शनिवार, जनवरी 18, 2025

नन्हे नन्हे से कदम उठाओ – वन स्टेप एट ए टाइम

 



आज वो सुबह से ही पान की दुकान पर उदास बैठा था। चेहरे पर ऐसे भाव मानो सब कुछ लुटा आया हो। बहुत पूछने पर उसने बताया कि ये आने वाला साल 2025 पूरा बेकार चला गया। मैं आश्चर्य में था कि जो साल अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुआ है वो भला पूरा बेकार कैसे चला जा सकता है। मुझे लगा कि शायद 2024 की बात कर रहा है।

तब उसने बताया कि बेकार तो 2024 भी चला गया था मगर वो दीगर कारणों से बेकार हुआ था। पिछले साल तो खैर हमारा ही दोष था।

दरअसल वो हर साल पहले 15 दिन मनन चिंतन करके एक सूची तैयार करता है कि इस साल उसे क्या क्या करना है। उसके इस साल के क्या गोल है। उन्हें वह किस तरह प्राप्त करेगा। कुछ लोग इसे न्यू ईयर रेजेल्यूशन का नाम भी देते हैं मगर उसका सदा से मानना रहा है कि साल शुरू होने के 15 दिन बाद जब साल न्यू नहीं रह जाता तो साल के साथ साथ न्यू ईयर रेजेल्यूशन भी पुराना हो जाता है। पुरानी चीजों से फिर भला कैसा लगाव। इसीलिए न्यू ईयर रेजेल्यूशन 15 दिन में ही खत्म हो जाते हैं। इसी के चलते वो उनको गोल पुकारता है। वो उनको न्यू ईयर के ही पहले 15 दिनों में बनाता है ताकि इस साल की बात इस साल में ही रहे तो पुरानी नहीं पड़ती। ये तरीका उसने एक अखबार में छपे आलेख ‘सफलता की कुंजी’ में पढ़ा था 4-5 साल पहले। उसी में लिखा था कि जब भी गोल बनाओ तो पूरा मनन चिंतन करके बनाओ और उसे लिखो। मन ही मन में गोल बना लेने से थोड़े दिन में वो दिमाग से भी गोल हो जाते हैं। ऐसे में जो चीज याद ही नहीं वो क्या खाक पूरी होगी। साथ ही यह समझाईश भी दी गई थी कि नन्हे नन्हे से कदम उठाओ – वन स्टेप एट ए टाइम। एक साथ लंबी छलांग लगाओगे तो मुंह के बल गिरोगे धड़ाम से।  

बात समझ में आ गई अतः पहले वर्ष तो मात्र एक डायरी और पैन ही खरीदा -कुछ मनन भी किया लेकिन लिखने वाला बड़ा स्टेप अगले साल उठायेंगे सोच कर मामला अगले साल पर सरक गया। खुशी इस बात की थी कुछ मनन तो हो ही गया और गोल लिखने के लिए डायरी और पैन भी ले आए- इसके पहले तो जीवन में इतना भी नहीं किया था।

उसके अगले बरस मनन भी किया, चिंतन भी किया और गोल भी लिखे – यह अपने आप में बड़ी विजय थी उन नन्हें नन्हें से उठते कदमों की। गोल पूरा करने को अगले बरस का नन्हा कदम मान कर डायरी ताले में रख दी गई। चौथा साल याने कि 2024 में मनन चिंतन भी किया और एकदम स्पष्ट गोल भी लिख गए जैसे कि हफ्ते में तीन दिन सुबह 5 बजे उठकर जिम जायेंगे और 20 किलो वजन घटाएंगे, जिम से आते ही नहा धोकर हेल्थी नाश्ता करके 1 घंटा नियम से साल भर में 12 किताबें पढ़ेंगे, पीना पिलाना भी तभी जब खास दोस्त मिल जाएं वो भी लिमिट में और ऐसे ही दो एक गोल और। जिम ज्वाइन कर लिया। किताबें भी ले आए मगर बस, खास दोस्त रोज मिल जाते और लिमिट तो खुद की बनाई हुई -तो न तो सुबह सुबह आँख ही खुलती जिम जाने के लिए और जब जिम गए ही नहीं तो लौटते कहाँ से किताब पढ़ने के लिए। कहते हैं इमारत का एक स्तम्भ गिर जाए तो सारी इमारत भरभरा ढह जाती सो ही उसके साथ हुआ। सारे गोल गोलमोल होकर रह गए। तभी उसने ठान लिया था कि 2025 को तो साध कर ही रहूँगा। 4 साल सरकाते हुए 5 वें साल में तो सरकार भी कुछ न कुछ साध ही लेती है चुनाव में दिखाने के लिए।  

2025 आया। मनन हुआ, चिंतन हुआ, डायरी में नए नए गोल लिखे गए। पूरी रूपरेखा तैयार हो गई। कल शाम को जाकर जिम भी ज्वाइन कर आए थे। हर नन्हें कदम के साथ डायरी में सही का निशान भी लगाते जा रहे थे कि ये स्टेप हो गया अब अगला स्टेप लेना है। जिम ज्वाइन करके जब साइकिल से घर लौट रहे थे तब रास्ते में कहीं डायरी ही गिर गई। काफी खोजा मगर मिली नहीं।

अब साल के पहले 15 दिन तो आने से रहे इसीलिए मन खिन्न है और बता रहे हैं कि 2025 का साल ही बेकार चला गया। अब अगले साल ही देखेंगे।

हमने समझाया भी कि हादसा तो बड़ा हुआ है मगर तुम ऐसा क्यूँ नहीं कर लेते कि पिछले साल की डायरी निकालो और जो गोल उसमें लिखे थे उनको ही पूरा कर डालो।

तब उसने आलेख की अंतिम लाइन, जिसमें की सफलता का सारा राज छिपा है, वह बतलाई कि ‘अगर जिंदगी में सफल होना है तो पीछे मुड़कर कभी मत देखो। ‘

अब जो इंसान इतना क्लियर हो अपनी सोच में – उसे तो कोई क्या ही समझा सकता है।

-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार 19 जनवरी ,2025 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/15578

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