सम्मेलन मे शिरकत करने पहुंचे ६ कवि, जिसमे अमरीका से पांच और एक कनाडा से आये थे. अमरीका के विभिन्न नगरों से पधारे: घनश्याम गुप्ता जी, अनूप भार्गव जी, राकेश खंडेलवाल जी, अभिनव शुक्ल जी, लक्ष्मी नारायण गुप्ता जी और कनाडा से मै, याने उड़न तश्तरी वाला समीर लाल.
सरस्वती वंदना के साथ निर्धारित समय ठीक सायं ७ बजे कवि सम्मेलन की शुरुवात हुई. राकेश खंडेलवाल जी ने अपने सधे हुये अंदाज मे मंच के संचालन की बागडोर संभाली और बेहतरीन तरीके से इस कार्य को अपने अंजाम तक पहुँचाया.
कवि सम्मेलन की शुरुवात लक्ष्मी गुप्ता जी के द्वारा की गई. विभिन्न दौरों मे उन्होने अपनी प्रसिद्ध पत्नी पुराण का पाठ किया:
पत्नी के बिन नहीं है इस जग में उद्धार।
पत्नी की पूजा करो सब कुछ तज के यार।।
सब कुछ तज कर यार तुम सुनो खोल कर कान।
तिरछी चितवन से तुम्हें कर देगी धनवान।।......
और अन्य रचनाओं के साथ कीर्तन भी किया:
कन्हैया ने पहनी जीन्स, बड़ा रस आयो रे.
लक्ष्मी जी जब अपनी कह चुके तो दूसरे नम्बर पर हम पेश हुये, अपनी कुण्डलियों और हास्य रस की कविताओं के साथ:
विराजमान हैं मंच पर, सब दिग्ग्ज पीठाधीश
हमउ तिलक लगाई लिये, अपनी खड़िया पीस.
अपनी खड़िया पीस कि बिल्कुल चंदन सी लागे
हंसों की इस बस्ती मे, बगुला भी बाग लगावे.
कहे समीर कि भईया, ये तो बहुत बडा सम्मान
इतनी ऊँची पैठ पर, आज हम भी विराजमान.
अंतिम दौर खत्म होने से पहले हमने एक गीत भी तर्रनुम मे गाया:
आदमी की सोच मे फिर से कमी हो जायेगी
वक्त के इस साथ चलते, मतलबी हो जायेगी.
देखता हूँ बैठ कर मै इस चिता पर कब्रगाह
छोड दो इस बात को, ये मजहबी हो जायेगी.......
अपनी पेशकश पूर्णता मे एक अलग पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुँचाता हूँ.
फिर भाई अभिनव शुक्ल हाजिर हुये सुपर डुपर स्टाईल मे एक से एक कवितायें लिये और बांधे रहे अंत तक अपना समा:
एक बार नेताजी भ्रमण हेतु जा रहे थे,
रास्ते में सुअर की बच्चा एक आ गया.......
और फिर अपना लोकप्रिय मुट्टम मंत्र:
डाक्टर बाबू कह रहे सुबह सवेरे जाग,
बिस्तर बिखरा छोड़ के चार मील तू भाग,
चार मील तू भाग छोड़ दे घी और शक्कर,
सेब संतरा चाप लगा गाजर के चक्कर,
अंग्रेज़ों की तरह यदि उबला खाएगा,
दो महीनें में बिल्कुल ही दुबला जाएगा।
फिर रसगुल्ले, वेलेंटाईन डे...और भी ढ़ेरों.
अनूप भार्गव जी ने भी अपना समा बांधा और सब उन्हे मंत्र मुग्ध हो सुनते रहे:
रिश्तों को सीमाओं में नहीं बाँधा करते
उन्हें झूँठी परिभाषाओं में नहीं ढाला करते
उडनें दो इन्हें उन्मुक्त पँछियों की तरह
बहती हुई नदी की तरह
तलाश करनें दो इन्हें सीमाएं
खुद ही ढूँढ लेंगे अपनी उपमाएं
होनें दो वही जो क्षण कहे
सीमा वही हो जो मन कहे
और फिर:
कब तक लिये
बैठी रहोगी मुठ्ठी में धूप को,
ज़रा हथेली को खोलो
तो सबेरा हो ...
फिर:
जज़्बातों की उठती आंधी हम किसको दोषी ठहराते
लम्हे भर का कर्ज़ लिया था बरसों बीत गये लौटाते .....
और भी अनेकों. श्रोताओं ने उनके भारत मे हुये सम्मान पर तालियां बजा कर स्वागत किया.
घनश्याम गुप्ता जी का अंदाज निराला रहा और उनकी प्रस्तुति बहुत बेहतरीन:
मूक चिन्तन भी अधूरा मुखर वाणी भी अधूरी
चेतना के बिम्ब से वंचित कहानी भी अधूरी ........
और
सूर्यमुखी फूलों के हाथों का पीलापन
लिये लिये सिमट गई आखिर संध्या दुल्हन....
बहुत सारी रचनाओं के साथ घनश्याम जी छाये रहे.
और फिर राकेश खंडेलवाल जी, जितना सुंदर और सधा हुआ उनका मंच संचालन रहा, उतना ही गजब का काव्य पाठ. वो तो अपनी हर बात कविता मे ही कहते है, सो मंच संचालन से ले, निमंत्रण तक काव्यात्मक ही रहा:
प्रश्न तो कर लूँ
मगर फिर प्रश्न उठता है कि मेरे प्रश्न का आधार क्या हो
पार वाली झोंपड़ी से गांव का व्यवहार क्या हो.......
तथा
तुमने कहा न तुम तक पहुँचे मेरे भेजे हुए संदेसे
इसीलिये अबकी भेजा है मैने पंजीकरण करा कर
बरखा की बूँदों में अक्षर पिरो पिरो कर पत्र लिखा है
कहा जलद से तुम्ह्रें सुनाये द्वार तुम्हारे जाकर गा कर
लगभग ११० से अधिक हिन्दी प्रेमी श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो पूरे रात्रि ११.३० बजे तक सुनते रहे. श्रोताओं मे सुभद्रा कुमारी चौहान की सुपुत्री श्रीमती ममता भार्गव की उपस्थिती ने कार्यक्रम मे चार चाँद लगा दिये.
इस मौके पर ली गई चंद तस्वीरें भी पेश हैं:
बायें से दायें: अभिनव शुक्ल, अनूप भार्गव, राकेश खंडेलवाल, लक्ष्मी गुप्ता, समीर लाल
बायें से दायें: राकेश खंडेलवाल, घनश्याम गुप्ता, अनूप भार्गव, अभिनव शुक्ल, समीर लाल
बायें से दायें: घनश्याम गुप्ता,राकेश खंडेलवाल, अनूप भार्गव, सरिता कंसल, नरेन कंसल, अभिनव शुक्ल, समीर लाल
टीप: १.फोटो के आधिक्य मे पोस्ट खुलने मे आ रही दिक्कत के बारे मे जान कर कुछ फोटो को अलग किया जा रहा है और साईज भी छोटी कर दी गई है.
२.राकेश खंडेलवाल जी के द्वारा इंगित किये जाने पर फोटो के साथ नाम जोडे जा रहे हैं.धन्यवाद, राकेश भाई, इस ओर ध्यान दिलाने के लिये.
--समीर लाल 'समीर'
आपने आखो देखा हाल पढवाया इसके लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी कवि महोदयो ने अच्छा शमा बांधा तथा ममता भार्गव से मिल कर अच्छा लगा पर यह नही पता चल सका कि वे कौन वाली थी ।
आपने इसका काफी अच्छा वर्णन भी किया है। साधुवाद
बात मजहबि हो जाएगी..
जवाब देंहटाएंतथा
खोल दो मुठ्ठी...
वाली पंक्तियाँ वाह..वाह.. करने पर मजबुर कर देती हैं.
मजा आ गया... क्या कविताएँ हैं.. एक से बढकर एक..
जवाब देंहटाएंबात मज़हबी हो जाएगी... शुभान अल्लाह!!!
अपने उपर हँस पाना महान लोगों की निशानी है और आप खुद अपने उपर आसानी से हँस लेते हैं और हँसा भी लेते हैं।
जवाब देंहटाएंबधाई, बहुत ही अच्छा लेख पर यथाशीघ अपनी कविताऒं को हमें पढ़वायें।
समीर भाई:
जवाब देंहटाएंकवि सम्मेलन के इतनें सजीव चित्रण के लिये धन्यवाद और बधाई ।
तुम से मिलना और सुनना इस यात्रा की उपलब्धि रही ।
शुभकामनाओं के साथ ...,
जो क्षण साथ आपके बीते, वे मुझको इतिहास हो गये
जवाब देंहटाएंशब्द आपका सुर पाते ही सब के सब अनुप्रास हो गये
नेहा की परिभाषा को फिर नये अर्थ से मैने जाना
आप शून्य सी वीरानी में गीतों के आकाश हो गये
जानकारी के लिए शुक्रिया समीरजी - तसवीरें भी बढीया हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया विवरण दिया है, समीर जी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सजीव चित्रण दिया है आपने!
जवाब देंहटाएंडाक्टर बाबू कह रहे सुबह सवेरे जाग,....
और
छोड दो इस बात को, ये मजहबी हो जायेगी.....
मन को भा गई
अरे हम तारीफ करना भूल ही गये.बिलेटेड तारीफ आपकी कि आपने इतना सजीव विवरण दिया.आपकी बाकी की कवितायें पढ़ने का इंतजार है.बाकी साथियों के लेख भी आयें तो अच्छा.
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह !
जवाब देंहटाएंशुद्ध समीर के झोंके जैसी रेपोर्ट का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंagar post kar dete apne blog per to hum bhi chale aate. Chalo kher .....
जवाब देंहटाएंवाह समीर जी..कवि सम्मेलन की सिरकती डीटेल दिये जाने की बधाई स्वीकार हो...इतना सब हो रहा है और हम बेखबर से बने बैठे हैँ...आपसे न मिल सकने का हमेशा अफसोस रहेगा..कोई ऐसे चमत्कार की आशा मे है कि हम भी ऐसे समारोह का हिस्सा बन सके.
जवाब देंहटाएंबधाई एक बार पुन:
कवि सम्मेलन अपनी तरफ. मैं तो यह कहना चाहता हूं कि कभी तो आप कुछ बेकार सी पोस्ट लिखें जिससे हमें छिद्रांवेषण का मौका नसीब हो!
जवाब देंहटाएंमौका न देने की कसम खाई है क्या?