रविवार, मार्च 29, 2020

अगर मैसेज न आये तो फिर आयेगा क्या?



पूरा भारत घर में बंद है सिर्फ उनको छोड़कर जिनको बाहर होना चाहिये जैसे डॉक्टर, पुलिस आदि. साथ ही कुछ ऐसे भी बाहर हैं जो पुलिस से प्रसाद लिए बिना अंदर नहीं जाना चाहते. मगर घर में बंद लोग पूरी ताकत से व्हाटसएप पर चालू हैं. अगर व्हाटसएप का मैसेज मैसेज न हो कर एक पैसे वाली करेंसी भी होता, तो आज हर घर करोड़ पति बस रहे होते. लखपति तो खैर वो जब घर में नहीं बंद थे, तब भी होते.
एकदम से बाढ़ आ गई है मैसेज और फॉरवर्ड की. बाढ़ कहना भी शराफत ही कहलायेगी दरअसल आई तो सुनामी है. सोना जागना खाना पीना मुश्किल हो गया है. अच्छा खासा मोबाईल है महंगा वाला फुल्टूस मेमोरी के साथ. मगर घड़ी घड़ी मेमोरी फुल दिखा रहा है. साफ करो, फिर भर जाये. स्वच्छता अभियान से भी बुरा हाल हो गया है इसका. वहाँ भी कम से कम मंत्री जी की सेल्फी हो जाने के बाद कुछ घंटे तो लगते ही हैं पुनः कूड़े को सेल्फी की जद वाले स्थल पर पुनर्स्थापित होने में. मगर यहाँ तो वो मौका भी नहीं.
जितने ग्रुप हैं. सब के सब वही के वही फॉरवर्ड भेज रहे हैं. लगने लगता है कि सिर्फ ग्रुप के नाम अलग अलग हैं, सदस्य वही के वही हैं. फिर जाकर उनके सदस्यों के नाम पढ़ो कि अगर ऐसा है तो सारे ग्रुप डिलीट करके एक ही रखें, तो सदस्य भी अलग अलग निकलते हैं.
जितनी परेशानी हो रही है, उत्सुक्ता भी उतनी ही बनी है तो कोई ग्रुप छोड़ा भी नहीं जा रहा है. भले ही बाहर आकर बस गये हैं मगर डीएनए तो वही भारतीय है न!! बस जैसे ही नया मैसेज पकड़ आया, धड़ाक से अपने भी सभी ग्रुपों में भेजे चले जा रहे हैं कि कोई कम न आंक बैठे.
अब जब फॉरवर्ड करना है तो मोबाईल में मेमोरी भी चाहिये तो पुराने मैसेज साफ करो. फिर वही दुविधा कि कौन से वाले? क्या पता कोई फॉरवर्ड होने से रह गया हो वो भी डीलीट न हो जाये.
कुछ मैसेज जरुरी जानकारी से भरे हैं. कुछ तब तक जरुरी जानकारी से भरे हैं जब तक उनके फेक होने का दूसरा किसी और का मैसेज नहीं आ जाता. कुछ हँसी मजाक वाले. ऐसे विषम समय में उनकी भी जरुरत है. कुछ करोना से डराने वाले, तो कुछ करोना से बचने के उपाय बताने वाले. कोई कह रहा है बीस सेकेंड हाथ धोते रहो तो कोई गरारे करा रहा है तो कोई पूरा ही नहलवा दे रहा है. कोई कपूर, लौंग, इलाईची का जंतर बनाकर गले में बांध कर घूमने की सलाह दे रहा है. तो कोई हल्दी पिलवा दे रहा है. कोई करोना के आंकड़े बता रहा है. कोई ज्योतिष के हिसाब से कब तक करोना का कहर समाप्त हो जायेगा, उसकी घोषणा कर रहा है. कुछ लोग अपने गाने की कला पर हाथ साफ करके झिलवा रहे हैं तो कुछ की छिपी प्रतिभा सामने आ रही है. 
मने कि जितने हाथ, उतने मोबाईल और उतने गुणित १२ घंटे के हिसाब से ७२० मैसेज. सोचो भला. अभी भारत में करोना बंदियों का चौथा ही दिन है. १७ और गुजरने हैं. कैसे संभालेगे इतनी आमद रफ्त इतने सारे मैसेजों की.
एक सोच यह भी आती है कि अगर मैसेज न आये तो फिर आयेगा क्या? विकल्प क्या है? लोगों का आना जाना तो बंद ही है. अतः आने देते हैं मैसेज ही. कम से कम कुछ तो आ रहा है. हम तो वो लोग हैं जो विकल्प के आभाव में सरकार तक उनकी बनवा देते हैं जिनके हटने की दिन रात प्रार्थना करते हैं. फिर यह तो मैसेज मात्र है. कम से कम इसको डिलीट कर हटाने की सुविधा तो है.
-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मार्च २९, २०२० के अंक में:
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शनिवार, मार्च 21, 2020

दुनिया व्हाटसएप रुपी ज्ञान का मास्क पहन कर ही चल रही है




भारत यात्रा के दौरान सूचना दी मित्र को कि उनके शहर दर्शन पर हैं सपरिवार. शहर देखेंगे, कुछ सिद्ध मंदिरों मे दर्शन कर प्रभु का आशीष प्राप्त कर आप तक कल पहुँचेंगे.
मित्र ने हिदायत दी कि मंदिर में भीड़ बहुत होती है, अतः दर्शन टाल दिया जाये. करोना वायरस फैला है, खतरा न पालें. मित्रवत सलाह थी किन्तु परिवारिक सदस्यों की धार्मिकता हमारी व्यक्तिगत मित्रता पर भारी पड़ी. अतः जाने के विचार से न जाने के विचार को नीचा दिखाने हेतु यूँ सोच पैदा की कि प्रभु ही अपने भक्तों की रक्षा करेंगे.
कल तक नित प्रभु दर्शन की चाह में लंबी लंबी क़तारों में खड़े लोग आज इसलिए  एकाएक घरों में दुबक गए हैं कि कहीं मंदिर की भीड़ भाड़ में करोना का वायरस उन्हें अपनी चपेट में लेकर सच में न प्रभु दर्शन करा दे. इनमें से कई तो व्यवस्था में लगी पुलिसजो सुनिश्चित करती है कि लोगों को क्रमवार दर्शन होको अच्छी ख़ासी रक़म देकर जल्दी से मूर्ति के दर्शन प्राप्त कर लेते थेआज बिना किसी रिश्वत के साक्षात दर्शन के मौक़े से छुपे बैठे हैं.
प्रभु का सर्वदा दर्शनाभिलाषी आज प्रभु के साक्षात दर्शन से बचने के लिए हर तरफ मास्क पहने घूम रहा है. यहाँ तक की मंदिर के भीतर भी लोग मास्क पहने दर्शन प्राप्त कर रहे थे. उसे डर है कि प्रभु उसे पहचान ना लें कि यही है जो दर्शनाभिलाषी था. जिसे मास्क नसीब नहीं हुआ, वो मास्क की तलाश में हर मेडीकल स्टोर पर मंदिर की तरह शीश नवा रहा है कि शायद कहीं मिल जाये.
चीन से आये वायरस से बचने के चीन से न आ पाये मास्क की तलाश कहर ढहा रही है. सारी दुनिया चीन से माल लेना बन्द कर चुकी है मगर वायरस फ्री का है तो बिना लिए भी अपने आपको दिये जा रहा है.  फ्री का माल सभी आदतन ले लेते हैं. मास्क फ्री नहीं है अतः अपने आप आपको चीन से निकल शेष दुनिया को नहीं दे पा रहा है. तो शार्ट स्पलाई हो गया है.
कामगार जनसंख्या के आधार पर ऐसे मौके का फायदा सिर्फ भारत उठा सकता था संपूर्ण विश्व को मास्क बनाकर सप्लाई करने में. मगर वो स्वयं मास्क पहने मौके का फायदा उठा रहा है. कोई स्वच्छ भारत मे प्रदूषण  के नाम पर मास्क पहने घूम रहा है, तो कोई कर्ज वसूली वालों से बचने को मास्क पहने घूम रहा है. मास्क बना सकने वाले मास्क खरीद कर पहने हुए इस बात पर इतरा रहे हैं कि अगला मास्क नहीं खरीद पा रहा है. किसी ने ऐसे ही हालात देख कर तंज कसा कि डॉक्टर भी इसीलिए मास्क पहन कर मरीज का ऑपरेशन करता है ताकि अगर वो ऑपरेशन के दौरान मर जाये तो उस मरीज की आत्मा उसे पहचान कर सताने न अ जाये.
मास्क की कमी, वायरस की बढती धमक और माहौल देखते हुए मुझे ऐसा लग रहा है कि अगला चुनाव ’हर चेहरे पर एक मास्क’ के वादे पर लड़ा जायेगा. फिर भले ही तब तक करोना वयारस स्वतः ही वीर गति को प्राप्त हो चुका होगा. कागजी शौचालयों के देश में खुले में शौच मुक्त भारत में बिना वायरस के मास्क युक्त हर चेहरे की परिकल्पना, एक नये युग का दिवा स्वपन बनेगा. प्रदुषण से मुक्ति के लिए प्रदूषण दूर करना तो जरुरी नहीं..वो ऐसे भी तो हो सकता है –’मास्क लगाओ, प्रदुषण भगाओ’.
जीएसटी और नोट बंदी के चलते मंद पड़े बाज़ार में व्हाटसएप के ज्ञान के अलावा आज अगर कुछ बिक रहा है तो एक तो वो है  वायरस और प्रदूषण से बचाने वाला मास्क जो शॉर्ट सप्लाई में है. मास्क बेचने वाले मेडिकल स्टोर और मास्क सुझाने वाले डॉक्टर की क्लिनिक. और इसके अलावा मन्दी की मार से दूसरी जो वस्तु बची है, जो महंगाई और विषमताओं के बीच मुस्कुराते हुए जीने की वजह देती हैवो है शराब. देशी हो या विदेशीक्या फ़रक पड़ता है. भले चाईना में ही क्यूँ न पैक हुई होजिस भी दुकान से बिकेबिकती भरपूर है.
नेता भले ना वादा निभायेदारू अपना कर्तव्य ज़रूर निभाती है. जब तक आपके साथ है,जन्नत नसीबी का वादा निभाती है.
सच्चाई और सच्चे लोगों की अंततः विजय होती है. एक सच ही तो अंततः बच रहता है. शायद यही वजह है कि साची मय में श्रद्धा से डूबे भक्तों के पास ना दुख ठहरता है ना ही करोना वायरस. बस श्रद्धा से साथ निभाते चलो.
यही फ़रक है नेता और इसमें- इसे वादा निभाना आता है. इसी बात पर एक चीयर्स. रीसर्च बता रहे हैं कि अल्कोहल करोना की काट है.

व्हाटसएप की दुनिया में कौन जाने यह किसी अल्कोहल वाली कम्पनी का बांटा ज्ञान ही न हो. जानता तो खैर कोई ये भी नहीं है कि करोना वायरस के प्रसार में भी व्हाटसएप का कितना योगदान है. क्या फरक पड़ता है? आज कल की दुनिया व्हाटसएप रुपी ज्ञान का मास्क पहन कर ही चल रही  है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मार्च २२, २०२० के अंक में:
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