गमगीन सा बोझिल माहौल. सभी के चहेरों पर गंभीरता. शांत वातावरण के बीच सुनाई पड़ती फुसफुसाहट. पूरे हॉल के भीतर दीवालों पर टंगी पेन्टिंग्स और उसके पास फुसफुसा कर उसकी डिटेल्स पर प्रकाश डालते कुर्ता पहने, हल्की दाढ़ी और बिखरे बाल में सजे गंभीर मुद्राधारी चित्रकार. कुछ कुछ लोगों की भीड़ अलग अलग हर तरफ तस्वीरों के सामने.
यह दृश्य है एक चित्रकला प्रदर्शनी का जिसमें जाने का शौक हमने कुछ समय पूर्व अपने मित्र भारत के विख्यात चित्रकार विजेन्द्र ’विज’ से प्रभावित होकर पाल लिया.
अब एक कलाकार का हौसला दूसरा कलाकार ही तो बढ़ाता है. एक कवि/लेखक का दूसरा कवि/लेखक, एक चिट्ठाकार का दूसरा चिट्ठाकार, एक चित्रकार का दूसरा चित्रकार. मगर अब हमारी सोच का दायरा हमने जरा बढ़ाया और न सिर्फ चिट्ठाकार/कवि और लेखक की हौसला अफजाई करने के हमने चित्रकारों को भी इसमें शामिल करने का प्रयास किया.
हॉल मे घुसे और जिस चित्र के नीचे सबसे ज्यादा भीड़ थी वहाँ पहुँच लिये. चित्रकार महोदय फुसफुसाते से, हाथ में कूची पकड़े चित्र की डिटेल समझा रहे थे. पता चला कि प्रदर्शनी का विषय था ’ध्यान’. यह चित्र समझाया जा रहा था.
हम कवि सम्मेलनियों को फुसफुसाहट सुनाई नहीं देती सो कान एक पास ले जाकर सुनना पड़ा. बाकी सब दूर से भी सुन ले रहे थे या कम से कम सुन रहे हैं इसका प्रदर्शन सफलतापूर्वक कर रहे थे.
चित्रकार महोदय गंभीरता से कह रहे थे कि इस लाल बिन्दु को ध्यान से देखें. इसमें साक्षात ब्रह्म है. यही शून्य है और यही एक मात्र सत्य. इस पर ध्यान केन्द्रित किजिये, यही उर्जा का स्त्रोत है. एकटक बिना पलक झपकाये पूरी श्रृद्धा से इस पर ध्यान केन्द्रित करें और कुछ ही पल में आप अपने आपको दूसरे लोक में पायेंगे, इसका विराट स्वरुप आपको दिखने लगेगा. बस डूब जाईये इस बिन्दु में. डुबकी लगाईये इस सागर में. यही ध्यान है और यही सफल जीवन का एक मात्र मार्ग है. भीड़ के साथ हम भी लगे डुबने. सबने विस्तार देखा और उन सभी ने भी समझा कि हमने भी विस्तार देखा. कौन अपने आपको भीड़ मे मूर्ख घोषित करवाये मना करके.
फिर बाकी के चित्र भी देखे जो और चित्रकारों द्वारा बनाये गये थे. बड़ी बड़ी मेहनत के नमूने. कुछ समझ में आये और अधिकतर नहीं. मगर सुना बड़ी गंभीरता से सभी चित्रकारों को. पहला पहला अनुभव था न!
अगले दिन अखबार में देखा, लाल बिन्दी को सर्वश्रेष्ठ चित्र घोषित किया गया. बाकी सबकी घोर मेहनत नदी, पहाड़, आकाश रंगने की गई पानी में. ऐसा ही तो कविता में भी होता है कि भले ही कम शब्द हों मगर संदेश सालिड हो और कहा ओजपूर्वक तरीके से गया हो. साथ ही फिर आपका नाम भी काम करता है.
फिर तो मानिये सिलसिला सा लग गया इस तरह की प्रदर्शनियों में जाने का. अगली बार गये तो बिल्कुल वही माहौल मगर टॉपिक अलग. इस बार ’रक्त दान’ सप्ताह के उपलक्ष्य में रेड क्रास द्वारा स्पॉन्सर्ड शो था.
फिर हॉल में पहुँचे. तरह तरह के चित्र लगे थे. मगर जिस जगह सबसे ज्यादा भीड़ थी हम भी वहीं पहुँच गये. अरे, यह तो वही चित्रकार हैं. फिर नजर दौड़ा कर देखा तो चित्र भी वही और वो फुसफुसा रहे थे. यह रक्त की वह बूँद है जो किसी को जीवन दे सकती है या इसका आभाव किसी की जिन्दगी ले सकता है. आपकी एक बूँद से किसी का जीवन संवर सकता है और आपका कुछ नहीं जाता और जाने क्या क्या. हम तो ऐसा प्रभावित हो गये कि वहीं रक्त दान शिविर में एक बोतल खून भी दान दे आये.
अगले दिन पता चला कि उनका वही चित्र इसमें भी फिर सर्वश्रेष्ठ चुना गया. हम तो दंग रह गये या ज्यादा साहित्यिक हो कहें तो सन्न रह गये. मगर ऐसा ही तो कविता में भी होता है कि भले ही कम शब्द हों मगर संदेश सालिड हो और कहा ओजपूर्वक तरीके से गया हो. भले ही हर मंच से वही पढ़ रहे हों बार बार. साथ ही फिर आपका नाम भी काम करता है.
इसके बाद तो एक के एक बाद उसी चित्र पर अलग अलग आख्यान दे उन्हें सर्वश्रेष्ठ घोषित होते मैने न जाने कितनी प्रदर्शनियों में देखा. एक बार किसी भारतीय शादी की साईट द्वारा स्पान्सर्ड ’सुहाग’ टॉपिक पर. आख्यान था कि यह लाल बिन्दी सुहाग की निशानी है. यह सुहागन का गहना है.
फिर जापान के सांस्कृतिक कार्यक्रम में- इसे जापान के झंडे के रुप में प्रदर्शित किया गया और फिर संस्कृति की रक्षा के लिये सर्वश्रेष्ठ चुना गया.
फिर ’यातायात जागरुकता अभियान’ में, वही लाल बिन्दी लाल सिग्नल लाईट बन गई. सबसे जरुरी. न ध्यान दिया तो जान जा सकती है. आह्ह!!
हम तो सोच में ही पड़ गये. प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी याद आ गये जो कवियों से रश्क खाते हुये कहते थे कि हम रोज एक व्यंग्य लिखते हैं और सुनाते हैं और हर बार नया सुनाये, तब किसी तरह नाम चला पाते हैं और एक ख्याति प्राप्त कवि जीवन भर छः कविता लिख कर हमेशा मंच साधे रहता है. वही वही कविता हर बार.
मगर आज तो हमने कवि को भी रश्क खाते देखा. एक चित्रकार सारा जीवन एक चित्र के सहारे काट दे..हद है भाई..और उस पर से हर बार सर्वश्रेष्ट. हाय! हम क्यूँ फंस गये छः कविता के चक्कर में सस्ता सौदा समझ कर.
आगे से ध्यान रखूँगा. ऐसा चित्र बनाऊँगा जो हर जगह फिट हो जाये फिर छः कविता लिखने की झंझट भी छूटे. कौन पड़े चक्कर में.
चलते-चलते:
आधा दर्जन गीत लिख, यूँ जीते मंच मचान
सारा जीवन काट गये, वो अपना सीना तान
अपना सीना तान कि नाम कवियों में होता
बार बार सुन करके भी, श्रोता ताली है धोता
कहे समीर कविराय, इससे भी सस्ता पाओ
एक ही चित्र बनाओ,जीवन भर नाम कमाओ.
--समीर लाल ’समीर’
निवेदन: कोई भी कलाकार इसे अन्यथा लेकर आहत न हो. यह मात्र मौज मजे के लिये है. हर कला का सम्मान हो, यही मेरी मान्यता है.
लाल बिन्दु पर मैं भी ध्यान मग्न हो गया. सवेरे सवेरे इतना तत्व ज्ञान मिला! दिन भर इस सोच में गुजरेगा कि चित्रकला का सामान खरीद लिया जाये या नहीं. अपन रहते भी चिर्कुट शहर में हैं जहां कला पारखी नहीं. यहां लोग पान की पीक से दीवार रंग कर ही जो कला बनती है - उसे चित्रकला कहते हैं.
जवाब देंहटाएंअब इस फिलोसॉफिकल झमेले से उबर लें तब चित्र कला पर हाथ आजमाते हैं! :)
कुछ दिनों पहले ही शरद जी का कवि वाला व्यंग्य फिर से पढ़ रहा था तो लगा इसे ब्लॉग पर भी फिट किया जा सकता है अभी सोचन जारी ही था कि आपने लिख भी डाला. चलिये हम अब तक कवि बनने की सोच रहे थे अब चित्रकार बनने की सोचेंगे.
जवाब देंहटाएंचित्रकारी पर लिखने के लिये आपने समय भी ठीक चुना, कल ही की पोस्ट पर देखा हुसैन साहब का 92वाँ जन्म दिन था
जवाब देंहटाएंअब भविष्य में आपके चिठ्ठे पर चित्र दीर्घा भी दिखे शायद, या कोई ऑल-पर्पज़ सा चित्र। नहीं तो खाली छोड़ दें पृष्ठ (संदर्भ लें: राजा के वस्त्र की कहानी) और वाहवाही बटोरें (वैसे ही कौन सी कमी है)
आपकी टिप्पणी कोई किसी से कम है..
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी सहस अवतार..
समीरजी सब खुद ही कर डालेंगे, या औरों के लिए भई कुछ छोड़ेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है. मेरा उद्धार हुआ. मैने बिन्दु को ध्यान से देखा और मुझे तत्वज्ञान हो गया.
जवाब देंहटाएंजै हो प्रभु. अब कोई एक ऐसी चीज पकडता हुँ, जिसे लोगों को झिलवाकर भवसागर पार कर जाऊँ. :)
बिन्दू की विराटता में खो गया था, दो घण्टे बाद उगरा तो टिप्पणी कर रहा हूँ. सुबह सवेरे ध्यान हो गया.
जवाब देंहटाएंऐसे महान कलाकार को नमन. क्या दिव्य सोच पायी है.
कविता के संदेश पर हम भी अमल करेंगे :)
जवाब देंहटाएंजैक्सन पॉलिक ऐसे ही चित्र बनाया करते थे…
जवाब देंहटाएंबहुत नाम कमाया… आपकी अगली पोस्ट अगर कोरी भी होगी तो हम समझ लेंगे कि कुछ गहरा ही कहा है समीर भाई ने… :)
.......................
जवाब देंहटाएंअरे क्या हुआ.. ध्यान से देखिए उक्त बिंदुरेखा कलाकृति है जो टिप्पणी के तौर पर भी ली जा सकती है.
kya baat hain?
जवाब देंहटाएंआपने पता नही मजाक में लिखा है या गंभीरता पूर्वक, परंतु विश्वास मानिये हमारे लखनऊ के कपूरथला के आर्यन रेस्टोरेंट में ऐसा ही एक चित्र लगा हुआ है, बस उसमें एक बिंदु के स्थान पर तीन वलय बने हैं लाल रंग के.... मैं जब भी वहाँ जाती हूँ, मेरा पूरा समय उस चित्र कोसमझने में चला जाता है, और खाना खतम हो जाता है।
जवाब देंहटाएंतस्वीर नही बनती तो पेटिंग बनाइऐ। :)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
जवाब देंहटाएंbahut khoob, sameer ji, ab dekhne ki baat ye hai ki kaunsi 6 kavitayein leke hum manch par chadein ki phir koi utare hi na humein :)
जवाब देंहटाएंwaise, delhidreams par aane aur vichar prakat karne ke liye shukriya. umeed karta hoon aap aate rehenge hamare sapno ke safar mein, hamare sath :)
समीर भाई,
जवाब देंहटाएंअपने एक रक्ताभ बिन्दु पर बढिया विचार लिखे !
विजेन्द्र 'विज ' तो मेरे पसँदीदा कलाकारोँ मेँ हैँ ही :)
मेरी 1st काव्य पुस्तक का मुख पृष्ठ भी उन्होँने बनाया है.
आलेख के शीर्षक वाला गीत भी मुझे पसँद है ~~
बहुत स्नेह के साथ,
-- लावण्या
ये किस लाल के चक्कर में पड़ गए समीरलाल ?
जवाब देंहटाएंसुना है हुसैन साहब ने इसी तरह एक बार प्रदर्शनी में सफेद पेपर या कपड़े लटका दिये थे। पेंटिंग एक भी नहीं।
जवाब देंहटाएंमस्त!! सुबह यह चित्र देखने के बाद आदेशानुसार ध्यान मे चला गया था, अभी होश मे लौटा तो याद आया कि टिप्पणी मे भी करना है!
जवाब देंहटाएं" . "
जवाब देंहटाएंलिखा हुआ संक्षेप में टिप्पणियों का ज्ञान
थोड़ा ध्यान लगाईये फिर होगा संधान
तब तो सापेक्षिक तौर पर कविता लिखना ही ज्यादा सही है। काफ़ी जगह सुना सकते हैं।
जवाब देंहटाएं*
जवाब देंहटाएंआपको ऊपर जो दिख रहा है वह हमारी आज की टिप्पणी है. इस टिप्पणी में इतनी गहराई, व्यापकता, दर्शन, विज्ञान, एवं आध्यात्म है की आईंदा आपके सारे लेखों पर यही टिप्पणी नजर आयगी.
उम्मीद है कि सब जगह इस टीप को लगाने से टिप्पणी सम्राट का नाम आप से हम पर स्थानांतरित हो जायगा -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
बढिया विचार लिखे !सुन्दर भाव, सुन्दर शब्द, सुन्दर रचना,उपमाएँ दिलचस्प हैं, बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा...मज़ा आया आया पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंवाह समीर जी..बढिया व्य्ंग...मजा आ गया पढकर..सालिड है..इस ऐतिहासिक व्य्ंग पर अपना जिकर पाकर हम तो धन्य ही हो गये..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. कभी कभार किसी पोस्ट पर हमारी एकाध तस्वीर भी दाग दिया करें..खुली छूट है.
लाल बिन्दी कमाल है । हमने भी व्रह्मांड का दर्शन कर लिया।
जवाब देंहटाएंमुझे तो यह औषधीय पौधे शिवलिंगी का फल मालूम हुआ। इसका प्रयोग वनस्पति विज्ञान की कार्यशाला मे भी हो सकता है।
जवाब देंहटाएंएक बात और। यह आपके एक और रंग को भी प्रदर्शित करता है।
Focus ke liye is FOCAL POINT se jyada aur kuch ho hi nahin sakta. Any other point away from it is equidistant from it as they diverge. Best output of convergence.
जवाब देंहटाएंVij Hamare hai hi Creator.
daad ke saath
Devi
Are meri tipni kahan gayi. pahunche to khabar kariyega.
जवाब देंहटाएंDevi
लेख पढ्ते पढते कब मुस्कुरा पडी पता ही नही चला सुन्दर अभिव्याक्ति…………
जवाब देंहटाएं...
जवाब देंहटाएंआधा दर्जन गीत लिख, यूँ जीते मंच मचान
जवाब देंहटाएंसारा जीवन काट गये, वो अपना सीना तान
अपना सीना तान कि नाम कवियों में होता
बार बार सुन करके भी, श्रोता ताली है धोता
कहे समीर कविराय, इससे भी सस्ता पाओ
एक ही चित्र बनाओ,जीवन भर नाम कमाओ.
इसको कुंडलिनी कहते हैं मेरे एक अभिन्न मित्र श्री रमेश हठीला जिनकी सुपुत्री आजकल मोनिका हठीला के नाम से कवि सम्मेलनों में काफी नाम कमा रहीं हैं वे इस विधा के मास्टर हैं वे समाचार पत्रों मे रोज समसामयिक घटनाओं पर कुडलिनी लिखते हैं कुछ लोग इनको कुडलियां भी कहते हैं । वे अभी तक पांच हजार लिख चुके हैं और सिलसिला जारी है
माफ करियेगा आपकी कुडली में काफी दोष हैं पिंगल शास्त्र के हिसाब से यूं होना था
आधा दर्जन गीत लिख,जीते मंच मचान
सारा जीवन कट गया,अपना सीना तान
'अपना सीना तान' नाम कवियों में होता
बार बार सुन कर भी, श्रोता ताली धोता
कह समीर कविराय, और भी सस्ता पाओ
चित्र बना कर एक,उम्र भर नाम कमाओ.
क्ष्मा करें मास्टर हूं ना इसलिये ग़लत देखकर सुधारने की इच्छा हो जाती है शायद बार बार सुधार करना आपको बुरा लगता हो परक्या करें समीर जी अगर हिन्दुस्तान के मास्टरों ने ग़लती देखकर सुधार करने की अपनी आदत को छोड़ा नहीं होता तो आज देख का कुछ ओर ही हाल होता । मेरे गुरू कहा करते थे कि अगर कोई ग़लत करे तो उसको उसी सगय सुधरोइससे पहले कि ग़लती आदत बन जाए । मुझे झिझक होती है कि बार बार आपकी कविता सुधार रहा हूं आप ऐसा न समझ लें कि ये तो पीछे ही पड़ गया ।
मैंने इस कलाकारी पर बेझिझक टिप्प्णी की तो बगल में बैठा प्राणी बोल उठा - "नाच न आवे आँगन टेँढ़ा"
जवाब देंहटाएंमैंने भी गरमा गरम डाँट लगा दी - "ओये टेंढ़े सीधे हो जा रे सीधे हो जा रे"
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जवाब देंहटाएं:) खो गए पहले इस बिन्दु में ...फ़िर आपके लिखे में :) सुंदर हमेशा की तरह बधाई :)