बुधवार, अप्रैल 18, 2007

बुढापा देख कर रोया...

पिछली पोस्ट की भूमिका देखकर एक मित्र ने विनोदवश प्रश्न उठाया कि क्या आपके साथ ऐसा कभी हुआ है कि किसी कविता की सिर्फ भूमिका ही पढ़ी गई और लोगों ने कविता पढ़ी ही नहीं क्योंकि भूमिका बहुत लंबी थी. अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं, मगर जब से उन्होंने इस तरफ नजर डलवा दी, लगने लगा है कि हो तो सकता है.

होने को तो कुछ भी हो सकता है!!

जब एक भ्रष्टाचारी मंत्री हो सकता है
और एक गुंडा संतरी हो सकता है.

तो यह क्यूँ नहीं हो सकता है?

जब जेलर को कैदी पीट सकते हैं
और बाहुबली चुनाव जीत सकते हैं

तो यह क्यूँ नहीं हो सकता है?

जब बंग्लादेश भारत को हरा सकता है
और निर्दलीय सरकार गिरा सकता है..

तो यह क्यूँ नहीं हो सकता है?

बिल्कुल हो सकता है..इसलिये हम इस कविता की कोई भूमिका नहीं लिखेंगे. डॉक्टर ने हमसे क्या कहा और यह कविता हमारी डॉक्टर की वार्तालाप का नतीजा है, इसके लिये भूमिका की क्या जरुरत है. वो तो आप पढ़कर खुद ही समझ सकते हैं और हमें तो यह तक बताने की आवश्यकता भी नहीं है कि यह रचना भी बाल महिमा, रक्तचाप पुराण, मोटापा व्यथा की श्रृंखला की ही कड़ी है.

वो भी आप पढ़ते पढ़ते खुद ही जान जायेंगे. क्या जरुरत है किसी भी भूमिका की, सीधे कविता ही शुरु कर देते हैं. क्यूँ बताया जाये कि यह रचना इस बात को बताने के लिये है कि एक जवां मर्द को कोई बुढ्ढा कह दे तो कैसा लगता है. क्या लोग पढ़कर नहीं समझ सकते. तो पढ़िये न!!.


बुढापा देख कर रोया……..

कोहरे में धुंधला दिखता है
इसमें कौन अजूबा है
लेकिन मेरी पत्नी का मुँह
इसी बात से सूजा है.

कहती है कि नज़र तुम्हारी
अब तुमसे नाराज़ हो गई
और चिपक लो कम्प्यूटर से
हालत कैसी आज हो गई.

डॉक्टर बाबू बतलाते हैं
चिंता की यह बात नहीं है
बुढ्ढों के संग हो जाता है
डरने वाली बात नहीं है.

हमने बोला, होता होगा
मगर हमारे साथ हुआ है,
बुढ्ढों की क्यूँ बातें करते
जवां मर्द के साथ हुआ है.

भरी जवानी नस नस में है
दिल भी मेरा नाच रहा
मेरी प्रेम भरी कवितायें
बच्चा बच्चा बांच रहा.

एक जवानी उम्र चढ़ाती
एक जवानी मन की है
जिसके मन पर छाई उदासी
उसकी चिंता तन की है.

मुझसे खाते रश्क हैं वो भी
जो अब तक कालेज में हैं
उनके क्या क्या प्रेम तरीके
सब मेरी नालेज में हैं.

आगे जब भी बात करो तुम
हमको बुढ्ढा मत कहना
तोड़ फोड़ मचवा दूँगा मैं
फिर मेरी हरकत सहना.

मैं तो बस कहने आया था
तुम अपना कुछ ध्यान करो
उम्र तुम्हारी गुजर रही है
युवकों का सम्मान करो.

-समीर लाल ‘समीर’

22 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी4/18/2007 10:20:00 pm

    भई, कितना हंसा दोगे. :)

    देखिये हम भी हिन्दी में लिख पा रहे हैं, आपको कैसे शुक्रिया करें.

    -खालिद

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  2. बेनामी4/18/2007 10:20:00 pm

    क्या बात है समीर जी, समझ नही आ रहा भूमिका को अच्छा कहूँ या बूढ़ापे के रोने को और, भूमिका वाले में तीखा व्यंग्य है इसलिये उसे ऊपर रखूँगा।

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  3. जैसे कोई गतयौवना अपने ह्श्न के कसीदे काढ़ने लगती है ऐसे ही बुढ़ापे की तरफ़ बढ़ता कवि अपना जवानी आख्यान लिखना शुरू कर देता है। :)
    बढ़िया है, कुछ दिन पहले जवान हुये होते तो नि:शब्द में हीरो का रोल आप ही करते! :)

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  4. लगता है कि आप का डाक्टर सठिया गया है। आप के तो अभी खेलने खाने के दिन हैं। बढिया लिखा है।

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  5. :):)समीर जी आपकी इस रचना ने भी ख़ूब हंसाया ...बहुत ख़ूब

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  6. मुझसे खाते रश्क हैं वो भी
    जो अब तक कालेज में हैं
    उनके क्या क्या प्रेम तरीके
    सब मेरी नालेज में हैं.


    मत पूछो जवां यार कॉलेज में तो हम भी हैं पर डेस्‍क की दूसरी ओर हैं, 'उनके' प्रेम के तरीके जानना उतना भी सुखद नहीं, अपने आसन्‍न बुढ़ापे को और शिद्दत से याद दिला देता है।

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  7. मनोस्थिति बिगड जाती है,

    उम्र ढलान पर आकर,

    इलाज तो नहीं पर सांत्वना है,

    ले लो कहीं भी जाकर.


    ले लो कहीं भी जाकर,

    कि बहुतेरे हैं शुभचिंतक,

    कह देंगे हो आप भी युवा,

    भले लगो अब मिथक.


    धोखा है नजरों का या,

    दिवास्वप्न है देख लिया,

    उम्र की इस दहलीज पर,

    होती है अक्सर यह पीडा,


    होती है अक्सर यह पीडा,

    कि मन मांगे जवानी,

    पर तन तो अब जवाब दे रहा,

    बातें सारी है बेमानी,


    मन से बुढा होता आदमी,

    मजाक में कही गई है बात,

    सच तो सच है, मानो ना मानो,

    दिन भी ढलता, आती है रात.


    तो है समीरानन्द, अब जागो,

    बुढापा है दहलीज पर, मत भागो,

    चीर युवा रहकर क्या है करना,

    जीयो जिन्दगी और मस्त है रहना,




    पर मालिक हम युवाओं पर तरस खाओ, हमारी गद्दी मत छीनो. :) :D

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  8. बेनामी4/19/2007 12:33:00 am

    इंसान मोटा भी हो और बुड्ढा भी और फिर आपको अपना मित्र भी कहे "हमरे मित्र काकेश" तो कैसा लगे :-) भाई अच्छा ही लगेगा ..कोई तो अपना जैसा मिला इस चिट्ठा जगत में ...लिखते रहिये.

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  9. समीर जी,
    भूमिका वाली बात आपने गंभीरता से ले ली... हम तो मजाक किये थे...
    मजा आ गया बुढापे वाली कविता मे‍

    "जबानी और बुढापे में बस ये फ़्रर्क होता है
    वो कश्ती पार होती है, ये बेडा गर्क होता है"

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  10. बेनामी4/19/2007 01:14:00 am

    हा हा हा
    बढिया है.

    भरी जवानी में कहाँ बुढ़ापे का रोना लेकर बैठ गए.

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  11. आप निराश हर्गीज़ न होये,...आज-कल विदेशो मे तो बहुत नई तकनीक प्रचलित है देखिये ना देवा नन्द कितने समय तक जवांन दिखता था,..ओर फ़िर अपनी माधुरी ओर रेखा बुढी होती ही नही,..मेरी मानिए भाभी जी के साथ जाकर जरा कुछ लोगो से सलाह ले आइये वैसे आपने सही कहा है इन्सान बुढ्ढा नही होता अगर दिल जवां हो,...वैसे सुना तो होगा बुढापा तो बचपन का पुनः आगमन है,..तो फ़िर बचपन के बाद फ़िर जवान हो ही जाएंगे,..बस इन्त्जार करते रहीये,..
    सुनीता(शानू)

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  12. समीर जी बहुत अच्छा लिखा है बधाई स्वीकारें। कोई भूमिका की जरूरत भी नहीं थी और न ही कोई भूमिका आपने लिखी अच्छा किया समझदार हैं आप तो... :)

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  13. बेनामी4/19/2007 08:53:00 am

    क्या मोटापा, क्या बुढापा!
    क्या भूमिका और क्या कविता!!
    आप ही आप हैं
    आप एकदम टॉप है!!

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  14. आयेगा एक दिन यह भी मेरे द्वार यही सोंच सांत्वना देता मानव है पर अब तो यह निकट
    टकटकी लगाये खड़ा है…सुबह की लालिमा और
    सांझ की फैलाव का अंतर बहुत थोड़ा होता है
    दोनो लुटते हैं…और सजते हैं…।
    बहुत हास्य भरी रंगत में रचा है…समीर भाई से यह उम्मीद तो रहती ही है…आज का युवा सच कहें तो
    बूढा हो चुका है क्योंकि वह हद से ज्यादा गंभीर है…
    हंसाने वाला भी हो तो अहसास नया जगता है…।धन्यवाद!!!

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  15. ओ जी फिक्र नॉट, पंडित जी ने आपके लिए स्पैशल दवाई बताई है।

    रोज सुबह शिलाजीत को गर्म दूध में डालकर खाइए और पाँच बार गाइए "अभी तो मैं जवान हूँ..."

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  16. बेनामी4/23/2007 08:00:00 am

    मैं भी बिना भूमिका के टिप्पणी दे देता हूँ जी।
    आप कमाल पर कमाल किए जा रहे हैं। हाँ कविता कमाल की है, नहीं... नहीं... समीर लाल की है।

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  17. खालिद भाई

    आप हंसे, वही मेरा उद्देश्य था. सफल कर दिया, आभार!! :)

    तरुण भाई

    चलो, भूमिका जीत गई, कविता नहीं.अच्छा लगा. धन्यवाद.

    अनूप जी

    अपने यह तो उम्र का खेला है, अपने हाथ मे क्या है!! निःशब्द की रीमेक के लिये फार्म भर दिया है, देखिये..कब तक इंटरव्यू आता है.
    धन्यवाद पधारने के लिये.

    लक्ष्मी जी

    आप सही कह रहे हैं. डॉक्टर ही बदल डालता हूँ. बहुत धन्यवाद हौसला बढ़ाने के लिये.

    रंजु जी

    बहुत आभार. बस हँसते रहें. :)

    मसिजीवी जी

    आप ज्यादा नजदीक से देख रहे हैं कॉलेज के युवाओं को-आप ही सही कह रहे होंगे. हम तो बस चमका रहे थे. हा हा!!

    आपने पढ़ा, बहुत आभार और धन्यवाद.

    पंकज भाई

    गद्दी कहाँ छीन रहा हूँ, अपने हिस्से में तो बैठ सकता हूँ कि वो भी तुमको दे दूँ. :)

    फिर, कविता बढ़िया किये हो.

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  18. मित्र काकेश

    आपको अच्छा लगा. तो हमें भी अच्छा लगा.सफल कर दिया, आभार और धन्यवाद!! :)

    मोहिन्दर भाई

    भूमिका वाली बात तो हमने मजाक में ही ली भईया, तभी तो न न करते हुए फिर भीमकाय भूमिका लिख गये. हम अगर गंभीरता से ले लें कोई बात तो उस दिन सूरज का डायरेक्शन जरुर चैक करियेगा. :) अरे सब मौज मस्ती है.
    कविता अच्छी लगी. धन्यवाद.

    संजय भाई

    अरे वो तो मैं झूठ मे रो रहा था. चुनाव का मौसम है, सहानभूति बटोरने के लिये लोग क्या क्या नहीं करते. :)
    धन्यवाद पधारने और पसंद करने के लिये.

    सुनीता जी

    आप सही कह रही हैं. आपने तो राह दिखा दी. मेरे चहेरे पर खुशी लौटा दी. मेरी दुनिया फिर से हरी भरी कर दी. किस विधी कहूँ आभार तुम्हारा. :)

    अब बस इंतजार करता हूँ. बहुत धन्यवाद हौसला बढ़ाने का और पधारने का.



    भावना जी

    बहुत आभार. आपने मेरी समझदारी को समझा. अब देखिये कोई और समझने को तैयार ही नहीं..लेखनी पसंद करने के लिये धन्यवाद. :)

    प्रत्यक्षा जी

    :) मतलब अच्छा लगा, बहुत आभार और धन्यवाद.

    मनीष भाई

    बहुत आभार और धन्यवाद.. :)

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  19. रचना जी

    टॉप वाली पोजिशन रिजर्व कोटे में है, उससे थोड़ा नीचे पर आसन जमा लेता हूँ. प्रमोशन करने के लिये बहुत आभार और धन्यवाद!! :)

    दिव्याभ भाई

    यही सब सुनने को तो आपकी कमी खटकती थी, बहुत बढ़िया. हौसला बढ़ाने का बहुत आभार और धन्यवाद. :)

    श्रीश भाई

    कितना शिलाजीत मिलाना है और कितना दूध. चार लीटर से ज्यादा दूध एक बार में नहीं पी पाता, पेट भर जाता है. क्या बादम पिश्ता भी डाल कर ओंटा दें तो कोई नुकसान करेगा शिलाजीत के साथ.फिर खाना भी तो खाना होता है :) जरा पूरा नुस्खा बता दें..तब तक शिलाजीत के सिवाय बाकी चालू रखता हूँ.

    धन्यवाद पधारने और सुझाव के लिये.

    अतुल भाई

    बहुत सारी तारीफ के लिये बहुत सारा धन्यवाद. :)

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  20. समीर भाई
    लानत है जो आपको बूढ़ा या बुड्ढा खूंसट कहे! जवानी बरार रखने के लिए कुछ गुर हैं:
    पहला, Life begins at 40. बुढ़ापा कोसों दूर रहेगा।
    दूसरा, बालों पर चांदी का रंग नजर आए तो पढ़नाः
    "वीत राग हो गया मनुज तो बूढ़े ईश्वर का क्या होगा?"
    तीसरा, इनसान और घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता।
    चौथा, यदि कोई ढीट अनभिज्ञता-वश फिर भी नहीं माने तो उसे कहिएः
    "जवां जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है
    बुढापा ज़िंदगी को थाम कर जीना सिखाता है।"
    जैसा आपने लिखा है,
    कहती है कि नज़र तुम्हारी
    अब तुमसे नाराज़ हो गई
    और चिपक लो कम्प्यूटर से
    हालत कैसी आज हो गई.
    यह हमारी भी समस्या थी। हमने पत्नी देवी जी को एक क्म्प्यूटर उनके जन्मोपहार में दे दिया और इंटरनेट का चस्का लगा दिया। अब उनकी आंखों में भी चश्मा लगा हुआ है।
    किंतु सावधान! इस लाइन पर चलना हो तो पहले खाना बनाना अवश्य सीख लेना।

    अति सुंदर!

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