अब हम तो जानते नहीं मगर शिष्य की बात कैसे टालें.
कुछ समय पूर्व अनूप भार्गव जी ने ई-कविता के सदस्यों के ज्ञानवर्धन के लिये त्रिवेणी के विषय में जानकारी प्रेषित की थी, उसी को यहां अनूप जी के साभार के साथ पेश कर रहा हूँ.
'त्रिवेणी' गुलज़ार साहब की अपनी खुद की ईज़ाद की हुई विधा है, जिसमें पहली दो पंक्तियां अपने आप में एक बात कहती हैं, तीसरी पंक्ति जरा घुमावदार होती है जो पहली दो पंक्तियों को एक नया अर्थ देती हैं.
इसे और समझने के लिये यूँ समझें:
त्रिवेणी में तीन मिसरे होते हैं, पहले दो में लगता है कि बात पूरी हो गई; जैसा कि एक गज़ल के शेर में होता है. शेर की तरह ही ये पहले दो मिसरे अपने आप में मुक्कमिल भी होते हैं. तीसरा मिसरा रोशनदान की तरह खुलता है, उसके आने से पहले दो मिसरों का मानी या तो बदल जाता है. या उनमें इज़ाफा हो जाता है. यह एक तरह की शोखी है, जो त्रिवेणी में ही मिलती है.
एक दुसरी जगह गुलज़ार साहब कहते हैं:
शुरु शुरु में जब यह फोर्म बनाई थी, तब पता नहीं था तह किस संगम तक पहूँचेगी- त्रिवेणी नाम इसलिये दिया था कि पहले दो मिसरे गंगा जमुना की तरह मिलते हैं, और एक ख्याल, एक शेर को मुक्कमिल करते हैं. लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है- सरस्वती. जो गुप्त है. नजर नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है. तीसरा मिसरा, कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है. छुपा हुआ है.
गुलजार साहब
अब यहां त्रिवेणी पर पढ़ी एक किताब से अनूप जी की पसंद की त्रिवेणियां:
इतनें लोगों में , कह दो आँखों को
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करें
लोग मेरा नाम जान जाते हैं ।
*
शाम से शमा जली , देख रही है रास्ता
कोइ परवाना इधर आया नहीं देर हुई
सौत होगी जो मेरे पास में जलती होगी
*
रात के पेड पे कल ही देखा था
चाँद बस पक के गिरने वाला था
सूरज आया था , ज़रा उस की तलाशी लेना
*
उफ़ ये भीगा हुआ अखबार
पेपर वाले को कल से 'चेन्ज' करो
पाँच सौ गाँव बह गये इस साल
*
सामनें आये मेरे , देखा मुझे ,बात भी की
मुस्कुराये भी पुरानी किसी पह्चान की खातिर
कल का अखबार था , बस देख लिया ,रख भी दिया
*
--गुलज़ार
और फिर एक और:
आओ जबानें बाँट ले अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात , न हम को कुछ समझना है
दो अनपढों को कितनी मोहब्बत है अपनें अदब से ...
--गुलज़ार
फिर कुछ मेरी पसंद की, गुलजार साहब की लिखी हुई त्रिवेणियां:
तेरे गेसु जब भी बातें करते हैं,
उलझी उलझी सी वो बातें होती हैं.
मेरी उँगलियों की मेहमानगी, उन्हें पसंद नहीं.
*
मुझे आज कोई और न रंग लगाओ,
पुराना लाल रंग एक अभी भी ताजा है.
अरमानों का खून हुये ज्यादा दिन नहीं हुआ है.
*
ये माना इस दौरान कुछ साल बीत गये है
फिर भी आंखों में चेहरा तुम्हारा समाये हुये है.
किताबों पे धूल जमने से कहानी कहां बदलती है.
*
चलो आज इंतजार खत्म हुआ
चलो अब तुम मिल ही जाओगे
मौत का कोई फायदा तो हुआ.
*
क्या पता कब, कहां से मारेगी,
बस, कि मैं जिंदगी से डरता हूँ.
मौत का क्या है, एक बार मारेगी.
--गुलज़ार
नोट: रुपा एण्ड कं. ने गुलजार साहब की ६६ पन्नों की पुस्तक 'त्रिवेणी' प्रकाशित की है, जिसका की मुल्य १९५ रुपये निर्धारित किया है और ISBN No.:8171675123 है.
आशा है, अब जल्दी ही गिरिराज जी की शेरों से हट कर कुछ त्रिवेणियां पढ़ने मिलेंगी. शुभकामनायें.
लौटते हुये:
एक बार यह लेख लिख कर हम जा चुके थे, तब तक फुरसतिया जी ने बताया कि वो भी हमारी गैरहाजिरी में, जब जून में हम भारत यात्रा पर थे, तब त्रिवेणी के बारे में विस्तार से लिख चुके हैं, बहुत सी त्रिवेणियां वहां बह रही हैं, आप भी देखें. पता नहीं, हमारी नजरों से कैसे बचा रह गया यह लेख.
अब गिरिराज जो न करवा दें, सो कम. :) एक ही विषय पर फिर से लिखवाई दिये.
वाह समीरलालजी क्या ज्ञान दिया है चेले को
जवाब देंहटाएंवैसे मैंने ही कविराज को त्रिवेणी की धुन चढ़ाई थी चलिए अब आशा है हमारे ये प्रयोगवादी कवि इस पर भी कुछ प्रयोग करेंगे।
त्रिवेणी पढ़्कर तो मन प्रसन्न हो गया
ध्न्यवाद
हम भी खेलेंगे, नहीं तो खेल बिगाडेंगे...
जवाब देंहटाएंगिरी को तारने झट से 'समीर' प्रकट हो आए,
हाईकु-कुँडली के बाद अब त्रिवेणी भी दी सिखाय।
गुरु तो गुड़ ही रहे चेला कहीं शकर ना हो जाए!!
:)
कैसी रही??
वाह 😃
हटाएंओह, भुवनेश भाई, तो ये आप हैं जो उन्हें चढाते रहते हैं और हम खामखां दूसरों पर शक कर रहे थे. भईया, क्या नाराजगी है हमसे, आप तो चढ़ा कर किनारे हो जाते हो, झेलना पड़ता है हमें. कहो तो बाहर बाहर कुछ सेटलमेंट कर लें, मगर बहीया, ऐसे पंगे मत पलवाया करो. :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आप पधारे, और अपका मन प्रसन्न हुआ. यही उद्देश्य भी था. :)
विजय भाई
अरे भैया, खेल मत बिगाड़ो, तुम भी खेलो न!! क्या खेलोगे, बताओ, वही सिखाया जायेगा. चेला तो पहले से ही शक्कर है, बस शक्कर जम कर पथरा न जाये इसी के प्रयास जारी हैं :)
--समीर लाल
गिरिराज जोशी जी तो लकीर हैं जो सामने आने वाले हर गोले की स्पर्श रेखा बनने के लिये उत्सुक रहती है. त्रिवेणी का अच्छा परिचय दिया आपने. अब गिरिराजजी की प्रतिभा के चमत्कार देखने हैं.
जवाब देंहटाएंएक कुंडली वाला चेला, एक त्रिवेणी वाला पाया
जवाब देंहटाएंकिसने दी दक्षिणा गुरु को, किसने है ठेंगा दिखलाया ?
भली करेंगे राम, कि बेटा चढ़ जा अब तू भी सूली पर
कितनों को बतलायें आपने अब तक यह गुरुमंत्र सिखाया
बहुत ही बढिया, गुलजार मेरे पसन्दिदा शायर हैं।
जवाब देंहटाएंगिरिराजजी को परोक्ष और लालाजी आपको प्रत्यक्ष धन्यवाद
लालाजी (आशा है इस अपनत्व के नाम का आप बुरा नहीं मानेंगे)अब तक त्रिवेणी से अनजान ही था. आपने अच्छा परिचय दिया. साधूवाद.
जवाब देंहटाएंपर यहाँ गुलजार सा'ब की त्रिवेणीयों ने वाह वाह करने पर मजबुर कर दिया.
अहो भाग्य गुरू द्रोण के
जवाब देंहटाएंएकलव्य सा शिष्य है पाया
अंगूठा भेंट चढ़ाने में
जो पल भर न घबराया।
धन्यवाद गुरूदेव,
जवाब देंहटाएंआपने जो इतने कम समय में "त्रिवेणी संगम" और श्रीमान् गुलज़ार साहब दोनो को अवतरित किया है उसके लिए मैं तह दिल से आपका आभारी हूँ।
मैं कोशिश कर रहा हूँ, और उसमें कोई कसर नहीं छोड़ूंगा।
"कला" भी खेलेगी कब तक आँख मिचोली
ज़रूर बहेगी "त्रिवेणियाँ" मेरी कलम से भी
कोशिश करने वाले की हार जो नहीं होती ॰॰॰
इतनी बढिया जानकारी देने का बहुत धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंशब्द-संयोजन, मात्रा गिनना,
रोज कठिन बाते बतलाते,
हमारी समझ से ये है बाहर!
इस सबसे तो हम घबराते!!
भाषा क्या भावों से बडी है?
भाषा पर ये मंथन क्यूँ है?
सब अपने ढँग से लिखते हैं,
अभिव्यक्ति पर बन्धन क्यूँ है?
मै तो अपने लेखन के लिये ये कहना चाहती हूँ-
"आप खुद तय कर लीजिये ये व्यंग है, निंबंध है या कि कोई कविता,
मेरे लिये तो ये है विचारों की अभिव्यक्ति और शब्दों की सरिता."
और भी सीखने की कोशिश करती रहूँगी.
गुलजार की बेहतरीन त्रिवेणियाँ परोसी हैं समीर जी आपने ! मजा आ गया पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंअनूप भाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, मैं खुद इंतजार में हूँ कि अब शिष्य क्या चमत्कार दिखाता है.
राकेश भाई
अरे, यह कुंडली वाला और त्रिवेणी वाला दोनों चेला एक ही है. उसी को सिखाये चले जा रहे हैं.
पंकज भाई
चलो, किसी भी बहाने आपकी पसंद की आपूर्ति हुई, धन्यवाद के लिये गुरु का प्रत्यक्ष और चेले का परोक्ष आभार.
संजय भाई
अपनत्व में क्या बुरा मानना, यह तो प्रेम की वर्षा है, जिसका कब से इंतजार था. :)
जानकारी बढ़ने में मेरा कुछ योगदान रहा, मैं अपनी पीठ थपथपाये लेता हूँ और आपका धन्यवाद करता हूँ.
रत्ना जी
जवाब देंहटाएंगुरु का भी तो कुछ ख्याल करें कि सिर्फ़ चेले की तारीफ? :)
वैसे, पधारने के लिये धन्यवाद.
वाह भई कविराज,
गुरु का क्या आभार, बस दक्षिणा की स्पलाई चालू रखो.
कोशिश किये जाओ, बकिया तो हम हहिये हैं :)
शुभकामनायें.
रचना जी
सही कह रही हैं कि मनोभाव सर्वप्रथम आता है, बिना उसके कविता तो हो ही नहीं सकती, चाहे वो किसी भी विधा में क्यूँ न हो. वह तो केवल, अगर आपको किसी खास विधा में ही लिखने का मन हो, तब मनोभव को शब्दों में उतारते हुए कुछ खास नियमों का बंधन देना होता है, अन्यथा तो मुक्त विधा की अपनी अलग खुबसूरती है ही है.
मनीष जी
आपको मजा आया, तो लगा मध्य प्रदेश की सड़कों मे झेली गयी आपकी परेशानियों में हमने कुछ राहत पहूँचाई, वैसे तो पचमढ़ी ने यह कार्य काफी हद कर ही दिया था.धन्यवाद.
समीर लाल 'समीर'
sorry ki main hindi mein type nahin kar sakti...
जवाब देंहटाएंjust wanted to share my favourite triveni here
" chalo na bheed mein chal ke baithe
ki yahan to soch bhi bajti hai kaano mein
bahut batiyaya karti hai yeh phapphekutni tanhaii"
सर
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत बदिया ज्ञान दिया है .
इजाज़त हो तो हम भी एक कोशिश कर लें ;
रात भर चाँद ने छटा भी दी दिखला
सुबह का सूरज मचल कर निकला
किसको सुंदर कहें किसको नाराज़ करें
माफ़ कीजिये .पर शायद इस विधा में ...ब्लॉग ऑरकुट से कही पीछे है.....आज से तीन साल पहले त्रिवेणी नाम का एक ग्रुप गुलज़ार नाम की कम्युनिटी पर ऑरकुट पर बना था ओर अपने शिखर पर रहा.....जिसमे हजारो की संख्या में त्रिवेनिया जमा है ...ढेरो युवायो की लिखी हुई...उसी लुभ्वाने अंदाज में .....त्रिवेणी जब गुलज़ार जी ने लिखी तो पहली बार कमलेश्वर जी ने इसे सारिका में जगह दी थी ,अपने संपादन में.....
जवाब देंहटाएंहाइकु से ये कैसे अलग है तब गुलज़ार जी ने काफ़ी अच्छे तरीके से इसकी व्याख्या की थी....
आदरणीय, आपकी जानकारी बेमिसाल। कृपया निर्देशित करें कि क्या त्रिवेणी में मुक्तक, दोहा आदि के मात्रा नियम या ग़ज़ल के बह्र के नियम लागू होते हैं? आभार।
जवाब देंहटाएंमेने बहुत सी त्रिवेणीयाँ लिखी है l
जवाब देंहटाएंअब भी लिखता हूँ l मेने गुलजार जी को पढ़ा l
उनका बहुत मार्ग दर्शन रहा l
मेने २ दोहे त्रिवेणी छंद पर बनाये है, और इसी तरह लिखता हूँ l
आप सभी की टिप्पणी का आभार l
प्रथम दो सहज मिलन हो, अंतिम हो परिणाम l
त्रिवेणी छंद का सहज, सुंदर हो आयाम ll
मात्रा गणना मुक्त हो, क्षणिका सा हो काम l
सुंदर हो, लय और तुक. का सहज हो मुकाम ll
अरविन्द व्यास "प्यास"
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