सोमवार, अप्रैल 30, 2007

टेमा बोले टैं....

आजकल ये टेली मार्केटिंग वाले भी न!! गजब होशियार हो गये हैं यहाँ पर. सब कंपनियों ने भारत और पाकिस्तान के बंदे रख लिये हैं और यहाँ रह रहे देसियों के घर पर हिन्दी में बात करवाते हैं टेली मार्केटिंग के लिये. बड़ी स्टाईल से आपके नाम के साथ भाई साहब या जी लगाकर बात शुरु करते हैं कि समीर भईया!! हम समझते हैं कि किसी पुराने परिचीत का फोन है.

जबाब देते हैं कि, 'हाँ, कौन?' ..वो कहता है 'नम्सकार भईया, कैसे हैं, मैं संदीप' . हम याद करने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कौन बिछड़ा साथी मिल गया. इतने प्यार से उसने भईया पुकारा कि हमारी तो आँख ही भर आई. लगा कि उसको दो मिनट गले लगा कर रो लूँ. तब तक वो शुरु हो जाता है, 'भईया, एक जरुरी काम है...और बस शुरु'.


अब तो धीरे धीरे पता लगने लगा है कि बंदा टेली मार्केटिंग का है तो अब जान जाते हैं. कुछ दिन पहले हमारी जब इनसे बात हुई तो बड़ी मजेदार स्थिती बन गई, आप भी देखें इस चर्चा को:

फोन की घंटी बजती है और हम फोन उठाते हैं.

टेली मार्केटियर (टेमा): ' समीर भाई'
हम: 'हाँ, बोल रहा हूँ.'
टेमा: 'कैसे हो भईया. मैं विकास बोल रहा हूँ वेन्कूवर से.'

हम तुरंत समझ गये, हो न हो, बंदा टेमा ही है. फिर भी शरीफ आदमी हैं तो पूछ लिया, 'हाँ, बोलो.'

टेमा: ' भईया, हमारी कम्पनी फायर प्लेस की चिमनी साफ करने का कान्ट्रेक्ट लेती है'

अब तो बात साफ हो गई थी. हमने भी ठान लिया कि आज इनसे ठीक से बात कर ही ली जाये.

हम: 'अरे वाह, ये तो बहुत अच्छा है और तुम तो इतनी बढ़िया हिन्दी बोल रहे हो. मजा आ गया तुमसे बात करके.'

अपनी तारीफ सुन कर टेमा जी फुले नहीं समा रहे थे, कहने लगे,' अरे भाई साहब, हम भारत के हैं. हिन्दी से हमें बहुत लगाव है. आप भी तो हिन्दी एकदम साफ बोल रहे हैं.'

हमने कहा, ' तब तो तुम हिन्दी की कविता वगैरह भी सुनते होगे.'

टेमा, 'क्यूँ नहीं, कविता तो मुझे बहुत पसंद है.'

वो झूठ कह रहा था. मैं उसकी आवाज से भांप गया था. मगर उसे माल बेचना है, हां में हां मिलाना उसकी मजबूरी थी. हमने इसी मजबूरी का फायदा उठाया.

'चलो, तो तुमको एक कविता सुनाता हूँ. एकदम ताजी. अभी तक किसी मंच से नहीं पढ़ी.'

इधर काफी दिनों से गये भी नहीं हैं किसी कवि सम्मेलन में, तो मन कर भी रहा था कि कोई पकड़ में आये जो बिना प्रतिकार के वाहवाही करते हुए कविता सुनें. कवि सम्मेलन में भी अधिकतर दूसरे अच्छे सधे कवियों को सुनने के चक्कर में लोग हमें भी सुनते है बिना प्रतिकार किये.

टेमा:' अच्छा, तो आप कविता करते हैं?'

हम:'तब क्या. तो सुनाऊँ?'

टेमा:'ठीक है. सुनाईये, वैसे मेरे दफ्तर का समय है यह.'

हम:' हमारा भी कविता करने का समय है यह. नहीं सुनना है तो फोन रख दें, हम दूसरा श्रोता खोजें.'

बेचारा!! धंधा भी जो न करवा दे. मन मार कर तैयार हो गया सुनने को.

हम शुरु हुए हिदायत देते हुए, 'ध्यान से सुनियेगा' . उसने कहा, 'जी, जरुर'

'इक धुँआ धुँआ सा चेहरा
जुल्फों का रंग सुनहरा
वो धुँधली सी कुछ यादें
कर जाती रात सबेरा।

इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……'

वो बेचारा चुपचाप दूसरी तरफ से कान लगाये सुन रहा था. हम इतना पढ़ने के बाद रुके और पूछा,' हो कि नहीं.'
टेमा:' सुन रहा हूँ, भाई.'
हमने कहा 'आह वाह, कुछ प्रतिक्रिया तो करते रहो.'
वो कहने लगा 'जी, जरुर'
हमने फिर से लाईनें दोहराना शुरु की. जब तक दाद न मिले, कवि में आगे बढ़ने का उत्साह ही नहीं आता. लगता है, पत्थर को कविता सुना रहे हैं.

'इक धुँआ धुँआ सा चेहरा
जुल्फों का रंग सुनहरा'

उसने कहा, 'ह्म्म'

हम आगे बढ़े:

'वो धुँधली सी कुछ यादें
कर जाती रात सबेरा।

इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……'

वो कहने लगा, 'वाह, वेरी गुड..अच्छा लिखा है. सही है'

हमारा तो दिमाग ही घूम गया. हमने कहा, 'सुनो, ज्यादा मास्साब बनने की कोशिश मत करो. कोई परीक्षा नहीं दे रहे हैं कि कॉपी जांचने बैठ गये. गुड, वेरी गुड-अच्छा लिखा है. सही है, गलत है..अरे कविता को कविता की तरह सुनो, वाह वाह करो.'

टेमा, 'सॉरी, मेरा मतलब वही था.'

हमने कहा, 'मतलब था तो पहेली क्यूँ बूझा रहे हो.साफ साफ कहो न, वाह वाह.'

वो कहने लगा 'जी, जरुर'

हम फिर शुरु हुए:


'कभी नाम लिया न मेरा
फिर भी रिश्ता है गहरा'
टेमा, 'वाह!'
'कभी नाम लिया न मेरा
फिर भी रिश्ता है गहरा
नींदों से मुझे जगाता
जो ख्वाब दिखा, इक तेरा।

इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……'
टेमा, 'वाह! वाह! मजा आ गया.' यह उसने फिर धंधा पाने की मजबूरीवश झूठ कहा, उसकी आवाज के वजन से हम जान गये. मगर अब घोड़ा अगर घास पर रहम खाये तो खाये क्या. रहम से तो पेट नहीं भरता. हम जारी रहे:

'वहाँ फूल है अब भी खिलते
जिस जगह कभी दिल मिलते'
टेमा, 'वाह!' और अब उसकी सहनशीलता जबाब दे रही थी. उसकी पूरे संयम बरतने की तमाम कोशिशें बेकार होती नजर आने लगीं और वो भूले से पूछ बैठा कि 'भईया, लगता है कविता बहुत लम्बी है. अभी काफी बाकी है क्या?'
हमें तो समझो कि गुस्सा ही आ गया. हमने कहा, 'बेटा, जब सांसद कोटे में अमरीका/कनाडा आने के लिये निकलते हैं (कबुतरबाजी) और सांसद साहब तुम्हें खुद छोड़ने जा रहे हों तब रास्ते भर उनसे नहीं पूछना चाहिये कि बड़ी लम्बी दूरी है और अभी कितना बाकी है. ऐसे में बस चुपचाप पड़े रहते हैं,-आने वाली चकाचौंध भरी खुशनुमा जिंदगी के बारे में सोचते हुये (भले ही पहुंच कर कुछ भी हो). ऐसे में सफर आसानी से कट जाता है.तुमको तो पहुँच कर वहीं रुक जाना है.उस सांसद की तकलीफ सोचो. उसे तो तुम्हें सही सलामत पहुँचा कर अकेले ही सारे पासपोर्ट लेकर तुरंत लौटना है. फिर एक बार की बात हो तो भूल भी जाओ कि चलो, थकान निकल जायेगी. उस बेचारे को फिर अगली खेप ले जानी है और फिर अकेले लौटना है. यह सतत करते रहना है और तुम एक तरफा यात्रा को लेकर रो रहे हो कि कितनी लंबी यात्रा है. तुम वैष्णव जन (हिन्दी में इसको कायदे का आदमी कहते हैं) हो ही नहीं सकते- गांधी जी गाया करते थे कि वैष्णव जन को दिन्हे कहिये जी, पीर पराई जाने रे!! तुम्हे तो दूसरों के दर्द का अहसास ही नहीं.

बेटा, जब सांसद कोटे में अमरीका/कनाडा आने के लिये निकलते हैं (कबुतरबाजी) और सांसद साहब तुम्हें खुद छोड़ने जा रहे हों तब रास्ते भर उनसे नहीं पूछना चाहिये कि बड़ी लम्बी दूरी है और अभी कितना बाकी है. ऐसे में बस चुपचाप पड़े रहते हैं,-आने वाली चकाचौंध भरी खुशनुमा जिंदगी के बारे में सोचते हुये (भले ही पहुंच कर कुछ भी हो). ऐसे में सफर आसानी से कट जाता है.


अरे, हमने इतनी मेहनत से कविता सोची, प्लाट बनाया, यहाँ वहाँ से शाब्द बटोरे और लिखी एक कविता. वो भी श्रृंगार रस में, जो हमारा फिल्ड भी नहीं है. और तुम्हें हूं हूं, वाह वाह करना भारी पड़ रहा है. कहते हो, कितनी लंबी कविता है, कब खत्म होगी. बेगेरत इंसान!! कुछ तो दूसरों की तकलीफ समझ. तब पता लगेगा कि तेरी तकलीफ तो कुछ भी नहीं.
वैसे तुम्हें बता दूँ कि कविता सुनने वाला भी कविता खत्म होने के सुनहले और खुशनुमा अहसास के सहारे ही आह, वाह करते हुये कविता के सफर का समय काटता है. कविता खत्म होने का अहसास भी अमरीका/कनाडा की सो-काल्ड चकाचौंध भरी जिन्दगी से कम नहीं होता. कविता सुनने वालों की सबकी अपनी अपनी मजबूरी होती है, जिसके तहत वो अपने कविता सुनने का यह खतरनाक समय काटता है. अब मजबूरियां भी कैसी- कोई अपनी सुनाने के लिये सुनता है. कोई संबंध बनाने के लिये सुनता है.सहारा का कर्मचारी अपने साहब को खुश करने के लिये सुनता है (इन पर हमें बड़ी दया आती है, यह निस्वार्थ और निशुल्क सेवा है बिना सर्विस एग्रीमेन्ट के). महामंत्री-मुख्यमंत्री महानायक के चापलूसी में उसे सुनते हैं और महानायक बाकियों को अपनी सुनाने के लिये सुनते हैं. कितना सही कहा गया है किसी ज्ञानी के द्वारा -तू मेरी पीठ खूजा, मैं तेरी. लेकिन सुनते सब हैं, चाहे जो वजह हो. कोई भी बीच मे रुक कर नहीं पूछता कि 'कितनी लंबी कविता है, अभी कितनी बची है.' देखते नहीं क्या, जब कविता खत्म होती है, तो कितनी खुशी से लोग बच्चों की तरह उछल उछल कर ताली बजाते हैं बच्चों की तरह. तुम क्या सोचते हो कि उन्हें कविता पसंद आई. इसी खुशफहमी में सभी कवि जिंदा हैं. दरअसल, वो कविता खत्म होने का उत्सव मना रहे होते है, ताली बजा बजा कर. उन्हें समझो भाई.
हमने कहते रहे, 'अभी तो शुरु की है. अभी तो भाव पूरे मुकाम पर भी नहीं पहुँचे हैं. उसके बाद समा बँधेगी'
अब उससे रहा नहीं गया. कहने लगा, 'भाई साहब, यह तो जबरदस्ती है. किसी को सुनना हो या न सुनना हो, आप सुनाये जा रहे हैं. मेरी इतनी अधिक भी साहित्य मे रुचि नहीं है और आप जबरदस्ती किये जा रहे हैं.'
हमने कहा, 'शुरु किसने की थी?'
वो बोला, 'क्या, मैने कहाँ जबरदस्ती की? मैं तो चिमनी साफ करने की बात कर रहा था. और आप मुझे साहित्य सुना रहे हैं जिससे मुझे कोई लगाव नहीं.'
हमने उससे कहा, 'नाराज क्यूँ होते हो, तुम्हें साहित्य से कुछ लेना देना नहीं है तो मुझे ही चिमनी से क्या लेना देना है. मेरे यहाँ तो गैस वाली फायर प्लेस है, उसमें तो चिमनी होती ही नहीं. मगर तुम फिर भी लगे हो. तो जबरदस्ती किसने शुरु की, मैने कि तुमने?'
गंजो को तो फिर भी एक बार कल को बाल वापस उग आने की झूठी उम्मीद धराकर कंघी बेची जा सकती है. लेकिन संसद में ईमान की दुकान खोल कर बैठ जाओगे तो भविष्य की उम्मीद में भी कुछ नहीं बिकेगा. भविष्य में भी इसका कोई स्थान नहीं बनने वाला वहाँ पर. एक खरीददार न मिलेगा. तुमसे कहीं ज्यादा तो मुंगफली वाला कमा कर निकल जायेगा. तुम बचे छिलके बीन बीन कर खाना और जीवन यापन करना. अरे, फोन पर अपनी दुकान लगाने के पहले देख पूछ तो लो कि अगले पास चिमनी है भी कि नहीं और तुम सही जगह पर ठेला खड़ा किये हो कि नहीं.

गंजो को तो फिर भी एक बार कल को बाल वापस उग आने की झूठी उम्मीद धराकर कंघी बेची जा सकती है. लेकिन संसद में ईमान की दुकान खोल कर बैठ जाओगे तो भविष्य की उम्मीद में भी कुछ नहीं बिकेगा. भविष्य में भी इसका कोई स्थान नहीं बनने वाला वहाँ पर. एक खरीददार न मिलेगा.


टेमा, 'तो आपको शुरु मे बताना था. मैं आपसे बात ही क्यूँ शुरु करता.'
हमने कहा, 'तो तुम भी तो बता सकते थे कि तुम्हें साहित्य में कोई लगाव नहीं.'
टेमा, 'आपने पूछा ही कहाँ?'
हमने कहा, 'तो तुमने भी कहाँ पूछा था कि हमारे यहाँ चिमनी है कि नहीं. तुम अपना शुरु हुये और हम अपना.'
हम जारी रहे कि ' तुमने मेरा दिल तोड़ दिया. वरना तुम्हारे जैसे ही एक टेमा ने अभी ३-४ दिन पहले मुझे इतना डूब कर सुना, खूब दाद लुटाई, खुल कर दाद दी, वाह वाह की, ताली बजाई और यहाँ तक कि कुछ शेर फिर से सुनाने को कहा. उससे तो मैं इतना खुश हूँ कि अगर कभी राजनैतिक सत्ता के गलियारों मे मेरी पैठ बन पाई तो उसे राज्य सभा का सदस्य जरुर बनवा दूँगा (साहित्य श्रोता श्रेणी में-श्रेणी तो आवश्यकता अनुसार बनती रहती हैं) अन्यथा अगर साहित्यिक सत्ता के गलियारों मे ही घुसपैठ बन पाई तो साहित्य श्रोता रत्न. सभी अपने चाहने वालों के लिये कर रहें है तो मैं क्यूँ नही. यही तो रिवाज़ है. चलो सब छोड़ो. आगे कविता सुनो.'
उसने फोन रख दिया था.
ऐसा मैं अब तक अलग अलग टेमाओं के साथ ५-६ बार कर चुका हूँ. अब बहुत कम फोन आते हैं. शायद उन्होंने हमारे फोन नम्बर पर नोट लगा दिया होगा. 'सावधान, यह आदमी कवि है. इसे फोन न किया जाये. यह जबरदस्ती कविता सुनाता है.'
हमने देखे हैं ऐसे नोट उन फोन नम्बरों पर भी, जो गालियां बकते हैं. उनके यहाँ भी ये लोग फोन नहीं करते. हम सभ्य हैं. हमने यह मुकाम बिना गाली के, कविता से हासिल कर लिया है.
हम कविता विधा को नमन करते हैं.

नोट: अगर आपको अभी भी यह कविता पूरी पढ़ने की इच्छा हो तो यहाँ पढ़िये न!! आप टेमा थोड़े ही न हैं.


डिस्क्लेमर: बस हंसने हंसाने के लिये यह पोस्ट लिखी गई है. यूँ तो हजार बहाने हैं आसूं बहाने के, जो अगली पोस्ट में बहाये जायेंगे. (यह पंक्ति पंगेबाज ने पंगा लेते लेते सुझाई है और हम बिना पंगे से डरे छाप रहे हैं)

40 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी4/30/2007 09:55:00 pm

    bahut sahi idea diye ho aap, ab se hum bhi isi ko use karenge.

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  2. तरुण,
    सुनाने के लिये कविता चाहिये तो बताना. :)

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  3. समीर भाई रास्ता दिखाने क शुक्रिया,पर देखॊ ऐसे टेढे रास्ते से रास्ता मत दिखाया करो ज्यादा हसी भी जान लेवा हो सकती है आप जरा उपर ये नोट लगादो की सारा लेख एक साथ पढने घटि किसी घट्ना के लिये लेखक उत्तर्दायी नही है और तुम ये छुट्टी वुट्टी मत जाया करो रोज लिखोगे सही रहेगा हमे हसने के लिये फ़ुलझडी चाहिये बम नही ,

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  4. बहुत बढ़िया। मैं तो हँसते हँसते लोट पोट होगया। वैसे तरीका बहुत बढ़िया बताया है, टेमा से बचने का। ऐसा ही एक फोन एक मद्रासी मित्र के पास आया तो उन्होंने कहा: Can you get somebody who speaks English?

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  5. सटीक लिखे हो गुरु।
    धांसू आईडिया है एकदम, बोले तो गुड
    भाई को पसंद आ गयेला है आपका आईडिया और फ़िर कविता उधार लेने की भी जरुरत नहीं एक से एक पकाऊ कविता का रेडी स्टाक है अपुन के पास।
    मजा आ गया "सुब्बो-सुब्बो" आपकी यह पोस्ट पढ़ कर

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  6. बढि़या है लेकिन ये बयान तो एक तरफ़ा है। टेमा के बयान हों तो तस्वीर साफ़ हो। सम्भव है पहले उसके यहां मिस्ड काल आपके यहां दी गयी हो जिसके बाद उसने कहानी शुरू की हो। वैसे अगर किसी टेलीमार्केटिंग वाले को या किसी निरीह श्रोता को इस स्थिति से बचना हो तो सबसे अच्छा तरीका है कि वह कहे- भाई साहब आपकी आवाज साफ़ नहीं आ रही है। आप इस नम्बर पर सुनायें कविता। और जो वो नम्बर दे वह किसी खुर्राट कवि का हो।

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  7. टेमा से आपकी वार्ता आंखो से सुनी, कान भर आयेI इस वार्ता का दूसरा पहलू तो आपने छोड ही दिया I सुनिए .. (यह कविता नही है इसलिये बीच बीच में वाह वाह करने की जरूरत नहीं है, लेकिन सुननी तो पडेगी)
    शाम को वही टेमा अपने घर पहुंचा, (बैंकुवर के किसी मुहल्ले में) उसकी टाई की नॉट ढीली होकर, गले के प्रति विद्रोही स्वभाव को त्याग चुकी थी; थकान से चेहरा ऐसा हो रहा था कि मानो किसी ने जमकर जुतियाआ है, अपने ड्राईंग रूम के सोफे के खण्डहरनुमा आकृति पर धम्म से पसर गयाI उसकी made in Vankuar पत्नी आकर पूछती है कि darling what happend? You are looking so tired, is there every thing all right? टेमा कहता है कि आज मैं आधा दर्जन उडन तश्तरियों से मिला हूं,वे पकड में नहीं आई, नही तो उन सबका मैं तो आज टेंटुआ दबा देताI मेरा आज का धंधा चौपट हो गया, और मालिक ने गरियाआ सो अलगI आज कुछ भी कमा कर नही लाया, आज बच्चों को पडोस में भेज दो और मैं और तुम आज फिर उपवास कर लेंगेI आओ, तुम अपने यीशु व मैं अपने राम से प्रार्थना करूं कि कल मुझे कोइ उडन तश्तरी ना मिले और यह भी कि किसी उडन तश्तरी पर कोइ वज्रपात ना हो क्यों कि वे किसी के द्वारा नियंत्रित की जाती है स्वंय तो वे निर्जीव ही हैंI
    विशेष :- मैं कोई टेमा नहीं हूंI

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  8. अंग्रेजी में तो ये पढ़ा था पर आपने बिल्कुल नये अंदाज में हिन्दी में लिखा अच्छा लगा. एक आद कविता यहां भी भेज दें.

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  9. कोई जरूरत नहीं है रोने रूलाने कि. उसके लिए घरवाली बहुत हैं.. आप तो युँ ही हँसाया करिए. बस कोई कविता मत शुरू कर देना अब.


    वैसे सबसे ज्यादा मैं इस लाइन पर हँसा. वो टेमा बोलता है, यह मेरा ऑफिस का टाइम है, और आप बोलते हो, यह मेरा कविता सुनाने का टाइम है. हा ह ह हा हा हा... बडा मजेदार है. :)


    वाह लेखनी में सुधार आता जा रहा है, युँ ही लिखते रहिए. साधुवाद. :)

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  10. बेनामी5/01/2007 12:44:00 am

    समीर भाई, बहुत प्यारा लिखा है. मुझे रोजाना दस से ज्यादा इन टेमाओं के फोन सुनने पड़ते हैं. आज से ही आजमाता हूं.
    एक बार फ़िर, बहुत प्यारा लिखा है

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  11. समीर जी, इतनी खतरनाक पोस्ट न लिखा करें. मुझे स्पॉण्डिलाइटिस है. पोस्ट पढ़ना छूटा नहीं और मारे हंसने के गर्दन में दर्द हो गया.
    नारद के महंतों से कम्प्लेण्ट करनी होगी!

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  12. टेमाओ से पिंड छुडाने का सही इलाज । अहिंसात्मक तरीका, जब हिंसा करने का मन हो तो :)

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  13. सरासर अन्याय है भाई साहब यह तो बेचारे टेमा के साथ।
    मुझे अभी अभी पता चला है कि दिन भर में बेचारे को दो चार कवि और मिल गये थे, और उसने शाम को ट्मा की नौकरी से अपना त्याग पत्र दे दिया है। आपकी कविता की वजह से बेचारा एक अच्छा खासा टेमा बेरोजगार हो गया है।

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  14. बेनामी5/01/2007 04:09:00 am

    टेमा, शब्द गज़ब ढूँढ कर लाए हैं। इधर भारत में ये टेमेपने शुरु हो गए हैं। मैं भी कुछ न कुछ सुना ही दूँगा।
    एक साहित्य श्रोता रत्न मेरे लिए अभी से बुक कर लें।

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  15. बेनामी5/01/2007 05:18:00 am

    वाह, वाह, वाह,वाह
    और यह खुद बखुुद निकली है, कहने पर नहीं।

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  16. लो जी, न तलवार चली न बन्दूक और अगला हो गया टें.....

    इसे ही कविता की शक्ति कहते है. ऐसी ही एक कवि रेजिमेंट हो तो पाकिस्तान, चीन तो युँ ही घूटने टेक दे :)

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  17. वाह समीर जी,
    आपने वेंकूवर के दूर-विक्रेता (टेली मार्केटीयर् का सहज हिन्दी अनुवाद) यानी दूवि को तो खूब पाठ पढाया. भारत मे 'भैया' कहने वाले दूवि नही मिलते.यहाँ तो अंग्रेज़ी नही आने पर भी अंग्रेज़ी की टांग तोडते हुए बिक्री करने का प्रयास करने वाले मिलते हैँ.
    लेकिन हाँ, एक बार ट्राई करके देखा जा सकता है.
    शायद (किस्मत से)भूले भटके कोई श्रोता (उसकी बदकिस्मती से)मिल ही जाये.
    यदि ज्यादा चिपकू कोइ श्रोता मिल गया तो आपका वंकूवर का नम्बर दिया जा सकता है. सही मायने मेँ 'इंटर्नेश्नल मार्केटिंग'हो जायेगी.
    अच्छी रचना हेतु बधाई,
    अरविन्द चतुर्वेदी
    http://bhaarateeyam.blogspot.com

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  18. धन्य हैं गुरुवर नित्य नए उपाय बताकर भक्तजनों को कल्याण का मार्ग सुझाते रहते हैं।

    बेचारा टेमा...

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  19. हम:' हमारा भी कविता करने का समय है यह. नहीं सुनना है तो फोन रख दें, हम दूसरा श्रोता खोजें.'
    ---------------------------------
    'सावधान, यह आदमी कवि है. इसे फोन न किया जाये. यह जबरदस्ती कविता सुनाता है.'
    ----------------------------------
    सचमुच लालाजी खूब हँसाये हो भाई ....
    हँसने-हँसाने में तो आप परफ़ेक्ट्या गये हो

    बधाई....

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  20. 'सावधान, यह आदमी कवि है. इसे फोन न किया जाये. यह जबरदस्ती कविता सुनाता है.'

    Sameer ji kya kavita or kaya lekh likha ha hsate haste lotpot ho gaye bahut khub yun hi likhte rahiye.

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  21. भैया समझ गये हम. अब कवि सम्मेलन में बुलाना ही पड़ेगा वरना बेचारे टेलीमार्केटर की जीविका खतरे में पद़्अ जायेगी.

    वैसे
    क्योंकि चाहा है नहीं दोहराऊं उसको जो कहें सब

    सिर्फ़ खानापूरियों सी बात यों लगने लगी है

    वाह बोलूँ, धन्य बोलूँ, शब्द के सन्दूक खोलूँ

    बँध नहीं पाती मगर जो भावना मन में जगी है.

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  22. मजा आ गया जनाब...
    बहुत धांसू टेमा संवाद है...
    आईडिया भी जोरदार है टेली मार्केटिंग वालों से निपटने का..

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  23. वाह , वाह टेमा की कहानी सुनाने के बहाने हमें भी कविता सुना ही डाली

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  24. wah bahut nek khayal hain...aise tema humein bhi pareshan karte hain....
    waise apka yeh lekh tema kranti se do do haath lene ka satyagrahi type ka rasta hain....galiya dekar mein ugrawadi nahin banna chah rahi thi...
    ha ha ha....

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  25. समीर भाई,
    अब कोई परेशान कर ही नहीं सकता…गांधी जी के दर्शन का सहज प्रयोग किया :) :) :)
    मजा आ गया…।बधाई!!
    आपका रोंदू भी पढ़ना तो पड़ेगा…।

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  26. कृपया नॊट करे:सभी चिट्ठाकारो से अनुरोध है कि कल सोते समय समीर भाई हमे यह जुम्मेदारी दे गये थे कि हम टिप्पणीयो का ख्याल रखे और हमारे हिसाब से अब यहा और जगह टिपियाने के लिये नही है अत: अब आप यहा पढे और पंगेबाज पर टिपियाये देखो समीर भाई मै अपनी पूरी मेहनत से जुंम्मेदारी निभा रहा हू
    :)
    :)

    जवाब देंहटाएं
  27. वाह समीर जी..बहुत ही दिलचस्प लेख...मजा आया पढ्कर...

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  28. वाह समीर जी..बहुत ही दिलचस्प लेख...मजा आया पढ्कर...

    जवाब देंहटाएं
  29. बेनामी5/02/2007 03:46:00 am

    इतने श्रोता क्या कम पड रहे है‍ आपको कि बेचारे मुसीबत के मारे टेमाओ‍ को कविता सुनानी पड रही है? मोबाइल सेर्विस देने वाली कम्पनीयों की तरफ़ से दिन मे मिलने वाले २५ SMS से बचने के उपाय भी बताएं..

    जवाब देंहटाएं
  30. तरुण

    यहाँ सभी कवितायें कॉपी लेफ्ट हैं, कोई सी भी उठा कर सुना देना. :)

    अरुण भाई

    आईंन्दा बाद ध्यान दिया जायेगा. बस सालाना बम फोड़ा जायेगा और साप्ताहिक फुलझड़ी. रास्ता दिखा-अच्छा लगा. इसीलिये यह मानव अवतार लिया है. सफल रहा. धन्यवाद.


    लक्ष्मी जी

    हा हा, आपके मद्रासी मित्र भी बहुत फन्नी हैं. :)

    आप हंसे, लोट पोट हुये, इसी बात पर हम लहालोट हुए जा रहे हैं. धन्यवाद.


    संजीत भाई

    सही है तुम्हें मजा आ गया. मैने तो पढ़ी हैं तुम्हारी कवितायें..सही पक जायेगा. तुम्हें उधार लेने की जरुरत नहीं. बल्कि हम तो सोचते हैं कि तुम्हारी ही कविता हम भी सुनाया करें. हा हा-अरे, मजाक कर रहा हूँ, भाई :) अन्यथा न लेना.

    धन्यवाद हौसला अफजाई के लिये.


    अनूप जी

    बयान एक तरफा जरुर है मगर महिला थाने में तो सिर्फ़ महिला की बात सुनी जाती है...प्रताडित को प्राथमिकता का नियम है.

    बाकि बातों से सहमत हूँ मगर हमसे खुर्राट और खूसट कहाँ से लायें. :)

    धन्यवाद आपके प्रोत्साहन के लिये, जिसे मिल जाये वही धन्य...और हम तो हमेशा ही धन्य हो जाते हैं.


    चुंतन भाई

    आपका नाम का अर्थ नहीं निकाल पाया मगर बात सुन कर 'आंखो से सुनी, कान भर आये' कुछ कुछ समझ में आया. प्रार्थना कामयाब रहे यही उम्मीद कर सकता हूँ. इसी में मेरा भी भला है, आपका साधुवाद. पक्का विश्वास है कि आप टेमा नहीं हैं..:)
    बहुत आभार आप पधारे.

    मित्र काकेश
    भेज रहा हूँ, मित्र. एक दम ताजा कविता अगली पोस्ट के साथ. बहुत काम आयेगी. बहुत धन्यवाद.

    पंकज
    चलो, नहीं रोयेंगे. तुम्हारा विटो ही चलेगा इसमें कोई संशय नहीं.
    काबिलियत में उन्न्ति को सराहने के लिये आभार और धन्यवाद. कम से कम तुम हंसे तो!!! वरना तो तरकश के कारण डांट खाते ही समय बिता रहे थे. :)

    मैथली भाई
    बताना जरुर अपना अनुभव कि कैसा परिणाम मिला. बाकि पसंद करने का धन्यवाद तो रख ही लें.

    सृजन भाई

    अच्छा लगा, हमें भी अच्छा लगा. धन्यवाद.ये लो रिटर्न गिफ्ट :)

    पाण्डेय जी

    क्षमा चाहूँगा. आपके स्वास्थय का अंदाजा न था..आगे से ख्याल रखूंगा. डिस्क्लेमर लगा दूंगा कि पाण्डेय जी न पढ़ें.. :) कम्पलेंट न करना, विवादित मसला हो जाता है और होता जाता कुछ नहीं ...बाहर ही निपटा लो. :) धन्यवाद बाचने का.

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  31. नोट पेड महोदया :)

    जब पंगे का मन करे तो वो हैं न!! बाकि समय के लिये ये. :) इलाज पसंद आया, धन्यवाद. आती रहो, नये नये इलाज मिलते रहेंगे.

    सागर भाई

    टेमा के साथ हो गये. सही है बेचारे अकेले पड़ गये थे और आपसे ही सहारा रह गया था. पसंद तो किया ही है तभी टीपियाये हो सो धन्यवाद.


    अतुल जी

    वो तो मैने पहले ही बुक कर दिया है तुम्हारे लिये..तुम तो हमेशा से बेहतरीन श्रोता रहे हो..बाकियों को तुमसे सबक लेना चाहिये :)

    कविता चाहिये सुनाने के लिये तो बताना...फ्री में बंट रही है हा हा. धन्यवाद.


    रत्ना जी

    मैं समझ गया कि खुद बखुद निकली है...:)

    धन्यवाद हौसला अफजाई के लिये.


    संजय भाई

    भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है. काश, आप प्रधान मंत्री होते.

    धन्यवाद आपके प्रोत्साहन के लिये हमेशा की तरह.


    अरविंद भाई

    यही तो विडंबना है..क्या किया जाये इसका..जब भारत जाओ और हिन्दी में बात करो तो सामने वाले को पता लगते ही कि आप कनाडा से आये हैं अंग्रजी से नीचे उतारना मुश्किल हो जाता है..:)
    बहुत आभार आप पधारे और रचना पसंद की.

    श्रीश भाई
    ठीक है दिखा लो टेमा से हमदर्दी..हमारा तो ख्याल ही नहीं है.. :). बहुत धन्यवाद कि सुझाया मार्ग सराहा गया.

    रीतेश
    तुमने सर्टिफाई कर दिया, अब खुल कर लिखेंगे... :) हंस दिये यह हमारी उपलब्धियों में लिखा जायेगा. बहुत आभार. :)

    भावना जी
    जरुर आदेश का पालन होगा. आप लोटपोट हुईं, हम लहालोट हुये, सिलसिला जारी रहेगा...बहुत आभार.

    राकेश भाई

    इंतजार लगवा दिया आपने तो निमंत्रण का...बस शुभाशिष बनाये रहें :)

    पियुष जी

    आपने पसंद किया, बहुत आभार. :) धन्यवाद बाचने का.

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  32. मनीष भाई

    अब कविता सुन ही ली है सो धन्यवाद....हा हा!!


    प्रिया जी

    चलो गाली देने से बच गई... हा हा. लिखना सफल हो गया...इसी तरह के समाज सुधारक कार्यों के लिये यह अवतार प्राप्त किया है. :) बखान पसंद करने का धन्यवाद.


    दिव्याभ जी

    कुछ हंसी तो उधार में कुछ तो छूटेगा ही...:) और आप तो सब पढ़कर प्रोत्साहित कर ही देते हैं तो मैं निश्चिंत हूँ.

    धन्यवाद हौसला अफजाई के लिये.


    पुनः अरुण भाई

    जिम्मेदारी बखूबी निभाई गई...आपको मंच से पुरुस्कृत किया जायेगा.


    विज भाई

    बहुत आभार आप पधारे और रचना पसंद की...:) आते रहें यही निवेदन है.

    रचना जी
    ठीक है दिखा लो टेमा से हमदर्दी..हमारा तो ख्याल ही नहीं है.. :). बहुत धन्यवाद.
    रहा sms का उपाय...जल्द ही पेश करेंगे आपके आदेश का पालन करते हुए.

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  33. कमल भाई

    बहुत आभार और धन्यवाद.

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  34. :) aapki rachna padhe aur hansi na aaye yah kaise ho sakata hai [:)]

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  35. कुछ ऐसी वीर रस की कविताओं का दिव्य ज्ञान हमको भी प्रदान करने की कृपा kरें ताकि इन टेली मार्केटिग वालों से छुटकारा पाया जाय्।

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  36. आप की यह पोस्ट प्रिंट करके ट्रेन में बैठ कर पढ़ रहा था, हंसी नहीं रुक रही थी और लोग सोच रहे थे कि इसे बैठे बैठे क्या हो रहा है। आप सोच रहे हैं कि वो दोबारा फ़ोन नहीं करेगा, मैं सोचता हूँ कि उसने ये काम ही छोड़ दिया होगा। आप बहुत निर्दयी हो गए हैं, किसी पर भी रहम नहीं करते।

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  37. बहुत खूब सर जी..
    मैं तो बस छोटा मोटा कवि हूं पर कवि तो हूं ही.. अगली बार मैं भी कविता सुना डालूंगा.. :D

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  38. Nice one Sir...
    Wish ki kabhi aamne samne sun ne ka mauka mile..

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