गुरुवार, अगस्त 23, 2007

दिन का सूरज उगा




तेरी सूरत दिखी आज फिर याद में,
दिन का सूरज उगा यूँ लगा रात में.

फल से लदने लगे पेड़ अंगनाई के
तुम लिए ही रहे बीज बस हाथ में.

उसकी आदत बुरी है वो रोता रहा
जिसने पाई है दौलत भी खैरात में

बेवफा इश्क के जो भी किस्से उठे
जिक्र तेरा ही आया है हर बात में.

तुम मिलोगे उसी मोड़ पर, इसलिये
भीगते ही गये हम तो बरसात में.

प्यार से जो तुम्हारी नजर पड़ गई
आग जैसे लगी मेरे जज्बात में.

घर तुम्हारा यहीं पर कहीं है समीर
देर क्यूँ लग रही फिर मुलाकात में.

--समीर लाल 'समीर'

39 टिप्‍पणियां:

  1. घर तुम्हारा यहीं पर कहीं है समीर
    देर क्यूँ लग रही फिर मुलाकात में.

    very nice and loving

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  2. बहुत ही अच्छी कविता है, ऐसा लगा जैसे सीधे दिल में उतर गयी हो।

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  3. उसकी आदत बुरी है वो रोता रहा
    जिसने पाई है दौलत भी खैरात में
    ---------
    क्या जोरदार पंक्तियाँ हैं
    दीपक भारतदीप

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  4. बेनामी8/24/2007 12:16:00 am

    समझ में आने वाली कविता/शायरी.

    प्यार मोहब्बत ठीक है, अपने को तो यह सही लगी

    उसकी आदत बुरी है वो रोता रहा
    जिसने पाई है दौलत भी खैरात में

    यह तो व्यंग्य हो गया. :)

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  5. रिश्तों की गहराई को युँ ही सहजता से,

    कर दी बयान बात बात में.

    रात की गहराई हो, खामोशी हो,

    आँखो से बातें हो, साथी हो और साथ मैं!

    :)

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  6. तुम मिलोगे उसी मोड़ पर, इसलिये
    भीगते ही गये हम तो बरसात में.

    प्यार से जो तुम्हारी नजर पड़ गई
    आग जैसे लगी मेरे जज्बात में.

    ...बहुत ही उम्दा शेर लगे यह दोनो. और पूरी गजल मस्त.
    बधाई.

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  7. वाह क्या बात है हुजूर, सावन यहाँ बरस रहा है और रूमानी आप वहाँ हुए जा रहे हैं :)
    सीधे सादे शब्दों में भी छू गई आपकी ये ग़ज़ल !

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  8. वाह, रहस्यवाद, हास्य-व्यंग्य, करुण-रस, लयतालबद्धता के साथ मनोभाव और बौद्धिक-विचारों का अद्भुत संगम है यह लघु काव्य। इसे कॉपीराइट करवा लें, क्योंकि किसी हिन्दी फिल्म में "दृश्य" गीत-संगीत के लिए लिया जा सकता है।

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  9. कौन कहता है काव्य में सब फ़्राड चल रहा है ।

    इतनी बढिया रचना पढकर मन प्रसन्न हो गया ।

    "तुम मिलोगे उसी मोड़ पर, इसलिये
    भीगते ही गये हम तो बरसात में"

    इसीलिये हम अपने बैकपेक में हमेशा छाता रखकर चलते हैं :-)

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  10. देर कुछ यों हो रही है,
    कि समझ ना पाये हम,
    कि असर क्या हुआ तुम पर,
    जब नजरें पहली बार
    हुंई चार.

    अभिव्यक्ति दे दी है
    तुम ने अब,
    अपनी भावनाओ को
    तो देर न करेंगे अब
    हम !!

    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  11. वाह! बहुत ही सुन्दर भावों से सुसज्जित रचना है।

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  12. अब आप ने मारी सही वाली चोट कविताओ के आलोचको पर..:)

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  13. समीर जी,बहुत बढिया लिखा है।हर दो लाइनें अपनी छाप छोड़ जाती हैं।रचना के भावों की विविधता बह्त पसंद आई।

    फल से लदने लगे पेड़ अंगनाई के
    तुम लिए ही रहे बीज बस हाथ में.

    उसकी आदत बुरी है वो रोता रहा
    जिसने पाई है दौलत भी खैरात में

    घर तुम्हारा यहीं पर कहीं है समीर
    देर क्यूँ लग रही फिर मुलाकात में.

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  14. वाह, इसमें मनुहार है, आशा है, झिझक है और कुछ सीमा तक मौन भी दीखता है.
    बहुत बढ़िया!

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  15. ये बधाई हमारी भी स्वीकारिये,
    बसते रहिए हमारे खयालात में

    यूं ही पढते रहें गज़लें हम आपकी
    बिघ्न आए नहीं इस मुलाक़ात में

    समीर जी,

    बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी आपने. पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. हम रोज आपकी पोस्ट का इंतजार यूं ही नहीं करते.

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  16. क्‍यूं देर लग रही है? बताइए, बताइए!

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  17. तुम मिलोगे उसी मोड़ पर, इसलिये
    भीगते ही गये हम तो बरसात में.

    गली के मोड़ पर सूना-सा कोई दरवाज़ा...ये गज़ल याद आ गई। अच्छी दिल से निकली कविता है। दर्द अपना न भी रहा हो तो भी दूसरों का दर्द बांटने और महसूस करने में क्या हर्ज है। अच्छा है।

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  18. प्यार से जो तुम्हारी नजर पड़ गई
    आग जैसे लगी मेरे जज्बात में.

    घर तुम्हारा यहीं पर कहीं है समीर
    देर क्यूँ लग रही फिर मुलाकात में.

    इसका एक्सटेंशन अर्ज है-
    कूटेंगे तुमको और मिलके फोड़ भी देंगे
    चच्चा हैं मेरे अफसर सिटी हवालात में

    हैं बाल तो सफेद, प दिल अब तक है काला
    भईया मरोगे तुम इसी खुराफात में

    काहे का इश्क और काहे की आशिकी
    दिन को है कड़ी धूप, औ बिजली गायब रात में

    अब जल्दी ही आ जाइए इंडिया में समीरजी
    हमको भी तो चलना है एक बारात में

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  19. 'फल से लदने लगे पेड़ अंगनाई के
    तुम लिए ही रहे बीज बस हाथ में.'


    बहुत खूब।

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  20. जो ये कहते हैं कविता महज फ़्राड है
    मखमली थेगली, उनके दी टाट में
    भीगते तुम रहे थे प्रतीक्षा लिये
    सनसनी कैसी उस पल भरी गात में ?
    बात क्या है हमें भी बता, हमसुखन
    कोई लिखता नहीं व्यर्थ ही बात में

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  21. बहुत खूबसूरत अंदाजे बयां है !!

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  22. बहुत बढ़िया लगी गजल। खासकर ये पंक्तियाँ.. जिसने पाई है दौलत....

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  23. बेनामी8/24/2007 01:03:00 pm

    बढिया है। सूरज को रात में जगाओगे, शिकायत कर देगा।

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  24. लालाजी,

    अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई

    राकेश जी की टिप्पणी भी कमाल है भाई

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  25. बहुत अच्छे। रूमानियत की बेहद खूबसूरत एहसास

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  26. फिर याद आई चंद लाइनें

    इक धुँआ धुँआ सा चेहरा
    जुल्फों का रंग सुनहरा
    वो धुँधली सी कुछ यादें
    कर जाती रात सबेरा।

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  27. जो दिल को छू जाए वही ग़ज़ल होती है,
    महसूस हो अपने पराए वही ग़ज़ल होती है.
    ग़ज़ल इश्क़ है, खुदा है, तसबबुर है यार-
    ये मतलब समझा जाए वही ग़ज़ल होती है.
    समीर जी, बढ़िया लिखते हैं आप, बधाईयाँ.../

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  28. बहुत ही खूबसूरत पेशकश है.

    श्रीमान जी, मैंने भी एक ब्लॉग शुरू किया है - आवाज.ब्लॉगस्पॉट.कॉम . आप इसे देखेंगे तो मुझे अति प्रसन्नता होगी.
    धन्यवाद,
    संजीव कुमार

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  29. बेवफा इश्क के जो भी किस्से उठे
    जिक्र तेरा ही आया है हर बात में.

    क्या बात है समीर जी ...बहुत ही खूबसूरती से आपने दिल कि बात कह दी

    तुम मिलोगे उसी मोड़ पर, इसलिये
    भीगते ही गये हम तो बरसात में.

    हर शेर ख़ुद में मुकम्मल और सुंदर है ,बधाई एक खूबसूरत रचना के लिए

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  30. 'फल से लदने लगे पेड़ अंगनाई के
    तुम लिए ही रहे बीज बस हाथ में.'
    अब यह विफलता तो आपकी है. आगे आलोक पुराणिक द्वारा किए गए एक्सटेंशन पर गौर फ़रमाएँ.

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  31. समीर जी कुछ बेवफाई का दर्द, कुछ खो देने का दर्द, किसी से बिछुड जाने का दर्द कुछ ऐसा ही होता है….

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  32. बहुत सुन्दर ! वैसे आपकी वजह से मुझे अब कवितायें कुछ-२ समझ मे आने लगी हैं :)विवाह की वर्षगांठ की बहुत-२ शुभकामनायें !

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  33. Bahot khoob Sameer bhai ,
    Ek Ek shabd bhavna se oot prot hai.
    Shadi ki Saal Girah ki Badhaai .
    Sa sneh,
    L

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  34. सभी मित्रों का रचना पसंद करने के लिये बहुत बहुत आभार. शादी की वर्षगाँठ पर प्रेषित आप सबकी बधाई एवं मुबारकबाद के लिये मैं और मेरी पत्नी बहुत आभार व्यक्त करते हैं. स्नेह बनाये रखें.

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  35. घर तुम्हारा यहीं पर कहीं है समीर
    देर क्यूँ लग रही फिर मुलाकात में.

    क्या बात है। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है समीर जी। मज़ा आ गया।
    शादी की सालगिरह मुबारक हो । देरी तो हो गई है :)

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  36. अरे नहीं अजीत भाई, देर कैसी. अपने तो जब भी बधाई दे दें, तब ही दिन बन जाता है. आभार.

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  37. समीर जी सर्वप्रथम आपको और आपकी 'उनको' विवाह की वर्षगाँठ मुबारक हो । मौके के अनुरुप लिखा है । बधाई

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