बुधवार, सितंबर 12, 2007

हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा...

मौका है भारत से सात समंदर पार कनाडा में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के लिये आयोजित समारोह का. अब समारोह है तो मंच भी है. माईक भी लगा है.टीवी के लिये विडियो भी खींचा जा रहा है. मंच पर संचालक, अध्यक्ष, मुख्य अतिथि विराजमान है और साथ ही अन्य समारोहों की तरह दो अन्य प्रभावशाली व्यक्ति भी सुसज्जित हैं. माँ शारदा की तस्वीर मंच पर कोने में लगा दी गई है और सामने दीपक प्रज्ज्वलित होने की बाट जोह रहा है.

hindi diwas

कार्यक्रम पूर्वनियोजित समय से एक घंटा विलम्ब से प्रारंभ हो चुका है. संचालक महोदय सब आने वालों का जुबानी और मंचासीन लोगों का पुष्पाहार से स्वागत कर चुके हैं. अब वह मुख्य अतिथि महोदय से दीप प्रज्ज्वलित कर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार कार्यक्रम की विधिवत शुरुवात का निवेदन कर रहे हैं.

मुख्य अतिथि ने अपनी टाई बचाते हुए दीपक प्रज्ज्वलित कर दिया है. हिन्दी द्वैदीप्तिमान होने लगी है. उसका प्रकाश फैलने लगा है. मुख्य अतिथि वापस अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं. अध्यक्ष महोदय अपना उदबोधन कर रहे हैं. हिन्दी के प्रचार और प्रसार कार्यक्रम के अध्यक्ष बनाये जाने के लिये आभार व्यक्त करते हुए आयोजकों का नाम ले लेकर गिर गिर से पड़ रहे हैं.

वहीं मंच पर विराजित सूट पहने मुख्य अतिथि, जो कि भारत में मंत्रालय के हिन्दी विभाग में उच्चासीन पदाधिकारी हैं और यहाँ किसी अन्य कार्य से भारत से पधारे हैं एवं उन दो मंचासीन प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक के संयोजन से मंच पर महिमा मंडित हो रहे हैं, अपने चेहरे से पसीना पोंछ रहे हैं.

उनको पसीना आने के दो मुख्य कारण समझ में आ रहे हैं. पहला, गर्मी के मौसम में वो उनी सूट पहने हैं और दूसरा, मंच से बोलने का भय. दोनों ही कारण स्वभाविक हैं.

भारत से आने वाले अधिकारियों द्वारा यहाँ के किसी भी मौसम में गरम सूट पहनना तो एकदम सहज और सर्व दृष्टिगत प्रक्रिया है, इससे मुझे कोई आश्चर्य भी नहीं होता. और दूसरा मंच से बोलने का भय, वह भी मौकों और अभ्यास के अभाव में सामान्य ही है. वहाँ भारत में भी दफ्तर में यह न सिर्फ बिना बोले ही काम चला लेते हैं बल्कि बिना लिखे भी. मात्र दस्तखत करने में महारत हासिल है और उसका इस मंच से कोई कार्य नहीं, तो पसीना आना स्वभाविक ही कहलाया.

उनकी हालत देखकर कार्यक्रम के प्रथम स्तरीय संयोजक, जो कि संचालक की हैसियत से मंचासीन हैं, मंच के आसपास घूमते द्वितीय स्तरीय संयोजक को इशारा करते हैं और वो द्वितीय स्तरीय संयोजक उपस्थित श्रोताओं के पीछे घूमते तृतीय स्तरीय संयोजक को इशारा करता है जो कि भाग कर कनैडियन एयरफ्लो पंखे का इन्तजाम कर मंच के बाजू में लगा देता है.

पंखे से चलती अंग्रेजी हवा से, जहाँ एक ओर मुख्य अतिथि महोदय राहत की सांस ले रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हिन्दी को प्रचारित, प्रसारित और प्रकाशित करती दीपक की लौ लड़खड़ाते हुए अपने अस्तित्व को बचाने का भरसक प्रयास कर रही है. आखिरकार उसकी हिम्मत जबाब दे गई.

हिन्दी का प्रचार और प्रसार थम गया. दीपक में अंधेरा छा गया. संचालक महोदय दीपक की तरफ भागे. अध्यक्ष का भाषण एकाएक रुक गया. पंखा बंद कर उस अंग्रजी हवा को रोक दिया गया. माचिस से जला कर दीपक पुनः प्रज्ज्वलित हुआ. हिन्दी का प्रचार एवं प्रसार पुनः प्रारंभ हुआ. हिन्दी प्रकाशित हुई.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार को बाधित करने का जिम्मेदार वह तृतीय स्तरीय संयोजक द्वितीय स्तरीय संयोजक से डांट खाकर किनारे खड़े खिसियानी हंसी हंस रहा है.

कार्यक्रम सुचारु रुप से चलता जा रहा है. सभी भाषण हो रहे हैं. कुछ कवितायें भी पढ़ी जा रहीं हैं और अंत में मुख्य अतिथि द्वारा हिन्दी के प्रचार प्रसार में विशिष्ठ योगदान देने वाले पाँच लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा रहा है, जिस पर लिखा है:

इन रिक्गनिशन ऑफ योर कॉन्ट्रिब्यूशन टूवर्डस हिन्दी………..

( In Recognisition of your contribution towards Hindi.)..

इसके आगे मुझसे पढ़ा नहीं जा पा रहा है. मैंने हिन्दी का ऐसा प्रचार और प्रसार पहले कभी नहीं देखा शायद इसलिये.

कार्यक्रम समाप्त हो गया है. माँ शारदा की तस्वीर को झोले में लपेट कर रख दिया गया है. दीपक बुझा कर रख दिया गया है. अब अगले साल फिर यह दीप प्रज्जवलित हो हिन्दी का प्रचार, प्रसार करेगा और हिन्दी को प्रकाशित करेगा.

तब तक के लिये जय हिन्दी.

आप सबको १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस की औपचारिक एवं सरकारी शुभकामनायें.

22 टिप्‍पणियां:

  1. इन रिक्गनिशन ऑफ योर कॉन्ट्रिब्यूशन टूवर्डस हिन्दी………..
    समीर जी ये आपसे भी कहा गया या नही..पहले ये बतये की आपको भी रिक्गनाईज किया गया या नही..वैसे जब आप दिल्ली आयेगे..देन वी विल डू दैट..:)

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  2. तीन तरह के भाषा प्रेमी हैं. सरकारी, मठी और कुजात.सरकारी हिन्दी प्रेमियों का जिक्र आपने कर ही दिया है. इसी तरह मठी हिन्दीवादी हैं. उनका जिक्र मैं अभी नहीं करूंगा. और तीसरे भाषाप्रेमी हैं कुजात. जिस श्रेणी में हम सब आते हैं.
    ये कुजात ही कुछ करेंगे.बाकी दो ने तो सत्यानाश ही किया है.

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  3. अफसरों की सेवा में हिंदी का दीपक बुझ जाता है। यही सच है। हिंदी अपनी ताकत से बढ़ रही है और दुनिया की एक सशक्त भाषा बनने से इसे कोई नहीं रोक सकता। हां, अफसरों की चले तो वे इसे खत्म ही कर दें।

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  4. Good wishes for Hindi day; may Hindi rule the world :-) :-))

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  5. औपचारिक एंव सरकारी क्‍या ख़ूब लिखा है समीर जी आपने वास्‍तव में तो हिंदी दिवस का कोई औचित्‍य ही नहीं है । हिंदी हमारी अपनी है उसे तो हम रोज ही मनाते हैं अलग से क्‍या मतलब खैर जो भी हो आपका आंखों देखा हाल विशेषकर दीपक को बुझा दिया गया है अगले साल तक के लिये अंदर तक छू गया । बधाई

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  6. बेनामी9/13/2007 01:01:00 am

    वाह! क्या व्यंग्यात्मक विवरण है.

    हमने तो एलान कर ही दिया है, हिन्दी की सेवा नहीं दोहन करेंगे.

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  7. गुरुदेव एकदम सही व्यंग्य बाण छोड़ा है आपने...
    हिन्दी भाषा की लोकप्रियता,
    यही तो दर्शाती है,
    हिन्दी साल में एक-दिन,
    हिन्दी-दिवस के दिन
    अपनाई जाती है
    सभी सरकारी कार्यालयो में हिन्दी में कार्य करने का आदेश हुआ और वह भी अंग्रेजी में छपा हुआ...:)

    शानू

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  8. हिंदी भाषा की शायद यही सबसे बड़ी विडम्बना है कि जिन लोगों को इसके प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व दिया गया है, वही अंग्रेज़ी-मानसिकता के गुलाम बने हुये हैं. संजय तिवारी जी की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि ऐसे माहौल में हम ’कुजात’ हिंदी-प्रेमियों को ही ये जिम्मेदारी उठानी होगी.

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  9. समीर जी आपको भी हिंदी दिवस की शुभकामनायें !!

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  10. आप वहाँ विदेश में परेशान हैं, बुरा मत मानियेगा लेकिन यहाँ जहाँ हिंदी राजभाषा है, वहाँ के हाल भी कुछ इसी तरह के हैं।

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  11. जय हिन्दी.
    आपके हाथ लगा कुछ? ऐसे फक्शन तो कुछ हाथ लगने के लिये होते हैं!

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  12. हिंदी के वरदपुत्र अब मलाई काट रहे हैं। आप भी जल्दी हो जाइये। फिर देखिये, क्या मौज आती है। और जी सबको हक है अपनी-अपनी तरह से सत्यानाश करने का। सत्यानाश के सारे राइट भारतीयों के पास ही थोड़े ही हैं।

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  13. बहुत दुख: होता है, इस तरह के आयोजनों के बारे में जानकर... अक्सर सरकारी दफ्तरों (खासकर बैंकों में) राजभाषा सप्ताहों के दौरान भी हिन्दी में भरी हुई जमा पर्ची को और पर्ची लिखने वाले को अजीबो गरीब नजरों से घूरा जाता है।

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  14. भाई,
    चाहे सात समंदर पार हों या हिंदुस्तान के भीतर हिंदी हमारी मातृभाषा है और इसे सर्वश्रेष्ठ मुकाम तक हमें पहुँचाना है, पुर संकल्प के साथ, आपका प्रयास प्रशंसनीय है.हिंदी के दुनिया की एक सशक्त भाषा बनने से इसे कोई नहीं रोक सकता।

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  15. यह कनाडा का दृश्य है?
    पर करीब करीब ऐसे ही बहुत से दृश्य तो अपने यहां भी दिखाई दे जाते हैं हिन्दी दिवस के आसपास!

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  16. ""हिन्दी डे"" कि आपको "'वैरी वैरी'' बधाई समीर जी ...:) कुछ ऐसी ही कविता मैंने कल के लिए
    लिखी है :)हिंद युग्म पर जरुर "'रीड "'करें ..:) जय हो ""हिन्दी डे'' की :)

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  17. यू आर इन्वाईटेड टु अटेन्ड द सेलीब्रेशन आफ़ हिन्दी डे अत ६:३० पी एम एट मसाचुसेट्स एवेन्यू आडीटोरिउम आन १४ सेप्टेम्बर २००७.

    दिस प्रोग्राम इस आर्गेनाईज़्ड बाई द हिन्दी लेंग्वेज़ प्रमोशन आफ़ीसर ओफ़ गवर्नमेंट आफ़ इंडिया

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  18. 'यू पूअर हिन्दी ब्लॅागर्स...आई थिंक यू पीपुल डोन्ट हाव एनी अदर्स वर्क टू डू... एक्सेप्ट कम्प्लेनिंग टाईम एंड अगेन!' (कुछ ग़लत बोल गया हूं तो माफ कर देना...प्लीज़ ना)

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  19. बेनामी9/14/2007 05:52:00 am

    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
    ..........................
    कह दो पुकार कर सुनले दुनिया सारी
    हम हिन्द तनय हैं हिन्दी मातु हमारी
    भाषा हम सब की एक मात्र हिन्दी हैं
    सुभ,सत्व और गण की खान ये हिन्दी है
    भारत की तो बस प्राण ये हिन्दी हैं
    हिन्दी जिस पर निर्भर हैं उन्नति सारी
    हम हिन्द तनय हैं हिन्दी मातु हमारी

    १९३४ मे लाहौर से रंगभुमि मे प्रकाशित मनोरंजन भारती जी की यह कविता आप www.ekavisammelan.blogspot.com पर पुरी पढ सकते हैं तथा अशोक चक्रधर जी की आवाज मे इसे सुन भी सकते हैं हर हिन्दी भाषी की रगो को नव स्फ़ुर्ति नव चेतना का संचार करने वाली यह कविता आज भी प्रासंगिक है आप भी इस कविता का अधिक से अधिक हिन्दी भाषियो को जानकारी दे सकते हैं .
    प्रतीक शर्मा (www.hindiseekho.com)

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  20. आप एसे कार्यक्रमों जाकर रिपोर्ट लिखकर हमें जानकारी देते रहें।
    हिंदी दिवस पर मेरी तरफ़ से बधाई
    दीपक भारतदीप्

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  21. हर फ़िक्र को धुँये में उड़ाता चला गया...

    http://lakhnawi.blogspot.com/2007/02/blog-post_16.html

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