रविवार, जुलाई 16, 2023

नंगा क्या नहाये और क्या निचोड़े

 


शाम को जब जिम जाता हूँ तो चैक इन करते वक्त वो दो तौलिया देते हैं.

एक तौलिये का इस्तेमाल तो वर्क आऊट करते वक्त पसीना पोछने के लिए और दूसरा, जब वर्क आउट पूरा हो जाये तो लपेट कर सौना (९० डिग्री सेल्सियस पर तपते कमरे में बैठ कर पसीना निकालने की विधी) में जाकर पसीना बहाने और फिर शॉवर में नहा कर बदन सुखाने के लिए.

सौना में जाना मुझे वैसा ही लगता है जैसे  हर वक्त एसी कमरों में रहने वाले नेताओं का किसी गरीब दलित के घर जाकर एक रात बिता कर उनकी समस्याओं को अहसासना. उनका वो खाना साथ में खा लेना जो कि नेताओं के उपभोग के लिए लैब से स्वीकृति प्राप्त हो. जेड सिक्यूरीटी वाले कुछ भी थोड़े न खा सकते हैं. ऐसे परिवेश में जहाँ आपका दिन भर का काम और माहौल आपको एक रत्ती पसीना न बहाने दे, तब श्वेद ग्रंथी पड़े पड़े बंद न हो जाये इस हेतु आप सौना में जाकर पसीना बहाते हैं. कुछ तो फायदा होता ही होगा और उससे ज्यादा मानसिक संतोष की प्राप्ति होती है. सौना में बैठा हर व्यक्ति चेहरे पर ऐसे भाव रखता है मानो वो जाने कहाँ की मेहनत कर रहा हो और पसीना बहा रहा हो. ठीक वैसा ही भाव जो इन नेताओं के चेहरे पर होता है किसी दलित के घर रात बिता कर निकलते हुए मीडिया के सामने आते हुए.

अक्सर अचरज में पड़ जाता हूँ जिम द्वारा प्रद्दत इन तौलियों का साईज देख कर. लम्बाई टोटल ३८ से ४० इन्च. अब जब कोई बंदा जिम आ रहा है तो ठीक ठाक साईज का या ज्यादा साईज का ही होगा जो अपना साईज कम करने में लगा होगा. जिम किसी टी बी के  मरीज के लिए टी बी रीहेबीलिटेशन सेन्टर तो है नहीं कि जो आयेगा २२ -२६ कमर वाला दुबला पतला ही होगा. ऐसे में ये तौलिये, न बाँधने में न सम्भालने में. हम जैसे लोगों के लिए, जो जिम की आबादी का ८०% है...उनकी हालत इन तौलियों को लेकर यूँ समझें कि सामने ढ़ाकें तो पिछवाड़ा खुला और पिछवाड़ा ढ़ाके तो सामने खुला. पिक एन्ड चूज़...तो कोशिश होती है कि ऐसा कुछ हो जाये कि साईड खुली रहे. थोड़ा खुला थोड़ा ढका..मानो आज की हिरोईनें कपड़े से कह रही हो कि थोडा और छोड़ो न..कितना ढँक देगो..कुछ तो दिखने दो और कपड़ा है कि अपने सामर्थ के अनुरुप ढंक देने को बेताब!!

फिर सोचता हूँ कि ये कोई सरकारी योजना है क्या? दे भी दी और मिली भी नहीं. मिली भी तो पूरी नहीं.

मगर तब सौना में देखा कि कुछ रईसजादे अपनी अलग ही सोच रखते हैं...वो वाकई इन तौलियों को रुमाल समझ कर गले में टांग लेते हैं और मात्र पसीना पौंछने को इस्तेमाल करते हैं..शरीर ढ़ंकने को उनके पास अपनी मँहगी बाथ रोब होती है लम्बे तौलिये नुमा...उनके लिए जिम का तौलिया मात्र एक शिगुफा है..पसीना पोछो और धुलने फैंको!! पसीना बहाने आये हैं या बाथ रोब का रौब दिखाने, समझ ही नहीं आता.

इन्हें देख कर लगता है मानो साहेब सूट बूट पहन कर अपनी बी एम डब्लु से उतरे हों... और लगे झाडू उठा कर स्वच्छता अभियान चलाने... उन्हें देख कर, कचरा खुद घबरा कर दौड़ पड़ता है कचरा दान की तरफ..कि हे प्रभु..आप यहां कैसे?..शर्मिन्दा करेंगे क्या? हम खुद ही चले जाते हैं कचरा पेटी में..

मगर सौना में ज्यादा आबादी उन लोगों की होती है जो इन तौलियों को कंधे पर टांगे यूँ ही बिना कुछ पहने आ बैठते हैं..मानों देश की आम जनता की हालत इस कहावत से बयाँ कर रहे हों:

’नंगा क्या नहाये और क्या निचोड़े’


-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 16, 2023 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/4530


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शनिवार, जुलाई 08, 2023

गाँव में योगा, दूर करे रोगा

 

जब से विश्व एक गाँव कहलाया- ग्लोबल विलेज, उन्होंने ने अपने पद को ग्राम प्रधान का दर्जा दे दिया. इससे बेहतर पद विश्व गुरु के लिए और हो भी क्या सकता है.

ग्राम प्रधान की थाली में दो सूखी रोटी और पालक का साग उनके स्वास्थय के प्रति सजगता दिखाती है. वो बड़े गौरव के साथ अपना सीना ताने अपने रईस दोस्तों के बीच अपनी डाइट बताते है. अपना एक्सर्साईज रुटीन बधारते हैं. नित प्रति दिन ऐसी साइकिल (एक्सर्साईज बाईक) चलाने का दावा करते है जो जाती तो कहीं नहीं मगर मीटर में दिखाती है कि पूरे पाँच किमी चली है याने अगर १०० दिन की बात करें तो ५०० किमी चली- मानो साइकिल न हुई, सरकार हो गई हो. हुआ गया कुछ हो या न हो, १०० दिन में ५०० किमी का रिपोर्ट कार्ड लहराया जा रहा है हर तरफ. काश!! ५०० किमी की जगह, दिल्ली से ५० किमी दूर तक भी निकल लिए होते सही में साईकिल चलाते और कुछ जमीनी हकीकत का जायजा ले लेते तो शायद कुछ किसान आत्म हत्या करने से बच जाते. कुछ खिलाड़ी बेटियों को न्याय मिल जाता. शायद महीनों से राहत की बाट जोते किसी सरकारी कर्मचारी के परिवार को कुछ आशा की किरण दिख जाती.

लेकिन हमारे नेताओं की आदत में है, आपदाओं और विपदाओं का हवाई निरीक्षण करना और उसके आधार पर बने जमीनी विकास के रिपोर्ट कार्ड को हवा में लहरा लहरा कर जनता को बहलाना. आकाश से देखने का फायदा ये होता है कि कीचड़ में ऊगी घास भी हरियाली नजर आती है. मुश्किल तो उसकी है जिसे उस कीचड़ के दलदल से होकर गुजरना होता है. लेकिन उसकी किसे फिकर- कीचड़ में उसके कपड़े खराब हों या वो दलदल में फंस कर दम तोड़ दे- ये सब उसकी परेशानी है. हमारा रिपोर्ट कार्ड तो दिखा रहा है कि चहु ओर हरियाली ही हरियाली है. हरित क्रान्ति के इतिहास में पहली बार इतना हरा अध्याय.

खैर, बात चल रही थी एक्सर्साईज रुटीन की- तो यदि आप योग को योगा कह दें तो ये तुरंत वैसा ही स्टेटस सिंबल बन जाता है जैसे मानों आम आदमी की थाली से उचक कर दो सूखी रोटी और पालक का साग ग्राम प्रधान की थाली में शोभायमान होने लगा हो और जब ग्राम प्रधान की थाली में आया है तो बखाना भी जायेगा और जब बखाना जायेगा तो रिपोर्ट कार्ड में भी आयेगा.

गांवों में अस्पताल हो या न हो और अगर अस्पताल हो भी तो उसमें डॉक्टर का अता पता लापता हो मगर इससे क्या फरक पड़ता है. बेवजह हल्ला मचाते हो फालतू का मुद्दा उठा कर. चलो, तैयार हो जाओ इस समस्या के समाधान के लिए- २१ जून को अन्तर्राष्ट्रीय योगा दिवस के दिन सब साथ में योगा करो. योगा में अगर भगवान का नाम न लेना हो मत लेना, अल्लाह का ले लेना, ईशु का ले लेना - क्या फरक पड़ता है मोटापा कम होने में अगर पाव दो पाव का अंतर रह भी गया इस वजह से तो. जब सब सूर्य नमस्कार कर रहे हों तो तुम सूर्य ग्रहण की कल्पना करते हुए चाँद सलाम कर लेना, लिटिल स्टार मान कर ट्विंकल ट्विंकल हैलो कर लेना- आँख तो मूँदी ही रहना है.

जो मन करे सो करना- बस इतना ध्यान रखना कि अब आगे से बीमारी के लिए अस्पताल और डॉक्टर की मांग उठाना मना है क्यूँकि रिपोर्ट कार्ड दिखा रहा होगा कि गाँव(विश्व) में सब योगा कर रहे हैं और सब पूर्ण स्वस्थ है!!

इससे अच्छे दिन की और क्या कल्पना कर सकते हो, बुड़बक!!

चलो नारा लगाओ – दूर करे रोगा, गाँव में योगा.

जब योग योगा हो सकता है तो रोग रोगा क्यूँ नहीं हो सकता?

समीर लाल ‘समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 8, 2023 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/4390

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