आज से मतदान भी शुरु हो गया. हमें क्या, होये या बंद हो जाये. हमें तो इससे कुछ लेना देना नहीं है. सुबह की चाय पी. अब नामांकन हो ही गया है तो किसी की बेईज्जती तो करनी नहीं है, सोचा एक दो मित्रों को बता दूँ कि भईया, भले ही ८वें नम्बर पर तटस्थ रहें मगर कुछ एक वोट तो पड़ ही जायें ताकि चुनाव प्रक्रिया सुचारु भी दिखे और हमारा ८वें नम्बर पर बने रहने का प्रण भी न टूटे. खादी का सफेद झकाझक कुर्ता पैजामा पहना, जो तरकश चुनाव के समय सिलवाये थे और फिर कलफ करवा कर धर दिये थे. जैसे ही मित्र का दरवाजा खटखटाये, उन्होंने तुरंत दरवाजा खोलते ही गले से लगा लिया. ढ़ेरों बधाईयां दी. हम समझे नामांकन की खबर लग गई दिखता है, फिर भी अनभिज्ञ बनते हुये पूछ बैठे कि भाई, आप बधाई काहे की दे रहे हैं. वो बोले, तरकश चुनाव जीतने की. हमने भी बहुत धन्यवाद किया और मारे शरम के कह ही न पाये कि यार, उसको तो महिना बीत गया, अब तो नया चुनाव आ गया है. बस बधाई लेकर निकल दिये. फिर दूसरे दोस्त के दरवाजे. उससे चुनाव के बाद दूसरी बार मिल रहा था तो पहले मित्र वाला खतरा नहीं था. जैसे ही वो मिला बोला क्या बात है, अब क्या कुर्ता पैजामे मे ही रहोगे कि वापस आदमी बनोगे. हमने कहा कि नहीं मित्र, फिर से चुनाव लड़ रहा हूँ, इस बार जरा बड़ा चुनाव है तो मदद मांगने आया था. वो भी छूटते ही बोला, यार तुम भी न!! एक बार तो ठीक है मगर यह रोज रोज की आदत न बनाओ. जब मिले बस शुरु: भईया, एक ठो वोट दे दो.
अब क्या कुर्ता पैजामे मे ही रहोगे कि वापस आदमी बनोगे. हमने कहा कि नहीं मित्र, फिर से चुनाव लड़ रहा हूँ, इस बार जरा बड़ा चुनाव है तो मदद मांगने आया था. वो भी छूटते ही बोला, यार तुम भी न!! एक बार तो ठीक है मगर यह रोज रोज की आदत न बनाओ. जब मिले बस शुरु: भईया, एक ठो वोट दे दो. .
यार, तुमसे अच्छे तो भिखारी हैं. कम से कम से भूख के कारण मांगते हैं और दे दो तो हजार दुआयें. अगर ऐसे ही संबंध रखना है तो माफ करना दोस्त, अपनी न निभ पायेगी. लो, दोस्ती भी गई और उसने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया. हम तो बहुत उदास हुये. फिर तो कुछ और वाकये हो गये. एक ने कह दिया कि "दाता से सुम भला. ठाड़े दे जवाब" . एक ने कहा कि यह कुछ पैसे रख लो और एक कटोरा खरीद लो कि महावारी वोट की भीख का कटोरा बना घुमा करो. एक बोले कि इस बात की क्या गारंटी कि चलो दूसरी बार देने के बाद अगले महीने फिर मांगने नहीं आओगे. हम तो टूट से गये, आँख से दो बूँद आँसूं गिर पडे और घर लौट पड़े.
रास्ते में एक जगह मंच सजा था, भयंकर भीड़ लगी थी. हमें लगा पता नहीं क्या माजरा है, तो जब कुछ पता नहीं होता, तो एक आम भारतीय की तरह भीड़ का हिस्सा बन कर भीड़ का ईजाफा करने लगे.
रास्ते में एक जगह मंच सजा था, भयंकर भीड़ लगी थी. हमें लगा पता नहीं क्या माजरा है, तो जब कुछ पता नहीं होता, तो एक आम भारतीय की तरह भीड़ का हिस्सा बन कर भीड़ का ईजाफा करने लगे.
तब तक एक कार रुकी, हल्ला मचा, हमने भी सुर मिलाया, स्वामी समीरानन्द की जय. जयकारा गुंजयीमान होने लगा और हम इस गुंजयीमान होने में संपूर्ण योगदान देते रहे बिना जाने कि क्या है और क्यूँ है. यही नियम है.
वो तो जब स्वामी समीरानन्द जी ने बोलना शुरु किया तब समझ आया कि सही जगह रुक गये, वरना ऐसी सब जगह उनकी ही तूती बोलती है जिनका उससे कुछ लेना देना नहीं होता. मंच पर स्वामी जी विराजमान हुये और साथ में उनके पीछे अपनी गर्मजोशी खोये शिष्य गिरिराज जोशी और चार लोग इस बाजू मंच की जमीन पर बैठे और तीन उस बाजू. ध्यान से देखा तो पाया: अरे, यह सात तो वही इंडीब्लागिज वाले नामांकित टॉप सात है जिसमें हम आठवें हैं. सब जनता की मुँह किये, झूठी मुस्कराहट चिपकाये, हाथ जोड़े बैठे थे. सातों ने थोड़े थोड़े पैसे सटाकर यह कार्यक्रम रखवाया था. हमें न शामिल किया, न पूछा. पूछते भी तो हम मना कर देते, क्योंकि हमें तो जो ईश्वर ने दिया है उसमे हम खुश हैं और जब ८वें है तो उसमे क्या मेहनते करना या सटना, सटाना.
स्वामी समीरानन्द ने अनुबंधानुरुप सातों की तारीफ की और उनको जिताने का आग्रह. रह गये तो हम. खैर, हमें तो इससे कुछ लेना देना नहीं था.....स्वामी जी ने एक एक उम्मीदवार का अलग अलग परिचय दिया और कहा:........बाकि अगले अंक में, क्रमशः...यह हम मनीष और अनुराग से सीख गये हैं.
चलते चलते:(एक पुरानी मुंडली, मगर फिर भी बिल्कुल सामायिक, शायद इसी दिन के लिये लिखी गई थी)
विराजमान हैं मंच पर, सब दिग्ग्ज पीठाधीश
हमउ तिलक लगाई लिये, अपनी खड़िया पीस.
अपनी खड़िया पीस कि बिल्कुल चंदन सी लागे
हंसों की इस बस्ती मे, बगुला भी बाग लगावे.
कहे समीर कि भईया, ये तो बहुत बडा सम्मान
इतनी ऊँची पैठ पर, आज हम भी विराजमान.
-समीर लाल 'समीर'
गुरू हो गये शुरू, हम तो अपनी वोटिंग कर आये। हिन्दी को छोड बाकि इंडिक भाषाओं के लिये हमने भी वही आपका तटस्थता का नियम अपनाया ;)
जवाब देंहटाएंसमीर जी, आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं। वैसे पिछले वर्ष जो नाम हिंदी चिट्ठों की सूची में सबसे नीचे था वही विजयी रहा था। :)
जवाब देंहटाएंमेरा वोट is up for sale,
जवाब देंहटाएंनोट दो और
वोट लो.
अरे आप गलत समझ बैठे, मैं रिजर्व बैंक वाले नोट नहीं मांग करा हूं, बस मेरे पकाऊ ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी नोट कीजिये और मेरा वोट लीजिये.
आज का भाव:
1 वोट केवल 5 टिप्पणी में -
going...going...go.....
ग्रूजी हमारी शुभकमानाएं आपके साथ हैं आपकी तश्तरी आसमानों से ऊपर तक भी उडान भरे और दुनिया के हर कोने तक आपकी बातें उडान भरें। आमीन
जवाब देंहटाएंआप जीते शुभ कामनाऐ और मेरा ..........
जवाब देंहटाएंभाई हम जो बोलने जा रहे थे वह तो अनुराग श्रीवास्तव जी बोल गए । बस उसी को दोबारा पढ़ लीजिये , ५ की बजाय ६ पढ़िये । वैसे हमारी शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
हम तो हैं ही आपके साथ हमेशा…
जवाब देंहटाएं"लगा है जोर इतना आसमा में भी रंग निखरेगा…
गुंजेगा नाद आपका फिजा में भी शोर मचेगा…
मेरी यही है तमन्ना की विजय घोष हो पुन:आपका
बजे हर ओर शहनाइयाँ आपके ही नामों का…"
धन्यवाद!!!
हमारे ब्लॉग पर भी आईये
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ थोक* के भाव छोड़ जाईये
बदले में हमारे भी अमूल्य वोट लेते जाईये.
* थोक - थूक नहीं
जय हो स्वामी जी, हमारा वोट भी पक्का समझिए। हाँ हम दस टिप्पणियों से कम पर नहीं मानूँगा। :)
जवाब देंहटाएंNaam ke neechey hone se vyathit na ho hoyein Sameeranand ji, soochi alphabetic order mein hai.
जवाब देंहटाएंसमीर जी वैसे अनुराग जी, बासूती जी और अतुल जी की बात में काफी वज़न लग रहा है क्यों क्या ख्याल है? :) शुभकामनओं के साथ।
जवाब देंहटाएंसमीरलाल जी, हम आपको वोट कैसे दे सकते हैं. मेरा तो कोई वोट नहीं है यह वोटर कार्ड कहां बनेगा?
जवाब देंहटाएंआपको कोई कैसे वोट नहीं देगा.. मेरी शुभकामनाय़ें स्वीकार कीजिये..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाऍं
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