आज सुबह जब टहलने
निकला तब
आदतन हर रोज
की तरह अरमानों का
इक बादल उठा
लाया था साथ अपने ,
दिन गुजरा और
बदला कुछ मौसम,
सूरज अब डूबने
को हुआ है लालायित –
और मैं खोज रहा
हूँ उस बादल को
वो भी
खो गया कुछ मुझसा
मेरे साथ
या फिर बरस गया
है कहीं कुछ यूं ही
पसीनों की उन
झिलमिल बूंदों के साथ
जो मुझे ले आई
हैं दिन के उस पार से
इस पार तक एक नया मैं बनाते हुए !!
हर रोज इक बादल
खो जाता है मेरा
इन मेहनतकश पसीने
की बूंदों के साथ –
जिंदगी शायद
इसी कशमकश का नाम है!!
मगर साथ ही मुझे
इस बात का भी भान है-
सूरज डूबता ही
है फिर से ऊग आने के लिए!!
-समीर लाल ‘समीर’
डूबता सूरज फिर उगने का संदेश देता है...और सुबह आशाओं के बादल...बस इससे ज़्यादा जीने की क्या वजह चाहिये... सुन्दर रचना...👌
जवाब देंहटाएंडूबता सूरज भी उम्मीदों को बंधा रहा है और नित नए अरमानों के बादल का सृजन ज़िन्दगी को ऐसे ही कशमकश में डाले रखता है । सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसूरज का निकलना एक उम्मीद है। सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंसूरज डूबता ही है फिर से ऊग आने के लिए!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जीवन में उम्मीद जागते भाव ।
सकारात्मकता को टोहती भावपूर्ण सुदर अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
और मैं खोज रहा हूँ उस बादल को
जवाब देंहटाएंवो भी खो गया कुछ मुझसा मेरे साथ
या फिर बरस गया है कहीं कुछ यूं ही
पसीनों की उन झिलमिल बूंदों के साथ
वाह!!!
क्या बात...