कुछ दिन पहले फ्रांस ने जब बच्चों को चपत लगाने
को गैर कानूनी घोषित किया तो वो इस तरह का ५५ वाँ देश बना. सबसे पहले १९५७ में स्वीडन ने इसकी
शुरुवात की थी.
हमारा जन्म १९५७ के बाद हुआ. मगर
जब किस्मत में पिटना लिखा हो तो कौन बचा सकता है? अतः भारत में पैदा हुए.
शायद पिछले जन्म में नेता रहे होंगे या पहुँचे हुए बाबा, इसलिए कर्मों का फल भुगतने भेजे गये
हों भारत. रुप
रंग में भी उन्हीं कर्मों की सजा का स्वरुप झलकता है.
बचपन में नित ही कूटे पीटे जाते रहे. सिर्फ
माँ बाप से पिटते, तो भी चला लेते. मगर वो जमाना ऐसा था कि पड़ोस वाले चाचा
भी हाथ साफ कर लेते थे. घर आकर बताओ तो फिर पिटो कि जरुर तुमने कोई
बदमाशी की होगी.
स्कूल में मास्साब लोग तबीयत से पीटा करते थे. कभी
खुद की गल्ती पर तो कभी सहपाठी की गल्ती पर. मगर पिटते जरुर थे नियमित रुप से. हमारे
एक मित्र थे गुड्डू. एक रोज उनके पिता जी ने उसे घर की दलान में
जबरद्स्त पीटा छड़ी से. पूरे मोहल्ले ने देखा. किसी बुजुर्ग ने आगे बढ़कर गुड्डू को
बचाया. पूछने
पर गुड्डू ने बाताया कि उसने तो कोई गल्ती की ही नहीं है. तब उसके पिता जी बोले कि नहीं की है तो
क्या हुआ. करेगा
तो जरुर, बदमाशी
इसका हर रोज का काम है और आज मुझे दो दिन के लिए दौरे पर जाना है. वे
टैक्स विभाग में काम करते थे अतः शायद एडवान्स टैक्स का अभिप्राय भली भाँति समझते
रहे होगे.
हद तो तब हो गई जब हमारे एक अन्य मित्र मंटू घर
की छत पर सिगरेट पीते हुए पकड़ा गये. उनके पिता जी अभी उनकी पिटाई कर ही रहे थे कि
हम पहुँच गये किस्मत के मारे उनके घर. तब उसके साथ साथ हमें भी पीटा गया कि तुम इसके
साथ दिन भर रहते हो तो तुमसे ही सीखा होगा इसने सिगरेट पीना. हमने कहा कि हम तो पीते ही नहीं सिगरेट. तो
फिर पीटे गये कि नहीं पीते तो इसे पीने से रोका क्यूँ नहीं? हमको बताया क्यूँ नहीं? अब
हम क्या कहते, चुपचाप पिट लिए मित्र का साथ साथ. जबकि
सच्चाई तो यह थी कि वो अपने पिता को अपना रोल मॉडल मानता था और चूँकि वो सिगरेट
पिया करते थे अतः उन्हीं के समान दिखने के लिए मंटू उन्हीं की पाकिट से चुरा कर
सिगरेट पिया करता था. मुझे लगता है कि अगर उसे सिगरेट पीने के बदले
चोरी करने के लिए पीटा गया होता तो शायद ज्यादा उचित होता. मगर जिसके हाथ में पीटने का अधिकार हो
वो तो बस मौका खोजता है. उचित अनुचित की आप जानो.
वैसे भी आजकल सब तरफ ऐसा ही माहौल दिख भी रहा
है. कोई
बल्ले से मार रहा है. कोई रोमियो स्कॉवाड के नाम पर भाई बहन को ही
पीटे डाल रहा है. कोई गाय का इलाज करवाने ले जाते व्यक्ति को गौ
तस्कर कह कर पीट रहा है. कोई शिद्दत से की गई मोहब्बत को मजहब से जोड़कर
लव जिहाद का नाम देकर पीटे डाल रहा है. मुद्दा कोई भी हो, बस मतलब पीटने से है. अब
सईंया भये कोतवाल तो डर काहे का की तर्ज पर लोग कानून हाथ में लिए घूम रहे हैं. पीटने
का मौका खोज रहे हैं. झूठी ताकत के नशे में डूबे हैं.
खैर, फ्रांस में नया नया आया बच्चों को चपत लगाने को
गैर कानूनी करार देने वाला कानून थोड़ा ध्यान से पढ़ा. पता चला कि हालांकि बच्चों को चपत
लगाना गैर कानूनी बना दिया गया है मगर माता पिता के लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं
है. फ्रांस
की सरकार का मानना है कि मात्र गैरकानूनी करार कर देने से माता पिता को लगेगा कि
वो गैरकानूनी काम करने जा रहे हैं अतः वह नहीं करेंगे.
मुझे लगा कि यह तो अपने यहाँ भी हो ही रहा है. लोग
घूस खाये जा रहे हैं. घूस खाना गैर कानूनी तो है ही बल्कि सजा का
प्रावधान भी है किन्तु घूस खाने वाला यह भी जानता है कि अगर पकड़े गये तो घूस
खिलाकर बच जायेंगे. अगर भारत भी ऐसे ही बच्चों को चपत लगाने को गैर
कानूनी घोषित कर दे तो अपने यहाँ तो वो बच्चे जो अब तक नहीं पिट रहे हैं, वो
भी इसी चक्कर में पिट जायेंगे कि कानून हमारा क्या बिगाड़ लेगा?
कानून को चैलेन्ज करने में जो मजा हमें आता है
वो पालन करने में कहाँ? कानून तोड़ने का मजा ही कुछ और है.
तभी तो जिस कोने में पान थूकना मना लिखा होता
है, वहीं
लोग शान से सीना तान कर पान थूकते हैं.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के
रविवार जुलाई ७, २०१९ में