बुधवार, जून 27, 2007

चलो, हम भी सीख ही गये

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
यह मेरा पॉड कास्टिंग का पहला प्रयास है. सब सुनाये चले जा रहे थे और हम बैठे देखे जा रहे थे कि कैसे करते हैं पॉडकास्ट. भला हो मित्रों का, जैसे ही हमने दोहे वाली पोस्ट में अपनी असमर्थता व्यक्त की वैसे ही सब भागे भागे भीगे भीगे (उस दिन दिल्ली में बारिश हो रही थी :)) टिप्पणी में बता गये, ऐसा कर लो, वैसा कर लो. बैंगाणी बंधुओं ने तो गुजरात से पूरी ईमेल करके विधी भेज दी और खुद करके दे देने की पेशकश भी की जबकि प्लेयर लोड होते समय हरे रंग का हो जाता है, भगवा नहीं और उस पर से हमारे ब्लॉग का हेडर भी हरा. फिर भी सब किया प्रेमवश. सबका प्रेम देखकर मन खुशी से भर आया. बस खुशी से आंसू टपकने की फिराक में ही थे कि मास्साब ई-पंडित श्रीश महाराज आ पधारे. वो तो हमेशा ही कमाल लिखते हैं (जब भी लिखते हैं :)) और हमारी तकलीफ जानकर, बिना हमारे व्यक्तिगत निवेदन के, दो तीन रातें काली कर पूरी की पूरी स्टेप बाई स्टेप क्लास लगाई और फिर आकर क्लास अटेंड करने का निमंत्रण भी दे गये. ऐसे होती है मित्रों की मदद और ऐसा होता है चिट्ठाकारों का आपसी प्रेम. अरे, कुछ सीखो कि बस हर बात में तलवार खिंचना जरुरी है? :) खैर जाने दो, गाना सुनो.

इस गीत को लिखा मैने है और संगीत दिया है केलिफोर्निया स्थित "साज़मंत्रा" ने. आवाज दी है श्री अंशुमान चन्द्रा ने. यह गीत एक प्रवासी की वेदना दर्शाता है.














खोया मुसाफिर

बहुत खुश हूँ फिर भी न जाने क्यूँ
ऑखों में एक नमीं सी लगे
मेरी हसरतों के महल के नीचे
खिसकती जमीं सी लगे

सब कुछ तो पा लिया मैने
फिर भी एक कमी सी लगे
मेरे दिल के आइने पर
यादों की कुछ धूल जमीं सी लगे

जिंदा हूँ यह एहसास तो है फिर भी
अपनी धडकन कुछ थमीं सी लगे
खुद से नाराज होता हूँ जब भी
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे

कुछ चिराग जलाने होंगे दिन मे
सूरज की रोशनी अब कुछ कम सी लगे
चलो उस पार चलते हैं
जहॉ की हवा कुछ अपनी सी लगे.

--समीर लाल 'समीर'


यहाँ डाउनलोड करें.

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34 टिप्‍पणियां:

  1. अभी नींद आ रही है, कल पूरा सुन के टिप्पणी करेंगे।
    धन्यवाद!

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  2. पाडकास्ट के बाद टेलीकास्ट भी कर दीजिये। मामला फुल आडियो विजुअल होने दीजिये।
    आलोक पुराणिक

    जवाब देंहटाएं
  3. "मास्साब ई-पंडित श्रीश महाराज आ पधारे. वो तो हमेशा ही कमाल लिखते हैं (जब भी लिखते हैं :))"

    हे हे, अब शर्मिंदा तो न कीजिए, वैसे लेख लिखने की मेहनत वसूल करवा दी आपने। :)

    "दो तीन रातें काली कर पूरी की पूरी स्टेप बाई स्टेप क्लास लगाई।"

    अजी इस लेख का प्लॉट तैयार करने में कोई एक हफ्ता लग गया था। :(

    गीत थोड़ा सुना, बाकी डाउनलोड कर रहे हैं। एडवांस में साधुवाद बोल देते हैं, आखिर संत समीरानंद ने पॉडकास्ट किया है तो इसमें साधुवाद तो होगा ही! :)

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  4. बेनामी6/27/2007 09:08:00 pm

    वैसे तो अच्छा है, बस संगीत के हिसाब से थोड़ा स्लो लग रहा है।

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  5. हमारे जैसे तकनीकी अ-विशेषज्ञ को सवेरे-सवेरे संकुचित क्यों करते हैं. बमुश्किल 250 शब्द लिखते हैं, अब बोलना-भेजना भी सीखें?

    ब्लॉगरी में भी बड़ा कम्पीटीशन है - पहले मालुम नहीं था!

    और ये ई-पण्डित - कौन कहता है इनसे नया नया फण्डा लाने को!

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  6. सीखे तो एकदम बढ़िया है जी ..पर अपनी आवाज सुनाने के कभी भाभी की तो कभी किसी और की आवाज सुनाते हैं ..कभी अपनी आवाज भी सुना ही देते...

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  7. अंकिल,
    पढ भी लिये, और सुन भी लिये ।
    आपके गीत को बहुत अच्छे सुर और ताल में बाँधा गया है । आजकल के दौर में कम ही गीतकारों को ये मौका मिलता है । हिमेश भाई को भी अपना कोई गीत भेजकर देख लीजिये :-) लेकिन उसकी शुरूआत उउउउउउउउउउउउउउउउउऊऊऊऊऊऊऊऊ टाईप से करनी पडेगी ।


    लगता है अब हमें भी पोडकास्टिंग करके आप सभी को कुछ सुनाना ही पडेगा ।

    साभार,
    नीरज

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  8. http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/05/blog-post_3919.html
    samir you have read many of my poems but did not read the above i think read it when you can . you have worded the pain very well

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  9. आप इस के साथ डाऊन लोड करने का जुगाड भी दिया करे अंशुमान जी की आवाज बहुत अच्छी है
    जरा लंबाई बढाईये
    :)

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  10. बेनामी6/28/2007 12:00:00 am

    कमाल कर दिया जी आपने.

    आभार, मस्त रचना सुनाने के लिए.

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  11. मैरे विचार से तो हिन्दी चिट्ठाजगत के लिए आज का दिन स्वर्ण अक्षरों मे अंकित होना चाहिए.. आपने पॉडकास्ट कर ही लिया! हा हा हा :)


    खैर मजाक वजाक तो होता रहेगा, पर यह गीत तो मुझे शुरू से ही पसन्द है. बहुत बार सुन चुका हुँ.. और हर बार फिर से पढने (सुनने को कम... संगीत थोडा बोझिल है) को मन करता है. संगीत भी गीत की तरह होता तो सोने पर सुहागा ना होता??

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  12. वाह वाह!

    आप तो पूरा ग़ज़ल गो बन गए. बढ़िया लिखा भी और गाया भी.

    चार्टर्ड एकाउन्टेंसी छोड़कर ग़ज़ल गायकी प्रोफ़ेशन अपनाएँ तो ज्यादा चल निकलेंगे.

    फिर तब आप मेरे व्यंज़लों को स्वर जरूर दीजिएगा :)

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  13. अभी तो हम सुन नहीं सकते हैं...बाद मे कमेंट करेंगे। वैसे गीत के बोल बढ़िया बन पडे हैं।

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  14. बेनामी6/28/2007 01:55:00 am

    आदरणीय समीरजी
    आपकी रचना ग़ज़लनुमा है मात्र छन्द में नहीं है आपने कोई भी बहर का इस्तेमाल नहीं किया है.गायक बड़ी मुस्किल से खेंच रहा है. कविता कान की कला है छन्द उनको चिरंजीवी बनाते हैं.मैने ग़ज़ल के शिल्प पर काम किया है.आपसे मैं बहुत उम्मीद रखता हूँ.नेट की अधिकतर कवियत्रीयों की रचनायें वज़न से खारिज़ होती है.ओढ़ा हुआ दर्द घनश्याम की लीला का वर्णन बहुत गुस्सा आता है आप से सुधीजन वाह वाह करके आसमान पर चढा देते हैं.मैं आपकी हर रचना का पाठक हूँ आपकी टिप्पड़ी को भी खास देखता हूँ.आपकी रचना में दर्द है पसन्द आया.
    सारे आलम पे हूँ मैं छाया हुआ
    मुस्तनद है मेरा फर्माया हुआ.
    डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.28-6-07

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  15. मेरी हसरतों के महल के नीचे
    खिसकती जमीं सी लगे

    सब कुछ तो पा लिया मैने
    फिर भी एक कमी सी लगे

    जिंदा हूँ यह एहसास तो है फिर भी
    अपनी धडकन कुछ थमीं सी लगे
    खुद से नाराज होता हूँ जब भी
    जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे

    aapki yah panktiyaan mujhe tahara gai.....gudone.....they say beauty lies in simplicity.....i realized it

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  16. समीर भाई हमने गाना तो सुबह कविता पोस्ट करने से पहले ही सुना था...मगर टिप्पीयाये नही थे...सुबह सोचा आपने इतना सुन्दर गाया वाह क्या आवाज़ है..फ़िर देखा की आवाज़ तो अंशुमान चन्द्रा जी की है...उन्हे हमारी और से बधाई अवश्य दें बहुत ही सुंदर दर्द भरी आवाज़ है...और हाँ रचना बेहद खूबसूरत है..इसीलिये तो गाया भी गया सुंदर है...

    शानू

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  17. हाँ संगीत भी बेहद अच्छा लगा

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  18. बेनामी6/28/2007 05:38:00 am

    chalo teek hai, aakhir shuruvaat tho ki.

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  19. डाउनलोड कर रख दिया था कि फ़ुरसत से सुना जाएगा, अभी सुना और टिपियाने आ गए!!
    पहले तो बधाई पॉडकास्ट मे सफ़ल होने के लिए!
    दूसरी बधाई इस बढ़िया रचना के लिए।

    रचना मे जितना दर्द है उसे देखते हुए गायक सही ही चुना गया है!
    सुनकर ही समझ में आता है कि गायक को इसे गाने के लिए मेहनत करनी पड़ी होगी! जैसा कि तकनीकी भाषा में सुभाष भदौरिया जी ने कह ही दिया है!

    क्यों नहीं इस रचना को किसी ऑफ़बीट फ़िलमवा के लिए भिजवाते, मुंबई मा अज़दक जी, निर्मलनंद जी और शशी भाई तो बैठे ही है कोशिश करने के लिए!!

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  20. अब सीखना तो था ही न आपको…
    समीर भाई बाल को संभालें इसी सिखने के चक्कर में और न चला जाए… :) :)

    बहुत अच्छा लगा गीत तो वाकई शानदार है…प्रत्येक शब्द में अहसास समाया हुआ है…Gr8!!!

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  21. वाह समीर जी, बहुत सुन्दर ! शब्द भी सुन्दर, भाव भी सुन्दर और सुनने से तो और भी आनन्द आया ।
    घुघूती बासूती

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  22. पढ़ा हुआ मैने पहले थी, एक बार फिर और पढ़ लिया
    सुना नहीं है और अभी पंद्रह दिन न सुननए वाला हूँ
    हिन्दी सम्मेलन में जब हम वहां मिलेंगे तभी सुनूँगा
    और देखिये फिर उस संध्या क्या क्या मैं कहने वाला हूँ

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  23. बहुत बढ़िया और बधाई !

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  24. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  25. बहुत बढिया। मजा आ गया। कविता और आवाज़ दोनों ही अच्छी।

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  26. Going thru the comments on this post i find some thing that i want to point out. Please notice what I feel:
    1. That comment is no where related to that post and if someone wants to do it better talk relevant.
    2. One can be a great poet that does not mean other are bad or you have right to pin them down.
    3. On top of all BLOG is a personal diary. None of the blogger is asks one to see one’s blog and comment on it. It’s one’s personal interest and liking and disliking. If you like someone’s work better talk to that one only rather than pulling in somebody else’s blogs.

    I don’t know how far people agree with me but that is what I feel.

    जवाब देंहटाएं
  27. समीर भाई,
    आपने कमाल कर दिया है !
    ;-)
    अँशुमान जी ने बडे सुँदर तरीके से आपका गीत गाया !
    आलोक पुराणिक जी का सुझाव भी बढिया है -
    [" पाडकास्ट के बाद टेलीकास्ट भी कर दीजिये। मामला फुल आडियो विजुअल होने दीजिये। " ]
    अगर, 'स्टार कास्ट ' का इँतजाम हो जाये तो ये मीनी ब्लोग सिनेमा का भी प्रथम प्रयास रहेगा !
    Hope you "do It " soon ~~

    फिर एक नया और नायाब काम करने की सफलता के लिये, मेरी बधाई !
    स स्नेह,
    -- लावण्या

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  28. मिश्र जी

    आशा है जागने के बाद सुन लिया होगा और पुनः टिप्पणी न करने की कोई बात नहीं. :)

    आलोक भाई

    बिल्कुल जनाब, आपकी बात और खाली जाने दें, सवाल ही नहीं उठता-जरुर लायेंगे फुल आडियो विजुअल. :) आभार.


    मास्साब

    भाई, शर्मिंदा कहाँ कर रहे हैं, हम तो आपकी मेहनत का आभार जता रहे हैं. मेहनत कमतर आंकने के लिये जरुर खेद है.साधुवाद के लिये आभार. :)

    तरुण

    संगीत पर तो हमारा जोर नहीं था. यह एकदम सुरुवाती दौर में लिखा गया था और उन लोगों को पसंद आ गया.

    ज्ञानदत्त जी

    आपको पंडित जी का पूरा ईमेल पता, फोन नम्बर, दिल्ली में ब्लॉगर मीट के दौरान कहाँ ठहरेंगे आदि सब भेज देता हूँ. इस बार तो काम की बात बताई वैसे हमेशा ही ऐसी भारी भारी बात लाते हैं, दिमाग की ताकत निकाल कर रख देते हैं. सोचते भी नहीं कि इतनी पढ़ाई-बच्चों के विकास में बाधक बन जायेगी.

    काम्पटीशन इन्हीं लोगों के कारण बढ़ा है, जरा डांट तो लगाईये.

    आपकी लेखनी ही ऐसी बेहतरीन है कि कुछ सीखने की जरुरत नहीं, यह सब लटके झटके हम जैसे आईटमों के लिये हैं हल्ला गुल्ला बनाये रखने को. आभार, आते रहिये.

    जवाब देंहटाएं
  29. मित्र काकेश

    सुनायेंगे-अभी जरा मुलेठी खा खा कर आवाज सधा रहे हैं और तियाज किये जा रहे हैं. :)

    नीरज भाई

    तु्म्हारे अंकिल कहने से तो चार बाल गिर जाते हैं सर से. कम्प्यूटर का की बोर्ड गिरे बालों से ही खराब हुआ तो तुमसे ही लूंगा, बता दे रहा हूँ.

    हिमेश के लिये गाना लिखना शुरु कर दिया है, पहली लाईन तैयार है:

    उउउउउउउउउउउउउउऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ.........

    आगे अभी लिखना बाकी है. जल्दी ही पूरा करता हूँ. पहली लाईन कैसी लगी, जरा बताना तो कुछ फेर बदल करना हो तो?

    गीत पसंद करने का आभार.

    रचना जी

    बहुत आभार तारीफ के लिये. बस दिल की आवाज है.

    अरुण भाई

    दिया तो है डाऊन लोड करने का जुगाड-अंसुमान जी को खबर कर दी जायेगी और जब धन्यवाद आ जायेगा तब आपको दे दिया जायेगा. :) लम्बाई के लिये इन्क्रामिन लेना शुरु कर दिया है एक एक चम्म्च सुबह शाम...और पार्क में जाकर बार पर लटकने भी लगे हैं १५ मिनट. जैसे ही लम्बाई बढ़ेगी, बताऊंगा. वजन का भी कुछ करना है क्या?? :)


    संजय भाई

    कमाल आपके कानों का जनाब-हम तो बस कोशिश कर रहे थे. बहुत आभार आपका.

    पंकज

    तुमने पसंद किया बस सफल रहा और संगीत के लिये तुम्हारी टिप्पणी के साथ अभी डांट भेजता हूँ उन लोगों को.

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  30. रवि भाई

    अरे, हम गा देते तो अभी तो आप भाग चुके होते, हा हा!! गायक अंशुमान चन्द्रा जी हैं. वाह वाह के लिये बहुत आभार और साथ ही हमारी आवाज पर आपका विश्वास देखकर एक बार जरुर रियाज करके कोशिश करुँगा.

    विकास

    धन्यवाद, बोल पसंद करेंगे. कुछ समय सीमा बता देते कि बाद में कब, तो इन्तजार को एक ढाढस मिल जाता है. अभी तो बड़ा भारी सा लग रहा है कि बाद में न जाने कब. :)


    सुभाष जी

    आपके मार्गदर्शन का आभारी हूँ. वैसे जब लिखना शुरु किया था, उस वक्त का तीसरा या चौथा प्रयास रहा होगा और यह म्यूजिक कम्पनी वाले उसी को पसंद कर गये. हमें तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई वाली बात थी. आपका ज्ञान निश्चित ही बहुत अधिक है और आपसे सीखने मिलता रहे, इससे बड़ी क्या बात हो सकती है. आपने रचना में छिपे एक प्रवासी के दिल के दर्द को पहचाना, लिखना सार्थक हो गया.

    आपकी टिप्पणी के भाग दो पर "नेट की अधिकतर कवियत्रीयों की रचनायें वज़न से खारिज़ होती " काफी ईमेल मुझे प्राप्त हुए. एक संपूर्ण वर्ग विशेष को लिंग भेद के आधार पर वर्गीकृत किया जाना जहाँ उचित नहीं प्रतीत होता वहीं उस वर्ग और अन्य लोग जो इस विचारधारा के पक्षधर नहीं हैं, जिसमें मैं भी शामिल समझा जाऊँ, का विरोध और नाराजगी जायज है. आप अपनी सोच के लिये निश्चित रुप से स्वतंत्र हैं मगर कृप्या इसे अन्य मंचों से न जाहिर करें. यदि जाहिर करना नितांत आवश्यक लगता हो तो अपने ब्लॉग का इस्तेमाल तो आप अपने हिसाब से कर ही सकते हैं.
    मैं विवादों से दूर रहने का भरसक प्रयास करता हूँ और न ही विवादों मे मेरी कोई रुचि होती है. मेरा चिट्ठाकारी का उद्देश्य भिन्न है. आशा है आप अन्यथा न लेंगे. इस विषय पर किसी भी चर्चा को मैं अपने ब्लॉग पर आगे बढ़ाना नहीं चाहता. अतः आशा है आप सहयोग करेंगे.
    आपके गजल ज्ञान से मैं हमेशा प्रभावित रहा हूँ और निवेदन है कि आप इससे हमें लाभान्वित करते रहें और जहाँ भी सुधार की गुंजाईश दिखे, जरुर मार्गदर्शन करें. आपका बहुत आभार.

    अनुपमा जी
    आज लिखना सार्थक लगा जो आपको यहाँ तक ले ही आया. बड़ा अच्छा लगा कि आपको रचना पसंद आई. अति आभार. आते जाते रहें.

    सुनीता जी

    बहुत बहुत आभार. अंशुमान को आपकी शुभकामनायें पहुँचा दी जायेंगी. आपने पसंद किया, अच्छा लगा. हमारी आवज..हा हा...काश ऐसी होती!!! :)

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  31. बेनाम जी
    बस यूँ ही स्नेह बनाये रखें और भी कई शुरुवाते की जायेंगी.

    संजीत
    बहुत बहुत धन्यवाद पसंद करने के लिये.अज़दक जी, निर्मलनंद जी और शशी भाई के लायक जब लिखने जाऊँगा तब तो जरुर भेजूँगा, अभी हिम्मत नहीं और न ही स्तर. :) वो तो अपने हैं ही, कभी भी धमक लेंगे उनके दरवाजे.
    भदौरिया जी की राय निश्चित राह दिखाती रहेगी और उनका अनुभव बेहतर लेखन को प्रेरित करता रहेगा.
    पुनः आभार.

    दिव्याभ भाई

    बाल में तेल मालिश करके ही बैठा थ यह सब करने. गनीमत रहे, श्रीश ने इसे समझाने में अपने बाल गिरा लिये और इतनी सरलता से समझाया कि हमारे सारे बचे हुये बच गये. :)
    बहुत आभर पसंद करने और सुनने के लिये.

    घुघूति जी
    आपका स्नेह सब कुछ सुन्दर बना देता है. बस ऐसे ही स्नेह बनाये रखें.
    आभार.

    राकेश भाई
    जरुर सुनाया जायेगा आपको हिन्दी सम्मेलन के समय और फिर आप जो भी कहोगे, प्रसाद तो ग्रहण करना ही है. अमृत वचनों का इन्तजार रहेगा. जो भी कर पाते हैं, सब आपका ही तो आशीष और प्रोत्साहन है. बस बनाये रखें ऐसे ही.

    ममता जी
    धन्यवाद बहुत बहुत!!

    जवाब देंहटाएं
  32. रचना जी
    आप व्यथित हुईं, मै समझ सकता हूँ.

    सत्येन्द्र भाई

    आपको मजा आया, बस सब सफल हो गया. बहुत आभार.

    अमित जी

    आप पधारे, बहुत आभार. आप हमारा चिट्ठा पढ़ते हैं, जानकर बहुत हर्ष हुआ. आपकी बात से सहमत हूँ. भविष्य में ध्यान रखा जायेगा. आते रहें, बहुत आभार.

    लावण्या दी

    आपकी बात टाली जाये, यह तो मुझमें साहस नहीं. जरुर प्रयास करुँगा. :)
    आपका आशीष मिल जाता है, सब सफल हो जाता है. आशीष बनाये रखें.
    अंशुमान को भी आपका आशीष पास कर दूँगा.

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  33. समीर जी नमस्कार,
    समीर जी आपकी रचना पढी और सुनी भी,
    सुनने में अच्छी लगी और संगीत भी, पर पढने मै ज्यादा मज़ा आया, सुनने में थोडा धीमापन लगा, ये मेरी अपनी राय हैं हो सकता हैं मै गलत होऊं पर पहली बार किसी ब्लोग पर एसा देखा जिसकी जितनी तारीफ की जाये कम हैं।

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  34. कुछ चिराग जलाने होंगे दिन मे
    सूरज की रोशनी अब कुछ कम सी लगे
    चलो उस पार चलते हैं
    जहॉ की हवा कुछ अपनी सी लगे.

    कहाँ से ले आइल बानी ई शब्द जादूगरी चचा,एकदम जबरजस्त। राउर त जवाबे नइखे जी...........

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