सोमवार, मार्च 20, 2006

कुछ बूंदें बारिश की:विवादित "वाटर" फिल्म

अभी विवादित "वाटर" फिल्म देखी, मन दुखी हो गया.दिल को मेरे रुला दिया और मै अब तक दुखी हूँ. दीपा जी से गुजारिश, नया भारत देखिये और दिखाईये. जो आप दिखायेंगी वही बाहरी दूनिया समझेगी...खैर, जो भी हो, इस बाबत कुछ पंक्तियाँ उतर आयीं कागज पर.....चुहिया को देख:

कुछ बूंदें बारिश की

छाजन से मैने
हाथ अपने बढा के
बारिश की बूंदो को
अंजूरी मे सजा के

क्या पाया है मैने
यूँ सपने जगा के
अपंग समाज है इसे
अपना बना के.

--समीर लाल

2 टिप्‍पणियां:

  1. समीर जी,
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं। Robert Frost की कविताएँ मैंने भी पढ़ी हैं परंतु आपके द्वारा किया गया रूपांतर मूल कविता से किसी भी प्रकार उन्नीस नहीं है। बहुत बढ़िया।

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  2. आपको मेरा प्रयास पसंद आया,बहुत धन्यवाद आपका,शालिनी जी।
    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं

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