शनिवार, नवंबर 25, 2006

बर्थ-डे बेबी के श्रीमुख से.....

आज तरकश के तीर या यूँ कहें, तरकश के खोल(इसी में तो सारे तीर थमें हैं) का जन्म दिन है. सोचा था, इस शुभ दिन पर इनकी कुछ बर्थ-डे बम्पिंग की जायेगी. रवि कामदार ने दोस्ती का यह फर्ज हमसे पहले ही कूद कर निभा दिया, लोकल है भाई. हम तो हर मौकों पर देर से ही पहूँच पाते हैं. फिर सोचा, चलो केक कटवायेंगे, तो वो भी सागर भाई निपटा गये. अब हम क्या करें, सोचा, इस स्वपन देखने वाले बालक की भविष्य की योजनाओं पर ही कुछ लिखें, तो तब तक ये खुद ही वो भी लिख मारे और हम फिर कलम कागज लेकर बैठे रह गये. फिर हमने सोचा, समय समय पर अपने बडे भाई संजय के भक्त बालक पंकज से हुई बातचीत को ही उनकी आत्मकथा का रुप में पेश कर देते है, बिना कोई कैंची चलाये...वाकई, एक भी बोल, जैसे पंकज के श्रीमुख से निकले, नहीं बदले, बस एक गठरी में बाँधे और आप के लिये ले आये हैं:

चेतावनी: थोड़ा रुमाल वगैरह साथ में लेकर बैठियेगा.कभी आँख भर आयी तो काम आयेगा और कभी हंसी आयेगी, तो भी रुमाल से मुँह दबाकर रोक सकते है. नींद आ जाये तो उससे मुँह ढककर सो जायें!!





बचपन में 6 साल तक बिदासर नामक कस्बे में रहता था जो राजस्थान में है। मुझे बचपन की धुन्धली धुन्धली तस्वीरें याद हैं। पापा तब कोलकाता में व्यवसाय करते थे और गाँव में मै माँ, दादी और भैया के साथ रहता था।

मैं बहुत ही शरारती था और कामचोर भी था। भैया को मैने जितना परेशान किया है शायद ही किसी को किया होगा। और भैया शुरू से ही मेरा इतना ध्यान रखते आए हैं कि क्या कहुँ। मुझे याद है इतना बडा हो गया था फिर भी भैया की पीठ पर ही सवारी करता था चाहे कहीं भी जाना हो। कभी पैदल नहीं चलता था। कई बार भैया को उल्लु भी बनाता था और उनको वचन देता था कि बाज़ार में पैदल चलुंगा पर फिर बाज़ार आते ही अड जाता था कि अब मुझे गोदी लो। भैया बेचारे फिर मुझे लादकर चलते थे। मैं था भी गोलमटोल मोटा ताजा। आज जैसा नही था।

एक बार तो भैया गिर पडे मैरे बोझ से और उनके घुटने छिल गए। आज शर्म आती है मुझे पर उस वक्त तो बडा बेशर्म था क्योंकि उसके बाद भी बाकी का रास्ता भैया पर लदकर ही पुरा किया था। :)

मेरे जीन में फिल्म और विज्ञापन है। छोटा था ना तब से अन्दर का कीडा कुलबुलाने लगा था।

तब तो गाँव में सिनेमा क्या टीवी भी नहीं थी। शायद बिजली ही नही थी। पर मेरा दिमाग फिर भी कैमरा एंगल की तरह से सोचता था।

मैरे पास प्लास्टीक का लाल रंग का हाथी था पहिए वाला। मुझे बडा प्यारा था। मैं रेत के टीले बनाता फिर उसपर से उसको चलाता। कभी एक आँख बन्द करके देखता। फिर दुसरी फिर जो एंगल अच्छा लगता उससे देखता। :)

माँ को भी बहुत परेशान करता था। हमारे यहाँ पक्का शौच नही था। सुबह में मैरे घर के बाहर खुल्ली जगह में पैखाने से लक्ष्मण रेखा बनाता था, और माँ को सब साफ करना पडता था।

भैया की चित्रकारी की पदर्शनी गाँव की दिवारों पर देखने को मिलती थी और मैं कोयले से बनाई उनकी कलाकृतियों की समिक्षा करता था।

फिर हम सब सूरत आ गए। यहाँ भी बचपन से ही बहुत एक्सेपेरीमेंट किया करता था, स्कूल में भी घर में भी।
एक अलमारी के नीचे गत्ते लगाकर पुरा अन्धेरा करता फिर अलमारी के नीचे एकदम अन्दर सफेद काग़ज लगाता। फिर फिल्मों की छोटी रील के टुकडे ( जो हम कहीं से लाते थे ) की सीरीज बनाता और टार्च से प्रोजेक्शन करता। निर्देशक भी मैं, प्रोजेक्टर भी मैं, अल्मारी वाला मल्टीप्लेक्स भी मेरा और दर्शक भी मैं। कभी कभी मेरी छोटी बहन खुशी भी मेरी फिल्मे देखती थी और मुझे यश चोपडा से कम नही समझती थी।

मैं पापा से बहुत डरता था, आज भी डरता हूँ। माँ से कभी नहीं -याद ही नही कभी उन्होने डाण्टा भी हो।

मुझे अस्थमा था, बहुत बुरा अनुभव है वो तो। अस्थमा है भी वैसे तो पर अब दौरा नही पडता। तब तो इन्हेलर का अविष्कार ही नही हुआ था। मै फल नही खा सकता था, चोकलेट नही खा सकता था, तली चिजे नही खा सकता था, कोल्ड ड्रिंक, दूध, वेफर, मावा मिठाई कुछ नही कुछ नही।

संतो की तरह जीया इस मामले में तो। पुरे बचपन में एकाध बार ही चोकलेट चखी। केले का तो स्वाद ही नहीं पता था, दो चार साल पहले ही पता चला। :)

रात को दौरा पडता था, सांस नहीं आता था। पुरी रात बैठा रहता था, जैसे तैसे सांस लेता था।

पता है, मैं हँस भी नही सकता था। क्योंकि बहुत हंस लेता तो शरीर में हवा की मात्रा कम हो जाती और दमे का दौरा पड जाता और मेरी लग जाती। मैं रो भी नही सकता था, क्योंकि रोने से हिचकी बन्ध जाती और दमे का दौरा पड जाता था।

आज वो दिन याद करके रो सकता हुँ। :) क्योंकि अब नही पडता दौरा।

हम जब सूरत आए तो हमारे पास एक सुटकेश ही थी। उसमे कुछ बर्तन और कुछ कपडे थे। बस।
मैने गरीबी को बहुत करीब से देखा है। और सिखा है कि जिन्दगी की भयावहता कैसी होती है। पर माँ ने कभी शिकायत नही की और यह अहसास भी नही होने दिया कि हम अभाव मे हैं।

पापा तो मेरे लिए कुछ भी कर सकते थे। उन्होने मेरी फरमाइश पर घर में टीवी लगाई जब तब की बेंक में टीवी जितने ही पैसे थे। :) (यह बात माँ ने बताई बाद में)

घर में केबल टीवी भी मेरी फरमाइश पर लगा। मैं टीवी पर विज्ञापन देखता था। सिर्फ विज्ञापन। पागलों की तरह।
बस फिर युँही कटती रही...... सूरत से आसाम फिर अब अहमदाबाद।

भविष्य की योजनाएँ:

मुझे छवि को भारत की अग्रणी डिजायन कम्पनी बनाना है। तरकश.कॉम को सबसे लोकप्रिय हिन्दी साइट बनाना है। डिजायन वर्क्स, अपूर्व जिसमें मैं पार्टनर हुँ को भी देखना है।

करीबी मित्र रवि के सारे ड्रीम प्रोजेक्टस जैसे कि गो शोपी, ब्युगल बिजनेस वगैरह की ब्रान्डिग करनी है। जनवरी से हमारी इ-कोमर्स शोपिंग साइट की लोंचिंग करनी है।

फिर भविष्य में मुझे रेस्टोरेंट खोलना है, कोफी शोप खोलनी है। नाम वगैरह सब सोच रखे हैं। :)

और बिल्कुल मुझे फिल्म बनानी है। और टीवी धारावाहिक भी। मैं नागेश कुकुनुर टाइप की फिल्में बनाउंगा। मसाला फिल्मे शायद ना बनाऊँ।

बहुत काम है... आज एक और जन्मदिन आ गया... अभी तो इतने काम पडे हैं।
मै कभी रिटायर नही होने वाला।

भारत के बारे में:

मुझे मेरे देश से बहुत प्यार है। मै इसे छोडकर कभी नही जाउंगा। बल्कि इसे फिर से सोने की चिडीया बनाना है। भारत को शेर बनना है। हमें कायरों की तरह नहीं जीना। हमे दुनिया से लोहा लेना है और पुरी दुनिया को झुकाना है।

मैं सपने बहुत देखता हुँ। रोज देखता हुँ। मुझे यह भी करना है वो भी करना कितना कुछ करना है।

मुझे गुस्सा नही आता, बहुत शांत रहता हुँ। सिर्फ छः बजे के बाद मनमोहन सिह पर गुस्सा आता है।
क्योंकि इन लोगों ने मेरे देश का बंटाढार करके रखा है।

और क्या बताऊँ? मै आपसे बहुत कुछ कहना चाहता हुँ पर कैसे?

बस एक आखिरी बात... हम संघर्ष कर रहे हैं और सारी जिन्दगी करते रहेंगे।

मै हार नही मानने वाला।

//बालक पंकज को जन्म दिन की ढ़ेरों शुभकामनाऐं एवं बहुत बहुत बधाई.//

नोट: पंकज के विषय में काफी जानकारी निरंतर के पिछले अंक में भी अनूप शुक्ल जी के द्वारा दी गई थी.

17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह गुरूदेव, आपने तो पंकज भाई की के "श्रीमुख" से उन्हीं का 'राज' ज़गजाहिर कर दिया, खैर कुण्डलिनुमा या यों कहें की मुण्डलियों के रूप में बतलाते तो ज्यादा मज़ा आता।

    कभी कुछ अपने बारे में भी लिखियेगा :)

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  2. बेनामी11/25/2006 11:21:00 am

    हमारे प्रिय पंकज भाई को तो बधाइ दे चुके अब उनकी आत्मकथा को लिखने के लिये आपको भी दे देते है...........बधाई

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  3. बेनामी11/25/2006 11:30:00 am

    वाकई रुमाल की जरूरत पड़ गई। आंख नम हो गई।
    दिल्ली में जब पंकज से मुलाकात हुई थी तो शांत संमुद्र की सतह जैसे लगे थे, भीतर की लहरें आज आपने दिखा दीं :)
    ईशवर उनकी सभी कामानाएं पूरी करे।

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  4. जन्मदिन के बहाने आपने तो पंकज भाई की जीवनी ही लिख मारी

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  5. भगवान से दुआ करता हूँ कि पंकज भाई के सारे सपने शीघ्रातिशीघ्र पूरे हों। पंकज भाई, फ़िल्म में ऐक्स्ट्रा की ज़रूरत पड़े, तो हमको ज़रूर याद करना। :)

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  6. बेनामी11/25/2006 08:26:00 pm



    पंकज तुमहारे सभी स्वप्न पूर्ण हों !


    शुभ आशीश.....
    रिपुदमन पचौरी

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  7. बेनामी11/26/2006 12:03:00 am

    अरे महाराज आपने तो रूला दिया.

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  8. समीरजी ने कल मुझसे चेट पर कहा कि कुछ अपने बचपन और ख्वाबों के बारे में उन्हे मेल लिखु, वे अपने चिट्ठे पर कुछ लिखना चाहेंगे।

    मैं बहुत अंतरमुखी इंसान हुँ, जल्दी से कुछ बोलता नहीं पर मैं लालाजी के साथ बहुत आराम से घुलमिल जाता हुँ, क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही इतना सरल और मिलनसार है कि मैं बहुत अपनापन महसुस करता हुँ। इसलिए मैं जब लिखने लगा तो लिखता ही चला गया।

    और वो सब बिना सम्पादित हुए ही जाहिर हो गया। :)

    अब पढकर थोडा अजीब भी लग रहा है। :)

    आप लोगों ने जो प्यार दिया है मुझे उसकी मैने कल्पना भी नही की थी। आप सभी का बहुत धन्यवाद।

    लालाजी, प्रणाम।

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  9. सचमुच द्रवित करने वाली कथा है, परंतु आत्मविश्वास से भरपूर.

    मुझे विश्वास है हम अगले दो-तीन वर्षों में ही पंकज द्वारा निर्देशित फ़िल्म का आनंद लेंगे :)

    जब आप तीव्रता से सपने देखते हैं तो विश्व की तमाम शक्तियाँ आपके उस सपने को आपके लिए साकार करने का षड्यंत्र करती हैं...

    पंकज को शुभकामनाएँ व जन्म दिवस की बधाई.

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  10. बेनामी11/26/2006 04:03:00 am

    पंकज जी के बारे में विस्तार से बताने का शुक्रिया!

    और हाँ प्रतीक भाई एक्स्ट्रा का रोल मांग रहिन हैं, हम भी बता दूँ कि विलेन के रोल मैं हम बहुत जचूँगा।

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  11. बेनामी11/26/2006 09:00:00 am

    ये पंकज भाई का फोटो कितने वर्ष पुराना है ?

    शुक्रिया समीर जी, आपने टिप्पणी के लिए लॉग इन का ज़रूरी होना निकाल दिया जो मेरे लिए बहुत प्राबलम दे रहा था।

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  12. अच्छा परिचय दिया समीरजी ने. कामना है कि पंकज के सारे देखे सपने पूरे हों!

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  13. बेनामी11/26/2006 09:49:00 pm

    क्या तरीका बात बताने का, बहुत ही अछ्छा लगा. अभी हिन्दी लिखना सिख रहा हूं, जल्दी ही शुरु करुंगा, हिन्दी में लिखना. मगर भईया आप लिखते रहें, आप अछ्छा लिखते हैं.

    --साकेत मिश्रा

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  14. जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें । ईश्वर आपके सारे सपने सच करें ।

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  15. Bahut he utsahwardhak post lagi,
    mughe bhi kuch likhne ka sauk hua hai,kintu baraha ime se kuch bhi likhna bahut kathin hai, apsabhi ish mamle mein bahut kusal hain koi upay ho to bataeeyega

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  16. बेनामी1/03/2007 06:54:00 am

    पंकज भाई

    ईश्वर आपके सपनो को पुर्ण करे
    समीर जी धन्यवाद !

    आशीष

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  17. लगभग ७ साल बाद आज फिर से मैंने उड़नतस्तरी ब्लॉग पढ़ा है | आज के ६ -७ साल पहले मैं रोज ये ब्लॉग पढ़ता था |पर किसी कारण वश मै इन सबसे दूर हो गया था | उस समय मुझे उतनी जानकारी भी नहीं थी |आज आप सबसे प्रेरणा लेकर मैंने स्वयं अपना एक Hindi Stories
    ब्लॉग शुरू किया है |
    धन्यवाद् गुरु जी

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