बुधवार, दिसंबर 13, 2006

वाशिंगटन में उड़न तश्तरी भाग १

वाशिंगटन में राजधानी मंदिर के सभाग्रह में हिन्दी समिति और राजधानी मंदिर के संयुक्त तत्वाधान में शनिवार तारीख ९ दिसम्बर को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. कवि सम्मेलन में जिन कवियों ने शिरकत की, उनके नाम:

विद्या पुरोहित,जयगोपाल गुप्ता,सतीश कुमार,विशाखा ठाकर, अब्दुल्लाजी,बीना टोडी, मधु माहेश्वरी,गुलशन मधुर, धनंजय कुमार,कुसुम रस्तोगी, मोना गुलाटी, समीर लाल और राकेश खंडेलवाल.


शाम पौने सात बजे से प्रारंभ होकर कार्यक्रम रात साढ़े ग्यारह बजे तक चला. कार्यक्रम का शुभारंभ समीर लाल ने गणेश जी की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलित कर किया. सम्मेलन का संचालन श्री राकेश खंडेलवाल जी ने और सभापतित्व श्री गुलशन मधुर जी ने किया.

इस सम्मेलन के कुछ हिस्से मैं यू ट्यूब के माध्यम से यहां पेश कर रहा हूँ तथा फोटो के लिये फ़्लिकर पर एलबम बना दी है. इसका स्लाइड शो देखने के लिये नीचे तस्वीर पर क्लिक करें.






यू ट्यूब दो भाग यहाँ दे रहा हूँ, बाकी चार भाग दो पोस्टों के माध्यम से भाग २ और ३ में.

यहाँ देखें:

मित्रों के आग्रह पर विडियो के लिंक डाल रहा हूँ क्योंकि विडियो अपलोड होने मे टाईम लग रहा है:

समीर लाल का काव्य पाठ:

यहां क्लिक करें.

या

http://www.youtube.com/watch?v=_4673qhM6MI


समीर लाल भाग २:

यहां क्लिक करें

या

http://www.youtube.com/watch?v=horkJO6vbkk

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी12/13/2006 09:51:00 pm

    कविताएं सुनी मैंने । भई वाह । मन को भा गईं । बधाई हो । पर पोडकास्ट थोड़ा सही नहीं चलता है । ऐसा क्या नेट सर्विस वीक होने के कारण है ?

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  2. बेनामी12/13/2006 11:28:00 pm

    आपसे साक्षात कविता सुनना, अद्भुत अनुभव रहा.
    खुब आनन्द लिया.

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  3. बेनामी12/14/2006 12:19:00 pm

    खैनी कभी न खाइए बिन ताली मारे आप
    कितना भी हो घिस चुके भाता नहीं वो स्वाद
    भाता नहीं वो स्वाद ताली करवाती सब काज
    बच्चा हो या बड़ा कोई वो ताली का मोहताज

    भई वाह, ताली महिमा भा गई.. इसके बाद की कुंडलिया ''तुम्हीं हो कामना मेरी तुम्हीं हो आराधना मेरी'' पर तो कामना, आराधना, आशा वगैरह छा गई.. इनसे रिश्तों पर भी खूब तालियां बटोर गए समीर भाई.. बधाई हो..

    वैसे हमें तो ''आफ़िस के गुर'' के गुर ज़्यादा पसंद आए हैं..

    मैनेजर से मत लीजिए कभी भी पंगा आप
    ज़रा ज़रा सी बात पर वो दे देता है श्राप
    बतलाया है गुर आपको अपने तक रखना बात
    जीवन भर सजती रहे यूं ही मस्ती की बारात

    समीर भाई, आपकी अन्य रचनाएं यूट्यूब के सौजन्य से सुनने मिल गई वो है ''प्रवासी की पीड़ा''...''बहुत खुश हूं फिर भी न जाने क्यूं'' और ''नेता जी महान हैं''..भी सुनी. यह हाईटेक तरीक़ा प्रशंसनीय है.. सुविधाजनक भी.. बड़े चाव से सुना जा सकने वाला माध्यम. भाव-भंगिमा जो देखने मिलती है... बधाई स्वीकार करें.

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  4. बेनामी12/14/2006 02:30:00 pm

    वाह... आपकी ज़बरदस्त कविता सुनकर तो मैं यहाँ अपने कम्प्यूटर के सामने भी तालियाँ बजा रहा हूँ।

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  5. पढने का अपना मज़ा जरूर है पर मन की आवाज़ नही होती..

    आपकी कविताएँ आपकी वाणी में सुनना सचमुच में बहुत ही आनन्ददायक रहा।

    अब तो यही आस है कि प्रत्यक्ष अहसास भी हो ही जाए।

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  6. बेनामी12/15/2006 05:06:00 am

    कविताएं सुनी . बधाई स्वीकारें !

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  7. बेनामी12/15/2006 05:07:00 am

    कविताएं सुनी . बधाई स्वीकारें !

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