मंगलवार, सितंबर 05, 2006

गुरू गोविंद दोउ खड़े

आज शिक्षक दिवस है. सभी गुरुजनों को, जिनसे भी मैने कभी भी, कुछ भी सीखा है, चाहे वो मुझसे उम्र मे बडे हों या छोटे, मेरा हार्दिक नमन, अभिनन्दन एवं साधुवाद.

आज समय बदल गया है, जो कि समय का नियम है. मेरे पिता जी के समय, फिर मेरे समय और फिर मेरे बच्चों के समय मे जहां एक ओर सामाजिक मान्यताऎं बदली तो दूसरी ओर, उसी के अनुरुप परिभाषाऎं.
पिता जी के वक्त पाठशाला ही सब कुछ होती थी, हमारे वक्त तक गुरु जी के घर पर थोडी बहुत ट्यूशन और बच्चों के वक्त तक पूरी साज सज्जा के साथ कोचिंग क्लासेस. इन बदलावों के साथ साथ गुरु शिष्य संबंधों मे भी घोर परिवर्तन आ गया, जो कि हर वक्त महसूस किया जा सकता है. अब यह बात भी सामायिक न हो कर पुरातन लगने लगी है आज की पीढी को:

गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय.

--कबीर

आज के परिवेश पर आधारित चन्द पंक्तियां पेश हैं:

शिक्षक

शिक्षक को सम्मान नही है
शिक्षण का सम्मान नही है
कैसे रंग रँगी अब दुनिया
शिक्षा भी अब दान नही है.

शिक्षा का बाज़ार यहाँ है
खरीदार हर छात्र यहाँ है
एकलव्य यदि नही दिखे तो
बोलो द्रोणाचार्य कहाँ है?

-समीर लाल 'समीर'

पुनः, सभी गुरुजनों को मेरा हार्दिक नमन.

10 टिप्‍पणियां:

  1. गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
    नेताजी आऍ रहे, चलो उनका जूता चमकाऍ

    Thats what students seem to be doing anyway these days.

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  2. लगता हैं गूरु जनो को नमन करने वाली हम आखरी पीढ़ी हैं.

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  3. लालाजी, व्यवसायीकरण के इस दौर में शिक्षा का भी कल्याण हो चुका है। क्या करें.... होता है

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  4. बहुत सही बात कही है।

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  5. कालीचरण जी की टिप्पणी में हास्य के मुखौटे के पीछे जो पीड़ा छिपी है उसने ना जाने क्यों बड़ा व्यथित किया। सही कहा, यही सोच हो गयी है आजकल।

    शिक्षक दिवस पर मेरा शत शत नमन सभी शिक्षकों को।

    उम्मीद का दिया बुझने ना दीजिये,"वो सुबह कभी तो आएगी।"

    अनुराग

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  6. शिक्षक per likhi kavita bahut pasand aai :)

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  7. सुनते थे एम ए पी एच डी जो डिग्री हैं
    सच्ची लियाकत के आगे पानी भरती हैं
    विद्वता ओढ़ती नहीं लबादा काली डिग्री का
    गुदड़ी के लालों की ही मांगें बढ़ती हैं
    पर जब वैतरैणी पार लगाने वाली सी
    केवल डिग्री की ही पूछें दिन रातें हैं
    तब ही बाज़ारों में बोली लग रही आज
    जो भाव बढ़ा देते हैं वे ही पाते हैं

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  8. बहुत सामयिक कविता है, समीर जी। आज कल बहुत से गुरु भी इज़्ज़त के काबिल नहीं है। मेरा भान्जा राजनीति शास्त्र की कक्षा में था। शिक्षक से प्रश्न पूछने पर उत्तर मिला कि यदि उत्तर जानना हो तो मेरी कोचिंग क्लास ज्वाइन करो।

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  9. Sanjay ji ki baat se sahmat hun...
    Gurujano ko naman karne waali ham
    aakhiri peedhi hain..
    Sikshak divas par apaki likhin hui
    chand panktiyon ko salaam.
    -Vij

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  10. बिल्कुल सही।
    शिक्षक का सम्मान खोते-खोते अमरीका की हालत काफ़ी खराब है। राष्ट्रपति बुश को बार-बार अमरीकियों को याद दिलाना पडता है कि बच्चों पढो नहीं तो चीनी-भारतीय तुम्हारी रही-सही नौकरियाँ भी ले जायेंगे।

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