गुरुवार, मई 25, 2006

गुलमोहर के दो चित्र

गुलमोहर पर प्रत्यक्षा जी की पोस्ट देखी( इस समय यही शीर्षक अनुभूति के याहू ग्रुप पर चल रहा है). मन मे आया, कुछ मै भी बोलूँ. अब तकनिकी जानकारी के आभाव मे बहुत कुछ तो नही कह सकता, बस अपनी समझ से दो रुबाईयों के रुप मे लिख रहा हूँ, और दोनों एक दूसरे की विरोधाभासी...आप भी देखें ( क्या मालूम रुबाई है भी कि नही :):


गुलमोहर के दो चित्र: रुबाईयां

//चित्र १//

गुलमोहर के फ़ूल से मुझे रुसवाई है
बिखर जाता है जब भी हवा आई है
हमारे नातों मे इसका कोई वज़ूद नही
जुदा ना कभी होने की कसम खाई है.

//चित्र २//

गुलमोहर की रंगीन छटा घिर आई है
कोयल इक गीत नया फ़िर लायी है
चलो हम संग मे गुनगुनायें इसको
जिन्दगी बन कर इक बहार आई है.

--समीर लाल 'समीर'

6 टिप्‍पणियां:

  1. गुलमोहर फुलों का नाम बहुत सुना है. अच्छे होते है क्या?

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  2. दोनों ही सुंदर हैं।

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  3. गुलमोहर के फ़ूल से मुझे रुसवाई है
    बिखर जाता है जब भी हवा आई है


    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी

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  4. संध्या आई ले गुलमोहर और भोर भी है गुलमोहरी
    गुलमोहर का रूप लिये है अलस भरी इक गर्म दुपहरी
    याद, छुअन, अनुभूति सभी पर आज छा रहा है गुलमोहर
    सुन्दर लिखीं समीर आपने, ये रूबाईयाँ दो गुलमोहरी

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  5. प्रतीक एक भावनायें दो । अच्छा प्रयास है !

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  6. बहुत खूब मगर गुलमोहर फूलों का नाम मैंने भी सुना है लेकिन कभी देखा नहीं।

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