गुरुवार, अक्तूबर 19, 2006

एक दिया जलाया है...





हाईकु रचना



आई दिवाली
जगमग करते
दीप सजे हैं
*
रोशन फिर
कितनी आशाओं के
दीप जले हैं
*
खुशियाँ छाईं
हर पनघट पे
गीत बजे हैं
*
दूर उदासी
हर उपवन में
फूल खिलें हैं
*
भूल दुश्मनी
मन उजला कर
भाई मिलें हैं.
*
एक योजना
स्वर्णिम भविष्य की
लिये चले हैं.
*
नव रचना
भारत की करने
युवा खड़े हैं


और एक कुण्ड़लीनुमा रचना इसी खास मौके पर:



दीप दिवाली के जलते हैं, गली गली हर ओर
लक्ष्मी गणेश को पूजते, सज्जन हो या चोर.
सज्जन हो या चोर कि बच्चे खेलें फोड़ पटाखे
मिठाई मेवे के संग में, बंटते रहे खील-बताशे
कहत समीर कि रात जुयें मे तेरी होवे जीत
दिवाली तुझको शुभ रहे, रोशन जग के दीप.

आप सभी को मेरी और उड़न तश्तरी की ओर से दीपावली और ईद की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.


-समीर लाल 'समीर'

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कामना सत्य हो हम सभी
    दीप खुशियों के नित नव जलाते रहें
    भाईचारे की नित रागिनी छेड़ कर
    एक सौहार्द्र को गुनगुनाते रहें
    लेखनी रोज बरसाये आशीष को
    जोकि सौंपा हुआ शारदा ने हमें
    शब्द चिट्ठों की दुनिया से बाहर निकल
    बन सितारे सदा झिलमिलाते रहें

    शुभकामनाओं सहित
    राकेश

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  2. आप हायकू में भी आ गये. बढि़या है. शुभकामनायें दीपावली की.

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  3. ऐसी ही हँसी
    खिलती रहे सदा
    पर्व सा दिन

    दीपावली की शुभकामनायें

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  4. समीर जी,
    दीपावली की ढेरों शुभकामनायें

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  5. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  6. बेनामी10/20/2006 05:56:00 am

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  7. बेनामी10/22/2006 07:39:00 pm

    सर्वप्रथम दीवाली की बहुत-2 शुभकामनायें। 'हायकू'का मतलब तो मुझे मालूम नहीं क्या है लेकिन जो भी है,कवितायें आसानी से समझ मे आने वाली तो जरुर हैं।

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  8. समीर जी आपको दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  9. आप को दीपावली की शुभ कामनायें, काफी देर से।

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