हिन्दी नेस्ट कार्यशाला #१६ मे चयनित मेरी रचना:
यादें
जब भी उस तस्वीर की तरफ
मेरी नजर जाती है
मॉ
मुझको तेरी बहुत याद आती है
वो तेरी ऊँगली पकड कर के चलना
समुंदर की लहरों पर गिरना मचलना
वो तेरा मुझको अपनी बाहों मे भरना
माथे पे चुबंन का टीका वो जडना
जब भी हवा अपने संग
समुंदर की खुशबु लाती है
मॉ
मुझको तेरी बहुत याद आती है
वो मेरी चोट पर तेरा आसूँ बहाना
मेरी बात सुन कर तेरा खिलखिलाना
मेरी शरारतों पर वो झिडकी लगाना
फिर प्यारी सी लोरी गा कर सुलाना
जब भी रातों मे हवा
कोइ गीत गुनगुनाती है
मॉ
मुझको तेरी बहुत याद आती है
समीर जी,
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी कविता है। दिल को छू गई।
बहुत धन्यवाद,लक्ष्मी जी
जवाब देंहटाएंसमीर लाल
अनायास ही अश्रु आन पडे...दिल को छू जाने वाली कविता... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंफि़जा़
बस दिल की आवाज है, फ़िजा जी.
जवाब देंहटाएंसमीर लाल
बहुत भाव प्रधान रचना ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंभावों से भरी....
यादों के कोमल एअसास से भरी ..बहुत सुंदर रचना ..!!
जवाब देंहटाएंकल 10/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर...दिल को छू गयी..
जवाब देंहटाएंसादर.
:) :) :):) , jitni bhi smile du aapki is kavita ke liye wo kam rahengi
जवाब देंहटाएंभावों से परिपूर्ण...सीधे दिल में उतरने वाली रचना.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन भावमय रचना है...
जवाब देंहटाएंमां और बच्चे के बीच के संबंध की बात ही निराली है। बहुत ही भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएं..शुभ होली।
माँ जीवन का वो उपहार हैं जिसकी चमक कभी धूमिल नहीं पड़ती ....
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