रविवार, जनवरी 14, 2007

अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!!

चलो, नया साल शुरू हो गया, बड़ी अच्छी बात है. मगर मन का क्या करें? हर समय ही विचलित सा रहता है. आंतरिक शांति तो हमारे लिये मानो अमरीकन सपना हो गई है ज्यों नसीब में ही न हो चाहे सद्दाम को फाँसी ही काहे न चढ़ा दो. मन विचलित है तो है. छोटे प्यार दे रहे हैं, बड़े आशिष दे रहे हैं..बराबर वाले गाली बककर अपनत्व का प्रमाण दे रहे हैं मगर ये मन है, विचलित है.

परेशान हूँ, भाई. आज आफिस से वापस आने लगा तो ट्रेन में पढ़ने के लिये एक किताब, मैगजीननुमा, उठा ली. फोटू में डॉ. फिल चमक रहे थे. सोचे कि देखो आज क्या ज्ञान बांट रहे हैं, यही पढ़ा जायेगा.

ट्रेन शुरु हूई गंतत्वय के लिये और हम डूब गये किताब में.

अच्छा लिखा था, पहला ही विचार पढ़ा और हम तो प्रभावित होकर सो गये. कह रहे हैं:

"आंतरिक शांति प्राप्ति का एक मात्र रास्ता है कि अपने अधुरे छूटे कार्य और चींजें पूरी कर लो"

हमें लगा, वाह क्या बात कह गये.

वैसे जमे जमाये लोग गाली भी बकें तो वो ब्रह्म वाक्य होता है और सब उसे मान्यता देते हैं, तो हम काहे पीछॆ रहें.

हमने उनके इस वाक्य को एक भाई जी से पैन उधार माँगकर अंडरलाईन किया और घर चले आये.

दरवाजे से घुसते ही पत्नी को इस विषय में संपूर्ण जानकारी दी. आखिर हमारी अर्धांगिनी है, सब कुछ आधा आधा. तो जो छूटे कार्य हैं वो भी आधे आधे.

मैने तुरंत मन ही मन घर के भीतर नज़र दौड़ाई-क्या क्या कार्य ऐसे हैं जो मैने शुरु किये और पूरे नहीं किये? आज उन्हें करके मानूँगा और आत्मिक शांति को प्राप्त करुँगा. पूरा करने में पत्नी की मदद भी लूँगा, अरे भाई, मेरा अधिकार क्षेत्र है.

सोचा और देखा, मेरा टेबल और दराज बिखरा पड़ा है, तुरंत पत्नी को कहा कि तुम उसे साफ और व्यस्थित करो तब तक मैं बाकी छूटे काम निपटाता हूँ.

पत्नी समझदार है, मेरा भला चाहती है सो जुट गई और हम नजर दौडाने लगे बाकी छूटे काम पर!

अब हम सीधे बेसमेंट में जा पहुँचे. अरे रे, यह क्या, पिछले हफ्ते जानी वाकर स्काच की आधी बोतल छूट गई..न ना, यह नहीं चलेगा, हर छूटे काम निपटाने हैं, आखिर आंतरिक शांति की तलाश है, उसे मिलना ही होगा. अभी खत्म करता हूँ इस काम को. अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!! खत्म हो गया. वाह, काफी शांति मिली. मगर इस वोदका क क्या करुँ जो लगभग चौथाई छूट गई है. हर छूटा काम पूरा करना है, यह हमारा प्रण है, तो खत्म तो करना ही होगा, तो अब उसे निपटाया फिर बचा पान पराग का डिब्बा छूटी तम्बाखु १२० के साथ. सब खत्म....अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!! अनुराग स्टाईल....

अभी भी चार सिगरेट पड़ी है न जाने कब की छूटी उन्हें, कोई नौकर तो लगा नहीं है जो निपटायेगा, तो खुद ही निपटाये...... अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!!

मानो न मानो, बहुत आंतरिक सुख मिल रहा है, ऐसी शांति कि क्या बताऊँ. आप भी सलाह मानो, सब बचे और छूटे काम निपटाओ और आन्तरिक सुख पाओ और कहो अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!!

वाकई यार, कारगर नुस्खा है, हर हफ्ते अजमाऊँगा..आप भी अजमाओ....

फिर बताना कैसा आनन्द आया...अब हम चले सोने बस एक बात कहते: अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!!

:)

23 टिप्‍पणियां:

  1. अनुराग भाई ने जिस सफर को शुरू किया था, आपने उसे गंतव्य स्थान तक पहुँचा दिया है।


    बढिया टिप्स देने के लिए धन्यवाद लालाजी, आज से ही मैं भी अमल शुरू करता हुँ। :)

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  2. बेनामी1/11/2007 10:51:00 pm

    सुबह-सवेरे प्रवचन सुन ज्ञानचक्षु खुल गए.
    अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!!

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  3. डा. फिल के संदेश को अगर कोई ठीक से समझ सका तो केवल समीरानन्दजी,

    वैसे हम भी आपके ही भक्त हैं, आपके कथन को देववाक्य समझकर तुरन्त रसोईघर की तरफ लपक लिये. ये क्या जैक डेनियल का आधा खम्बा खाली पडा है, रूमी को आवाज दी तो लगा वो तो हमारी पुकार के इन्तजार में ही था. बस नाप रहे हैं हम दोनों मिलकर. और टिप्पणी भी लिख दी, अहा..आनन्दम आनन्दम....

    अब ब्लाकबस्टर की दो डीवीडी भी रखी हैं, उनको भी दाब दिया जाये...
    अहा आनन्दम आनन्दम...
    सोते सोते रात को काफी देर हो जायेगी, लेकिन कल सुबह दस बजे की क्लास की आखिरी बेन्च है न सुस्ताने के लिये. अहा आनन्दम आनन्दम.....

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  4. समीरानन्दजी,
    अभी आपकी पोस्ट दोबारा पढी...

    आपने "आनन्दम" के स्थान पर "आन्नदम" लिखा है.
    इसमें कोई गूढ तत्व तो नहीं छुपा है जिसे मेरे जैसे मूढ बुद्धि समझ न सकें हों.

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  5. समीर जी आपके इन विचारों पर हँसते-हँसते लोट-पोट हो गये मेरा भी एक काम अधूरा था बहुत दिनों से "हँसना" तो मैंने आपकी सलाह मानकर उसको पूरा कर लिया। आपकी इस पोस्ट को पढ़कर..........

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  6. धन्य हो गुरुजी,आत्मिक शांति ढूंढने का क्या नायाब तरीका ढूंढा। :)

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  7. अह्हा, आन्नदम, आन्नदम ।
    चरितार्थ लेख, मजेदार ।

    काल्ह करें सो आजकर.

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  8. Anand adhuri batein chejen pura karne me hai.....kuanraa man to kisi aur disha me hi bhatak gaya tha, aapne sambhal liya vodka, cigrate jaisi dava daru ki baat hi karke....

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  9. मैं तो यहां टिप्पणी करके आनंद की प्राप्ति के लिये आया था, पर आपने बताया कि असली आनंद अधूरे कामों को पूरा करके मिलता है.

    तो समीरजी, मैं चला अधूरी बोतलें खाली करने और चरम सुख का आनंद लेने, टिप्पणी बाद में लिखूंगा.

    अहहा...आनंदम...आनंदम ! !

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  10. बेनामी1/12/2007 06:34:00 am

    एक पान तंबाकू खिला रहे हैं तो दूसरे विह्स्की पिला रहे हैं, पूरा ब्लाग मंडल आनंदम आनंदम हो रहा है :)
    बहुत खूब भाई, यूंही लिखते रहिये.

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  11. बोतल कभी न आधी छोड़ी, डिबिया एक मगर आधी है
    उसको अब खाली करना है, बात आपने बतला दे है
    और अधूरे काम सभी जो सुलग रहे हैं अवचेतन में
    उनको करता हूँ जा पूरा, बात सत्य सीधी साधी है

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  12. बेनामी1/12/2007 11:12:00 am

    समीरानन्दजी,
    का बताएं, हम बहुत ज्लदी मे थे - आपकी ये पोस्ट और सारी टिप्पणीयां अपनी USB ड्राईव मे कॉपी करलिया है, शाम को अपने रूम मे कम्पयूटर पर पढलूंगा।

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  13. भाई हम तो न पान-तंबाकू खाते हैं न ही मदिरा पीते हैं, लेकिन अपने भाई लोगों को आनंदित देखकर ही आनंद आ गया।

    और हाँ छूटा काम इस पोस्ट पर टिप्पणी करना था वो कर दिया।

    अह्हा, आनन्दम, आनन्दम!!

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  14. पंकज

    बिल्कुल शुरु हो जाओ, अमल करो और बताओ, कितनी शांति प्राप्त हुई.

    संजय भाई

    हमारा लेखन उद्देश्य सध गया, आपका साधुवाद. धन्यवाद.

    प्रत्यक्षा जी

    चलिये, मुस्कराने के लिये धन्यवाद.

    नीरज भाई

    "आनन्दम" के स्थान पर "आन्नदम" ठीक कर दिया गया है सिर्फ़ शीर्षक को छोड कर, और इस लेख को पढ़कर आपको जो दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई है, उसी की फीस समझ कर आपका सुझाव बिना धन्यवाद अमल कर दिया गया है. आप को हमेशा ऐसा ही आनन्द प्राप्त होता रहे, यही शुभकामनायें हैं. पधारते रहने का शुक्रिया.


    भावना जी

    आप हँसी, स्वास्थय लाभ हुआ, अधूरा काम निपटा-बस समझो, हमारा लिखना सफल रहा. बहुत धन्यवाद इस लेखन को सफलता तक ले जाने के लिये.

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  15. डॉक्टर टंडन साहब

    अरे, और भी तरीके धरे हूँ. आप बस आते रहो, अभी तो प्रवचन शुरु हुये हैं. भक्तों की कतार लग रही है. अभी और सुनाये जायेंगे. हा हा-धन्यवाद आप आये.

    प्रभाकर जी

    मजा आया आप पधारे. बहुत धन्यवाद आपका.

    उपस्थित जी

    चलो, यह बड़ा अच्छा हुआ, भटकन खत्म हुई, वरना तो यह मन बड़ा चंचल होता है और गलत चीजों की तरफ जल्दी भागता है. तभी कहा गया है-“संगत कीजे साधु की”- अब आपने सही निर्णय ले लिया है और साधु समीरानन्द की संगत हो गई है तो संभलना तो था ही…हा हा-आते जाते रहें. बहुत धन्यवाद.

    अनुराग भाई

    जब काम निपट जाये तो आना जरुर. संतों से झूटे वादे नहीं करते, यह तो आपको ज्ञात होगा ही. तो इसे टिप्पणी न मानते हुये सिर्फ आपके आने के वादे का RSVP टाइप माना जा रहा है, और उसी के लिये धन्यवाद भी दिया जाता है.

    जगदीश भाई

    यूँ ही हौसला बढ़ाते रहें, बिल्कुल लिखते रहा जायेगा. आपको बहुत धन्यवाद.

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  16. राकेश भाई

    अधूरे काम निपटाने की आपको प्रेरणा प्राप्त हुई, हमारा लिखना सफल हो गया. आभार आपका कि आपने हमें यह सफलता दिया.बहुत धन्यवाद.

    शुएब भाई

    अच्छा किया कॉपी कर ली. अब पढ़कर बताना कि कैसी लगी. इंतजार लगा है. कॉपी करने का धन्यवाद. :)

    पंडित जी

    पर आनन्द में जो आनन्द प्राप्त करते हैं वो बहुत जल्दी महापुरुष बनने के मुहाने पर पहूँच जाते हैं, वही आप को देखकर लग रहा है. जल्द ही आप महापुरुष कहलायेंगे. :) :)
    अति शुभकामनायें और पधारने के लिये धन्यवाद.

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  17. इस समय प्रयाग नगरी अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!! का केन्‍द्र बनी हुई है। साधु हो या संयासी या आम आदमी सब के सब लगे आस्‍था पूजा और अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!! मे।

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  18. प्रमेन्द्र जी

    प्रयाग का तस्वीरमय विवरण दिया जाये आपके चिट्ठे पर तब आयेगा असली अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!!

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  19. छुटे की जगह हर जगह छूटे कर लें । बार बार ये शब्द आपके आलेख में आ रहा है । बाकी पोस्ट तो हमेशा की तरह मजेदार है ।

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  20. मनीष भाई

    बहुत शुक्रिया इस ओर ध्यान दिलाने का. सभी को सुधार दिया गया है. मार्गदर्शन करते रहें, आभार और पसंद करने के लिये बहुत धन्यवाद.

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  21. कुछ मजा और आनंदम् आनंदम्...
    बहुत खुब ऐसा न हो सर की कामों का
    निपटारा करते २ वक्त से भी आगे
    पहुंच जायें...हा...हा...हा।आप तो कर ले
    जाएंगे लेकिन जो दुसरे है वे तो आपकी
    ही नींद न खराब कर दें...ये सोच कर की
    उसके पास मेरा फलाना काम अभी भी अधूरा
    पड़ा है...।

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  22. दिव्याभ भाई

    अब आप तो समझते हैं हम तो सिर्फ राह दिखा सकते हैं, करनी तो कर्ता के हाथ में है. :)

    पधारने का धन्यवाद. :)

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.