ही टाईम मेनेजमेंट है. सीख लिया आपसे १.३० घंटे मे ५० चिट्ठे मय टिप्पणी निपटाने का राज.

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  22. समीर जी,

    आगे से मैं भी आपके टाईम मैनेजमेंट गुर का उपयोग करूंगा... बहुत काम की चीज है

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  23. तो आज आपने गुर बता ही दिए सबको!!
    धन्यवाद!!
    आपकी इस बात से तो सौ फ़ीसदी सहमत हूं कि लेखन से ज्यादा पठन ज़रुरी है।

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  24. समीर जी , हम अच्छे भले शिक्षक दिवस पर नौकरी छोड़ कर घर बैठे कि अब 100 अंक और 50 अकं के पेपर और उस पर उनकी उत्तर पुस्तिका, कहर ढाने वाली अंक योजना बनाने से मुक्ति मिलेगी.....! आप तो हमें फिर से उसी रास्ते पर ढकेल रहे हैं.
    हमारा दिल कर रहा है कि हम कुछ और राग अलापें आपकी आज्ञा से ..... "हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर बद्ध न गा पाएँगे...." अब मुद्दे की बात यह कि सच में आप महान हैं और गहरा अध्ययन करने के बाद लिखा लेख सबके लिए लाभकारी सिद्ध होगा.

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  25. समीरलाल जी
    आपका कंप्यूटर अच्छी क्वालिटी का होगा. इंटरनेट सेट सेवा हमसे दमदार होगी. लाईट की समस्या तो वहाँ है नहीं. आपका लेख बहुत अच्छा है और जो आपने कहा है की लिखने से चार गुना पढ़ने को देना चाहिए इसमें दम है और में इसे आठ गुना कहता हूँ. आपका लेख प्रेरणा दायक है, पर क्या करूं यह मैं टिप्पणी लिख रहा हूँ पर आपके ब्लोग पर कब रख पाऊंगा मैं जानता नहीं. वजह आपको ऊपर बता दिया है. आपका लेख बडे धीरज से पडा और सोचा की इसके लिए कमेन्ट बाद में लिखूंगा पहले टिप्पणी खोल लूं पर नहीं खुली. आज आपका लेख बहुत अच्छा है, और आपकी भावना की कद्र तो वही कर सकता है जो आप जैसा हो.

    दीपक भारतदीप

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  26. समीर जी धन्यवाद, आप ने सच मे अपनी सफ़लता का राज जाहिर कर ही दिया, मुझे कुछ कुछ इल्म तो था कि आप रेपिड रीडींग करते होगें अब खुलासा भी हो गया। आप की ये पोस्ट तो सहेज के रखने योग्य है। और ये बात आप ने पते की कही कि लिखने से ज्यादा पढ़ने पर ध्यान दो।

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  27. समीर भाई,
    बहुत सही कहा है आपने पढने का क्रम बनाए रखें,वैसे आपकी पोस्ट नि: संदेह पूरी मन लगाकर पढता हूँ . अच्छा लिखते हैं आप!

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  28. भाई हमें तो मूड होता है तो दो तीन घंटे बैठ जाते हैं खासकर जब मन लायक पढ़ने को मिले। जो विषय मेरे पसंद के नहीं उन्हें पढ़ने के बजाए बाकियों को आराम आराम से आत्मसात करना ज्यादा अच्छा लगता है। सबके अपने अपने तरीके हैं जिसे जो पसंद आए।

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  29. समीर जी, सलाह तो अच्छी है लेकिन जैसा कि भरतदीप जी ने कहा है कि कंप्यूटर कैसा है व उस की स्पीड कितनी है इस पर भी निर्भर करता है कि आप कितनी टिप्प्णीयां कर पाएंगे।ज्यादातर नेट कम स्पीड के होनें के कारण समय बहुत लग जाता है।क्यूँकि स्पीड वाले पैकेज महगें होते हैं,वह लेना अपनें बस का नही।मेरे साथ अक्सर ऐसा ही होता है।...जब कि मेरी कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक टिप्पणीयां करूँ।

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  30. सार्थकता खुला है रूप
    समीर का रंग लाल है
    उड़न तश्तरी चलाकर
    बजाता सब ताल है

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  31. ठीक है पर मुझे लगता है राज पूरी तरह खुला नही है। कोई इस तेजी से पढकर भला कैसे सटीक टिप्पणी कर सकता है? विस्तार का इंतजार रहेगा। :)

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  32. समीर जी, साथ ही यह भी लिख दीजिए कि फास्ट रीडिंग अभ्यास से ही होती है। जितना अभ्यास व्यक्ति करेगा उतनी ही तेज़ी से पढ़ेगा। अब यूँ ही तो नहीं हमने छठी से बारहवीं तक आते-आते स्कूल की लाइब्रेरी की लगभग ३०० से अधिक उपन्यास तथा अन्य पुस्तकें निपटाई थीं!! ;)

    बाकी आपकी कॉपी-पेस्ट टिप्पणी की तकनीक का जब से जीतू भाई से सुना तब से आज़मा रिया हूँ, यहाँ(ब्लॉगों पर) कम ही लेकिन फ्लिकर पर बहुत आज़माया हूँ, बहुत कारगर है, धन्यवाद। :)

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  33. बहुत उपयोगी जानकारी

    टाइम मैनेजमेंट बेहद जरूरी है
    वर्ना सब कुछ गडबडा जाता है।

    बधाई
    आपने यह राज खोला तो वर्ना हम तो जिस ब्‍लॉग को खोलते हैं, वहां आप पहले से ही विराजे रहते हैं।

    नाम आपने शायद इसी लिए रखा है
    उडन तश्‍तरी

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  34. सही कहा है । अमल करेंगे ।

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  35. बेनामी10/30/2007 06:31:00 pm

    अभी अभी देखा, समीर भाई. आपने तो अपने राज ही खोल कर रख दिये. कुछ तो अपने लिये भी रह लेते. वैसे ऐसा आपका स्वभाव कहाँ?

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  36. समीर जी मान लिया कि डेढ़ घंटे में सब निबट जाएँगे पर ये समय काश निकाल पाँए.आपका
    विश्लेषण पर बहुत सूक्ष्म है, हम सब को बहुत फ़ायदा होगा. धन्यवाद.

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  37. आपके नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करेंगें .अरे ,डरिये मत ..........सिर्फ पढने और टिप्पणी करने तक ही ।

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  38. महोदय समय के हम पहले से ही पाबन्द रहे हैं. आपकी सिख गांठ बान्ध ली है.

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  39. माने मुझसे पहले वाले टिप्पणीकारों ने समीरभाई को संवेद स्वर में गुरु मान लिया है और कहा है कि उड़न तश्तरी ने जो नुस्खे बताए उसी के हिसाब से अब पे टिप्पणी करेंगे. पढ़ेंगे ज़्यादा लिखेंगे कम.
    मित्रों, बिल्कुल अमल करें. चलिए शुरू हो जाइए, ज़्यादा नहीं है. नया ब्लॉगबाज़ हूं. 12-13 खेप ही डाला है हफ़्तावार पर. एक-एक पर टिप्पणिआइए.:)
    पोस्ट और कमेंट दोनों लाजवाब!

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  40. बेनामी10/31/2007 01:18:00 pm

    बात तो सही है लेकिन अमल में आने लायक नहीं।
    चिट्ठाजगत के लोगों को समझना चाहिये कि वे जो टिप्पणियां पाकर खुश होते हैं वे पहले से लिखी होती हैं। कट-पेस्ट की जाती हैं। मतलब बासी माल। :) इसके खिलाफ़ आवाज उठानी चाहिये। 'चिट्ठे निपटायें' शीर्षक के खिलाफ़ अभी तक किसी ने आवाज नहीं उठाई। ताज्जुब है। हमारी इत्ती स्मार्ट फोटो ने पोस्ट का सौन्दर्य बढ़ा दिया।

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  41. पहली बार इतनी इमानदार स्विकारोक्ति देखी। मान गए। और स्ट्रेटजी तो होनी ही चाहिए।

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  42. बासी माल भी कई बार देता है घणी पौष्टिकता
    यही सच्चाई और यही है हरियाली नैतिकता

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  43. मार्गदर्शित करने के लिए आभार

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  44. बहुत काम की बात बता गए आप समीर जी :) समय का उचित उपयोग है यह :)
    संभाल के रख लिया है इसको भी हमने :)

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  45. ऊड़न झि आप की बारत यात्रा मंगल मय रहे..
    आप से मिलने की उत्कंठा है..
    कृपया अपने भारत प्र्वास के दौरान संपर्क करें..मुंबई आ रहे है तो अवश्य मिलिए..
    इंत्जार रहे गा.
    कवि कुल्वंत
    ०२२-२५५९५३७८

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  46. देर से आ पाई हूँ पर ज्ञान पूरा पा लिया...धन्यवाद

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  47. बेनामी11/01/2007 01:35:00 pm

    charan kehan hain gurudev, lekin der ghante me 50 chithhe parke un per tipiyane ke kiye jo chasma chahiye uska aapne nahi bataya.

    hum bataye dete hain woh tippani guru sameeranand ji na laga rakha hai, Agar yakin na aaye to photuwa me dhyan diya jaaye. :)

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  48. बेनामी11/01/2007 07:21:00 pm

    Sir

    Apku email kiya hai. Mujhe hindi me likhna or blog banane ki madad kar den. Me sher kahta hu.Ap ko padhta hu. Majja ata he.

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  49. हमें तो फेल ही समझिये आप....

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  50. सदा की तरह उम्दा लेखन!

    इस दूसरी टिप्पणी से समझ गये होगें कि चेपने का गुरु मंत्र सीख लिया मैनें भी

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  51. चेपने में ही नहीं
    फेंकने में भी माहिर
    हो गए लगते हैं आप
    मिस्टर व्यास।

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  52. चेपने में ही नहीं
    फेंकने में भी माहिर
    हो गए लगते हैं आप
    मिस्टर व्यास।

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  53. 52 टिप्पणियां हो गईं लेकिन अभी मेरी टिप्पणी बिन यह अधूरा ही रह जायगा.

    इस लेख को पढ तो उसी दिन लिया था, लेकिन जानकारी के लिये अभार रेखांकित करने का मौका आज ही मिल पाया -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?

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  54. आप तो बहुत अच्छे मेनेज्मेंट गुरु निकले

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  55. आपने ठीक कहा गुरूदेव,सभी के पास वही 24 घंटे हॆ.समय का प्रबन्धन बहुत जरूरी हॆ.आपके गुरू-मंत्र का भविष्य में जरुर उपयोग करेंगे.आज-कल आप छुपा-रूस्तम हो गये हो.कहीं नजर ही नहीं आते,खॆरियत तो हॆ?

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.