मंगलवार, अक्तूबर 17, 2006

चलत कत टेढ़ो टेढ़ो रे

आज एक ऐसी घटना घटी कि हम ठगे से रह गये. शायद आप भी रह गये हों तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि इस खुशफ़हमी के कई शिकारों से मेरी मुलाकात चैट पर हो ही चुकी है.
हुआ यूँ कि फुरसतिया जी ने आज एक लेख लिखा: लिखये तो छपाइये भी न!अब आदतन तुरंत पढ़े गये. उसी में एक जगह जिक्र आया:


पता नहीं आपको कैसा लगता है लेकिन मुझे कृष्ण बलदेव वैद की डायरी पढ़ते समय अपने तमाम ब्लागर साथियों के लेख याद आ रहे थे और यह कहने का मन कर रहा था कि ब्लाग में लिखने के साथ-साथ अपने लेख, कहानियां, कवितायें जगह-जगह पत्र-पत्रिकाऒं में छपने के लिये भेजते रहें- बिना इस बात की परवाह किये कि वे छपेंगी या नहीं। मुझे अपने तमाम साथियों की रचनायें इस स्तर की लगती हैं जो थोड़े फेर बदल के साथ आराम से पत्र-पत्रिकाऒं में छपने के लायक हो सकती हैं और सच पूछिये तो कुछ साथियों की रचनाऒं का स्तर तो ऐसा है कि वे जिस पत्रिका में छपेंगी उसका स्तर ऊपर उठेगा। मेरा सुझाव है इस दिशा में सोचा जाये और हिचक और आलस्य को परे धकेल कर अपनी रचनायें छपने के लिये भेजने का प्रयास किया जाये।



उपर बोल्ड किया वाक्य देखें:

यह मेरे लिये लिखा गया है ऐसा हमने पढ़कर सोचा भी था और बाद में चैट पर हमसे फुरसतिया जी ने बताया भी तो पूरे से कनफर्म हो गया. हमने कहा भी कि काहे नहीं हमारा नाम भी डाल दिये साथ ही. कहने लगे कि बाकी रचनाकारों का उत्साह कम नहीं करना चाहते बकिया तो सब समझ ही जायेंगे कि ये आप हैं.

हम तो नतमस्तक हो गये. सोचने लगे कि यह होते हैं बड़े रचनाकारों के गुण कि आपके बारे में भी लिख गये, सबको पता भी चल गया और किसी को बुरा भी न लगा और नाम भी न आये.

वाह भई वाह, क्या बात है हमारे फुरसतिया की.

हम सीना फुलाये चैट बज़ार की गलियों में शहंशाह बने घूम ही रहे थे कि एक और ब्लागिया मित्र से मुलाकात हो गई. वह भी अंदर से बेहद प्रसन्न और उपर से गंभीरता का लबादा ओढ़े घूम रहे थे, हमें देखते ही तुरंत चहक उठे: " आपने पढ़ा आज फुरसतिया जी ने हमारे बारे में क्या लिखा? ".

हमारे मन में एकदम साहनभूति जाग गई. एक बार मन में आया कि बेचारा, कितनी बड़ी गलतफहमीं का शिकार हो गया है. रहने देते हैं, कुछ नहीं बताते हैं, कहीं हताशा में कुछ अवांछनिय कदम न उठा ले. रचनाकार तो है ही , चाहे कैसा भी हो. भावुक हृदय होता है. फिर भी रहा न गया. मैने उन्हें समझाया कि भईये, झूठ खुशफहमी न पालिये, वैसे आप ठीकठाक लिखते हैं, मगर अब ऐसा भी नहीं कि फुरसतिया जी आपके लिये कुछ लिखने लग जायें और वो भी इस तर्ज पर. वो हमारे लिये लिखा गया है, हमें तो खुद फुरसतिया जी बताये हैं.

वो आश्चर्य से देखने लगे और भर्राये गले से कहने लगे: "क्या बात करते हो आप भी. हमें भी तो खुद ही वो ही बताये हैं."
विचारों की आंधी चल पड़ी और जब थमीं तब हम दो हो गये थे, एक ही तीर का शिकार तो लगे साथ साथ घुमने. लोग मिलते गये और देखते देखते ऐसे ही शिकारों का कारवां बनता गया और अब तक हम आठ लोगों का हुजूम तैयार कर बाज़ार में ही घूम रहे हैं. अगर आप भी इसका शिकार हैं तो देर किस बात की-आईये न! हम आठ तो घूम ही रहे हैं, आप भी शामिल हो जायें. :)

देर से प्राप्त समाचारों के अनुसार, फुरसतिया जी के इस लेख से चार तरह के घायलों के मिलने की संभावनायें व्यक्त की जा रही है:



१. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है.

२. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और उनके मित्रों ने उन्हें इस बात की बधाई भी दी (कई ब्लाग दिखते हैं जिसमें सब मित्र मिल कर लिखते हैं और रचना पर एक दूसरे को बधाई देते हैं. अब बाहरी कोई आये न आये, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता)

३. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और बाद में वो फुरसतिया जी को खोजते रहे कन्फर्म करने को और वो नहीं मिले.

४.जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और बाद में वो फुरसतिया जी को खोजते रहे कन्फर्म करने को और वो मिले तो कन्फर्म कर गये कि वो आप ही हैं जिनके बारे में उन्होंने लिखा है. (मैं इस श्रेणी का कहलाया)




आप भी बतायें न! क्या आप भी शिकार बनें. अगर हां, तो कौन सी श्रेणी में आप रखे जायेंगे?

याद आ रहा है मुझे:

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया...........

--समीर लाल'समीर'

12 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे पूरी उम्मीद है कि फुरसतिया ने यह मेरे बारे में लिखा है लेकिन मैं इसकी पुष्टि नहीं कराऊँगा।

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  2. बेनामी10/17/2006 10:00:00 pm

    वैसे मै एक सही बात कहू तो कई लोगों को बुरा लगेगा, मै लगभग बहुत कम ही आनलाइन किसी के लेख को पढता तथा जिस किसी के लेख को पढता हूं टिप्‍पणी अवश्‍य करता हूं। इसका एक कारण है कि मेरी आखे आनलाइन पर थोडा कम कम करती है और जो लेख मुझे अच्‍छा लगता है उसका प्रिंट निकाल कर पडता हू। वास्‍तव मै कल का फुरसतियां जी के लेख को नही पढ पाया इसका एक कारण और भी है कि कुछ वरिष्‍ट चिठ्ठाकार एसे है जिनके लेख के लिये मानक है जैसे फुरसतिया जी ही है, इसने लेखो को मै विषय और टिप्‍पणी के आधार पर पडता हूं। टिप्‍पणी भी कुल जमा 4 ही था तथा विषय भी मेरे लायक नही था क्‍योकि ''लिखये तो छपाइये भी न!''मेरे लिये नही था, क्‍योकि मेरे मे अभ वह गुण, विचार तथा बात रखने की क्षमता नही कि कोई मेरी लेखो तथा कविताओं को अपनी पत्रिकाओं मे जगह दें और ये दूसरी बात है कि स्‍थानीय समाचार पत्रो मे मेरे पाठकीय कालम मे छपते रहते है।
    फुरसतिया जी के जिन लेखो को की टिप्‍पणी 10 से ऊपर पहुचे उसे पढना ही पडता है।
    वैसे कई व्‍लागर है जो कही भी अन्‍यत्र लिख कर भेजने मे सक्षम है और उनके लिये वाकई अच्‍छा लिखते है नाम न लूगा अन्‍यथा काफी लम्‍बी लिस्‍ट तैयार हो जायेगी।
    वैसे मै अभी तक वो टिप्‍पणी कर रहा था जो मुझे फुरसतिया पर करनी थी, यह तो समीर जी के साथ बेमानी होगी की उनके ब्‍लाग पर उनके बारे मे न लिख कर सबके बारे मे लिख रहा हूं, पर चिन्‍ता न करे उस लम्‍बी लिस्‍ट मे आपका नाम सर्वोपरि है।
    आपने सभी के लिये चार कटेगरी ही बनाई पर आप मेरे लिये कटेगरी बनाना भूल ही गये। :-(

    :-) :-) हा हा हा

    आप सदा एसे ही लिखते रहे।
    शुभ कामनाओ सहित
    आपका
    प्रमेन्‍द्र

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  3. बेनामी10/17/2006 10:24:00 pm

    मुझे तो लगा कि मैं पहली श्रेणं में हूं

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  4. अरे पूरा चिट्ठाकार समूह आपके कारवां में आ जुडा ;-)


    क्या पोस्ट है , मज़ा आ गया ।

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  5. संक्षेप में इतना ही कहना चाहुंगा, कि फुरसतियाजी चाणक्य हैं इसमें कोई शक नहीं।

    उनका लोहा तो मानना ही पडेगा। लोगों से काम करवा लेने की क्षमता हो या ईशारो में या व्यंग्य में किसी तक सन्देश पहुँचाना हो... उनकी कोई सानी नहीं।

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  6. कुछ विदेशी ताकतो कि वजह से मैं चिट्ठाजगत से कट कर रह गया था, वरना मैंने भी फुरसतीयाजी का वह लेख पढ़ा होता और आपसे बधाई भी ले रहा होता, आखिर मैं ही तो हूँ जिसके बारे में वे ऐसा लिख सकते हैं, यह बात और है की खुशफहमी तो कोई भी पाल सकता हैं. किस किस को रोके. :)
    आपने खुब लिखा हैं. अन्दर तक गुदगुदा दिया. मजा आया.

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  7. समीर भाई हम भी हैं आपके कारवां में!!
    मुझे लगा कि उन्होंने मेरे बारे में लिखा है, कन्फर्म करने के लिये मैंने उन्हें मेल भी लिखा, और सच, अभी तक तक उनकी ओर से कोई खंडन नहीं आया:)
    बहुत अच्छा लिखे हैं, बधाई।

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  8. भाई साहब
    मुझे आप पहली, दूसरी और तीसरी तीनो ही श्रेणी का शिकार समझें।
    फ़ुरसतिया जी ने एक ही तीर से कितनों का शिकार किया है। अभी भी कितने लोग और होंगे जो इस खुशफ़हमी में होंगे कि वह लेख हमारे लिये लिखा था।

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  9. अरे गुरूदेव आप भी शिकार हो चुके हैं बहुत दुःख हुआ यह देखकर।

    असल में गलती मेरी है, फुरसतियाजी ने उस पोस्ट को प्रकाशित करने से पूर्व मुझसे "टेलिपेथी" के जरिये सम्पर्क कर पोस्ट के साथ मेरा नाम भी छापने की अनुमति चाही थी मगर मैने अनुमति सिर्फ यही सोच कर नहीं दी कि कहीं बाकि रचनाकारों का हृदय आहत ना हो मगर इससे इस प्रकार का विवाद भी खड़ा हो सकता है मुझे उम्मीद ना थी, मुझे क्षमा करें।

    मैं सम्पूर्ण ब्लॉग जगत से अपने चिट्ठे पर सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करूंगा।

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  10. पता नहीं, पर एक और कैटेगरी होनी चाहिए थी शायद। क्या किसी और को मेरी तरह ऐसा नहीं लगा कि यह मेरे लिए तो लिखा गया हो ही नहीं सकता?

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  11. कहा किसी ने मैं हूँ बस मैं, कहा किसी ने मैं अव्वल हूँ
    और समझता है ये कोई इन सब में, मैं सिर्फ़ सफ़ल हूँ
    पर मुझको वोश्वास कि मेरा नाम नहीम इनमें शामिल है
    बाकी सब आने वाले है< मैं जो बीत चुका वो कल हूँ

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  12. सच तो यह है कि मैंने यह बात उन सभी के लिये लिखी जो इसे अपने लिये लिखा समझ रहे हैं.लेकिन यह उन पर भी लागू होती है जो यह समझ रहे हैं कि यह उन पर लागू नहीं होती. हमारे तमाम साथी बहुत अच्छा लिखते हैं और कुछ मेहनत करके उनके लेख छपनीय हो सकते हैं.
    कुछ लोग तो सच में ही बहुत अच्छा लिखते हैं और अगर पत्रिकाऒं को उनके लेख मिलेंतो वे खुश हो जायें. मेरी कामना है कि लोग अपने हुनर को पहचाने और आगे बढ़ें.टिप्पणी देर से की सोचने में समय लगा.

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